दशलक्षण धर्म : एक झलक अनंत चतुर्दशी *उत्तम ब्रह्मचर्य* पर द्रव्यों से नितांत भिन्न शुद्ध बुद्ध अपने आत्मा अर्थात् ब्रह्म में लीनता ही उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है । ब्रह्मचर्य व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ व्रत कहा गया है । मुनि इसे महाव्रत के रूप में तथा गृहस्थ इसे अणुव्रत के रूप में पालते हैं । इन्द्रियों के विषयों का सेवन करते रहने से अपने अतीन्द्रिय आत्म स्वरूप का अनुभव नहीं हो पाता है । इन्द्रिय विषयों में आसक्ति अब्रह्मचर्या है । दो में से एक कार्य ही संभव है या तो इन्द्रिय भोग या ब्रह्मलीनता । जो पांच इंद्रियों में लीन है वह आत्मा में लीन नहीं है जो आत्मा में लीन है वह पांच इंद्रियों में लीन नहीं है । हम यह कह सकते हैं कि पंचेंद्रिय विषयों से निवृत्ति नास्ति से और आत्मलीनता अस्ति से ब्रह्मचर्य धर्म की परिभाषा है । मुख्य रूप से स्पर्श इन्द्रिय के विषयों में स्वयं को संयमित रखने को ब्रह्मचर्य इसलिए कहा जाता है क्यों कि यह इन्द्रिय सबसे व्यापक है और शेष चार इन्द्रियां भी किसी न किसी रूप में इससे संबंधित हैं । व्यवहार से गृहस्थ जीवन में धर्म एवं समाज द्वारा स्वीक