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जैन विश्वविद्यालय क्यों और कैसे ? एक परिकल्पना - प्रो अनेकान्त जैन

प्रवचनों में न हो मूल सिद्धांतों का हनन

*प्रवचनों में मत कीजिये मूल सिद्धांतों का हनन* प्रो.डॉ.अनेकान्त कुमार जैन** (29/1/2022) प्रवचन करना ,भाषण देना ,लेख लिखना,संपादकीय लिखना,कविता लिखना एक  कला है किंतु उसमें जो विषय वस्तु प्रस्तुत की जाती है वह योग्यता के आधार पर प्रस्तुत होती है ।  वर्तमान में जैन परंपरा में प्रवचन करने तथा भाषण देने वालों का एक बड़ा समुदाय बनता जा रहा है । यह एक सुखद बात है क्यों कि पहले के समय में उपदेश देने वाले बहुत दुर्लभ होते थे ।  इसी तरह लेखन ,पत्रकारिता ,संपादन आदि में भी समाज का एक बड़ा वर्ग कार्य कर रहा है । यह भी एक शुभ संकेत है ।   मैं बिना किसी एक का नाम लिए ,लगभग उन सभी जैन प्रवचनकारों और लेखकों को एक सलाह देना चाहता हूँ जो जैन दर्शन  ,धर्म और संस्कृति विषयक प्रवचन और लेखन करते हैं । अभी कुछ समय से tv और पत्र पत्रिकाओं को देखने से ऐसा महसूस हुआ कि कई लोगों में बोलने और लिखने की बहुत अच्छी कला तो है किंतु उन्हें जैन दर्शन के मूलभूत सिद्धांतों की स्पष्ट जानकारी नहीं है । या तो उन्होंने स्वाध्याय आदि व्यवस्थित रूप से नहीं किया या सही शिक्षा प्राप्त नहीं की है या जन...

जैन समाज एवं संस्कृति की विशेषताएं

*गर्व से कहो हम जैन है*           (जैन संदर्भ : एक परिचय) मित्रो! भले ही जैन समुदाय एक अल्पसंख्यक समुदाय है तथापि इस की उपलब्धियां किसी से कम नहीं है। आप अपने अतीत के शानदार इतिहास पर गर्व महसूस कर सकें एवं भविष्य के लिए सुखद कार्य योजना का निर्माण कर सकें, इस हेतु प्रस्तुत है कुछ तथ्य- 1. जैन संस्कृति विश्व की महान एवं प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मुद्रा एवं उस पर अंकित ऋषभदेव का सूचक बैल तथा सील नं.49 पर स्पष्ठ रूप से जिनेश्वर शब्द का अंकन होना तथा वेदों की 141 ऋचाओं में भगवान ऋषभदेव का आदर पूर्वक उल्लेख इस संस्कृति को वेद प्राचीन संस्कृति सिद्ध करती हैं। 2.   हमारे देश भारत वर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम से विख्यात है जो कि जग जाहिर प्रमाण है। विष्णु पुराण में भी इसका ऊल्लेख मिलता है। हमारे देश के प्रधान मंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु ने उड़ीसा के खंडगिरी स्थित खारवेल के शिला लेख पर "भरतस्य भारत" रूप प्रशस्ति को देख कर ही इस देश का संवैधानिक नामकरण भारत किया था। 3.    राजा श्र...

जैन तीर्थ एक्शन फोर्स की आवश्यकता

*जैन तीर्थ एक्शन फोर्स का गठन हो*  वर्तमान समय में अनेक प्राचीन जैन तीर्थों पर जिस तरह के संकट मंडरा रहे हैं उसको देखते हुए जैन समाज को राष्ट्रीय स्तर पर एक सक्रिय संगठन जैन तीर्थ एक्शन फोर्स का गठन तत्काल करना चाहिये । जिसमें जैन समाज के उच्च स्तर के पदों पर सेवाएं देने वाले कार्यरत या सेवानिवृत्त  न्यायाधीश , वकील ,आईएएस ,पी सी एस , विभिन्न राजनैतिक संगठनों में उच्च स्तर पर सेवाएं देने वाले जैन पदाधिकारी,बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली उद्योगपति , मीडिया हाउस,विद्वान  आदि अनेक लोग सक्रिय सदस्य हों तथा अत्यंत प्रभावशाली दूरदर्शी साधुओं की सलाह -प्रेरणा हो ।  यह फोर्स तीर्थ निर्माण के लिए नहीं बल्कि प्रशासनिक,कानूनी और राजनैतिक संरक्षण की दृष्टि से हो ।  इसमें समाज के अधिक से अधिक सक्रिय और समझदार युवा भी सम्मिलित हों ।  यह एक ऐसा संगठन हो जिससे राजनीतिक दल,अन्य समाज तथा अनूप मंडल टाइप विरोधी भयाक्रांत रहें ।  ये टीम उच्च स्तर पर गोपनीय रूप से पहले बातचीत से समस्याओं को मैनेज करे और अंत में यदि सीधी उंगली से घी न निकले तो उंगली टेढ़ी करने की भी क्षमता रखे । स...

शिकागो के सम्मेलन में विवेकानंद के साथ जैन विद्वान भी थे

युवा दिवस पर विशेष जानकारी *स्वामी विवेकानंद जी के साथ शिकागो में 11 sep.1893 को आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में जैन धर्म का प्रतिनिधि भी था* शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में यूएसए और अमेरिका के पश्चिम में 11 सितंबर 1893 को पहली बार लोगों ने प्राचीन भारत के दृढ़, उत्साही, प्रतिध्वनित स्वर और भारतीय दर्शन और संस्कृति का संदेश सुना। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले दो भारतीय प्रतिनिधियों ने भारत की आध्यात्मिक धरोहर को जगाया और पश्चिमी दुनिया में प्रवेश किया। इनमें से एक स्वामी विवेकानंद थे जिनकी शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में सफलता आज हर किसी की याद में ताजा है। लेकिन उसी सम्मेलन में अन्य भारतीय जैन धर्म के प्रतिनिधि, वीरचंद राघव जैन गांधी भी थे , जिन्होंने  सम्मेलन में अपने भाषण से धाक जमाई थी और भारत के वैभव का जोरदार प्रदर्शन किया था ।   शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन के लिए मूल निमंत्रण जैन आचार्य विजयानंदसूरिजी (आत्मारामजी) महाराज को भेजा गया था, लेकिन चूंकि वे जैन आचार संहिता के उल्लंघन के कारण विदेश यात्रा नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने जैन दर्शन के प्...

विश्व हिंदी दिवस परिचर्चा

विश्व हिंदी दिवस पर गुजराती न्यूज चैनल निर्माण में प्रो.अनेकान्त जैन,नई दिल्ली की परिचर्चा  जरूर सुनें  https://youtu.be/oJqZa39f0KQ

ओमिक्रोन से सावधान रहे जैन समाज

*ओमिक्रोन से सावधान रहे जैन समाज* डॉ अनेकान्त कुमार जैन, नई दिल्ली हमारे साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारी स्मृति बहुत कमजोर हो गई है । अभी अप्रैल मई के महीने में कोरोना महामारी का जो जलजला हमने साक्षात अनुभूत किया उसे भूल कर और कोरोना महामारी की तीसरी लहर की चेतावनी को नजर अंदाज कर पुनः धार्मिक स्थलों पर वैसा ही माहौल बनाने लगे हैं जो खतरनाक हो सकती है ।   ऐसा लगता है कि अभी हमें धर्म स्थल खोलने की अनुमति मिली है तो हम पूरी कोशिश में हैं कि देव दर्शन भी बंद हो जाएं । अब हम ऐसा न करें कि हमें देव दर्शन भी न मिलें । भारत में चेतावनी है कि अगले तीन महीने बहुत खतरनाक हैं । तीसरी लहर का नया वैरिएंट पहले से भी ज्यादा खतरनाक रहेगा ।  इसके बावजूद भी बड़े बड़े सामूहिक विधान हो रहे हैं , बड़े स्तर पर प्रतिष्ठा आदि महोत्सव की तैयारियां हो रहीं हैं । तीन चार महीने तक के बड़े बड़े कार्यक्रम बन गए हैं । सामूहिक अभिषेक हो रहे हैं ।जुलूस भी निकल रहे हैं ।   2021 में हमने कितने ही साधु संतों को खोया , कितने सगे ,परिचितों को खोया ,कितनों ने संक्रमित होकर इलाज में अपना सब कुछ गंवाया ...

धार्मिक सहिष्णुता की एक प्राचीन कहानी

गुरुनानक जी की ५५० वीं जयंती  प्रकाश पर्व पर विशेष  सादर प्रकाशन हेतु  धार्मिक सहिष्णुता की एक प्राचीन कहानी प्रो अनेकांत कुमार जैन           जैन दर्शन विभाग  श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ ( मनित विश्वविद्यालय ),  , नई दिल्ली -१६ drakjain2016@gmail.com 2016 में महावीर जयंती के दिन मुझे पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित गुरु ग्रन्थ साहिब वर्ल्ड यूनिवर्सिटी में एक अन्ताराष्ट्रीय सम्मेलन में जैनदर्शन पर व्याख्यान देने हेतु जाने का अवसर प्राप्त हुआ| फतेहगढ़ साहिब पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिला का मुख्यालय है। यह जिला सिक्‍खों की श्रद्धा और विश्‍वास का प्रतीक है।  पटियाला के उत्‍तर में स्थित यह स्‍थान ऐतिहासिक और धार्मिंक दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है। सिक्‍खों के लिए इसका महत्‍व इस लिहाज से भी ज्‍यादा है कि यहीं पर गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों को सरहिंद के तत्‍कालीन फौजदार वजीर खान ने दीवार में जिंदा चुनवा दिया था। उनका शहीदी दिवस आज भी यहां लोग पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। फतेहगढ़ साहिब जिला को यदि गुरुद्वारों का शह...

अणुवेक्खासारो अनुप्रेक्षासार

कितनी जरूरी है भाषा समिति

प्रवृत्ति के बिना मनुष्य नहीं रह सकता । वह यदि अपनी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाए तो ज्यादा से ज्यादा इतना कर सकता है कि वह निरर्थक प्रवृत्ति न करे । यदि वह साधक है तो वह यह कर सकता है कि वह वही प्रवृत्ति करेगा जिससे साधना प्रभावित न हो या कम से कम प्रभावित हो । वह धर्म की अनिवार्य प्रवृत्ति ही करता है । समिति क्या होती है ?  यह समिति किसी संस्था या संगठन का नाम नहीं है जैसे महासमिति आदि । यह समिति साधक को अनिवार्य प्रवृत्ति के तौर तरीके सिखाती है । हमारी प्रवृत्ति ऐसी होनी चाहिए जिससे किसी भी प्राणी को नुकसान न हो और हमारी प्रवृत्ति भी हो जाय । आचार्य पूज्यपाद लिखते हैं -   प्राणिपीडापरिहारार्थं सम्यगयनं समिति:। अर्थात् प्राणी पीड़ा के परिहार के लिए सम्यग् प्रकार से प्रवृत्ति करना समिति है। (सर्वार्थसिद्धि/9/2/409/7) मुनिराज इसका पूर्णतः पालन करते हैं पर श्रावक भी यदि इसका पालन कर सकें तो कोई बुराई नहीं है । कर सकें क्या करना ही चाहिये । समिति का उल्लेख मुनियों के अट्ठाइस मूलगुणों में अवश्य है किंतु जिस प्रकार पाँच महाव्रतों को ही श्रावक अपनी भूमिका अनुसार पाँच अणुव्रतों के...

अवसाद की समस्या और जैन सिद्धांत

अवसाद की समस्या के निवारण में जैन सिद्धान्तों की भूमिका डॉ. अनेकान्त कुमार जैन आचार्य - जैनदर्शनविभाग दर्शन संकाय, श्री लाल बहादुर शास्त्रीराष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , क़ुतुब सांस्थानिक क्षेत्र,नई दिल्ली – ११००१६ आज विश्व की मुख्य समस्यायों में से एक सबसे  बड़ी  समस्या  है – बढ़ता  मानसिक तनाव और अवसाद |यह एक ऐसी समस्या है जिससे सामने आधुनिकता और विकास के हमारे सारे तर्क बेमानी लगने लगे हैं |इतना पैसा ,समृद्धि,विकास आखिर किस काम का यदि हम सुख और शांति की नींद भी न ले सकें | मनुष्य का यह विकास नहीं ह्रास ही माना जायेगा कि सारे संसाधन होते हुए भी वह निरा असहाय और अशांत है ,आखिर ऐसी उन्नति किस काम की जो अशांति पैदा करती है ,हमें सुख से जीने नहीं देती | विकास की इस छद्म दौड़ ने हमें इकठ्ठा करना तो सिखाया ,लेकिन त्याग के मूल्य को समाप्त कर दिया जो हमें सुख देता था |  विकास ने हमें सोने के लिए मखमली गद्दे तो दे दिए लेकिन वो नींद छीन ली जो चटाई पर भी सुकून से आती थी | निश्चित ही हम किसी परिपूर्ण दिशा में आगे नहीं बढ़ रहे हैं | विकास को नकारा  नहीं  जा सकता ले...