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अतिवादी होने से भी बचें जैन(प्रकरण : श्री सम्मेद शिखर जी)

अतिवादी होने से भी बचें जैन एक बात है जो किस तरह कही जाय समझ नहीं आ रहा । क्यों कि हम लोग उभय अतिवाद के शिकार हैं ।  वर्तमान में  श्री सम्मेद शिखर जी प्रकरण में आधे से अधिक जैन वहाँ की इस स्थिति का जिम्मेदार स्वयं जैनों को ठहराने में पूरी  ताकत लगा कर महौल को हल्का करने की भी कोशिश कर रहे हैं ।  इसमें भी अधिकांश वे लोग भी हैं जिन्हें स्वयं सारी सुविधाएं चाहिए और दूसरों को त्याग तपस्या के उपदेश दे रहे हैं ।  ये वैसे समाधान बतला कर स्वयं को धन्य समझ रहे हैं जो अशक्य अनुष्ठान होता है ।  जैसे -  1.यदि देश के सभी नागरिक अपराध छोड़ दें तो पुलिस की आवश्यकता ही न पड़े । 2. यदि सभी लोग बहुत साफ सफाई से रहें तो मच्छर पैदा ही न हों । 3.यदि सभी लोग ब्रह्मचर्य का पालन करें तो जनसंख्या बढ़े ही नहीं । यदि ऐसा हो तो वैसा हो .... आदि आदि काल्पनिक ख्याली पुलाव पका कर आप अपना पेट भर लेते हैं और निश्चिंत हो जाते हैं । इस तरह के आलसी लोग जिन्हें सिर्फ बातें बनाना और अति आदर्श की वे बातें करना आता है जो वास्तव में यथार्थ में संभव ही नहीं है । वे ऐसी बातें करके मधुर भी बन जाते हैं और असली समाधान करने के पुरुषार

बेटी के विवाह की चिंता का ऐतिहासिक अध्ययन

अपनी बेटी के लिए वर तलाश करते एक जैन पिता की चिंता का ऐतिहासिक अध्ययन :  1980 - मेरी बेटी का विवाह खंडेलवाल बघेरवाल,ओसवाल,लमेचु ,परवार ,पंचम आदि अपनी जाति में ही होगा । 1990 - लड़का अपनी दिगम्बर / श्वेताम्बर समाज का होना चाहिए बस  । 2000 -  दिगंबर हो या श्वेताम्बर बस लड़का जैन होना चाहिए । 2010 - लड़का कम से कम सवर्ण तो हो ,भले ही किसी धर्म का हो ।  2020 -  कुछ भी हो, लड़का कम से कम हिन्दू तो हो ,भले ही सवर्ण न हो । भविष्य  2030 - कुछ भी हो कम से कम वो लड़का तो हो ! प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली  ( एक व्यंग्य रचना )

छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका

छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका ! प्रो अनेकान्त जैन,नई दिल्ली धोखा या छल करना एक बहुत ही कमजोर व्यक्तित्त्व की निशानी है ,आध्यात्मिक दृष्टि से यह बहुत बड़ा पाप है ही ,साथ ही कानून की दृष्टि में यह एक दंडनीय अपराध है |प्रत्येक दृष्टि से यह अनुचित होते हुए भी आज का इन्सान बिना किसी भय के  दुनियादारी में सफल होने के लिए इसे आवश्यक मानने लगा है और दूसरों से धोखा या छल करता है अतः मैं इसे एक मनोरोग भी कहना चाहता हूँ | सरल व्यक्ति अवसाद में नहीं जा सकता ,अवसाद में कठिन व्यक्ति ही जाता है ,छल कपट कठिन व्यक्तित्त्व की निशानी है । सामान्यतः उदासीनता ,निराशा और अंतरोन्मुखता को अवसाद समझा जाता है किंतु वह ज्यादा गहरा नहीं होता थोड़ी सी प्रेरणा से उससे बाहर आया जा सकता है । अत्यधिक उत्साह ,अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा और अत्यधिक बहिर्मुखता और आत्ममुग्धता बहुत गहरा अवसाद है जिससे बाहर आना बहुत कठिन होता है ।क्यों कि इस तरह के अवसाद की स्वीकृति बहुत कठिन होती है । छलिया और कपटिया व्यक्तित्त्व में ये लक्षण बहुतायत देखे जाते हैं । इस तरह के अवसाद का पता लगाना भी बहुत कठिन होता है और उस रोग का इलाज़ ल

जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक

जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक  ●पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी मुनिराज के ससंघ सान्निध्य में अभिनंदनोदय तीर्थ ,क्षेत्रपाल जी ,ललितपुर (उ.प्र.) में श्री अखिल भारत वर्षीय दिगंबर जैन विद्वतपरिषद के तत्त्वावधान में दिनांक 11 से 13 नवंबर 2022 तक जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ ।  ● संगोष्ठी में तीनों दिन विद्वानों ने प्रातः 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक जिनेन्द्र पूजन अभिषेक , प्रातःकालीन तकनीकी सत्र, दोपहर तकनीकी सत्र,शंका समाधान कार्यक्रम ,रात्रि तकनीकी सत्र में लगातार भाग लिया ।  सुबह से रात तक जैन स्तोत्र साहित्य ही चर्चा का विषय बना रहा ।  ● पूज्य मुनि श्री ने सभी सत्रों में अपना सान्निध्य प्रदान किया तथा आवश्यकतानुसार  मध्य में एवं अंत में अपने अनुसन्धानयुक्त समीक्षात्मक उद्बोधनों से सभी विद्वानों का मार्ग प्रशस्त किया ।  ● विशेषता यह रही कि शोध पत्रों की संख्या अधिक थी फिर भी लगभग 10 मिनट सभी को प्रस्तुति हेतु दिए गए और उसके बाद उस शोध लेख पर चर्चा का पूरा अवसर दिया गया ।  ● स्तोत्र साहित्य में वर

प्राकृत पत्रकारिता

प्राकृत पत्रकारिता : एक अनुभव जिस प्रकार *उदंत मार्तण्ड* हिंदी का प्रथम समाचार पत्र माना जाता है जो कि जुगलकिशोर सुकुल ने 30 मई 1826 को कलकत्ता से पहली बार प्रकाशित किया था । संस्कृत भाषा का प्रथम अखबार *सुधर्मा* श्री के.वी.संपत कुमार ने 14 जुलाई 1970 को मैसूर से प्रारम्भ किया था ।  उसी प्रकार प्राकृत भाषा में प्रकाशित होने वाला  *पागद भासा* नामक अखबार अब तक का प्रथम प्रयास है । यह भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय में प्राकृत भाषा के प्रथम समाचार पत्र के रूप में पंजीकृत हुआ है । आरम्भ में भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय ने इसे DELPRA00001जैसा Title code जारी किया ,क्यों कि उनके रिकॉर्ड के अनुसार इस भाषा में आज तक कोई भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुआ था । मीडिया के क्षेत्र में भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत का प्रयोग ,उसमें समाचार लेखन अब तक की सबसे पहली घटना है । यही कारण है कि विद्वानों के बीच प्राकृत के विभिन्न भेदों के क्रम में अब मीडिया प्राकृत की भी चर्चा होने लगी है । इस पत्रिका का पहला प्रवेश अंक 13 अप्रैल 2014 में महावीर जयंती के दिन कुन्दकुन्द भारती

दीपावली पर्व वीतराग का या वित्तराग का ?

*दीपावली पर्व वीतराग का या वित्तराग का ?* प्रो.अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com पर्वों के देश भारत में दीपावली ऐसा पवित्र पर्व है जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की लगभग सभी परम्पराओं से है | भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैं | ईसा से लगभग ५२७  वर्ष पूर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन के समय प्रत्यूष बेला में स्वाति नक्षत्र के रहते जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का वर्तमान में बिहार प्रान्त में स्थित पावापुरी से निर्वाण हुआ था।  तिलोयपण्णत्ति में आचार्य यतिवृषभ(प्रथम शती)लिखते हैं – कत्तिय-किण्हे चोद्दसि,पज्जूसे सादि-णाम-णक्खत्ते । पावाए णयरीए,एक्को वीरेसरो सिद्धो ।।  ( गाथा १/१२१९ ) अर्थात्  वीर जिनेश्वर कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के प्रत्यूषकाल में स्वाति नामक नक्षत्र के रहते पावानगरी से अकेले ही सिद्ध हुए।  पूज्यपाद स्वामी (छठी शती )निर्वाण भक्ति की आंचलिका में लिखते हैं- अवसप्पिणीए चउत्थ समयस्स पच्छिमे भाए,अट्ठमासहीणे वासचउक्कमि सेसकालम्मि  पावाए

दशलक्षणपर्व प्रवचन

दशलक्षणपर्व 2022 में jain फाउंडेशन द्वारा आयोजित  ऑनलाइन प्रवचन श्रृंखला में प्रो अनेकान्त कुमार जैन , नई दिल्ली के प्रवचन की  प्ले लिस्ट । दस प्रवचन  https://youtube.com/playlist?list=PLIHOmooYh5rZ8oygMlGBCofaJPjizAurr

पंडित फूलचंद सिद्धांत शास्त्री जी की यादें और संस्थान

पंडित जी की याद दिलाता रहता है यह संस्थान मैं अपना परम सौभाग्य समझता हूं  कि वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के करीब नरिया क्षेत्र में स्थित सुप्रसिद्ध श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन शोध संस्थान के प्रेरक एवं संस्थापक आदरणीय पंडित फूलचंद सिद्धांत शास्त्री जी की गोदी में खेलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है ।  मेरे पिताजी डॉ फूलचंद जैन प्रेमी जी वाराणसी की रवींद्रपुरी कालोनी लेन 13 में रहते थे ,मेरा बचपन यहीं बीता । पंडित जी हमारे सामने की लेन 14 में उदासीन अखाड़े के सामने वाले घर में प्रथम तल पर रहते थे ।  अपने पिताजी और माता जी (डॉ मुन्नी पुष्पा जैन) के साथ मैं हमेशा ही पंडित जी के घर जाता रहता था । कभी कोई ग्रंथ या प्रूफ लेकर पिताजी मुझे अकेले भी उनके यहां भेज दिया करते थे । दीपावली की पूजन हमारा परिवार अक्सर साथ मिलकर ही करता था । उस दिन का एक अविस्मरणीय चित्र मैंने आज तक संभाल कर रखा है जिसमें उन्होंने अत्यंत वात्सल्य पूर्वक अपनी गोदी में बैठा रखा था । अक्सर ही पंडित जी मुझे स्नेह से अपनी गोदी में बिठा लिया करते थे । उनके घर जब भी जाते तो उनकी धर्म पत्नी जिन्हें हम सभी अम्मा जी क

उत्तम क्षमा

क्षमावाणी पर्व  क्षमापव्वं जीवखमयंति सव्वे खमादियसे च याचइ सव्वेहिं । ‘मिच्छा मे दुक्कडं ' च बोल्लइ वेरं मज्झं ण केण वि ।। क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है  उत्तम क्षमा आपको अपना समझकर  खो गया था स्नेह में  भूल बैठा मान मर्यादा मन वचन और काय में  न जाने कितने अपराध हो गए अनजान में  कुछ तो याद आ रहे हैं  प्रायः नहीं हैं भान में  कोशिश थोड़ी कर रहा हूँ  रहूं उत्तम क्षमा में  उन सभी भूलों के लिए  मांगता हूं क्षमा मैं  प्रो.अनेकान्त कुमार जैन 10/9/22

सुखी जीवन के लिए क्षमा करना और मांगना सीखें

जैन धर्म में क्षमावाणी पर्व पर्युषण और दसलक्षण पर्व के ठीक एक दिन बाद मनाया जाता है । भगवान महावीर ने सभी जीवों को सुखी होने के लिए जीवन जीने की जो आध्यात्मिक कला सिखलाई ,क्षमाभाव उनमें से एक है ।  क्षमापव्वं जीवखमयंति सव्वे खमादियसे च याचइ सव्वेहिं । ‘मिच्छा मे दुक्कडं ' च बोल्लइ वेरं मज्झं ण केण वि ।। क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है  हम अपने जीवन में झांक कर एक बार देखें तो पाएंगे कि मनुष्य भव की इस छोटी सी यात्रा में छोटी छोटी बातों को लेकर हम कितने चिंता ग्रस्त हैं और दूसरों को रखते हैं । क्षमाशीलता एक ऐसी अचूक औषधि है जो आपको इन व्यर्थ की चिंताओं से बचा कर रखती है । अगर किसी के प्रति कोई अपराध हमने पहले कर दिया है तो उस अपराध बोध से ग्रसित रहकर तनाव में रहने से लाख भला है कि हम उस अपराध की क्षमा मांग लें ।  भगवान महावीर ने प्रतिक्रमण का विधान इसीलिए किया था ताकि हम सिर्फ आपस में ही नहीं बल्कि सूक्ष्म से सूक्ष्म जीवों से भी क्षमा मांग सकें और निर्भार होकर साधना कर सकें

तीर्थंकर महावीर का पूर्ण स्वतंत्रता का संग्राम

स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर विशेष -  तीर्थंकर महावीर का पूर्ण स्वतंत्रता का संग्राम* प्रो अनेकान्त कुमार जैन  आचार्य - जैन दर्शन विभाग , श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com  हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं । भारत में अंग्रेजों की गुलामी से राजनैतिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति का यह अमृत महोत्सव है । किंतु आज से लगभग 2600 वर्ष पूर्व भारत की इस पवित्र धरा पर एक ऐसे महामानव का जन्म हुआ जिसने वास्तविक स्वतंत्रता की खोज की । वैशाली गणराज्य विश्व का पहला गणराज्य माना जाता है जहां जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म हुआ था । पूरे विश्व को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाले वैशाली में जिन भगवान महावीर का जन्म हुआ उन्होंने आध्यात्मिक क्षेत्र में भी पूर्ण स्वतंत्रता और लोकतंत्र की स्थापना की ।  भगवान महावीर स्वतंत्रता की यह लड़ाई तब लड़ रहे थे जब धर्म और अध्यात्म की दृष्टि लगभग पूरा विश्व मात्र ईश्वर की इच्छा के आधीन था । ईश्वर की इच्छा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता - यह दुनिया के लगभग सभी सेमेटिक धर्म अलग अलग भाषाओं में