समयसार पताका २
"ऐसी जिनवाणी सदा ही हृदय में बसे"
अनन्तधर्मणस्तत्त्वं पश्यन्ती प्रत्यगात्मन:।
अनेकान्तमयी मूर्तिर्नित्यमेव प्रकाशताम् ।।
समयसार कलश - २
अनेकान्तमयी मूर्तिर्नित्यमेव प्रकाशताम् ।।
समयसार कलश - २
सरलार्थ -
जिनेन्द्र भगवान् की वाणी अनेकान्तमयी है । क्यों कि वह पर से भिन्न अपने स्वरूप में स्थित आत्मा के अनंतधर्मों को प्रकाशित करने वाली है । ऐसी जिनवाणी सदा काल प्रकाशित होती रहे ।
जिनेन्द्र भगवान् की वाणी अनेकान्तमयी है । क्यों कि वह पर से भिन्न अपने स्वरूप में स्थित आत्मा के अनंतधर्मों को प्रकाशित करने वाली है । ऐसी जिनवाणी सदा काल प्रकाशित होती रहे ।
अनेकांत पताका टीका -
द्वितीय कलश में आचार्य अमृतचंद्र आशीर्वादात्मक मंगलाचरण करते हुए भावना भा रहे हैं कि जिनेन्द्र भगवान् की वाणी सदा काल सभी जीवों के हृदय में प्रकाशित होती रहे क्यों कि वर्तमान में एक मात्र वह ही है जो अनेकांत स्वरूप होने से आत्मा के विशुद्ध अनंत धर्मात्मक रहस्य को समझाने में समर्थ है।
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