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छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका

छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका !

प्रो अनेकान्त जैन,नई दिल्ली

धोखा या छल करना एक बहुत ही कमजोर व्यक्तित्त्व की निशानी है ,आध्यात्मिक दृष्टि से यह बहुत बड़ा पाप है ही ,साथ ही कानून की दृष्टि में यह एक दंडनीय अपराध है |प्रत्येक दृष्टि से यह अनुचित होते हुए भी आज का इन्सान बिना किसी भय के  दुनियादारी में सफल होने के लिए इसे आवश्यक मानने लगा है और दूसरों से धोखा या छल करता है अतः मैं इसे एक मनोरोग भी कहना चाहता हूँ |

सरल व्यक्ति अवसाद में नहीं जा सकता ,अवसाद में कठिन व्यक्ति ही जाता है ,छल कपट कठिन व्यक्तित्त्व की निशानी है । सामान्यतः उदासीनता ,निराशा और अंतरोन्मुखता को अवसाद समझा जाता है किंतु वह ज्यादा गहरा नहीं होता थोड़ी सी प्रेरणा से उससे बाहर आया जा सकता है । अत्यधिक उत्साह ,अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा और अत्यधिक बहिर्मुखता और आत्ममुग्धता बहुत गहरा अवसाद है जिससे बाहर आना बहुत कठिन होता है ।क्यों कि इस तरह के अवसाद की स्वीकृति बहुत कठिन होती है । छलिया और कपटिया व्यक्तित्त्व में ये लक्षण बहुतायत देखे जाते हैं । इस तरह के अवसाद का पता लगाना भी बहुत कठिन होता है और उस रोग का इलाज़ लगभग नामुमकिन हो जाता है जिस रोग को रोग ही न समझा जाए । 

कानून बाहरी छल को समझता है और उसके आधार पर दंड का निर्धारण करता है ।छल के अपराध का गठन (कॉन्स्टीट्यूट) करने वाले महत्वपूर्ण तत्वों में से एक धोखा है। धोखा देने का अर्थ है, किसी व्यक्ति को किसी असत्य तत्व में विश्वास दिलाना कि वह सत्य है या किसी व्यक्ति को शब्दों या आचरण द्वारा सत्य को असत्य बना देना।

आई.पी.सी. की धारा 420 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति छल करता है और इस तरह बेईमानी से दूसरे व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति को कोई संपत्ति देने के लिए प्रेरित करता है या एक मूल्यवान सुरक्षा के पूरे या किसी हिस्से को बनाता है, बदल देता है या नष्ट कर देता है, या कुछ भी जो हस्ताक्षरित या मुहरबंद है, और जो एक मूल्यवान सुरक्षा में परिवर्तित होने में सक्षम है, तो ऐसे अपराधी को किसी एक अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाता है , जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माने के लिए भी उत्तरदायी हो सकता है। आई.पी.सी. की धारा 420 छल का एक उग्र रूप है।

छल या माया के कृत्रिम स्वभाव के कारण हम समाज में एक मुखौटा लगाकर जी रहे हैं ,रोज मुखौटे बदलते हैं ,मुखौटे पहनने के हम इतने आदी हो गए हैं कि हमारा असली चेहरा क्या है ? हम वो भी भूल चुके हैं | 

शास्त्रों में कहा गया है कि मायाचारी व्यक्ति वर्तमान में भले ही छल कपट करके खुद को बहुत होशियार या सफल मानता फिरे , दूसरों को ठग कर बेवकूफ बनता रहे किन्तु इस मायाचारी प्रवृत्ति का फल तिर्यंच गति होता है अर्थात् इसके फल से मनुष्य अगले जन्म में पशु पक्षी बन कर बहुत दुख उठाता है । ऐसा करके खुद को ठगता है और मन ही मन प्रसन्न होता है कि मैंने दूसरे को ठग लिया ।

जैन दर्शन कहता है कि मनुष्य के सभी कार्य पूर्व के पुण्य उदय से सिद्ध होते हैं मायाचारिता से नहीं । छल करने वाला मनुष्य अपनी प्रामाणिकता खो देता है । आपके व्यक्तित्व पर कोई भरोसा नहीं करता ।

वर्तमान में  मायाचारिता को एक गुण समझा जा रहा है ।सरलता को वर्तमान समाज में मूर्खता कहा जाने लगा है । यह अशुभ संकेत है ।

वास्तविकता यह है कि मायाचारी व्यक्ति को पूरी दुनिया टेढ़ी दिखाई देती है , वह हमेशा सशंक और तनाव में रहता है । मन में चोर भरा हो तो पूजा ,पाठ , अभिषेक , ध्यान ,सामायिक से भी शांति नहीं मिल सकती । क्यों कि मायाचारी यह सब भी माया और छल के वशीभूत होकर करने लगता है ।हमें यह समझना होगा कि आंख में पड़ा हुआ तिनका , पैर में घुसा हुआ कांटा ,रुई में छुपी हुई आग से भी ज्यादा खतरनाक है दिल में छिपा हुआ कपट और पाप ।

ईमानदारी और निश्छलता की सबसे बड़ी प्रामाणिकता यह है कि प्रत्येक बेईमान इन्सान को भी एक ईमानदार साथी की अपेक्षा होती है  क्यों कि खुद के साथ छल किसी को भी स्वीकार नहीं है |

छलिया व्यक्ति छल को ही एक मात्र खुद के विकास का साधन मानने लगता है उसे लगता है कि यदि वह छल नहीं करेगा तो वह पिछड़ जाएगा । उसका सारा विकास रुक जाएगा । इसीलिए असफलता के भय से वह सरलता और सहजता से सम्पन्न हो सकने वाले कार्यों को भी छल और माया से सम्पन्न करना चाहता है । उसे इस अवसाद से निकालना बहुत कठिन होता है क्यों कि वह इसे बुरा समझता ही नहीं है ।

जिस दिन मनुष्य को यह विश्वास दिला दिया जायेगा कि जिसे वह दूसरों के साथ छल समझ रहा है दरअसल वह खुद की शांति और विकास के साथ ही बहुत बड़ा धोखा है ,शायद तब वह इस पर नियंत्रण करने का सार्थक प्रयास करेगा | |

दूसरों को धोखा देने के फेर में
हम हर बार खुद से फ़रेब कर बैठे


*To deceive other is a mental disease.*
- *Prof Anekant* 

New Delhi
3/12/2022

'To deceive other is a mental disease' -
told by 
Prof Anekant Kumar Jain when he was addressing the first session in World Conference on Spiritual Sciences at NDMC Convention Centre, New Delhi organised by Doctors Forum, Animal Wellfare Socity of India and Acharya Gyan Sagar Foundation.

Prof Anekant kumar Jain
has been awarded by President of India and is an eminent scholar of Jainism.  He started with mentioning that to deceive other is a sin. To deceive other is a mental disease. A person who is simple by nature will never go in depression. Sadness, depression etc are symptoms of mental disorder. Through motivation we can take the person out of depression. However, high ambition and aspirations due to social media is difficult to handle.  It is very difficult to find solution to a disease which is not a accepted as disease. When we go to a religious place, there is a board that “remove your shoes”. He urged everyone to put one more board there saying “remove your face” here. We should at least be honest to ourselves. According to the lens of religion, a person who deceives others is reborn as animal in next birth. A simple term for Samyak darshan is “To stay simple”.  He strongly believes that when a person can be made to believe that his deceiving others is an act of deceiving himself/herself only.
He also chaired the second session of this conference . 

(Reported by Dr Palak Jain )

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