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Review of Mohalla assi movie

द्विवेदी जी अस्सी का ऐतिहासिक अश्लील कवि सम्मेलन भी दिखा देते........ जी हां ये वही डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी हैं जिन्होंने नब्बे के दशक में चाणक्य सीरियल बनाया था और खुद अभिनय किया था । मैं उन दिनों में भी इस सीरियल का दीवाना हो गया था जब ये रामायण की तरह आम लोगों को समझ में नहीं आता था । मुझे तो आज भी चाणक्य के डायलॉग याद हैं ।  उच्च स्तर की हिंदी , संवाद की गरिमा और अभिनय का लोहा मनवाने वाले द्विवेदी जी ' मोहल्ला अस्सी ' जैसी फिल्म बना कर काशी की गरिमा के साथ खिलवाड़ करेंगे ये सोचा भी न था ।  माना कि गलियां यहां का राजपथ और गालियां यहां का मंत्रपाठ है और काशीनाथ सिंह जी ने 'काशी अस्सी '  लिखकर गरिमा बढ़ाने की बजाय गरिमा गिराई है । कहानी में किसी ब्राह्मण के आदर्शों को उसकी गरीबी और पिछड़ेपन का जामा पहना कर यह दिखाना कि अब ये सिर्फ आदर्श हैं हकीक़त की चीज नहीं है - ठीक नहीं लगा । काशी आज भी विद्वानों की खान है और अनेक विद्वान अपने आदर्शों के साथ ही सपन्न भी हैं , उनकी तूती पूरी दुनिया में बोलती है । यहां के संगीत,गायन, वादन आदि कला के महारथी पूरी दुनिया में

अन्तिम समय तक जीने की कला सिखाता है जैन धर्म –प्रो. अनेकांत

अन्तिम समय तक जीने की कला सिखाता है जैन धर्म   –प्रो.  अनेकांत इस वर्ष दीपोत्सव के ठीक पूर्व सीनियर सिटीजन कॉउन्सिल  ,  दिल्ली द्वारा कम्युनिटी सेंटर ,  ग्रीनपार्क एक्सटेंशन ,  नई दिल्ली में आध्यात्मिक सत्संग का आयोजन किया गया । जिसमें  * जैन धर्म के अनुसार जीवन जीने की कला*विषय पर प्रो अनेकांत कुमार जैन, आचार्य एवं अध्यक्ष –जैन दर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ ,नई दिल्ली  ने सार गर्भित व्याख्यान करते हुए कहा कि प्रथम तीर्थंकर रिषभ देव से लेकर अंतिम तीर्थंकर भगवान् महावीर तक चौबीस तीर्थंकर हुए जिन्होंने संसार के सभी मनुष्यों को जीवन जीने की कला सिखलाई  |  उन्होंने सिखाया कि संसार में किस तरह रहना चाहिए ताकि मानव मात्र का कल्याण हो सके  | जीवों के कल्याण के लिए सबसे पहले भगवान् महावीर ने रिसर्च की कि मनुष्यों की कौन सी ऐसी कमियां हैं जो उसके विकास को रोक रहीं हैं तथा उसका जीवन बर्बाद कर रहीं हैं  |  अपनी इस रिसर्च में उन्होंने सात आदतें ऐसी पायीं जिनके कारण वह उसका जीवन बर्बाद हो रहा है और आगे नहीं बढ़ पा रहा है  |  इसलिए अच्छा  , स्वस्थ्य और सुन्दर जी

Prof Dr Anekant Kumar Jain : JAIN SCHOLAR : An Introduction and Contacts

PROF.DR. ANEKANT KUMAR JAIN (Awarded by President of India) Designation Professor and Head-Deptt.Of Jainphilosophy,Faculty of Philosophy Sri LalbahadurShastriRashtriya Sanskrit Vidyapeeth Deemed University Under Ministry Of HRD Qutab Institutional Area, New Delhi-110016 Qualification: M.A., Phd (Jainology& Comparative Religion & Philosophy) Acharya JRF From UGC   Teaching Experience:  17 years UG/PG classes and Research Guidance for three students              Publications   : 12 Books, 60 Research Articles In National And International Journals. More Then 150 Articles Published InMany National News Papers Like  (DainikJagran, Hindustan, Nbt, Ras.Sahara, Amarujala; Raj.Patrika, DainikTribune, Etc.) Many Poetry, Stories Published In Various Magazines,News Papers. Script Writing For Documentary Films. Editor – PAGAD BHASA  (The first News Paper in Prakrit Language ) Residence &Contacts  : ‘JIN  FOUNDATION’, A 93 / 7A ,Near Jain M

हे व्हाट्सएप्प देव

फील गुड की फीलिंग -कुमार अनेकान्त व्हाट्सएप्प पर आठ दस मैसेज इधर से उधर कर दो तो आज समाज सेवा और जीव दया,करुणा का कोटा पूरा होगया जैसी फीलिंग होती है और दिन अच्छे से गुजरता है । मोदी जी के गुणगान में कुछ कांग्रेसियों को लपेट दो तो लगता है आज की राष्ट्रभक्ति का कोटा पूरा हुआ । कुछ माता पिता की सेवा से संबंधित शायरी या कोटेशन , कुछ धार्मिक फ़ोटो और प्रवचन fwd कर दो तो लगता है जैसे मंदिर हो आये हों कुछ ज्ञान बघार दो और कुछ ज्ञान पढ़ लो तो लगता है आज की पढ़ाई का कोटा भी पूरा हुआ । कुछ प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के नुस्खे बिना जांच पड़ताल के आगे भेज दो तो परोपकार जैसे पुण्य का अनुभव होने लगता है । कुछ बुराइयों की जमकर बुराई लिख दो तो क्रांतिकारी होने की हसरत भी पूरी हो जाती है । हे व्हाट्सएप्प देव तुमने बिना कुछ किए सब कुछ करने जैसी अनुभूतियों से हमारे जीवन को भर दिया है तुम्हें शत शत नमन 🙏

मिच्छामि दुक्कडं और ‘पर्युषण पर्व’ कहना गलत नहीं है’

सादर प्रकाशनार्थ ‘ मिच्छामि दुक्क डं’ और   ‘ पर्युषण पर्व ’  कहना गलत नहीं है’ प्रो.अनेकांत कुमार जैन अध्यक्ष-जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली -१६,  drakjain2016@gmail.com     वर्तमान में दिगंबर जैन समाज में व्यवहार में मूल प्राकृत आगमों के शब्दों के प्रायोगिक अभ्यास के अभाव कई प्रकार की भ्रांतियां  उत्पन्न हो रही हैं जिस पर गम्भीर चिन्तन मनन आवश्यक है |   मैं इस विषयक में कुछ स्पष्टीकरण देना चाहता हूँ - १. एक  भ्रान्ति  यह फैल रही है कि  ‘ मिच्छामि दुक्क डं’  शब्द श्वेताम्बर परंपरा से आया है |कारण यह है कि श्वेताम्बर श्रावकों में मूल प्राकृत के प्रतिक्रमण पाठ पढने का अभ्यास ज्यादा है | दिगंबर परंपरा में यह कार्य मात्र मुनियों तक सीमित है | दिगंबर श्रावक भगवान् की पूजा ज्यादा करते हैं ,कुछ श्रावक प्रतिक्रमण करते हैं तो हिंदी अनुवाद ही पढ़ते हैं ,मूल प्राकृत पाठ कम श्रावक पढ़ते हैं अतः  ‘ मिच्छामि दुक्क डं’  का प्रयोग श्वेताम्बर समाज में ज्यादा प्रचलन में आ गया जबकि दिगंबर परंपरा के सभी प्रतिक्रमण पाठों में स्थान स्थान पर  ‘ म

हिंदी साहित्य आई सी यू में है

हिंदी साहित्य आई सी यू में है अपनी ही डायरी के पुराने पन्ने पलट के अपनी ही 20 -25 वर्ष पुरानी कविताएं पढ़ते हैं तो आश्चर्य होता है और सोचता हूँ इतनी गहरी संवेदना और अभिव्यक्ति कला क्या पुनर्जीवित हो सकती है ? आज संदर्भ भी बदल गये और प्रसंग भी । अब वो खुद की दुनिया में ,खुद ही राजा बनकर रहने का जुनून भी कहाँ से लाया जाए । यथार्थ के दलदल में ऐसे फँसे कि फ़साने बुनना कब छूट गया पता ही नहीं चला ।  पहले कविता का केंद्र चाहे जो रहा हो लेकिन उसमें अभिव्यक्त रोष,कुंठा,प्रेम,आग,बगावत ये सब डायरी की दीवार में कैद अपनी खिचड़ी बनाते रहे और भले ही ये प्रकाशन में न आ पाए हों, युग को कोई राह न् दिखा पाए हों लेकिन इस अभिव्यक्ति ने हमें निराशा और कुंठाओं से मुक्त रहने और तनाव रहित जीवन जीने में, जीवन निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया । यह लाभ उन मित्रों को भी मिला जो उन छंद रचनाओं के साक्षी रहे । हमेशा हिंदी में लिखा ,इसलिए हिंदी के खुद के साहित्य  का मूल्यांकन खुद ही करने बैठा हूँ । इस तरह का साहित्य जो कभी प्रकाशित नहीं हुआ । जो कभी काव्य संग्रह की शक्ल नहीं पा सका । कुछ इक्का दुक्का वो ही रचनाएं पत्र

लव जिहाद के दूसरे पहलू भी देखें

लव जिहाद के मुकाबले के लिए समाज में खुला माहौल भी बनाएं - प्रो.डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com वर्तमान में लव जिहाद से पीड़ित समाज बहुत सदमे में है । वास्तव में यह वर्तमान के साथ साथ भविष्य के लिए भी बहुत चिंता का विषय है । गृहस्थों के साथ साथ ब्रह्मचारी और साधु वर्ग भी बहुत चिंतित हैं और तरह तरह के सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं । जितने सुझाव अभी तक दिखाई दे रहे हैं उन सभी का सार यही है कि परिवार में संस्कार दो । बेटियों को संस्कार दो । संस्कार और सिर्फ संस्कार का हल्ला गुल्ला मचा कर हम पुनः निश्चिंत हो जाएंगे । लेकिन सिर्फ  संस्कारों की दुहाई देने से क्या समाधान हो जायेगा ? क्या हमने कभी इसके दूसरे पहलुओं पर विचार किया ? जब सभी समाधान बता रहे हैं तो मैं भी कुछ युगानुरूप समाधान आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ जिन सुझावों को साधक वर्ग अपनी मर्यादाओं के कारण प्रस्तुत नहीं कर सकता । मुझे विश्वास है कि यदि इस पर अमल किया गया तो हम अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं । 1. प्रेम कब होता है ? जब हम आपस में मिलते हैं , एक दूसरे के विचारों से ,स्वभाव से प्रभावित होते ह