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मां की कहानियां -१
*देवदर्शन की महिमा*
प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली
२९/१२/२०१८
अभी मां के पास बैठा तो हमेशा की तरह कुछ समझाने लगीं । एक कहानी सुनाकर देव दर्शन की महिमा बहुत विस्तार से बताई ।
एक लड़की की शादी एक ऐसे गांव में हो गई जहां देव दर्शन उपलब्ध ही नहीं था । लेकिन उसका पहले से नियम था कि देवदर्शन किए बिना वह अन्न ग्रहण नहीं करेगी ।
यह नियम उसने ससुराल में भी जारी रखा । अब वहां मंदिर ही नहीं था तो वह पहले दिन से ही भोजन न करे ।
उसके ससुराल वाले बहुत चिंतित हो गए ,क्या किया जाए ?
उसे बहुत समझाया गया ,लेकिन उसने समझौता नहीं किया । उन्हीं दिनों गांव में एक बैलगाड़ी आयी ,जिसमें प्रतिष्ठित मूर्तियां रखी थीं , एक पापड़ी वाल जी यह कार्य करते थे ,अनेक मूर्तियां बनवा कर गांव गांव में विराजमान करवाते थे ।
ससुराल वालों ने एक मूर्ति देने की बात कही । उन्होंने कहा बिना जिनालय के मूर्ति कैसे दें ? तो ससुर जी ने एक जिनालय निर्माण का संकल्प किया और मूर्ति विराजमान करवाई ।
एक बहु के संकल्प के कारण उस गांव में जिनालय बन गया ।
इस बहू ने बाद में एक संतान को जन्म दिया ,जो बाद में जाकर वात्सल्यमूर्ती आचार्य विमल सागर जी बना ।
मां ने बताया ऐसी मां हो तो संतान भी उससे ज्यादा महान पैदा होती है ।
मां ने बताया आज उन्हीं *आचार्य विमल सागर जी महाराज* की *जन्म जयंती* है जिन्होंने स्वयं की साधना के साथ साथ लाखों लोगों को धर्म मार्ग में लगाया और जिनवाणी का प्रचार प्रसार किया ।
अब मां के पास बैठेंगे तो कोई न कोई नई सीख या प्रेरणा तो मिल ही जाती है ।
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