सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

लव जिहाद के दूसरे पहलू भी देखें


लव जिहाद के मुकाबले के लिए समाज में खुला माहौल भी बनाएं

- प्रो.डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
drakjain2016@gmail.com

वर्तमान में लव जिहाद से पीड़ित समाज बहुत सदमे में है । वास्तव में यह वर्तमान के साथ साथ भविष्य के लिए भी बहुत चिंता का विषय है । गृहस्थों के साथ साथ ब्रह्मचारी और साधु वर्ग भी बहुत चिंतित हैं और तरह तरह के सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं ।

जितने सुझाव अभी तक दिखाई दे रहे हैं उन सभी का सार यही है कि परिवार में संस्कार दो । बेटियों को संस्कार दो । संस्कार और सिर्फ संस्कार का हल्ला गुल्ला मचा कर हम पुनः निश्चिंत हो जाएंगे । लेकिन सिर्फ  संस्कारों की दुहाई देने से क्या समाधान हो जायेगा ?

क्या हमने कभी इसके दूसरे पहलुओं पर विचार किया ? जब सभी समाधान बता रहे हैं तो मैं भी कुछ युगानुरूप समाधान आप सभी के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ जिन सुझावों को साधक वर्ग अपनी मर्यादाओं के कारण प्रस्तुत नहीं कर सकता । मुझे विश्वास है कि यदि इस पर अमल किया गया तो हम अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं ।

1. प्रेम कब होता है ? जब हम आपस में मिलते हैं , एक दूसरे के विचारों से ,स्वभाव से प्रभावित होते हैं तब दो युवा दिल एक दूसरे में अपने जीवन का भविष्य देखने लगते हैं ।

2. आपको क्या लगता है ? हम एक धर्म और समाज के लोग कब एकत्रित होते हैं ? 99% धार्मिक समारोहों में ,जहां धर्म की प्रधानता होने से इस मेल मिलाप को पाप कहा जाता है ।

3. हम साधर्मी युवतियों और युवाओं के ऐसे कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं करते जहां वे एक दूसरे को जान सकें ,स्वभाव,ज्ञान,सुंदरता,समान कैरियर आदि से लगातार परिचित हो सकें ।

4.फलस्वरूप युवा अपने शिक्षा स्थल,कार्य स्थल,कॉलोनी,अप्पर्टमेंट्स आदि स्थलों में अपने अनुरूप जीवन साथी खोजने लग जाता है फिर भले ही वह भिन्न धर्म या जाति का हो ।

5. जेहादी हमारी इस दोहरी मानसिकता का फायदा उठाते हैं । जो अवसर देना हमें गंवारा नहीं ,वे अवसर वे दे देते हैं । और संस्कार हीनता आग में घी का काम करती है ।

6. मैंने तो साधर्मी में विवाह करने पर भी युद्ध होते देखें हैं अगर वह प्रेम पर आधारित हुआ तो ।

7.यह कैसा समाज है जो एक तरफ लव जिहाद से पीड़ित होकर रोता है और अगर कोई अपने ही धर्म में किसी इतर जाति से विवाह कर ले तो भी भृकुटी तान लेता है ।

8. समाज में दिगम्बर से,श्वेतांबर से,उसमें भी सोनगड़ियों से,बीस या तेरापंथियों से,
ओसवाल ,खंडेलवाल , लमेचु,पोरवाल,परवार, गोलालरे,गोलापूरब,खड़ौआ, आदि जातियों से भी एक जैन धर्म के अनुयायी होते हुए भी आपस में विवाह सम्बंध करने पर  सामाजिक विरोध से भयभीत रहते हैं । हमने तो फ़रमान तक सुने हैं ।

9. क्या हमें नहीं लगता कि  जनसंख्या में आधा प्रतिशत से भी कम जैन धर्म समाज अपने ही भीतर आपस में इतनी कठोर रहेगी तो हमारे बच्चे कब तलक हमारे बस में रहेंगे ?

10. लव जेहाद का जबाब साधर्मी प्रेम पुष्प को खिलाकर दीजिये तो बात बन सकती है । इसके लिए उचित और मर्यादित उन्मुक्त वातावरण का निर्माण हमें स्वयं को करना होगा   ।

आइये एक स्वस्थ्य,स्वतंत्र ,संपन्न और उदात्त विचारों से समृद्ध समाज का निर्माण स्वयं करें और लव जेहाद जैसी शैतानी शक्तियों से अपनों का जीवन बचाएं ।

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
Thoughtful..very nice

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्या मन्त्र साधना आगम सम्मत है ?

  क्या मन्त्र साधना आगम सम्मत है ? ✍️ प्रो . डॉ अनेकान्त कुमार जैन , नई दिल्ली # drakjain2016@gmail.com बहुत धैर्य पूर्वक भी पढ़ा जाय तो कुल 15 मिनट लगते हैं 108 बार भावपूर्वक णमोकार मंत्र का जाप करने में , किन्तु हम वो हैं जो घंटों न्यूज चैनल देखते रहेंगें , वीडियो गेम खेलते रहेंगे , सोशल मीडिया पर बसे रहेंगे , व्यर्थ की गप्प शप करते रहेंगे लेकिन प्रेरणा देने पर भी यह अवश्य कहेंगे कि 108 बार हमसे नहीं होता , आप कहते हैं तो 9 बार पढ़े लेते हैं बस और वह 9 बार भी मंदिर बन्द होने से घर पर कितनी ही बार जागते सोते भी नहीं पढ़ते हैं , जब कि आचार्य शुभचंद्र तो यहाँ तक कहते हैं कि इसका पाठ बिना गिने अनगिनत बार करना चाहिए | हमारे पास सामायिक का समय नहीं है । लॉक डाउन में दिन रात घर पर ही रहे   फिर भी समय नहीं है ।   हम वो हैं जिनके पास पाप बांधने के लिए 24 घंटे समय है किंतु पाप धोने और शुभकार्य   के लिए 15 मिनट भी नहीं हैं और हम कामना करते हैं कि सब दुख संकट सरकार दूर करे - ये उसकी जिम्मेदारी है । कितने ही स्थानों पर णमोकार का 108 बार जाप के साथ सा मा यिक का समय उनके पास भी नहीं है जो सु

तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश

 तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश  (This article is for public domain and any news paper and magazine can publish this article with the name of the author and without any change, mixing ,cut past in the original matter÷ जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर तक तीर्थंकरों की एक सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है । भागवत् पुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश को ' भारत '   नाम प्राप्त हुआ । सृष्टि के आदि में कर्म भूमि प्रारम्भ होने के बाद यही ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम प्रवर्त्तक माने जाते हैं जिन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या और सुंदरी को गणित विद्या सिखाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति की थी । इसी परंपरा के अंतिम प्रवर्त्तक तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में ईसा की छठी शताब्दी पूर्व हुआ था ।युवा अवस्था में ही संयम पूर्वक मुनि दीक्षा धारण कर कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान( सर्वज

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी की समाधि उनके लोकोत्तर जीवन के लिए तो कल्याणकारी है किंतु हम सभी के लिए जैन संस्कृति का एक महान सूर्य अस्त हो गया है ।  स्वामी जी  के जीवन और कार्यों को देखकर लगता है कि वो सिर्फ जैन संस्कृति के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और समाज का सर्व विध कल्याण कर रहे थे ।  वे सिर्फ जैनों के नहीं थे वे सभी धर्म ,जाति और प्राणी मात्र के प्रति करुणा रखते थे और विशाल हृदय से सभी का कल्याण करने का पूरा प्रयास करते थे ।  उनके साथ रहने और कार्य करने का मुझे बहुत करीब से अनुभव है । मेरा उनसे अधिक संपर्क तब हुआ जब 2006 में महामस्तकाभिषेक के अवसर पर पहली बार श्रवणबेलगोला में विशाल जैन विद्वत सम्मेलन का आयोजन उन्होंने करवाया था । उसका दायित्व उन्होंने मेरे पिताजी प्रो फूलचंद जैन प्रेमी ,वाराणसी को  सौंपा।उस समय पिताजी अखिल भारतीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद के अध्यक्ष थे ।  मेरे लिए यह अविश्वसनीय था कि उन्होंने मुझे इस सम्मेलन का सह संयोजक बनाय