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दशलक्षण से पूर्व एक वार्तालाप

*दशलक्षण से पूर्व एक वार्तालाप*

प्रो अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली

भक्त : भाई साहब ,इस बार दसलक्षण पर्व पर कौन कौन से कार्यक्रम हैं ? 

अध्यक्ष  : 
इस बार प्रातः प्रक्षाल पूजन  के अनन्तर दसलक्षण विधान का भी आयोजन है ।

भक्त : वाह ! बहुत बढ़िया , और शाम को ? 

अध्यक्ष :
शाम को सामूहिक आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम , बस ।

भक्त : 
बस ,और शास्त्र सभा, प्रवचन ? 

अध्यक्ष :
 अब कोरोना के नियमों के कारण सभा करना ठीक नहीं है । संक्रमण का डर है ।

भक्त :
भाई साहब , संक्रमण का डर तो प्रातः भीड़ में भी है । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी है ।

अध्यक्ष :
है तो पर जितना बचा जा सके ,उतना तो बचो ।

वैसे भी , उसके लिए बाहर से पंडित जी को बुलाना पड़ेगा , उनके रहने खाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी । आवागमन का व्यय देना पड़ेगा ...काफी झंझट है ।

भक्त :
एक तो कई वर्षों से दोपहर का तत्त्वार्थसूत्र का पाठ और प्रवचन बंद है और अब किसी न किसी बहाने शाम के प्रवचन भी बंद हो जायेगे । फिर हम जिनवाणी कहाँ सुनेंगे ? 

अध्यक्ष :
अरे ! उसकी क्या कमी है ? टीवी , यूट्यूब,ज़ूम पर रात दिन आ तो रहे हैं , जिन्हें बहुत शौक है वहां सुना करें ।
उसमें विद्वान निःशुल्क उपलब्ध हैँ ,वो भी घर बैठे । उनकी कोई व्यवस्था का झंझट भी नहीं है । 

भक्त :
ये भी ठीक कहा । पर साक्षात प्रवचन का जो प्रभाव जनमानस पर पड़ता है ,वह उससे नहीं होता ।

अध्यक्ष :
पिछले कितने ही वर्षों से साक्षात भी लोग कहाँ सुनते हैं , भीड़ तो सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए होती है । पंडित जी ,उसे अपनी भीड़ समझ सुनाते हैं तो लोग भी परेशान हो जाते हैं । 
अब वैसी रुचि और ज्ञान भी कहाँ रहा ? 

भक्त :
ऐसा सोचेंगे तो नए रुचिवन्त तो बनेंगे नहीं , रहे सहे भी खत्म हो जाएंगे । जिनेन्द्र देव के  मंदिर में हम सिर्फ उन्हें ही सुनाते रहेंगे , उनकी वाणी सुनने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचेगी । 

चलिए , जय जिनेन्द्र

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