सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Review of Mohalla assi movie

द्विवेदी जी अस्सी का ऐतिहासिक अश्लील कवि सम्मेलन भी दिखा देते........

जी हां ये वही डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी हैं जिन्होंने नब्बे के दशक में चाणक्य सीरियल बनाया था और खुद अभिनय किया था । मैं उन दिनों में भी इस सीरियल का दीवाना हो गया था जब ये रामायण की तरह आम लोगों को समझ में नहीं आता था । मुझे तो आज भी चाणक्य के डायलॉग याद हैं । 

उच्च स्तर की हिंदी , संवाद की गरिमा और अभिनय का लोहा मनवाने वाले द्विवेदी जी ' मोहल्ला अस्सी ' जैसी फिल्म बना कर काशी की गरिमा के साथ खिलवाड़ करेंगे ये सोचा भी न था । 

माना कि गलियां यहां का राजपथ और गालियां यहां का मंत्रपाठ है और काशीनाथ सिंह जी ने 'काशी अस्सी '  लिखकर गरिमा बढ़ाने की बजाय गरिमा गिराई है । कहानी में किसी ब्राह्मण के आदर्शों को उसकी गरीबी और पिछड़ेपन का जामा पहना कर यह दिखाना कि अब ये सिर्फ आदर्श हैं हकीक़त की चीज नहीं है - ठीक नहीं लगा । काशी आज भी विद्वानों की खान है और अनेक विद्वान अपने आदर्शों के साथ ही सपन्न भी हैं , उनकी तूती पूरी दुनिया में बोलती है । यहां के संगीत,गायन, वादन आदि कला के महारथी पूरी दुनिया में छाए हैं । लेकिन ये सकारात्मक पहलू दिखाना द्विवेदी जी को नहीं भाया । 

अस्सी माने बनारस नहीं है , वह यहां का एक मुहल्ला है और सिर्फ वैसा नहीं है जैसा आपने दिखाया है । 

विद्वानों को आदर्शवादी के साथ साथ मजबूर और गरीब दिखाने की परंपरा ने ही युवकों को संस्कृत का विद्वान या आदर्शवादी बनने  के लिए हतोत्साहित किया है । 

गालियां हर समाज का हिस्सा होती हैं लेकिन उसके भी कई स्तर होते हैं । उसे किसी शहर की पहचान के रूप में जताना या दिखाना और यथार्थ वाद के नाम पर नंगा नाच करना किस लिहाज से उचित है ?

वैसे सात आठ साल पहले बनी ये फिल्म बैन के कारण  बड़े पर्दे पर रिलीज तो नहीं हो सकी .... लेकिन सोशल मीडिया पर खूब चली .... बाबजूद इसके आज बड़े पर्दे पर इसको शानदार शुरुआत मिली है ....यह भी किसी आश्चर्य से कम नहीं । 

मैं काशी का हूं और अस्सी की उस दुकान पर मैंने भी चाय पी है जहां संसद चलती है । होली पर आयोजित अस्सी के उस कवि सम्मेलन का मैं भी साक्षी रहा हूं जिसे बाद में बंद करवा दिया गया ।लेकिन ये  चन्द्र प्रकाश द्विवेदी जी अब वैसे नहीं रहे जैसी मेरे मन में छवि बनी थी । 


मुझे आशा है वे *बना रहे बनारस* नाम से एक नई फिल्म बनाएंगे जिसमें काशी के उस सांस्कृतिक और  वैदिक श्रमण धार्मिक वैभव को भी अपने चिरपरिचित कुशल निर्देशन में  दर्शाएंगे जो *मोहल्ला अस्सी* में आने से रह गया है ।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य

                                                              वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य                                                                        प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली जैन परंपरा में मंदिर और मूर्ति निर्माण का इतिहास बहुत पुराना है | खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में कलिंग जिन की मूर्ति वापस लाने का उल्लेख है | वर्तमान में सबसे प्राचीन जैन मूर्ति पटना के लोहनीपुर स्थान से प्राप्त हुई है। यह मूर्ति मौर्यकाल   की है और पटना म्यूजियम में रखी हुई है। इसकी चमकदार पालिस अभी तक भी ज्यों की त्यों बनी है। लाहौर , मथुरा , लखनऊ , प्रयाग आदि के म्यूजियमों में भी अनेक जैन मूर्तियाँ मौजूद हैं। इनमें से कुछ गुप्तकालीन हैं। श्री वासुदेव उपाध्याय ने लिखा है कि मथुरा में २४वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की एक मूर्ति मिली है जो कुमारगुप्त के समय में तैयार की गई थी। वास्तव में मथुरा में जैनमूर्ति कला की दृष्टि से भी बहुत काम हुआ है। श्री रायकृष्णदास ने लिखा है कि मथुरा की शुंगकालीन कला मुख्यत: जैन सम्प्रदाय की है। खण्डगिरि और उदयगिरि में ई. पू. १८८-३० तब क

आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व

 आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी  : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व   (जन्मदिन के 75 वर्ष पूर्ण करने पर हीरक जयंती वर्ष पर विशेष ) #jainism #jainphilosophy #Jainscholar #Jain writer #jaindarshan #Philosophy #Prakrit language #Premiji #Prof Phoolchand jain ( विशेष निवेदन  : 1.प्रो प्रेमी जी की  इस जीवन यात्रा में  निश्चित ही आपका भी आत्मीय संपर्क इनके साथ रहा होगा ,आप चाहें तो उनके साथ आपके संस्मरण ,रोचक वाकिये,शुभकामनाएं और बधाई आप नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखकर पोस्ट कर सकते हैं | 2. इस लेख को पत्र पत्रिका अखबार वेबसाइट आदि प्रकाशन हेतु स्वतंत्र हैं । प्रकाशन के अनन्तर इसकी सूचना 9711397716 पर अवश्य देवें   - धन्यवाद ) प्राच्य विद्या एवं जैन जगत् के वरिष्ठ मनीषी श्रुत सेवी आदरणीय   प्रो.डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी जी श्रुत साधना की एक अनुकरणीय मिसाल हैं , जिनका पूरा जीवन मात्र और मात्र भारतीय प्राचीन विद्याओं , भाषाओँ , धर्मों , दर्शनों और संस्कृतियों को संरक्षित और संवर्धित करने में गुजरा है । काशी में रहते हुए आज वे अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष और विवाह के पचास वर्ष पूरे कर र

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम प्रो अनेकांत कुमार जैन आचार्य – जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-16,Ph  ,9711397716 १९४२ में काशी के भदैनी क्षेत्र में गंगा के मनमोहक तट जैन घाट पर स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय और उसका छात्रावास आजादी की लड़ाई में अगस्त क्रांति का गढ़ बन चुका था |  जब काशी विद्यापीठ पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रावास जबरन खाली करवा दिया गया और आन्दोलन नेतृत्त्व विहीन हो गया तब आन्दोलन की बुझती हुई लौ को जलाने का काम इसी स्याद्वाद महाविद्यालय के जैन छात्रावास ने किया था | उन दिनों यहाँ के जैन विद्यार्थियों ने पूरे बनारस के संस्कृत छोटी बड़ी पाठशालाओं ,विद्यालयों और महाविद्यालयों में जा जा कर उन्हें जगाने का कार्य किया ,हड़ताल के लिए उकसाया ,पर्चे बांटे और जुलूस निकाले |यहाँ के एक विद्यार्थी दयाचंद जैन वापस नहीं लौटे , पुलिस उन्हें खोज रही थी अतः खबर उड़ा दी गई कि उन्हें गोली मार दी गई है,बी एच यू में उनके लिए शोक प्रस्ताव भी पास हो गया | उन्हें जीवित अवस्था में ही अमर शहीद ह