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Modern challenges of the Jainism : some reflections on social media

Quick reflections on some challenges:
1.  Divisions within the religion - Sects and sub sects leading to frictions, tensions over petty issues and seeking control.  This leads to diverting our energies from the larger causes espoused by the religion.
2.  Increasing loss of interest in the religion.
3.  Our individual, family and societal conduct is not becoming of a Jain.
4.  Becoming more of ritualistic.
5.  Focusing more on building temples than spreading the religious values to non Jains
6.  Shrinking population adhering to Jainism. In not so distant future, our demography faces the threat of becoming what Parsis are today in India.
                    - Manish Jain,WhatsApp. 
1. *No Desire to understand jainism*
Modern people find reading holy scirpture a boring and useless  work.
They can't follow hard rules and regulations and feels like one who can't follow rules can't understand jainism.
They feel those who do this will become saints or monks.
2. *Language barrier* for youngsters who don't understand sanskrit and prakrit
People who somehow develop interest in understanding jainism face language barrier. Most of the old scriptures are in sanskrit and prakrit ( not modern language) hence terminologies are hard for them to understand.
3. *Modern way of presentation not adopted*
Modern People are more attracted towards technology.
We have not yet presented our principles to them using modern technology.
4. People have a mindset  that
Modernity and religiosity are like inversely proportionate
more modern less religious
More religious less modern
- vaani jain,WhatsApp
Modern generation does not like 
Restrictions, strict rules, time bound things,reading old shastra or holy books...but they definitely
Follow the things which bring peace to them.... they have their own way to follow things...
Busy schedules of today’s lifestyle, education system, etc.
Vandna Jain , WhatsApp
Our way of presenting jainism in front of them is not appropriate... For eg -  dharm k naam pr bs hm kuch kriyaye hi samne laate h... Jse raat ko khana...paani channa... Etc... Jo yh nhi krta usko aise dekhte h jse usne kitna bda paap krdia...especially ghr k bde.. Aur jo dharm k role models h vo in baaton pr focus jyda krte h.
Secondly, jb modern generation apne hi ghr walo ko uppr se acha bnte dekhte h aur andr se dwesh bhav rkhe hue dekhte h...jse ek hi ghr m papa chacha k beech baat na hona... Ya chachi mummy k beech baat na hona...to iska ulta asar pdta h... Yhi se modern generation individualism ki taraf jyda dhyan deti h...vo sochti h itni jhanjhat se acha akele rhlo..
Yhi agr hm unhe yh seekhaye ki sbka apna point of view hota h aur jainism isi baat ko  anekantvaad k roop m btata h.. Toh aisa na ho..
Basically main challenge yh h hmne jain dharam ki practicality ko kho dia h... Jbki ajkl ki generation bht practical h.. But unhe yh baat pta hi nhi ki jainism k siddhant kitne practical h.. Aur peaceful h
Shruti Jain , WhatsApp
प्रश्न यह है कि जैन धर्म की ओर जो लोगों की अरुचि बढ़ रही है, उसको कैसे रुचिकर बनाया जाए ?  सबसे बड़ी चुनौती है लोगों की धर्म में रुचि बढ़ाने की।
सब कार्यों के लिए समय है, इधर उधर सब जगह जाने का समय है। तीर्थ पर जाने की कोई उत्कंठा नहीं।
दुनिया भर का साहित्य पढ़ने का, explore करने का समय है। जैन साहित्य  को पढ़ने की, समझने की कोई उत्कंठा नहीं।
Main challenge जो हमारे सबके सामने है, वो है रुचि की कमी।
Modern lifestyle हमें हमारी जड़ों से दूर कर रहा है। रात में देर से सोना, सुबह देर से उठना , मंदिर जाना skip करना, प्रवचन - स्वाध्याय में समय न देना, इससे लोगों को जैन धर्म का मर्म ही समझ में नहीं आ रहा।
नौकरी की तरफ बढ़ते रुझान से देर से घर आने पर रात्रि भोजन त्याग आदि नियम नहीं पल पाते हैं।
तीर्थ यात्रा के स्थान पर सैर - सपाटे की ओर रुझान बढ़ा है जिसमें अभक्ष्य सेवन आम बात हो गई है।
अनेकान्तवाद, वीतरागता जैन धर्म के सबसे unique selling points हैं। यह हमें अन्य धर्मों से अलग करता है। लेकिन राग और वीतरागता तो तब समझेंगे जब मंदिर आएंगे, स्वाध्याय करेंगे, जिनवर के गुणों का गुणगान करेंगे, उनके वीतरागी स्वरूप को समझेंगे।
जब आएंगे ही नहीं, पढ़ेंगे ही नहीं तो कैसे ये सब संभव होगा।
*रुचि जागृत करना आज सबसे बड़ा challenge है* इसके उपाय सोचने होंगे।
*बच्चों को बचपन से पाठशाला भेजना चाहिए* जिससे उनमें प्रारम्भ से ही रुचि उत्पन्न हो। पहले तो हम career career का गीत गाते रहते हैं। फिर जब उनके संस्कार दूसरी ओर दृढ़ हो जाते हैं, तब हम उन्हें इधर की ओर खींचना प्रारम्भ करते हैं। *Modern तरीके से सरल व सुगम भाषा में अपनी बात को सरलता से कहना*, youth को ध्यान में रखते हुए workshops design करना आज के समय की आवश्यकता है।
*उन्हें धर्म में लगाने से पूर्व अपने को धर्म का ज्ञान अर्जित करना चाहिए।* स्वाध्याय कर सही ज्ञान हासिल करना चाहिए।
बड़ों की भी कथनी- करनी में अंतर देखकर youth धर्म से विमुख होता है। *हमें अपने आचरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।*
धर्म सुख स्वरूप है यह बताना/prove करना होगा। बाक़ी सब दुःख स्वरूप और अहितकारी है यह prove करना होगा।
-आशु जैन,whatsapp

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