सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जैन समाज एवं संस्कृति की विशेषताएं

*गर्व से कहो हम जैन है*
          (जैन संदर्भ : एक परिचय)

मित्रो! भले ही जैन समुदाय एक अल्पसंख्यक समुदाय है तथापि इस की उपलब्धियां किसी से कम नहीं है। आप अपने अतीत के शानदार इतिहास पर गर्व महसूस कर सकें एवं भविष्य के लिए सुखद कार्य योजना का निर्माण कर सकें, इस हेतु प्रस्तुत है कुछ तथ्य-

1. जैन संस्कृति विश्व की महान एवं प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो की खुदाई में प्राप्त मुद्रा एवं उस पर अंकित ऋषभदेव का सूचक बैल तथा सील नं.49 पर स्पष्ठ रूप से जिनेश्वर शब्द का अंकन होना तथा वेदों की 141 ऋचाओं में भगवान ऋषभदेव का आदर पूर्वक उल्लेख इस संस्कृति को वेद प्राचीन संस्कृति सिद्ध करती हैं।
2.   हमारे देश भारत वर्ष का नाम ऋषभदेव के पुत्र चक्रवर्ती भरत के नाम से विख्यात है जो कि जग जाहिर प्रमाण है। विष्णु पुराण में भी इसका ऊल्लेख मिलता है। हमारे देश के प्रधान मंत्री स्व. जवाहर लाल नेहरु ने उड़ीसा के खंडगिरी स्थित खारवेल के शिला लेख पर "भरतस्य भारत" रूप प्रशस्ति को देख कर ही इस देश का संवैधानिक नामकरण भारत किया था।
3.    राजा श्रेणिक, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य , कलिंग नरेश खारवेल एव सेनापति चामुंडराय जैन इतिहास के महान शासक हुए है।
4.     जैन पुराणों के अनुसार सती चंदन बाला, मैना सुंदरी एवं रानी रेवती आदि अनेक महान सम्यकदृष्टि जैन नारीयां हुई है। नारी स्वतंत्रता के प्रतीक भगवान महावीर के चतुर्विधि संघ में कुल 36000 आर्यिकायें थी।

5.    मुगलकाल में सम्राट अकबर एवं जहांगीर के द्वारा समय समय  पर जैन साधुओं के उपदेशों से प्रभावित होकर जजिया कर माफी एवं पर्यूषण पर्व आदि के अवसर पर पशुवध बंदी के अनेक फरमान जारी किए गए थे।
6.    अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा सन 1818 में भगवान पार्श्वनाथ एवम सन 1839 में भगवान महावीर पर सिक्के जारी किए गए थे।
7.  आज से लगभग 6000 वर्ष पूर्व उत्तरी भारत में सरस्वती नदी के तट पर आत्ममार्गी अनुज पद की राजधानी कालीबंगा स्थित थी, जिसके अंतर्गत राजस्थान के गंगानगर जिले के आसपास का क्षेत्र आता था। इस अनुज पद के जैन आचार्य *ओनसी* थे, जोकि तत्वज्ञान, जैन दर्शन, राजनीति एवं अर्थ तंत्र के अपने समय के पारंगत विद्वान हुआ करते थे।
8.    ईसा से 4000 वर्ष पूर्व जैन धर्म यूरोप, रूस, मध्य एशिया, लघु एशिया, मैसोपोटामिया, मिस्त्र, अमेरिका, यूनान, बेबीलोनिया, सीरिया, सुमेरिया, चीन, मंगोलिया, उत्तरी और मध्य अफ्रीका, भूमध्य सागर, रोम, इराक, अरबिया, इथोपिया, स्वीडन,  फिन लैंड, ब्रह्मदेश, थाईलैंड, जावा, सुमात्रा, एवं श्रीलंका में छा गया था।
9.  कभी ईशा से 1000 वर्ष पूर्व जैनों की जनसंख्या 40 करोड़ थी जो ईशा से 500-600 वर्ष पूर्व 25 करोड़ तथा अकबरे आईनी के अनुसार सन 1556 ईस्वी में अकबर के शासन काल में यह 4 करोड थी। एक अंग्रेजी गजट के अनुसार सन 1947 में जैनों की संख्या 9 करोड़ थी एवं वर्तमान में जैन जनसंख्या 44.2 लाख है।
भारत में लक्ष्यद्वीप को छोड़कर सभी राज्यों में जैन समुदाय के लोग रहते हैं। विदेशों में सर्वाधिक संयुक्त राज्य अमेरिका में 1 लाख से अधिक जैन रहते हैं वहां पर 26 जैन मंदिर एवं 100 विशिष्ट जैन मंडल है। यूनाइटेड किंगडम में 35000 एवं अफ्रीका में 20000 जैन रहते हैं। बेल्जियम के कच्चे हीरे के दो तिहाई व्यापार पर जैन भारतीयों का वर्चस्व है। भारत के बाहर आयरलैंड, पॉटर्सबार, हर्टफोर्डशायर, लास एंजिल्स, न्यूजर्सी, लीसेस्टर, ग्रेटर फिनिक्स, लंदन, नैरोबी, मुम्बास, दुबई, सिंगापुर तथा बैंकॉक, ऑस्ट्रेलिया एवं नेपाल में प्रवासी जैन समुदाय के लोग रहते हैं।

10.   अल्पसंख्यक जैन समुदाय ने देश को अब तक 6 मुख्यमंत्री एवं 3 राज्यपाल दिए हैं। भारत की प्रथम संसद में जैन समुदाय से 35 सांसद थे तथा वर्तमान में जैन समुदाय से 1लोक सभा एवं 3 राज्य सभा सदस्य है। तथा राज्यों में कुल  39 विधायक (जिनमें 1 मुख्यमंत्री 6 मंत्री 1 आयोग सदस्य एवं 31 विधायक सदस्य) है। 
पिछली बार राज्यों में इस समुदाय से 51 विधायक तथा  2 लोक सभा एवं 6 राज्यसभा सांसद थे।

11.    चीन में 13000 वर्ष पूर्व करीब 28000 हजार जैन मंदिर थे।
इजरायल में ऋषभनाथ के पिता नाभिराय एवं माता मरूदेवी की पूजा होती है। एक जर्मन विद्दवान ने दिल्ली में आयोजित एक विचार गोष्टी मे बतलाया था कि जर्मन नाम सरमन से पड़ा है । 
अंडमान और निकोबार का प्राचीन नाम आदमन और नग्गावर था। 16 वीं शदी में गोवा कभी पूरा जैन राज्य था।
12.   जैन धर्म को अंतरराष्ट्रीय धर्मों के संगठन में 10 वें धर्म के रूप में मान्यता प्राप्त है।
13.   सन 1893 में शिकागो में आयोजित प्रथम विश्व धर्म संसद में भारत के वीरचंद गांधी ने जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।

14.    24 जनवरी 1950 को अपनाए गए जन-गण-मन के दूसरे पद की दूसरी पंक्ति में "जैन शब्द" को भारत में प्रचलित अन्य धर्मों की भाँति लिया गया है जिसे सर्वप्रथम 27 दिसंबर 1911 को कोलकाता के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गाया गया था।

15.    भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में लगभग 5000 जैन वीरों ने भाग लिया। किसी को फांसी हुई तो किसी को जेल। जैन  समुदाय से पहली फांसी अंग्रेजो के द्वारा जन. 1858 में लाला हुकम चंद जैन एवं उनके भतीजे फकीरचंद को हांसी में तथा 1858 के ही जून माह में द्वितीय फांसी ग्वालियर के खजांची सेठ अमर चंद बांठिया को तथा अंतिम सन 1915 में सोलापुर के क्रांतिकारी मोती चंद जैन को दी गई। क्रांतिकारी मोतीचंद जैन  जेल से भी अपने मित्रों को खून से पत्र लिखते थे।
16.   सन 1858 से 1946 तक आते-आते 22 जैन वीरों ने अपने प्राणों से आहुती दी।

17.   डॉक्टर राजमल  कासलीवाल नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फौज में कर्नल एवं उनके निजी चिकित्सक थे।
18.    नेताजी की आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजीमेंट के सशस्त्र कैंप की रक्षक दो जैन बहिने रमादेवी एवं लीलावती थी।
19.    जैन संत क्षुल्लक गणेश प्रसाद जी वर्णी ने तो आजाद हिंद फौज के सिपाहियों की जेल से रिहाई के लिए जबलपुर में 3000 रूपये में अपनी चादर तक नीलाम कर दी।

20.    गांधीजी के  दांडी   मार्च में महिलाओं का नेतृत्व करने वाली एक जैन महिला सरलादेवी साराभाई थी।
21.   भारत की संविधान सभा में 7 जैन सदस्य थे। भारतीय संविधान की सुलिखीत प्रति में भगवान महावीर का चित्र, मोहनजोदड़ो की वृषभयुक्त सील एवं दांडी मार्च की महिला नेत्री सरला देवी साराभाई का चित्र अंकित है।


22.   भारतीय संसद  भवन के गलियारे में पैनल नंबर 7 पर भगवान ऋषभदेव, महावीर स्वामी, पार्श्वनाथ एवं भगवान बाहुबलि का सुंदर चित्र प्रदर्शित है।

23.   मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए जैन वीर भामाशाह ने अपने जीवन भर की कमाई हुई संपूर्ण संपत्ति राष्ट्र भक्ति से प्रेरित होकर महाराणा प्रताप के चरणों में समर्पित कर दी, जिसके बल पर महा प्रतापी महाराणा प्रताप ने अपने समस्त खोए हुए प्रदेश मुगलों की आधीनता से मुक्त करा लिए। यह इतनी संपत्ति थी जिससे 25000 की सेना का 12 वर्ष तक खर्च वहन किया जा सकता था।
24.   मेवाड़ के कुलसूर्य कुमार उदयसिंह को पन्नाधाय ने अपने पुत्र की बलि देकर मंत्री पुत्र बलवीर की कुदृष्टि से तो बचा लिया किंतु उसकी सुरक्षित परवरिश की चिंता थी और वह कार्य किया कुंभलगढ़ के किलेदार जैन आशाशाह ने। आशाशाह ने न केवल कुमार को शरण दी अपितु उसे अपना भतीजा मानकर उसकी उचित परवरिश भी की।

25.   सरहिंद के नवाब वजीर खान ने जब गुरु गोविंद सिंह जी के दो बलिदानी पुत्रों के अंतिम संस्कार के लिए भूमि प्रदान करने हेतु प्रदान की जाने वाली भूमि के क्षेत्रफल के बराबर सोने से खड़ी मोहरे बिछाकर देने की शर्त रखी तो श्रेष्ठी  टोडरमल जैन ने आगे आकर स्वर्ण मुद्राएं प्रदान कर भूमि अर्जित की ।आज भी पंजाब के फतेहगढ़ साहिब गुरुद्वारे के बेसमेंट में जैन टोडरमल की स्मृति में टोडरमल जैन हॉल बना हुआ है।   

26.   हाल ही में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में जैन उद्योगपतियों के द्वारा सहर्ष 100-100 करोड़ रुपए का दान देकर सामाजिक सौहाद्र का एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।

27.    जैन गजट के 19 अगस्त 2019 को छपे अंक के अनुसार देश में कुल आयकर का 23% हिस्सा जैन समुदाय के द्वारा प्रदत्त किया जाता है।

28.   देश में जैनों की लगभग 3400 प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां एवं शेयर बाजार में 34% की हिस्सेदारी हैं।   

29.     जैन मालिकों एवं जैन संस्थानों के द्वारा देश में लगभग 2.5 करोड लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराया जाता है।


30.    भारत में जैन समुदाय के द्वारा पूर्णकालिक के रूप में 68 एवं आंशिक रूप में 1233 स्कूल कॉलेज एवं करीब 145 अस्पताल संचालित किये जा रहे है।

31.    जे.एम.एम. स्पाइसेज देहली के एक  पेंपलेट के अनुसार देश की लगभग 16000 गौशालाओं में से 12000 का संचालन जैन समाज के द्वारा किया जाता है।


32.     भारतीय जैन संघठना को डिजास्टर मैनेजमेन्ट का पुरस्कार मिल चुका है। अभी हाल ही में कोरोना संकट के समय मुंबई एवं रायपुर जैन समाज के द्वारा जनता की सेवा में अत्याधुनिक सर्व सुविधा युक्त कोविड चिकित्सा सेंटर खोले गए है, जोकि सेवा के क्षेत्र में इस समाज की एक प्रशंसनीय उपलब्धि कही जा सकती है।

33.   देश और दुनिया में प्रचलित सभी संवतो में जैन वीर निर्वाण संवत सबसे अधिक 2547 वर्ष प्राचीन संवत है।

34.    साक्षरता में जैन समुदाय 94.1% की दर से अपनी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।


35.    भारतीय डाक विभाग के द्वारा अब तक चंद्रगुप्त मौर्य, भामाशाह, गोमटेश्वर भगवान बाहुबली, शत्रुंजय एवं पावापुरी तीर्थ, रणककपुर एवं दिलवाड़ा के जैन मंदिर तथा भगवान महावीर के 2500 वें निर्वाण एवं 2600 वें जन्मोत्सव, आचार्य ज्ञानसागर जी एवं विमल सागर जी महाराज, श्वेतांबर जैन मुनि अचार्य तुलसी, मिश्रीमल जी तथा डॉक्टर जगदीश चंद्र जैन पर मोहनजोदड़ो की सील सहित डाक टिकट एवं दिगंबर आचार्य शांतिसागर महाराज, गांधीजी तथा श्रीमद् राजचंद्र, स्वतंत्रता सेनानी मोहनलाल जी बाकलीवाल आदि पर विशेष पोस्टल आवरण जारी किए जा चुके है।


36.   माउंट आबू स्थित दिलवाड़ा, रणकपुर तथा जैसलमेर के जैन मंदिर, पटवा की हवेली एवं अजंता-एलोरा, गोमटेश्वर भगवान बाहुबली की प्रतिमा आदि स्मारक भारत में जैन कला एवं स्थापत्य के विश्व प्रसिद्ध उदाहरण है। 
इसके अतिरिक्त मांगीतुंगी एवं बावनगजा की विशाल प्रतिमाएं, अजमेर के सोना मंदिर स्थित अयोध्या की रचना, ग्वालियर के जैन मंदिर की स्वर्ण नक्काशी, मूड़बद्री, बुरहानपुर एवं सांगानेर की बेशकीमती दुर्लभ मूर्तियां भी भारतीय कला की नयाब तस्वीर पेश करती है।

37.    जैन रतनलाल मालवीय भारतीय संविधान सभा में सबसे छोटे मेंबर थे और वे दीपावली के दिन सिर्फ संविधान की ही पूजा किया करते थे।


38.   जिन प्रतिमा के दर्शन के अभाव में महान क्रांतिकारी श्री अर्जुन लाल जी सेठी वेल्लूर जेल में 56 दिन तक निराहार रहे।

39.    मध्य प्रान्त के मुख्य मंत्री जैन मिश्रीलाल जी गंगावाल ने कभी मध्य प्रदेश के दौरे पर आये कुछ प्रमुख विदेशी राजनायिको की खातिर में नेहरू जी से विनम्रता पूर्वक मांसाहार परोसने ने माना कर उनका स्वागत स्वादिष्ट भारतीय शाकाहारी व्यंजनों से किया था। 
जैन संस्कृति का गौरव प्रस्तुत करने हेतु पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत उपरोक्त जानकारी विभिन्न सूत्रों से संकलित है जो कि पूर्णतया शत-प्रतिशत सही होने का दावा नहीं करती है।

*-जैन कैलाश रारा, रायपुर*
Whatsapp.msg

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य

                                                              वर्तमान में बढ़ते मंदिर और मूर्तियों का औचित्य                                                                        प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली जैन परंपरा में मंदिर और मूर्ति निर्माण का इतिहास बहुत पुराना है | खारवेल के हाथी गुम्फा अभिलेख में कलिंग जिन की मूर्ति वापस लाने का उल्लेख है | वर्तमान में सबसे प्राचीन जैन मूर्ति पटना के लोहनीपुर स्थान से प्राप्त हुई है। यह मूर्ति मौर्यकाल   की है और पटना म्यूजियम में रखी हुई है। इसकी चमकदार पालिस अभी तक भी ज्यों की त्यों बनी है। लाहौर , मथुरा , लखनऊ , प्रयाग आदि के म्यूजियमों में भी अनेक जैन मूर्तियाँ मौजूद हैं। इनमें से कुछ गुप्तकालीन हैं। श्री वासुदेव उपाध्याय ने लिखा है कि मथुरा में २४वें तीर्थंकर वर्धमान महावीर की एक मूर्ति मिली है जो कुमारगुप्त के समय में तैयार की गई थी। वास्तव में मथुरा में जैनमूर्ति कला की दृष्टि से भी बहुत काम हुआ है। श्री रायकृष्णदास ने लिखा है कि मथुरा की शुंगकालीन कला मुख्यत: जैन सम्प्रदाय की है। खण्डगिरि और उदयगिरि में ई. पू. १८८-३० तब क

आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व

 आचार्य फूलचन्द्र जैन प्रेमी  : व्यक्तित्व और कर्तृत्त्व   (जन्मदिन के 75 वर्ष पूर्ण करने पर हीरक जयंती वर्ष पर विशेष ) #jainism #jainphilosophy #Jainscholar #Jain writer #jaindarshan #Philosophy #Prakrit language #Premiji #Prof Phoolchand jain ( विशेष निवेदन  : 1.प्रो प्रेमी जी की  इस जीवन यात्रा में  निश्चित ही आपका भी आत्मीय संपर्क इनके साथ रहा होगा ,आप चाहें तो उनके साथ आपके संस्मरण ,रोचक वाकिये,शुभकामनाएं और बधाई आप नीचे कॉमेंट बॉक्स में लिखकर पोस्ट कर सकते हैं | 2. इस लेख को पत्र पत्रिका अखबार वेबसाइट आदि प्रकाशन हेतु स्वतंत्र हैं । प्रकाशन के अनन्तर इसकी सूचना 9711397716 पर अवश्य देवें   - धन्यवाद ) प्राच्य विद्या एवं जैन जगत् के वरिष्ठ मनीषी श्रुत सेवी आदरणीय   प्रो.डॉ. फूलचन्द्र जैन प्रेमी जी श्रुत साधना की एक अनुकरणीय मिसाल हैं , जिनका पूरा जीवन मात्र और मात्र भारतीय प्राचीन विद्याओं , भाषाओँ , धर्मों , दर्शनों और संस्कृतियों को संरक्षित और संवर्धित करने में गुजरा है । काशी में रहते हुए आज वे अपने जीवन के पचहत्तर वर्ष और विवाह के पचास वर्ष पूरे कर र

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम

काशी के स्याद्वाद का स्वतंत्रता संग्राम प्रो अनेकांत कुमार जैन आचार्य – जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-16,Ph  ,9711397716 १९४२ में काशी के भदैनी क्षेत्र में गंगा के मनमोहक तट जैन घाट पर स्थित स्याद्वाद महाविद्यालय और उसका छात्रावास आजादी की लड़ाई में अगस्त क्रांति का गढ़ बन चुका था |  जब काशी विद्यापीठ पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रावास जबरन खाली करवा दिया गया और आन्दोलन नेतृत्त्व विहीन हो गया तब आन्दोलन की बुझती हुई लौ को जलाने का काम इसी स्याद्वाद महाविद्यालय के जैन छात्रावास ने किया था | उन दिनों यहाँ के जैन विद्यार्थियों ने पूरे बनारस के संस्कृत छोटी बड़ी पाठशालाओं ,विद्यालयों और महाविद्यालयों में जा जा कर उन्हें जगाने का कार्य किया ,हड़ताल के लिए उकसाया ,पर्चे बांटे और जुलूस निकाले |यहाँ के एक विद्यार्थी दयाचंद जैन वापस नहीं लौटे , पुलिस उन्हें खोज रही थी अतः खबर उड़ा दी गई कि उन्हें गोली मार दी गई है,बी एच यू में उनके लिए शोक प्रस्ताव भी पास हो गया | उन्हें जीवित अवस्था में ही अमर शहीद ह