दशलक्षण धर्म : एक झलक षष्ठ दिवस उत्तम संयम संयमन को संयम कहते हैं । आचार्य वीरसेन कहते हैं उत्तम संयम वही है जो सम्यक्त्व का अविनाभावी हो अर्थात् बिना सम्यग्दर्शन के संयम मोक्ष का कारण नहीं बनता है । आध्यात्मिक दृष्टि से अपने उपयोग को समस्त पर पदार्थों से समेट कर आत्म सन्मुख करना ,अपने में सीमित करना ,अपने आत्मा में लगाना अर्थात् चित्त की सन्मुखता ,स्वलीनता ही निश्चय संयम है । व्यवहार से पांच इंद्रियों के विषय भोगों को नियंत्रित करना इन्द्रिय संयम और एक इन्द्रिय से लेकर पांच इन्द्रिय तक के जीवों की रक्षा में तत्पर और जागरूक रहना प्राणी संयम है । संयम के बिना हमारा जीवन बिना ब्रेक की कार की तरह है । कार में ब्रेक हो तो कार अन्यथा बेकार । उसी प्रकार जिसके जीवन में जरा सा भी संयम नहीं है उसका जीवन भी बेकार । सभी जन्मों में मनुष्य जन्म ही ऐसा जन्म है जिसमें संयम धारण करने की सामर्थ्य है ।इसलिए हमें मनुष्य भव का उपयोग संयम धारण कर के कर लेना चाहिए । आजकल पर्यावरण की दृष्टि से , सामाजिक दृष्टि से ,राष्ट्र की दृष्टि से भी अनेक प्रकार के संयम रखने की अपील की जात...