*काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रमाण जैन ग्रंथ में*
प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली
13 वीं- 14वीं शती में जैन आचार्य जिनप्रभ सूरी ने सम्पूर्ण भारत में भ्रमण किया और संस्कृत भाषा में भारत के अधिकांश जैन और हिन्दू तीर्थों का आंखों देखा हाल लिखते हुए एक ग्रंथ विविधतीर्थकल्प नाम से लिखा ।
यह ग्रंथ सिंघी जैन ज्ञानपीठ,शांतिनिकेतन,बंगाल से सन् 1934 में प्रकाशित हुआ था । इसका शोधपूर्ण संपादन विश्व भारती शांति निकेतन के प्रोफेसर जिनविजय जी ने किया था ।
इस ग्रंथ में 38 नम्बर पर उन्होनें वाराणसी कल्प नामक अध्याय में काशी का रोचक वर्णन किया है ।
उसी वर्णन में उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर का भी बहुत रोचक वर्णन किया है । उसमें उन्होंने यह भी लिखा है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के मध्य एक जैन चतुर्विंशति तीर्थंकर का फलक आज भी पूजा के लिए विराजमान है -
*वाराणसी चेयं सम्प्रति चतुर्धा विभक्ता दृश्यते । तद्यथा - देववाराणसी , यत्र विश्वनाथप्रासादः। तन्मध्ये चाश्मनं जैनचतुर्विंशति पट्टं पूजारूढमद्यापि विद्यते ।*(विविधतीर्थकल्प,पृष्ठ 72)
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