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समाधि या असमाधि ? निर्णायक कौन ?

बाह्य कारणों से किसी की समाधि या असमाधि का निर्धारण कठिन है । कोई ज्ञानी भयानक एक्सीडेंट होने पर भी यदि होश रहते अंतिम क्षणों में चारों प्रकार के आहार का त्याग करके ,सर्व परिग्रहों का त्याग करके ,आत्मध्यान पूर्वक देह छोड़ता है तो उसकी भी सल्लेखना या समाधि हो सकती है ।  जगत को वो अकाल मृत्यु ही दिखेगी ।समाधि नहीं । जगत को क्या दिखाना ? जगत के मानने या न मानने से अपनी संवर या निर्जरा नहीं होती । Ashok Jain की एक पोस्ट पर प्रतिक्रिया 29/1/24

काला अच्छा या गोरा ?

काला अच्छा या गोरा ?  ये सब सापेक्षिक दृष्टिकोण है । कोई भी रंग शुभ या अशुभ नहीं होता है । काला रंग एनर्जी को समेटता है ,और सफेद रंग उसे रिफ्लेक्ट कर देता है । इसीलिए गर्मी में काला पहनने का निषेध है और वही सर्दी में अच्छा है । शुभ अशुभ यही है । काले रंग की एक और विशेषता बतलाई गई है कि ' चढ़े न दूजो रंग' उस पर कोई और रंग असर नहीं करता । वह अपना रंग नहीं बदलता ।  वहीं दूसरी तरफ जैन दर्शन में मन के भावों के अनुसार कृष्ण लेश्या सबसे ज्यादा हिंसक और अशुभ है और श्वेत लेश्या सबसे अधिक ध्यान योग युक्त शुभ है ।  एक प्रयोग कीजिये आप अपने बेड रूम में सभी दीवारों और छतों पर काला रंग पुतवा लीजिये और शांति से सो कर बताइए । आपको पता लगेगा कि यह एक विज्ञान है ।  इसलिए बड़े बुजर्गों ने व्यवहार में काले को अशांति और सफेद को शांति का प्रतीक बनाया है ।  छल कपट और हिंसा से युक्त मन भी काला ही कहा जाता है ।  लेकिन बाल काले चमड़ी सफेद अच्छी मानी जाती है । इसके विपरीत सफेद बाल प्रौढ़ता के प्रतीक हैं । शरीर का काला या सांवला रंग भी स्वाभाविक और देश क्षेत्र काल के अनुसार हो...

विश्व का पहला गणतंत्र ‘वैशाली’ और अशोक स्तंभ

विश्व का पहला गणतंत्र  ‘वैशाली’ और अशोक स्तंभ -प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली  गणतंत्र अर्थात् वह राज्य या राष्ट्र जिसमें समस्त राज्यसत्ता जनसाधारण के हाथ में हो और वे सामूहिक रूप से या अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के द्वारा शासन और न्याय का विधान करते हों । इसे ही जनतंत्र ,प्रजातंत्र या लोकतंत्र भी कहते हैं । भारत का गणतंत्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध है | मगर यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि पूरे विश्व को सर्वप्रथम जनतंत्र का उपदेश देने वाला वैशाली गणराज्य भारत में ही  स्थित था |  आज विश्व के अधिकांश  देश गणराज्य हैं, और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी । भारत स्वयं एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है । ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली में ही विश्व का सबसे पहला गणतंत्र कायम किया गया था। आज वैशाली बिहार प्रान्त के वैशाली जिला में स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है|  इसके अध्यक्ष लिच्छवी संघ नायक महाराजा चेटक थे | इन्हीं महाराजा चेटक की ज्येष्ठ पुत्री का नाम ‘प्रियकारिणी त्रिशला’था जिनका विवाह वैशाली गणतंत्र के सदस्य एवं ‘क्षत्रिय कुण्डग्राम’ के अधिपति महाराजा स...

जो होना है सो निश्चित है

*जो होना है सो निश्चित है*   स्पष्ट है कि जैनागमों में तीनों कालों में और सभी क्षेत्रों में कहीं भी किसी भी रूप में सूर्यकीर्ति नाम के कोई तीर्थंकर नहीं हैं ।  अध्यात्मवेत्ता कांजी स्वामी जी ने स्वयं जीवन भर इस तरह के भ्रामक गृहीत मिथ्यात्व का निषेध किया था । उन्होंने भगवान् महावीर और आचार्य कुन्दकुन्द के अध्यात्म और तत्वज्ञान के मर्म को जन जन तक पहुंचाने का जो पुनीत कार्य किया ,उनकी अंध भक्ति में सोनगढ़ में उनके अनुयायी भावुकता में उन्हें  भावी तीर्थंकर सूर्यकीर्ति के रूप में जयकारा लगाकर उनके जीवन भर के कार्य और प्रभाव को क्षीण करने का कार्य कर रहे हैं और सोच रहे हैं कि यही प्रभावना है । ऐसा नहीं है कि यह प्रकरण पूर्व में नहीं उठा था । श्री कांजी स्वामी जी के देवलोकगमन के उपरांत भावुकता में ऐसा कार्य करने का प्रयास हुआ था किंतु दिग्गज विद्वानों के समर्थन के अभाव में यह कार्य नहीं हो सका था । उस समय पंडित कैलाशचंद जी,पंडित जगनमोहन लाल जी ,पंडित नाथूराम प्रेमी जी ,पंडित रतनचंद जी,डॉ हुकुमचंद भारिल्ल जी,पंडित नेमीचंद पाटनी जी ,पंडित अभिनंदन जी आदि अनेक शास्त्रीय विद्वानों न...

हमारे अधूरे जिनालय

हमारे अधूरे जिनालय प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com अभी कुछ दिन पहले  किसी निमित्त दिल्ली में वैदवाडा स्थित जैन मंदिर के दर्शनों का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ । बहुत समय बाद इतने भव्य , मनोरम और प्राचीन जिनालय के दर्शन करके धन्य हो गए ।  दिल्ली के प्राचीन मंदिरों में जाओ तो लगता है हम फिर वही शताब्दियों पूर्व उसी वातावरण में पहुंच गए जब पंडित दौलतराम जी जैसे जिनवाणी के उपासक अपनी तत्वज्ञान की वाणी से श्रावकों का मोक्षमार्ग प्रशस्त करते थे ।  वैदवाडा के उस मंदिर में एक माली सामग्री एकत्रित कर रहा था । हमने सहज ही उससे पूछा - भाई , यहां नियमित शास्त्र स्वाध्याय होता है ? नहीं... कभी नहीं होता - उसका स्पष्ट उत्तर था । मुझे आश्चर्य हुआ । मैने कहा- ऐसा क्यों कहते हो भाई , दशलक्षण पर्व में तो होता होगा ?  बोला - हां ,उसी समय होता है - बस । मैंने उसे समझाते हुए कहा - तो ऐसा क्यों कहते हो कि कभी नहीं होता ? कोई भी पूछे तो बोला करो होता है , मगर कभी कभी विशेष अवसरों पर होता है । मैंने उसे तो समझा दिया , लेकिन मेरा मन आंदोलित हो उठा ? ये क्या हो...

पंडित रवींद्र जी ,अमायन का वियोग जैन अध्यात्मजगत की अपूरणीय क्षति

पंडित ब्र. रवींद्र जी  'आत्मन',अमायन का वियोग जैन अध्यात्मजगत की अपूरणीय क्षति सम्पूर्ण जैन समाज के लिए यह एक अत्यंत वैराग्य का प्रसंग है कि अमायन,भिंड(म.प्र.) से अध्यात्म की गंगा बहाने वाले अत्यंत निस्पृही ,संयमशील,बहु श्रुत स्वाध्यायशील,प्रवचन दिवाकर आदरणीय बड़े पंडित जी साहब का वियोग हो गया है । पंडित ब्र. रवींद्र जी  'आत्मन',अमायन का वियोग जैन अध्यात्मजगत की अपूरणीय क्षति है ।  मुझे कई बार आपके साक्षात प्रवचन सुनने ,चर्चा करने और उनके ग्रंथ पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है ।  आप जैन तत्त्वज्ञान के गहरे विद्वान् थे । जिसे आपने अपने जीवन में भी बखूबी उतारा था । आपसे प्रेरित होकर अनेक युवा अध्यात्म मार्ग में लगे ,अनेकों ने व्रत अंगीकार किये ।  आपके द्वारा रचित अनेक आध्यात्मिक काव्य आज सभी के कंठों का हार बना हुआ है । आपकी आध्यात्मिक चेतना सिर्फ आप तक सीमित नहीं थी बल्कि आपके प्रवचनों और लेखनी के माध्यम से वह अनेकानेक भव्य जीवों का उद्धार करती थी ।  'अध्यात्म के साथ आचरण '- ये आपके जीवन का मूलमंत्र था ,इसे ही आपने अपने प्रवच...

सरल हृदय डॉ सुशील जी

*सरल हृदय डॉ सुशील जी* मेरा आदरणीय डॉ सुशील जी से मिलना प्रायः संगोष्ठियों में होता रहा है । उसी दौरान कई स्थलों पर उनके प्रवचन सुनने का भी सौभाग्य मुझे मिला ।  मैनपुरी की एक विद्वतपरम्परा है । पंडित शिवचरणलाल जी , पंडित प्रकाशचंद जी ज्योतिर्विद आदि आदि । इसी कड़ी में पंडित डॉ सुशील जी भी आते हैं । बल्कि दो कदम आगे । क्यों कि आप सिर्फ पंडित ही नहीं हैं बल्कि एक श्रेष्ठ श्रावक (क्षुल्लक) और मोक्षमार्ग पर चलते हुए वर्तमान में दिगम्बर मुनि मुद्रा को धारण करने वाले दीक्षित साधु भी हो चले हैं ।  ऐसा कम होता है । लेकिन आपने 'पंडित कभी मुनि नहीं बनते' इस अवधारणा को खंड खंड करके ,नए पंडितों का मार्ग प्रशस्त कर दिया है ।   महाकवि कालिदास ने सर्वगुणसम्पन्न रघुवंशियों के लिये वृद्धावस्था में मुनिवृत्ति धारण करने को कहा है - शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम् । वार्द्धक्ये मुनिवृत्तीनां योगेनान्ते तनुन्यजाम् ॥  रघुवंशी लोग बाल्यकाल में विद्याभ्यास, युवावस्था में विषय भोग, बुढापे में मुनिवृत्ति और अंत में योगसाधना(सल्लेखना) द्वारा शरीर त्याग करते थे।  पंडित डॉ सुशील...

जैनागमेषु जन्मभूमि-अयोध्यायाः वैभवम्

जैनागमेषु जन्मभूमि-अयोध्यायाः वैभवम् आचार्य-अनेकान्तकुमारो जैनः                (जैनदर्शनविभागः ,दर्शनसंकायः  श्रीलालबहादुरशास्त्रीराष्ट्रियसंस्कृतविश्वविद्यालयः,नवदेहली-16 9711397716) संस्कृतप्राकृतपालीभाषाभारतवर्षस्य गौरवम् ।आसु भारतीयजनमानसस्य ,मनन-चिन्तनानि, अनुभूतयश्च  सन्निहिताः सन्ति।अत्र भारतीयसंस्कृतेः दार्शनिकचिन्तनस्य, संस्कारस्य, विज्ञानस्य, राजनीतेः समाजनीत्यादेश्च मार्मिकी अभिव्यक्तिर्भवति । वयम् सर्वे जानीमः यत् वैदिकपरम्पराया: विशालं वाङ्मयं समस्तासु विधासु उपलब्धं प्रसिद्धञ्चास्ति किन्तु संस्कृतप्राकृतजैनसाहित्यस्य समृद्धपरम्परायाः विषये प्रायः साहित्यिकजनाः अपरिचिताः सन्ति ।  जैनसंस्कृतप्राकृतसाहित्ये किं वा अस्ति ? इति बहवः विद्वान्स: पृच्छन्ति । यद्यपि एषः प्रश्नः अज्ञानमूलः । जैनसंस्कृतप्राकृतसाहित्ये किं नास्ति ? इति आधिकारिकतया प्रतिप्रश्नं कर्तुं विदुषां सामर्थ्यं न भवति अतएव जैनसंस्कृतप्राकृतसाहित्यस्य एतादृशी स्थितिः वर्तते  ।   प्राचीनजैनसंस्कृत...

प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास

ये सोने की लंका नहीं सोने की अयोध्या है  प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास  (This article is for public domain. Any news paper ,Magazine, journal website can publish this article as it is means without any change. pls mention the correct name of the author - Prof Anekant Kumar Jain,New Delhi ) प्राचीन जैन साहित्य में धर्म नगरी अयोध्या का उल्लेख कई बार हुआ है ।जैन महाकवि विमलसूरी(दूसरी शती )प्राकृत भाषा में पउमचरियं लिखकर रामायण के अनसुलझे रहस्य का उद्घाटन करके भगवान् राम के वीतरागी उदात्त और आदर्श चरित का और अयोध्या का वर्णन करते हैं तो   प्रथम शती के आचार्य यतिवृषभ अपने तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में अयोध्या को कई नामों से संबोधित करते हैं ।   जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई अन्य ग्रंथ लिखे गये , जैसे   रविषेण कृत ' पद्मपुराण ' ( संस्कृत) , महाकवि स्वयंभू कृत ' पउमचरिउ ' ( अपभ्रंश) तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् राम का मूल नाम ' पद्म ' भी था। हम सभी को प्राकृत में रचित पउमचरिय...