पंडित जी की याद दिलाता रहता है यह संस्थान
मैं अपना परम सौभाग्य समझता हूं कि वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के करीब नरिया क्षेत्र में स्थित सुप्रसिद्ध श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन शोध संस्थान के प्रेरक एवं संस्थापक आदरणीय पंडित फूलचंद सिद्धांत शास्त्री जी की गोदी में खेलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है ।
मेरे पिताजी डॉ फूलचंद जैन प्रेमी जी वाराणसी की रवींद्रपुरी कालोनी लेन 13 में रहते थे ,मेरा बचपन यहीं बीता । पंडित जी हमारे सामने की लेन 14 में उदासीन अखाड़े के सामने वाले घर में प्रथम तल पर रहते थे ।
अपने पिताजी और माता जी (डॉ मुन्नी पुष्पा जैन) के साथ मैं हमेशा ही पंडित जी के घर जाता रहता था । कभी कोई ग्रंथ या प्रूफ लेकर पिताजी मुझे अकेले भी उनके यहां भेज दिया करते थे । दीपावली की पूजन हमारा परिवार अक्सर साथ मिलकर ही करता था । उस दिन का एक अविस्मरणीय चित्र मैंने आज तक संभाल कर रखा है जिसमें उन्होंने अत्यंत वात्सल्य पूर्वक अपनी गोदी में बैठा रखा था ।
अक्सर ही
पंडित जी मुझे स्नेह से अपनी गोदी में बिठा लिया करते थे । उनके घर जब भी जाते तो उनकी धर्म पत्नी जिन्हें हम सभी अम्मा जी कहते थे मुझे प्रेम से मखाने खिलाती थीं । मखाना कहाँ रखा है मुझे पता होता था ,अतः वे कहती थीं तुम खुद ही निकाल कर खा लो ।
मुझे हमेशा पंडित कुछ न कुछ लिखते या पढ़ते दिखाई देते थे तो बाल मन में मुझे लगता था कि ये इतने बड़े हैं और लगता है इनकी परीक्षाएं अभी भी चल रहीं हैं ।बचपन में इनकी विद्वत्ता और प्रकांड पांडित्य का उतना बोध जो नहीं था ।
लेकिन क्या पता था कि बाल्यकाल में उनसे प्राप्त आशीर्वाद और स्नेह के फलस्वरूप मैं भी उनकी ही राह पर चल पडूंगा ।
आज जैन विद्या एवं प्राकृत आगमों पर कार्य करते समय मैं उनके योगदान को देखता हूँ तो आश्चर्य होता है कि एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में इतनी अधिक श्रुत सेवा कर सकता है ? ।
उनके द्वारा लिखित ग्रंथ और संपादित आगम देखता हूँ तो खुद पर गर्व होता है कि मेरा बाल्यकाल उनकी गोद में बीता है ।
पंडित जी के अनेक योगदानों में से एक योगदान है यह गणेश वर्णी शोध संस्थान । यहां से प्रकाशित साहित्य आज जैन विद्या का स्तंभ बना हुआ है । पंडित जी द्वारा लिखित तत्त्वार्थसूत्र तथा पंडित महेंद्र कुमार जी न्यायाचार्य कृत जैन दर्शन सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली कृति है । वर्णी जी की मेरी जीवन गाथा आज भी जन जन के भीतर प्रेरणा का कार्य करती है ।
वर्तमान में दिगम्बर जैन शोध संस्थान अपेक्षाकृत बहुत कम संख्या में हैं ।जो हैं उनमें भी बहुत कम हैं जहां कार्य सुचारू रूप से हो रहे हैं ।
अतः हम सभी का पुनीत कर्तव्य है कि विद्या की नगरी काशी में स्थापित एकलौते दिगम्बर जैन शोध संस्थान की गरिमा बनाने और उसे बढ़ाने में अपना सम्पूर्ण योगदान अवश्य दें ।
मेरी भावना है कि संस्थान के माध्यम से जैन विद्या से संबंधित अनेक कार्यशालाओं का आयोजन हो जिसमें यहां के विभिन्न विश्वविद्यालयों के विद्यार्थी ,शोधार्थी तथा समाज के प्रबुद्धजन जैन विद्या का अभ्यास कर सकें ।
इसी प्रकार संस्थान के पुस्तकालय का ई-आधुनिकीकरण भी हो ताकि देश विदेश के विद्वान इसका लाभ ले सकें ।
यहां से नियमित एक शोध पत्रिका का प्रकाशन भी अवश्य होना चाहिए ।
समय की आवश्यकता के अनुसार शोध संस्थान को जैन सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी विकसित किया जा सकता है । संस्थान द्वारा जैन विद्या तथा प्राकृत भाषा के नियमित और पत्राचार सार्टिफिकेट डिप्लोमा कोर्स चलाये जा सकते हैं ।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ MOU किया जा सकता है । मासिक विशेष व्याख्यान और नियमित शास्त्र स्वाध्याय की परंपरा को विकसित करने का काम संस्थान के माध्यम से किया जा सकता है ।
आज कल ऑनलाइन शिक्षा का प्रसार बहुत हो गया है । संस्थान अपना एक चैनल बनाकर नियमित कार्यक्रम कर सकता है ।
इन सभी कार्यों के लिए पर्याप्त फंड की भी आवश्यकता होती है अतः सरकार को तथा समाज को इसे वृद्धिंगत करने में अपना पूरा सहयोग देना चाहिए । हमें यह विचार करना चाहिए कि कहीं ऐसा न हो कि हमारी उदासीनता के फलस्वरूप देश में अल्पसंख्या में चलने वाले जैन शोध अनुसंधान केंद्र भी निष्क्रिय न हो जाएं ।
प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
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