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समकालीन प्राकृत कविता पीड़ा

समकालीन प्राकृत   कविता पीड़ा पीडियो सहइ पीडा तं ण खलु गच्छइ पीडा जं ददइ | कसायेण सयं दहइ परकत्ताभावेण जीवो || भावार्थ पीड़ित व्यक्ति तो पीड़ा सह भी जाता है ,लेकिन जो पीड़ा देता है निश्चित ही उसकी पीड़ा नहीं जाती | पीड़ा देने वाला जीव मिथ्या ही पर कर्तृत्व के भावों से , कषाय से   स्वयं जलता रहता है | कुमार अनेकांत १८/०६/२०२०

पिता नहीं भगवान् हैं वे

पिता नहीं भगवान् हैं वे  - कुमार अनेकांत© ( 16/06/2019) पिता नहीं भगवान् हैं वे  भले ही एक इंसान हैं वे  ईश्वर तो अभी तक अनुमान हैं  मेरे प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वे  जब मन भटका इन्द्रियां भटकीं मति सुधारी मतिज्ञान हैं वे आगम पढ़ाया आप्त समझाया श्रुत समझाया श्रुतज्ञान हैं वे  मम मन समझें मनोविज्ञानी मेरे मनः पर्ययज्ञान हैं वे  मैं दूर रहूं तो भी रखें नज़र दूरदृष्टा अवधिज्ञान हैं वे  मेरे तीनों काल को जाने  मेरे सर्वज्ञ- केवलज्ञान हैं वे  कोई चाहे कुछ भी कह ले मेरे प्रत्यक्ष भगवान् हैं वे  पाठकों से निवेदन -     छंद नहीं अनुभूति देखें     शब्द नहीं भाव को परखें     जरूरी नहीं कि कवि ही लिखे     अकवि की भी कविता देखें ।

सुशांत से हमने क्या सीखा ?

सुशांत से हमने क्या सीखा ? करोड़ों की मज़राती कार, रेंज रोवर, BMW बाइक 90 करोड़ की प्रॉपर्टी और ग्लैमर । सुना है इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का इकलौता ऐक्टर था, जिसने चाँद पर लूनर प्रॉपर्टी के थ्रू पीस ऑफ लैंड खरीद रखा था । पर इन सब के ऊपर डिप्रेशन भारी पड़ा और सुशांत फांसी लगा के खत्म हो गया । *अध्यात्म विद्या को जीवन में आत्मसात कीजिए ।* *ज्ञान का फल है "मुस्कान" उसे अपने चेहरे पर बनाए रखिए ।* सिर्फ दो नियम १. अपने से मिलते रहिए( ध्यान योग)( रहें भीतर) २. अपनो से मिलते रहिये, बात करते रहिए । ( व्यवहार योग - जिएं बाहर ) *जग- जीवन की क्षण भंगुरता को समझे रहिए ।* *कोई किसी का सगा नहीं - अंदर में निर्णय करके रखिए*  *मेरा सो जावे नहीं* *अप्पसहावो गच्छइ ण कया खलु मत्त गच्छइ विहावो |* *जो गच्छइ सो य ण मम जो मम सो ण गच्छइ खलु सहावो ||* भावार्थ – आत्मा का मूल शुद्ध स्वभाव कभी नहीं जाता, निश्चित ही मात्र विभाव जाता है और जो चला जाता है वह मेरा नहीं है और जो मेरा है वह जाता नहीं है ,निश्चय से वही मेरा स्वभाव है |  *डिप्रेशन का अर्थ है आपने अध्यात्म सिर्फ पढ़ा है ज...

जिनवाणी नष्ट क्यों हुई ?

*जब चारों वेद बचा लिए गए तो द्वादशांग आगम क्यों हो गए नष्ट ?* *क्या हम आगे भी भगवान महावीर की शेष बची जिनवाणी बचा पाएंगे ?*  *हमारा क्या है प्लान ?* *सुनें सोचें और विचार करें* Must listen An eye opening lecture by  *Dr Anekant Kumar Jain* New Delhi  https://youtu.be/3-gNxLmWpYI

अवश्य सुनें ऐतिहासिक प्राकृत श्रुत व्याख्यान श्रृंखला

सादर प्रकाशनार्थ अवश्य सुनें ऐतिहासिक प्राकृत श्रुत व्याख्यान श्रृंखला श्रुत पंचमी प्राकृत दिवस पर दिनांक 13/05/2020 से 27/ 05/2020   तक पंद्रह दिवसीय प्राकृत भाषा एवं साहित्य से सम्बंधित ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला का भव्य आयोजन फेस बुक के PRAKRIT LANGUAGE AND LITERATURE नामक पेज पर किया गया | इसमें देश विदेश के प्राकृत भाषा , आगम एवं साहित्य के वरिष्ठ मनीषियों के सरल एवं सारगर्भित व्याख्यान देकर सभी के ज्ञान को समृद्ध किया | अभी तक देश विदेश के लगभग 35 हज़ार लोग इन व्याख्यानों को सुन चुके हैं तथा निरंतर उनकी संख्या आशातीत रूप से बढ़ रही है | यदि किन्हीं कारणों से आप इनमें से कोई नही व्याख्यान सुनने से चूक गए हों तो हम यहाँ क्रम से प्रत्येक व्याख्यान का लिंक एक साथ प्रेषित कर रहे हैं |आप उन्हें अपने अनुकूल समय में कभी भी सुन सकते हैं |प्रत्येक व्याख्यान औसतन एक घंटे के हैं | 1. प्रथम व्याख्यान : 13 /05 / 2020 : प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ,वाराणसी : “ प्राकृत भाषा का वैभव ” https://www.facebook.com/PrakritLanguage/videos/ 545895272783657/ 2. द्वितीय व्याख्यान : 15 ...

णमो माआअ

अनेकांत कुमार जैन जी की एक प्राकृत कविता के संस्कृत अनुवाद का प्रयास मातृदिवस पर  नैव कल्याणमेवास्ति, जीवश्वासश्च यां विना | या च लोकत्रयाचार्या, तस्यै मात्रे नमो नमः || *णमो माआअ* ............. *जेण विणा जीवणस्स ,सासो वि कल्लाणो वि खलु ण हवइ।* *तस्स भुवणेक्कं गुरु,पढमो णमो णमो माआअ ।।* भावार्थ -  जिसके बिना जीवन का श्वास भी नहीं चलता और निश्चित रूप से जीवन का कल्याण भी नहीं होता ,उस तीनों लोकों में पहली शिक्षिका , मां ( माता) को नमन है  नमन है । कौशल तिवारी

प्राचीन संस्कृत ग्रंथ - आत्मानुशासनम्

*प्राचीन संस्कृत ग्रंथ - आत्मानुशासनम्* *निज पर शासन ,फिर अनुशासन* का संदेश देने वाले ग्रंथ ' आत्मानुशासनम् ' के रचयिता आचार्य गुणभद्र दक्षिण भारत में आरकट जिले के तिरुमरूङ कुंडम नगर के निवासी थे तथा संघसेन  संघ के आचार्य थे ।इनके गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय थे तथा इनके दादा गुरु का नाम वीरसेन था । आचार्य गुणभद्र ने अपने गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय के ग्रंथ महापुराण को पूर्ण किया था । आचार्य गुणभद्र का समय नवमी शताब्दी माना जाता है । आचार्य गुणभद्र की अन्य रचनाएं आदि पुराण, उत्तर पुराण तथा जिन दत्त चरित काव्य है । आचार्य गुण भद्र ने आत्मानुशासन ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की है जिसमें अध्यात्म धर्म तथा नीति से संबंधित 269 पद्य हैं । इस ग्रंथ पर 11 वीं शताब्दी में आचार्य प्रभाचंद्र ने संस्कृत में टीका लिखी थी जिसका संपादक डॉ ए. एन. उपाध्येय एवम् डॉ हीरालाल जैन ने किया था तथा शोधपूर्ण प्रस्तावना भी लिखी थी ।  मोक्षमार्ग प्रकाशक नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ लिखने वाले जयपुर के  सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमल जी ने ढूंढारी भाषा में एक विशाल टीका लिखी जो प्रकाशित भी है । इस ग्रंथ प...

मंदिर मस्जिद भी खुलवा देंगे

*मंदिर मस्जिद भी खुलवा देंगे* अब  मंदिर मस्जिद की जगह घर में ही बनाओ और  भगवान् की फोटो की जगह  रखो दर्पण  रोज निहारो  अपना रूप और करो  खुद से ही  सवाल  कि क्या तुम  खुद को खुदा की बंदगी के भी काबिल  समझते हो ? और मिल जाए  जवाब तो बता देना  धर्म स्थान का लॉक डाउन भी खुलवा देंगे । कुमार अनेकांत©️ ६/०४/२०२०

प्राकृत साहित्य में लॉक डाउन

*पागद-साहिच्चम्मि lock down, Quarantine तहा Isolation*      (प्राकृत साहित्य में lockdown, Quarantine तहा Isolation ) वत्तमाणकालम्मि करोणा वायरसेण संपुण्ण विस्सो भयवंतो अत्थि | भारदे लॉक डाउण हवन्ति | पाचीण पागद-साहिच्चम्मि सावयस्स बारसवयणं वण्णणं सन्ति तम्मि गुणव्वयम्मि दिगवयस्स तहा देसवयस्स तुलणा लॉकडाउणेण सह हवदि |  कत्तिकेयाणुपेक्खम्मि (गाहा -३६७-३६८ )उत्तं – *पुव्‍व-पमाण-कदाणं सव्‍वदिसीणं पुणो वि संवरणं।*  *इंदियविसयाण तहा पुणो वि जो कुणदि संवरणं।।*   *वासादिकयपमाणं दिणे दिणे लोह-काम-समणट्ठं।।*  वसुणन्दिसावगायारे(गाहा- २१४-२१५ ) उत्तं – *पुव्‍वुत्तर-दक्खिण-पच्छिमासु काऊण जोयणपमाणं।*  *परदो गमणनियत्तो दिसि विदिसि गुणव्‍वयं पढमं। ।*  *वयभंग-कारणं होइ जम्मि देसम्मि तत्‍थ णियमेण।*  *कीरइ गमणणियत्ती तं जाणा गुणव्वयं विदियं।।* आयरियो वट्टकेरो मूलायारे एगो पण्ह- उत्तरं उत्तं  -  पण्ह - *कहं चरे कहं चिट्ठे कहमासे कहं सए।* *कहं भुंजतो मासंतो पावं कम्मं न बंधई  | |’* (गाहा १०/१२१) केण पकारेण जीवणं जीवेइ जेण पावकम्मं ण बंध ई ? आ...

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है कुमार अनेकांत पुराने जमाने की एक कहानी सुनी होगी । अमावस्या के दिन डाकू पहाड़ी पर बने देवी के मंदिर में जरूर आता है और देवी को प्रसाद जरूर चढ़ाता है । पुलिस भी जो और दिनों में उसे ढूढने में असफल रहती है वह अमावस्या की रात मंदिर के आसपास डाकू की प्रचंड भक्ति पर विश्वास करके घेरा बंदी कर लेती है कि उसकी और बातें भले ही झूठ हों लेकिन यह बात बिल्कुल सही है कि वह देवी से रक्षा और सफलता का आशीर्वाद लेने जरूर आता है । ऐसी कहानियां सच हैं कि काल्पनिक हैं या फिल्मी हैं यह तो आप जानें लेकिन धर्म क्षेत्र की अधिकांश व्यवस्थाएं इन दिनों किसी न किसी रूप में ऐसे ही डाकुओं से घिरी हुई हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि अब डाकू छुप कर नहीं आते ,  क्यों कि डकैती कर्म होने पर भी वे अब इतने स्वच्छ दिखते हैं कि अब वे डाकू नहीं कहलाते । अब वे सामाजिक हैं । लूटने के ,डकैती के बहुत सुरक्षित उपाय उन्होंने अपना लिए हैं । अब आप लुट जाएंगे और उसे डाकू भी नहीं कह पाएंगे क्यों कि उसने इतने सफेद आवरण ओढ़ रखे हैं कि आप उस पर दाग भी नहीं लगा सकते । डाकुओं ने अपना ड्रेस ...

भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन

*भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन* *प्रो अनेकांत कुमार जैन*,नई दिल्ली भगवान महावीर की वाणी के रूप में प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में रचित हजारों वर्ष प्राचीन  शास्त्रों में गृहस्थ व्यक्ति को बारह व्रतों की शिक्षा दी गई है जिसमें चार शिक्षा व्रत ग्रहण की बात कही है ,जिसमें एक व्रत है  *देश व्रत* । गृहस्थ के जीवन जीने के नियमों को बताने वाले सबसे बड़े संविधान वाला पहला संस्कृत का  ग्रंथ *रत्नकरंड श्रावकाचार* में इसका प्रमाणिक उल्लेख है जिसकी रचना ईसा की द्वितीय शताब्दी में जैन आचार्य समंतभद्र ने की थी ।अन्य ग्रंथों में भी इसका भरपूर वर्णन प्राप्त है ।  कोरोना वायरस के कारण वर्तमान में जो जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन आवश्यक प्रतीत हो रहा है उसकी तुलना हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृत के शास्त्रों में प्रतिपादित देश व्रत से की जा सकती है । *देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य ।* *प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य* ॥ ९२ ॥ *गृहहारिग्रामाणां क्षेत्रनदीदावयोजनानां च ।* *देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः* ॥ ९३ ॥ *संवत्सरमृमयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।* *देश...