सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सरल हृदय डॉ सुशील जी

*सरल हृदय डॉ सुशील जी*

मेरा आदरणीय डॉ सुशील जी से मिलना प्रायः संगोष्ठियों में होता रहा है । उसी दौरान कई स्थलों पर उनके प्रवचन सुनने का भी सौभाग्य मुझे मिला । 

मैनपुरी की एक विद्वतपरम्परा है । पंडित शिवचरणलाल जी , पंडित प्रकाशचंद जी ज्योतिर्विद आदि आदि । इसी कड़ी में पंडित डॉ सुशील जी भी आते हैं । बल्कि दो कदम आगे । क्यों कि आप सिर्फ पंडित ही नहीं हैं बल्कि एक श्रेष्ठ श्रावक (क्षुल्लक) और मोक्षमार्ग पर चलते हुए वर्तमान में दिगम्बर मुनि मुद्रा को धारण करने वाले दीक्षित साधु भी हो चले हैं । 

ऐसा कम होता है । लेकिन आपने 'पंडित कभी मुनि नहीं बनते' इस अवधारणा को खंड खंड करके ,नए पंडितों का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । 

 महाकवि कालिदास ने सर्वगुणसम्पन्न रघुवंशियों के लिये वृद्धावस्था में मुनिवृत्ति धारण करने को कहा है -
शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम् ।
वार्द्धक्ये मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुन्यजाम् ॥

 रघुवंशी लोग बाल्यकाल में विद्याभ्यास, युवावस्था में विषय भोग, बुढापे में मुनिवृत्ति और अंत में योगसाधना(सल्लेखना) द्वारा शरीर त्याग करते थे। 

पंडित डॉ सुशील जी का जीवन इसी वृत्ति के अनुसार चल रहा है । उसमें हम इतना अवश्य जोड़ सकते हैं कि इन्होंने जवानी में भी विद्याभ्यास किया है । 

आरम्भ से ही
आपके प्रवचनों में प्रथमानुयोग का स्वर ज्यादा मुखरित हुआ है । 

मैं जब बड़े बड़े प्रवचनकारों को सुनता था और देखता था कि वे जैनेतर परंपरा की कथा ज्यादा सुनाते हैं तो आश्चर्य होता था कि जैनों के कथा साहित्य में कौन सी कमी है जो ये जैन प्रवचनकार ऐसा कर रहे हैं । हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने एक जगह यह लिखा है कि सृष्टि की रचना किसने की यह तो मुझे नहीं मालूम लेकिन इस पृथ्वी पर कथा साहित्य का सृजन जितना जैनों ने किया है उतना कोई नहीं कर सका - यह मैं दावे के साथ कह सकता हूँ । 

डॉ. सुशील जी जैन पुराणों की कथाओं के माध्यम से प्रवचन करते रहे हैं - यह उनका सबसे बड़ा योगदान है । 

जैन प्रवचनकार यदि अपने जैन पुराण साहित्य का अध्ययन करें तो उन्हें इतने दृष्टांत मिलेंगे कि वे यदि उन्हें सुनाने बैठ जाएं तो इस जन्म में तो वो समाप्त नहीं होंगे । 

शरीर के डॉक्टर से आत्मा के डॉक्टर बनने की प्रक्रिया में सुशील जी ने अपने इस मनुष्य भव को सार्थक कर लिया है । 

मैं उनके पारमार्थिक अभ्युदय की कामना करता हूँ - 

ण भावइ मोक्खपयं,
सो वि लहइ य मोक्खं सद्दिट्ठी ।
सो सम्मत्तस्स सत्ति
एगं सम्मत्तं  घेतव्वं ।।

सम्यक्त्व की इतनी शक्ति है कि 
सम्यग्दृष्टि मोक्ष पद न चाहे तो भी उसे वह जबरजस्ती मिलता है इसलिए सबसे पहले एक मात्र सम्यकदर्शन को ग्रहण करना चाहिए । 

प्रो अनेकांत कुमार जैन 
आचार्य - जैनदर्शन विभाग
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य

                                                              वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य                                                                        प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली जैन परंपरा में मंदिर और मूर्ति निर्माण का इतिहास बहुत पुराना है | खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में कलिंग जिन की मूर्ति वापस लाने का उल्लेख है | वर्तमान में सबसे प्राचीन जैन मूर्ति पटना के लोहनीपुर स्थान से प्राप्त हुई है। यह मूर्ति मौर्यकाल   की है और पटना म्यूजियम में रखी हुई है। इसकी चमकदार पालिस अभी तक भी ज्यों की त्यों बनी है। लाहौर , मथुरा , लखनऊ , प्रयाग आदि के म्यूजियमों में भी अनेक जैन मूर्तियाँ मौजूद हैं। इनमें से कुछ गुप्तकालीन हैं। श्री वासुदेव उपाध्याय ने लिखा है कि मथुरा में २४वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की एक मूर्ति मिली है जो कुमारगुप्त के समय में तैयार की गई थी। वास्तव में मथुरा में जैनमूर्ति कला की दृष्टि से भी बहुत काम हुआ है। श्री रायकृष्णदास ने लिखा है कि मथुरा की शुंगकालीन कला मुख्यत: जैन सम्प्रदाय की है। खण्डगिरि और उदयगिरि में ई. पू. १८८-३० तब क

आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व

 आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी  : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व   (जन्मदिन के 75 वर्ष पूर्ण करने पर हीरक जयंती वर्ष पर विशेष ) #jainism #jainphilosophy #Jainscholar #Jain writer #jaindarshan #Philosophy #Prakrit language #Premiji #Prof Phoolchand jain ( विशेष निवेदन  : 1.प्रो प्रेमी जी की  इस जीवन यात्रा में  निश्चित ही आपका भी आत्मीय संपर्क इनके साथ रहा होगा ,आप चाहें तो उनके साथ आपके संस्मरण ,रोचक वाकिये,शुभकामनाएं और बधाई आप नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखकर पोस्ट कर सकते हैं | 2. इस लेख को पत्र पत्रिका अखबार वेबसाइट आदि प्रकाशन हेतु स्वतंत्र हैं । प्रकाशन के अनन्तर इसकी सूचना 9711397716 पर अवश्य देवें   - धन्यवाद ) प्राच्य विद्या एवं जैन जगत् के वरिष्ठ मनीषी श्रुत सेवी आदरणीय   प्रो.डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी जी श्रुत साधना की एक अनुकरणीय मिसाल हैं , जिनका पूरा जीवन मात्र और मात्र भारतीय प्राचीन विद्याओं , भाषाओँ , धर्मों , दर्शनों और संस्कृतियों को संरक्षित और संवर्धित करने में गुजरा है । काशी में रहते हुए आज वे अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष और विवाह के पचास वर्ष पूरे कर र

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम प्रो अनेकांत कुमार जैन आचार्य – जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-16,Ph  ,9711397716 १९४२ में काशी के भदैनी क्षेत्र में गंगा के मनमोहक तट जैन घाट पर स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय और उसका छात्रावास आजादी की लड़ाई में अगस्त क्रांति का गढ़ बन चुका था |  जब काशी विद्यापीठ पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रावास जबरन खाली करवा दिया गया और आन्दोलन नेतृत्त्व विहीन हो गया तब आन्दोलन की बुझती हुई लौ को जलाने का काम इसी स्याद्वाद महाविद्यालय के जैन छात्रावास ने किया था | उन दिनों यहाँ के जैन विद्यार्थियों ने पूरे बनारस के संस्कृत छोटी बड़ी पाठशालाओं ,विद्यालयों और महाविद्यालयों में जा जा कर उन्हें जगाने का कार्य किया ,हड़ताल के लिए उकसाया ,पर्चे बांटे और जुलूस निकाले |यहाँ के एक विद्यार्थी दयाचंद जैन वापस नहीं लौटे , पुलिस उन्हें खोज रही थी अतः खबर उड़ा दी गई कि उन्हें गोली मार दी गई है,बी एच यू में उनके लिए शोक प्रस्ताव भी पास हो गया | उन्हें जीवित अवस्था में ही अमर शहीद ह