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संदेश

डिजिटल नौ बाढ़ की भी जरूरत

अब नई डिजिटल नौ बाढ़ की भी जरूरत है .... १. यू ट्यूब पर सिर्फ धार्मिक,ज्ञानवर्धक और सूचनाएं ही देखूंगा । २. किसी स्त्री या पुरुष से ऑनलाइन अनावश्यक चैटिंग नहीं करूंगा । ३. रागवर्धक पोस्ट नहीं डालूंगा । ४. पोर्न न देखूंगा , न दिखाऊंगा और न अनुमोदना करूंगा । ५. व्यर्थ ही किसी की DP zoom करके नहीं देखूंगा । ६.  किसी के गोपनीय प्रसंगों का चित्र नहीं लूंगा और न ही उसे वायरल करूंगा । ७.अपनी ओरिजनल फ़ोटो को एडिट करके श्रृंगार भाव प्रेरक खूबसूरत नहीं बनाऊंगा । ८. ऐसा किसी संदेश,चित्र या वीडियो को अग्रसारित नहीं करूंगा जिससे किसी के सम्मान या शील की हानि हो । ९. ऑनलाइन मीटिंग के दौरान कान में ब्लू टूथ  संगीत🎶 लगाकर मीटिंग सुनने का नाटक नहीं करूंगा । डॉ अनेकान्त जैन,नई दिल्ली 19/09/2021 उत्तम ब्रह्मचर्य

प्राकृत पत्रकारिता : एक अनुभव

जिस प्रकार *उदंत मार्तण्ड* हिंदी का प्रथम समाचार पत्र माना जाता है जो कि जुगलकिशोर सुकुल ने 30 मई 1826 को कलकत्ता से पहली बार प्रकाशित किया था । संस्कृत भाषा का प्रथम अखबार *सुधर्मा* श्री के.वी.संपत कुमार ने 14 जुलाई 1970 को मैसूर से प्रारम्भ किया था ।  उसी प्रकार प्राकृत भाषा में प्रकाशित होने वाला  *पागद भासा* नामक अखबार अब तक का प्रथम प्रयास है । यह भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय में प्राकृत भाषा के प्रथम समाचार पत्र के रूप में पंजीकृत हुआ है । आरम्भ में भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय ने इसे DELPRA00001जैसा Title code जारी किया ,क्यों कि उनके रिकॉर्ड के अनुसार इस भाषा में आज तक कोई भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुआ था । मीडिया के क्षेत्र में भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत का प्रयोग ,उसमें समाचार लेखन अब तक की सबसे पहली घटना है । यही कारण है कि विद्वानों के बीच प्राकृत के विभिन्न भेदों के क्रम में अब मीडिया प्राकृत की भी चर्चा होने लगी है । इस पत्रिका का पहला प्रवेश अंक 13 अप्रैल 2014 में महावीर जयंती के दिन कुन्दकुन्द भारती ,नई दिल्ली में आयोजित एक समारोह में पूज्य

दसधम्मसारो (दशधर्मसार) - प्रो अनेकान्त कुमार जैन (प्रकाशित कृति)

Notice- This published book is the collection of many articles which has been published in different newspapers time to time. This is for public domain , welfare and for religious purpose . Any news paper magazine can publish this matter with seqence during the dashlakshan parva upto the kshamavani parva (means Panchmi to Chaturdashi and on ekam.) with the name of author Prof.Dr Anekant Kumar Jain,New Delhi without any cost . No changes are allowed in the matter . दसधम्मसारो (दशधर्मसार )    प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन आचार्य -जैन दर्शन विभाग  श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय  नई दिल्ली -११०१६  Phone 9711397716 anekant76@gmail.com  प्रकाशक जिन फाउंडेशन,नई दिल्ली सन - 2020 भूमिका   आत्मानुभूति  का महापर्व है दशलक्षण जैन परंपरा के लगभग सभी पर्व हमें सिखाते हैं कि हमें संसार में बहुत आसक्त होकर नहीं रहना चाहिए । संसार में रहकर भी उससे भिन्न रहा जा सकता है जैसे कमल कीचड़ में रहकर भी उससे भिन्न होकर खिलता है । यह कार्य अनासक्त भाव से रहने की कला जानने वाला सम्यग्दृष्टि स

इस बार मैं अपने दशलक्षण जानना चाहता हूँ

*इस बार मैं अपने दशलक्षण जानना चाहता हूं* *प्रो डॉ अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली* drakjain2016@gmail.com 9/9/2021 दशलक्षण महापर्व आत्मानुसंधान का महापर्व है किंतु जाने अनजाने मैं इन महत्त्वपूर्ण दिनों को भी मात्र धार्मिक मनोरंजनों में व्यतीत कर देता हूँ ।  कई स्कूल दिखा कर  बच्चों से ही पूछा जाय कि तुम्हारा प्रवेश किस स्कूल में करवाया जाए तो वह उस स्कूल का नाम बताता है जहाँ झूले और खिलौने ज्यादा थे और ज्यादा अच्छे थे । प्राइमरी कक्षा का कोई भी बच्चा पढ़ने के लिए स्कूल का चयन नहीं करता है । लेकिन हम बच्चे को स्कूल झूला झूलने और खिलौने खेलने के लिए नहीं भेजते हैं । हमारा उद्देश्य कुछ और होता है । खिलौने तो घर पर भी बहुत हैं और झूले तो पार्क में भी हैं। वैद्य जी चाशनी के साथ दवाई खाने को देते हैं , उनका उद्देश्य दवाई देना है न कि चाशनी चटाना । अब किसी का अभ्यास कड़वी दवाई खाने का नहीं है और उपचार के लिए वह दवा बहुत आवश्यक है तो मजबूरी में चाशनी साथ में देना पड़ती है ताकि कड़वापन सहन हो जाये । चाशनी दवा के प्रभाव को कम ही करती है किंतु और कोई उपाय भी तो नज़र नहीं आता अतः देनी ही पड़ती है ।  पर व

दशलक्षण से पूर्व एक वार्तालाप

*दशलक्षण से पूर्व एक वार्तालाप* प्रो अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली भक्त : भाई साहब ,इस बार दसलक्षण पर्व पर कौन कौन से कार्यक्रम हैं ?  अध्यक्ष  :  इस बार प्रातः प्रक्षाल पूजन  के अनन्तर दसलक्षण विधान का भी आयोजन है । भक्त : वाह ! बहुत बढ़िया , और शाम को ?  अध्यक्ष : शाम को सामूहिक आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम , बस । भक्त :  बस ,और शास्त्र सभा, प्रवचन ?  अध्यक्ष :  अब कोरोना के नियमों के कारण सभा करना ठीक नहीं है । संक्रमण का डर है । भक्त : भाई साहब , संक्रमण का डर तो प्रातः भीड़ में भी है । सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी है । अध्यक्ष : है तो पर जितना बचा जा सके ,उतना तो बचो । वैसे भी , उसके लिए बाहर से पंडित जी को बुलाना पड़ेगा , उनके रहने खाने की व्यवस्था करनी पड़ेगी । आवागमन का व्यय देना पड़ेगा ...काफी झंझट है । भक्त : एक तो कई वर्षों से दोपहर का तत्त्वार्थसूत्र का पाठ और प्रवचन बंद है और अब किसी न किसी बहाने शाम के प्रवचन भी बंद हो जायेगे । फिर हम जिनवाणी कहाँ सुनेंगे ?  अध्यक्ष : अरे ! उसकी क्या कमी है ? टीवी , यूट्यूब,ज़ूम पर रात दिन आ तो रहे हैं , जिन्हें बहुत शौक है वहां सुना करें । उस

आचार्य कुन्दकुन्द की अनिवार्य दिगम्बरत्व दृष्टि

आचार्य कुन्दकुन्द की अनिवार्य दिगम्बरत्व दृष्टि डॉ अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली जस्स वयणं सुणिदूण , सेआम्बरो वि हवदि दिअम्बरो। तं जययपुज्जं णमो दिअम्बरायरियो कुण्डकुण्डस्स।। जिनकी दिव्य वाणी को सुनकर  श्वेताम्बर भी (अपना मताग्रह त्यागकर) दिगंबर  हो रहे हैं ,उन जगत पूज्य महान दिगंबर जैन आचार्य कुन्दकुन्द को मेरा नमस्कार है । दिगंबर मुनि दशा के बिना मुक्ति संभव नहीं है । इस बात की घोषणा आचार्य कुन्दकुन्द ने जिस अंदाज में की है वह उनकी मूल आम्नाय को स्वयमेव ही प्रगट करता है । आचार्य कुंदकुंद अष्टपाहुड ग्रंथ में कहते हैं कि - णवि सिज्झइ वत्थ धरो, जिणसासणे जइ वि होइ तित्थयरो। णग्गो वि मोक्ख मग्गो, सेसा उम्मग्गया सव्वे॥  (सूत्र पाहुड -23)   अर्थात् - जिनशासन में ऐसा कहा है कि- वस्त्रधारी यदि तीर्थंकर भी हो तो वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। एक नग्न वेष ही मोक्षमार्ग है बाकी सब उन्मार्ग हैं।  साथ ही वे यह भी कहते हैं कि अंतरंग निर्मलता रहित नग्नता भी मोक्ष का कारण नहीं है। णग्गो पावइ दुक्खं णग्गो संसार सायरे भमइ। णग्गो न लहइवोहिं जिण—भावण—वज्जिओ सुइदं।। (भावपाहुड-68) जिन रूप निर्मल भावनाशून्य नग्न

जैन संस्कृत साहित्य सुभाषित

कल संस्कृत दिवस पर चिंतन ….... जैन आचार्यों ने संस्कृत साहित्य के संवर्धन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । ज्यादा प्रचार प्रसार न होने से उनके द्वारा रचित साहित्य का उपयोग आम संस्कृत जगत में भी वैसा नहीं हो सका है जैसा होना चाहिए था । यह हमारे सोच की बिडम्बना है कि एक तरफ भले ही महाकवि कालिदास जी के साहित्य पर 5000 से ज्यादा शोधकार्य हो गए हैं और आगे भी होते जा रहें हैं किन्तु जैन आचार्यों कवियों साहित्यकारों द्वारा रचित संस्कृत साहित्य पर गिने चुने ही शोधकार्य हुए हैं ।  इसके पीछे पहला बहुत बड़ा कारण उसके साहित्य और उसकी विषय वस्तु का अप्रचार है तथा दूसरा कारण  साम्प्रदायिक अभिनिवेश भी रहा है इससे इंकार नहीं किया जा सकता । आज काशी के सार्वभौम  संस्कृत कार्यालय तथा संस्कृत भारती की उदारवादी विचारधारा के कारण इस स्थिति में और मानसिकता में थोड़ा बहुत परिवर्तन अवश्य आया है ।  यूं ही संस्कृत दिवस को सार्थक करने की दृष्टि से विचार आया कि जैन संस्कृत साहित्य की सुषमा को मीडिया के माध्यम से जन जन तक संचारित करना चाहिए । अतः संदर्भ सहित जैन संस्कृत साहित्य के जनोपयोगी विचारों को सुभाषित के माध्य

आचार्य महाश्रमण ने कुछ गलत नहीं कहा

*आचार्य महाश्रमण ने कुछ गलत नहीं कहा* *प्रो अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली*  अभी कुछ दिनों से जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के आचार्य महाश्रमण जी का एक प्रवचन का वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत तेजी से वायरल किया जा रहा है जिसमें उन्होंने तेरापंथ धर्म संघ के श्रावकों को यह हिदायत दी है कि कन्यायों का विवाह तेरापंथ में ही करना चाहिए ।  इस प्रवचन को लेकर असहमति पूर्वक तरह तरह के मैसेज भी वायरल किये जा रहे हैं । मैंने उस प्रवचन क्लिप को बहुत ध्यान से सुना है । मुझे लगता है कि हमें पहले पूरा प्रवचन सुनना चाहिए तथा उनका अभिप्राय समझना चाहिए ।  किसी भी धर्म,सम्प्रदाय,पंथ,जाति या समुदाय को अपनी संस्कृति और विचारधारा के संरक्षण की चिंता सहज रहती ही है ।  उनका अभिप्राय भी कुछ इसी तरह का है ।  मुझे नहीं लगता वे किसी कट्टरता की बात कर रहे हैं । बल्कि प्राथमिकता की बात कर रहे हैं । ऐसा सभी लोग करते हैं और करना भी चाहिये ।  प्रत्येक जैन मां बाप अपनी बेटा या बेटी का विवाह जानबूझ कर अन्य पंथ ,धर्म में नहीं करते हैं ।  प्रथम तो आज की 90% पीढ़ी इन विषयों में आपकी सुनती ही नहीं है आप चाहे जितना राग अलाप लो उनके

आचार्य आनंद ऋषि सम्मान

पहले धर्म क्षेत्र में हो अणुव्रतों का पालन

प्रो डॉ. अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली   अन्यक्षेत्रे कृतं पापं पुण्यक्षेत्रे विनश्यति | पुण्यक्षेत्रे कृतं पापं   वज्रलेपो भविष्यति ||   अन्य क्षेत्र में किया हुआ पाप पुण्य क्षेत्र में आराधना करने पर संभवतः विनाश को प्राप्त हो भी सकता है किन्तु पुण्य क्षेत्र में किया गया पाप बज्र लेप के समान हो जाता है जिसका नाश करना बहुत कठिन हो जाता है | यह सुभाषित अर्थ सहित प्रत्येक मंदिर , तीर्थ , स्थानक , धर्मशाला आदि सभी धर्म क्षेत्रों में अनिवार्य रूप से लिखवा देना चाहिए | पांच अणुव्रत हमारे जीवन के हर क्षेत्र में पालने योग्य हैं किन्तु उनका धर्म क्षेत्र में पालन अनिवार्य है | जहाँ से हमें इन अणुव्रतों की शिक्षा मिली है उस क्षेत्र में ही यदि उसका पालन नहीं किया जा सकता तो देश दुनिया को उसके पालन की शिक्षा देना व्यर्थ हो जाएगा | धर्म क्षेत्र में हम अणुव्रतों का पालन चाहें तो आसानी से कर सकते हैं यह समझकर कि जाने अनजाने कहीं हम   बहुत बड़ा पाप तो नहीं कर रहे | आये हैं पुण्य के लिए और कहीं पाप की गठरी तो नहीं बाँध रहे | अणुव्रत  अहिंसासमाणुभूइ अकत्ता परदव्वस्स खलु सच्चं ।

धर्म की रक्षा

धर्म की रक्षा करना हम सभी का कर्त्तव्य है । किंतु उसके लिए यदि अधर्म का आश्रय लिया जाता है तो फिर हम रक्षा किसकी कर रहे हैं ?  आज भी ऐसे भले ही लोग अधर्म से थोड़ा बहुत डरते भी हों किन्तु धर्म की रक्षा के लिए अधर्म और अनीति का आश्रय बड़े उत्साह से लेते हैं मानो बहुत बड़ा पुण्य कर रहे हों ।  इतिहास गवाह है संसार में सबसे ज्यादा हिंसा और अधर्म धर्म की रक्षा के नाम पर ही हुआ है और आज भी हो रहा है । डॉ अनेकान्त जैन  10/08/2021