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संदेश

महामनीषी : पंडित कैलाश चंद शास्त्री जी

*भारतीय विद्याओं के प्रकांड मनीषी काशी के पंडित कैलाश चंद शास्त्री जन्म जयंती* शत शत नमन  कार्तिक शुक्ला द्वादशी सन्  1903 (वि. 1960) को जन्मे पंडित कैलाश चंद जी शास्त्री जो मेरे पिताजी सहित वर्तमान के अनेक वरिष्ठ विद्वानों के गुरु हैं ,आज उनकी जन्म जयंती है।  स्याद्वाद महाविद्यालय ,काशी के प्राचार्य पद को सुशोभित करने वाले , जैन धर्म और जैन न्याय जैसी सुप्रसिद्ध पुस्तकें लिखने वाले ,धवला ग्रंथ का संपादन करने वाले ,जैन संदेश के यशस्वी संपादक महामनीषी ,सरल और सहज धन के धनी जैनदर्शन के तल स्पर्शी विद्वान्, मेरे पिताजी के साक्षात् गुरु पंडित कैलाश चंद शास्त्री जी जिनका साक्षात् वात्सल्य प्राप्त करने का मुझे सौभाग्य मिला है ,उनकी जन्मजयंती पर उन्हें कोटिशः प्रणाम ।  आज के दिन नए विद्वानों को उनका अभिनंदन ग्रंथ और उनका लेख मेरा जीवन अवश्य पढ़ना चाहिए ।  प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई।दिल्ली

केरल के जैन मंदिर

आप को जानकर हैरानी होगी कि केरल राज्य में 30 से ज्यादा पुरातन जैन मन्दिर है। वर्तमान में 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 4489 जैन रहते हैं। जिनमे लगभग 3000 जैन दिगम्बर समाज से  स्थानीय हैं । यहाँ पर पाये जाने वाले जैन मन्दिर ईसा पूर्व 2 शताब्दी से लेकर 12 शताब्दी तक के है। वर्तमान में इन मन्दिरो का रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) एवं कुछ नवगठित स्थानीय ट्रस्ट मंडल करते हैं। बहुत से मन्दिर भगनावस्था में है। उनकी चिंता न जैन समाज करता और ना ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) । केरल के वेनाड एवं एरनाकुलम जिले में 1500 से ज्यादा जैन रहते है। बाकी सभी जिलों में सौ से कम है।  बहुत सी जगह जैनों कि बस्ती न होने के कारण जैन मंदिरों के निकट रहने वाले लोगो ने उन्हें वैदिक देवी देवताओं के नाम से पहचान कर नित्य पूजा-पाठ वैदिक रीति से करते हैं। बहुत से पुरातत्व मंदिरों को जमींदरोज कर दिया गया है अथवा विभिन्न धार्मिक स्थलों में परिवर्तित कर दिया गया हैं। मेरा भारतवर्ष के श्वेताम्बर एवं दिगम्बर समाज से निवेदन है कि जब हमारे तीर्थंकर एक हैं तो हम क्यों श्वेताम्बर एवं दिगम्बर क...

दिगम्बर के दर्शन से विकार भागता है न कि उत्पन्न होता है

“दिगंबर गोमटेश के दर्शन से विकार भागता है ना कि उत्पन्न होता है” डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली    दिगंबर जैन सम्प्रदाय के परम आराध्य जिनेन्द्र देव या तीर्थंकरों की खड्गासन मुद्रा में निर्वस्त्र और नग्न प्रतिमाओं को लेकर खासे संवाद होते रहते हैं | नग्नता को अश्लीलता के परिप्रेक्ष्य में भी देखकर पीके जैसी फिल्मों में इसे मनोविनोद के केंद्र भी बनाने जैसे प्रयास होते रहते हैं | दिगंबर जैन मूर्तियों के पीछे जो दर्शन है ,जो अवधारणा है उसे समझे बिना ही अनेक अज्ञानी लोग कुछ भी कथन करने से पीछे नहीं रहते | इस विषय को आज के विकृत समाज को समझाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर है | सुप्रसिद्ध जैन मनीषी सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचंद्र शास्त्री जी ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘जैनधर्म’ में मूर्तिपूजा के प्रकरण में पृष्ठ ९८ -१०० तक इसकी सुन्दर व्याख्या की है जिसमें उन्होंने सुप्रसिद्ध साहित्यकार काका कालेलकर जी का वह वक्तव्य उद्धृत किया है जो उन्होंने श्रवणबेलगोला स्थित सुप्रसिद्ध भगवान् गोमटेश बाहुबली की विशाल नग्न प्रतिमा को देखकर प्रगट किये थे | वे लिखते हैं - जैन मूर्ति निरावरण और निराभरण होती ह...

प्रकृति एकांतवादी नहीं है

'अच्छा है हमारी तरह प्रकृति एकांतवादी नहीं है' कुछ ,कभी भी ,सब कुछ नहीं हो सकता |प्रकृति संतुलन बैठाती रहती है|वह हमारी तरह भावुक और एकान्तवादी नहीं है |हम भावुकता में बहुत जल्दी जीवन के किसी एक पक्ष को सम्पूर्ण जीवन भले ही घोषित करते फिरें पर ऐसा होता नहीं हैं | जैसे हम बहुत भावुकता में आदर्शवादी बन कर यह कह देते है कि १.प्रेम ही जीवन है| २.अहिंसा ही जीवन है | ३. जल ही जीवन है | ४.अध्यात्म ही जीवन है | ५.परोपकार ही जीवन है । ६.संघर्ष ही जीवन है । ७.ध्यान योग ही जीवन है । ८.बदला लेना ही जीवन का लक्ष्य है । ९.मेरा सम्प्रदाय/मत/पक्ष ही जीवन है । १०.मेरा दर्शन ही सही जीवन है । आदि आदि ............. यथार्थ यह है कि ये चाहे कितने भी महत्वपूर्ण क्यूँ न हों किन्तु सब कुछ नहीं हैं | ये जीवन का एक अनिवार्य पक्ष ,सुन्दर पक्ष हो सकता है लेकिन चाहे कुछ भी हो सम्पूर्ण जीवन नहीं हो सकता |इसीलिए कायनात इन्साफ करती है क्यूँ कि हमारी तरह वह सत्य की बहुआयामिता का अपलाप नहीं कर सकती | इसीलिए विश्व के इतिहास में दुनिया के किसी  भी धर्म को कायनात उसकी  कुछ एक विशेषताओं के कारण एक बार उसे छा जाने क...

अपने लेखन से अज्ञान का अंधकार मिटायें

* *अज्ञान का अंधकार आपने लेखन के दीपक से मिटाकर दीपावली मनाएं * * प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली * जैन धर्म दर्शन पर्व और संस्कृति पर भारत की आम जनता के लिए लेख लिखना और उसे समाचार पत्रों में प्रकाशित करवाना बहुत अच्छा कार्य है । महाविद्यालय के सभी स्नातक अपने अपने स्थान पर राष्ट्रीय और स्थानीय समाचार पत्रों में भगवान् के 2550  निर्वाणोत्सव  वर्ष से संबंधित प्रामाणिक लेख अवश्य प्रकाशित करवाएं । 1991 से मैं भी यह प्रयास निरंतर कर रहा हूँ तथा अभी तक इस तरह के मेरे प्रकाशित लेखों की संख्या 500 से अधिक पहुंच चुकी है । ज्यादा नहीं तो यदि एक प्रकाशित लेख एक व्यक्ति भी पढ़े (यद्यपि सैकड़ों पढ़ते हैं) तो अभी तक पांच सौ लोग तो अपना अज्ञान दूर कर ही चुके होंगे । मैं इस न्यूनतम विश्वास और आशा पर लिखता हूँ और प्रकाशनार्थ भेजता हूँ । अपने लोगों के साथ साथ अन्य समाज के प्रबुद्ध वर्ग भी इसे पढ़ते हैं और जैन धर्म का सही ज्ञान प्राप्त करते हैं । यह एक उत्कृष्ट प्रभावना का कार्य है । रत्नकरंड श्रावकाचार के श्लोक 18 को अवश्य स्मरण रखना चाहिए - अज्ञानतिमिरव्याप्तिमपाकृत्य यथायथम् । जिनशासनम...

प्राकृत वीर निर्वाण पंचक ( तीर्थंकर महावीर निर्वाण 2550 वर्ष )

वीर निर्वाण 2550 के अवसर पर विशेष  *पाइय-वीर-णिव्वाण-पंचगं* (प्राकृत वीर निर्वाण पंचक ) जआ अवचउकालस्स सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा । तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।1।। जब अवसर्पिणी के चतुर्थ काल के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी । कत्तियकिण्हतेरसे जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे । वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।2।। कार्तिक कृष्णा त्रियोदशी को योग निरोध करके वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।  चउदसरत्तिसादीए पच्चूसकाले पावाणयरीए । ते  गमिय परिणिव्वुओ देविहिं  अच्चीअ मावसे ।।3।। चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में वे (भगवान् महावीर) परिनिर्वाण को प्राप्त हुए और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई । गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं । णाणलक्खीपूया य दीवोसवपव्वं जणवएण ।।4।। इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व  मनाया । ...

गिरनार पर उपलब्ध प्रकाशित प्रामाणिक साहित्य

*गिरनार पर उपलब्ध प्रकाशित प्रामाणिक साहित्य* 1. गिरनार गौरव -डॉ कामता प्रसाद जैन ,प्रकाशक - बंडी धर्मशाला,जूनागढ़  2. गिरनार वंदन - डॉ रमेश चंद जैन ,प्रकाशक - श्री दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी,मुम्बई  3. विविध तीर्थकल्प - 13वीं शती के इस ग्रंथ में वहाँ का आंखों देखा हाल संस्कृत में जिनप्रभसूरी जी ने लिखा है । इसका प्रकाशन सिंधी जैन ग्रंथमाला से हुआ था । 4.Girnar Evidence - Dr Vimal Jain ,Pub. Digambar jain Mahasabha  इन ग्रंथों में काफी मात्रा में प्रमाण उपलब्ध हैं ।  इसके अलावा भी श्री आर के जैन जी ने महावीर जी में तीर्थ क्षेत्र कमेटी की तरफ से गिरनार पर एक संगोष्ठी का आयोजन करवाया था जिसमें बहुत विद्वान् एकत्रित हुए थे और मैं भी गया था ।  वहाँ काफी प्रामाणिक सामग्री एकत्रित करवाई गई थी । उसका ग्रंथ यदि प्रकाशित हुआ हो तो वह भी महत्त्वपूर्ण रहेगा ।  इसके अलावा भी कई प्रकाशन हुए होंगें ,मेरी जानकारी में अभी इतने ही आ पाए हैं ।

feedback of ''Jain dharm : ek jhalak''

feedback of ''Jain dharm : ek jhalak''  Dear Dr. Anekant Kumar Jain Ji Jai Jinendra! First of all I am very much thankful that I got the subject copy of the book that you wrote. I was looking for something like this which I can understand in my own language and correlate with the people around me. I got this copy from my father who attended some function in Agra. I live in US and when people over there inquire about my religion I always found little/limited knowledge about myself and my roots. On the name of Jain, we only know Ahimsa, Navkar Mantra, Bhagwaan Mahaveer and Jain temples. I know it doesn't look good. I always end up saying that you should google it to know more but I know I have not answered their questions. I go to temple to look for books like this but except pooja books I don't find any. It is very important that people from my generation or the current generation to understand who are they and where are their roots. I have started reading and ju...

सेवा संबंधी सात तथ्य

*संस्थाओं में सेवा संबंधी सात तथ्य* किसी भी सामाजिक या सरकारी संस्था में यदि कोई कार्य करता है तो उन्हें ये सात तथ्य जरूर ध्यान में रखने चाहिए ,ताकि निराश न होना पड़े -  1.बेहतर है कुछ नहीं करो,बस जानो देखो और सलाह देते रहो- ऐसा होना चाहिए,वैसा होना चाहिए, चिंता फिकर भी जताते रहो ,करो नहीं । आपकी पूजा होगी । 2. कुछ करोगे या करने की कोशिश करोगे तो आलोचना के लिए तैयार रहो । प्रशंसा कोई नहीं करेगा । 3. अच्छा हो गया तो कोई धन्यवाद देने भी नहीं आएगा ,हाँ - कई चौधरी बनने जरूर आ जाएंगे और श्रेय लेने की होड़ हो जाएगी । 4. अच्छा नहीं हो पाया या असफलता मिली तो आलोचना सुनने को तैयार रहो , इसका श्रेय सिर्फ आपको ही मिलेगा । 5. हाँ, आपका मूल्यांकन हो सकता है ,आज न हो लेकिन वक्त जरूर करेगा ।लेकिन तब आप यहां न होंगे ।  6. आपका समर्पण और लगन ,परिश्रम और प्रयास ,आपके सच्चे अभिप्राय का असर आपके कर्म और उसके फल पर जरूर पड़ेगा । वहाँ ,भ्रष्टाचार नहीं चलता ।  7.इसलिए वही करिए जो शास्त्र सम्मत हो ,उचित हो और जिसमें आपकी भावना जुड़े । अहितकारी ,आगम विरुद्ध कार्यों का अवश्य विरोध करें । अपनी असहमति द...

विरोध की खूबसूरती को समझें

 विरोध की खूबसूरती को समझें  ✍️प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली  विरोध सिक्के के हेड और टेल की तरह अस्तित्व का दूसरा पहलू है जो प्रत्येक पहलू को स्वयं ही दिखाई नहीं देता और वह उसे अपने अस्तित्व का सहभागी न मानता हुआ अपने अस्तित्व का ही विरोधी समझने की भूल करने लगता है ।  हेड इसलिए है क्यों कि टेल है ,टेल इसलिए है क्यों कि हेड है ।  मगर हमारी संकुचित बुद्धि उसे अपना अस्तित्व विरोधी जानकर और मानकर उसे नष्ट करने का भाव रखती है ,बिना यह विचारे कि इससे स्वयं के नष्ट होने का खतरा भी उतना ही है । *विरोध प्रचार की कुंजी है* ' आदि सूक्तियों को सुन सुन कर और सुना सुना कर हम  दो तरह की मानसिकता से ग्रसित हो रहे हैं - 1. यदि स्वयं हमारा विरोध हो रहा हो तो बिना आत्ममूल्यांकन किये खुश रहो कि अच्छा है प्रचार तो हो रहा है । उस प्रचार के लोभ में अपनी कमियों की तरफ़ ध्यान न देना एक बहुत बड़ी भूल है । स्वयं को शुद्ध ,सही और उत्कृष्ट मानने का दम्भ भी हमें आत्म मूल्यांकन से कोसों दूर ले जाता है । यह भी एक प्रकार का गृहीत मिथ्यात्व है जो सम्यक्त्व के नाम पर हमारे दिल औ...

सल्लेखना का चालान

जीवन की गाड़ी और समय का पहिया जिस रफ़्तार से चल रहा है  जी करता है उसका  सल्लेखना  से  चालान काट दूँ   निश्चय व्यवहार के कदमों से पैदल चलूं और  समाधि की नौका पर बैठकर  भवपार हो जाऊँ । कुमार अनेकांत