सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सत्य की खोज

*सत्य की खोज*

प्रो अनेकांत कुमार जैन
२५/१२/२०१८
drakjain2016@gmail.com

एक बार एक बड़े दार्शनिक ने ' *आत्मा के अस्तित्व* ' विषय पर एक अंतरराष्ट्रीय pसंगोष्ठी का आयोजन किया । पूरी दुनिया से विद्वान्,साधु,महात्मा, पादरी,,दार्शनिक इकट्ठा हुए ।

पहले ही दिन उन सबसे बड़े दार्शनिक ने पूछा - कितने लोग मानते हैं कि आत्मा है?

आधे लोगों ने हाथ खड़े किए .

उस दार्शनिक ने उन सभी से हॉल के बाहर जाने को कह दिया ।

फिर बचे हुए लोगों से दार्शनिक ने पूछा कितने लोग हैं जो यह मानते हैं कि आत्मा नहीं है ?

बचे हुए सभी लोगों ने हाथ खड़े कर दिए ।

दार्शनिक ने उन्हें भी हॉल से बाहर भेज दिया ।

थोड़ी देर में सूचना अाई कि संगोष्ठी रद्द कर दी गई है सभी अपने घर वापस चले जाएं ।

चारों ओर अफरा तफरी मच गई । हम इतनी दूर से आए हैं ,और यह व्यवहार ? हमें क्यों बुलाया ?

वह दार्शनिक इतना प्रतिष्ठित था कि किसी ने उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं की ।

फिर उनमें से कुछ बुजुर्गों ने कारण जानने का प्रयास किया । वह दार्शनिक इस दुविधा को समझ गया । उसने पुनः सभी को हॉल में आमंत्रित किया ।

अपने वक्तव्य में संगोष्ठी रद्द करने का कारण स्पष्ट करते हुए उस दार्शनिक ने कहा -

मैंने इस संगोष्ठी का आयोजन इसलिए किया था कि आत्मा है अथवा नहीं - इस बारे विचार विमर्श किया जाय । हम किसी निष्कर्ष में पहुंचने का प्रयास करेंगे ।

मुझे लगता था कि यह एक समस्या है अतः हम लोग संगोष्ठी के माध्यम से उसका समाधान करने की कोशिश करेंगे । लेकिन आप में से आधे लोग मानते हैं कि आत्मा है और आधे मानते हैं कि नहीं है , तो समस्या कहां है ?
और जब समस्या है ही नहीं तब संगोष्ठी का क्या औचित्य ?

आप लोग तो निष्कर्ष पर पहले ही पहुंचे हुए हैं तो सत्य की खोज कैसे करेंगे ?

सिर्फ अपनी मान्यता की पुष्टि करने इस संगोष्ठी में पधारे हैं । अगले की बात तो आप संगोष्ठी के बाद भी नहीं स्वीकारेंगे । पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति के पास कोई समस्या नहीं होती । और जब समस्या ही नहीं है तो शोध खोज किसकी करेंगे ?

मैंने सत्य की खोज के लिए संगोष्ठी रखी थी न कि आपके पूर्व स्थापित सत्य के प्रचार के लिए ।

अतः मैंने इसे रद्द कर दिया है आप सभी से क्षमा याचना पूर्वक विदा चाहता हूं ।

उस दार्शनिक ने सबको हिला कर रख दिया । बाद में पता चला कि उस  दार्शनिक ने सत्य की खोज की प्रेरणा देने के लिए ही  सबको बुलाया था ।

In India we are very advance because we have the conclusion before the

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​Must read and write your view