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अप्रभावित रहना भी सीखिए....

अप्रभावित रहना भी सीखिए जीवन एक संगीत है । जैसे कोई वास्तविक संगीतकार जब सात सुरों को साधता है तो उसमें इतना डूब जाता है कि उसे पता ही नहीं होता कि उसके आस पास जुड़े लोग उसके प्रति क्या प्रतिक्रिया कर रहे हैं ?  वो उन सभी से अप्रभावित रहकर सिर्फ संगीत की साधना करता है और उसमें अपनी महारथ हासिल करता है । वह उसके असली आनंद में इतना मगन रहता है कि किसी की प्रशंसा का कृत्रिम आनंद और किसी की निन्दा का कृत्रिम दुःख उसे महसूस ही नहीं होता । आपने देखा होगा इस दुनिया में बमुश्किल ज्यादा से ज्यादा 25-50 लोग आपके संपर्क में  ऐसे होंगे जिनके  कारण आपको अमुक व्यक्ति से, अमुक समाज से ,अमुक जाति से ,अमुक धर्म से ,अमुक क्षेत्र से ,अमुक देश से और सारे संसार से व्यर्थ ही नफ़रत होने लगी होगी ।  उनकी एक लिस्ट बनाइये और मात्र उन 25-50 लोगों को ,उनके दुराग्रहों को ,उनके आप पर झूठे प्रभाव को  अपने जीवन से निकाल फेंकिये ,फिर देखिए ये दुनिया कितनी खूबसूरत है ।  फिर आपको गहराई से महसूस होगा कि ये सब इतना बुरा भी नहीं था जितना आपके दिमाग में भर दिया गया था ।  आपको पहली...

'संत निवास' - नामकरण से पूर्व जरा सोचें ?

'संत निवास' - नामकरण से पूर्व जरा सोचें ? प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली  अक्सर कई तीर्थों आदि धार्मिक स्थानों पर जाने का अवसर प्राप्त होता है । विगत वर्षों में एक नई परंपरा विकसित हुई दिखलाई देती है और वह है - संत निवास,संत निलय ,संत भवन , संत शाला आदि आदि नामों से कई इमारतों का निर्माण ।  हमें गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए कि हमारे साधु संत उन भवनों में मात्र कुछ दिन या कुछ माह ही प्रवास करते हैं , न कि निवास करते हैं तब अनगारी साधु संतों के आगारत्व को साक्षात् प्रदर्शित करता यह नामकरण कहाँ तक उचित है ? फिर उसमें AC कूलर फिट करवाते हैं अन्य समय में वर्ष भर उस भवन का अन्यान्य सामाजिक कार्यों में उपयोग भी कर लेते हैं लेकिन उस भवन का नामकरण संत निवास कर देते हैं ।  यहाँ अच्छे भवन निर्माण का निषेध नहीं किया जा रहा है और न ही इस बात का निषेध किया जा रहा है कि उसमें साधु संतों का अल्प प्रवास हो ,यहाँ प्रश्न सिर्फ इतना है कि नामकरण उनके नाम पर क्यों ?  और भी बहुत दार्शनिक और साहित्यिक नाम जैसे ' अहिंसा भवन' , ' प्राकृत भवन ' , ' समयसार भवन '...

चातुर्मास के चार आयाम

चातुर्मास के चार आयाम प्रो.अनेकांत कुमार जैन*  चातुर्मास वह है जब चार महीने चार आराधना का महान अवसर हमें प्रकृति स्वयं प्रदान करती है ।अतः इस बहुमूल्य समय को मात्र प्रचार में खोना समझदारी नहीं है । चातुर्मास के चार मुख्य आयाम हैं - सम्यक् दर्शन ,ज्ञान ,चारित्र और तप ।  इन चार आराधनाओं के लिए ये चार माह सर्वाधिक अनुकूल रहते हैं , आत्मकल्याण के सच्चे पथिक इन चार माह को महान अवसर जानकर मन-वचन और काय से इसकी आराधना में समर्पित हो जाते हैं । आगम में भी कहा गया है -      उज्जोवणमुज्जवणं णिव्वाहणं साहणं च णिच्छरणं।     दंसणणाणचरित्तं तवाणमाराहणा भणिया।  (भगवती आराधना / गाथा 2) अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र व सम्यक्तप इन चारों का यथायोग्य रीति से उद्योतन करना, उनमें परिणति करना, इनको दृढ़ता पूर्वक धारण करना, उसके मंद पड़ जाने पर पुनः पुनः जागृत करना, उनका आमरण पालन करना आराधना कहलाती है। आधुनिकता और आत्ममुग्धता के इस दौर में जब चातुर्मास के मायने मात्र मंच,माला,माइक और मीडिया तक ही सीमित करने की नाकाम कोशिशें हो रहीं हों तब ऐस...

जगत की निंदा प्रशंसा से कुछ नहीं होता

*जगत की निंदा प्रशंसा से कुछ नहीं होता* प्रो.अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली  हममें से अधिकांश लोग लोक की सारहीन निंदा या प्रशंसा के चक्कर में आकर अपना बहुमूल्य मन,जीवन और समय व्यर्थ गवां दिया करते हैं ।  संसार ओछे लोगों का साम्राज्य है । यहाँ चप्पे चप्पे पर ऐसे लोग मिल जाते हैं जो निंदा के द्वारा आपके मनोबल को तोड़ने का प्रयास करते हैं या फिर व्यर्थ की प्रशंसा करके आपके मजबूत मन को गुब्बारे की तरह हद से ज्यादा फुला कर फोड़ने  की कोशिश में रहते हैं ।  यदि हम जगत की इन दोनों प्रतिक्रियाओं से प्रभावहीन होकर ऊपर उठने की कला नहीं सीख पाए तो कभी भी अपना कल्याण नहीं कर सकते हैं ।  भेद विज्ञान एक ऐसी कला है जो हमें इन छुद्र चीजों से प्रभावित होने से बचाये रखती है ।  वर्तमान में इस कला की आवश्यकता इसलिए ज्यादा है कि सोशल मीडिया पर बुलिंग और मीम की शिकार नई पीढ़ी उम्र की उठान पर ही घनघोर हताशा और निराशा की शिकार है । आत्ममुग्धता के इस भयानक दौर में न तो निंदा सहने की क्षमता बची है और न ही प्रशंसा को पचाने की पाचन शक्ति । अब तो हमने अपने मन के महल की सारी चाबि...

तत्त्वार्थसूत्र - आधुनिक व्याख्याएं

तत्त्वार्थसूत्र - आधुनिक व्याख्याएं  प्रस्तुति - प्रो अनेकान्त कुमार जैन  1.मोक्षशास्त्र (तत्त्वार्थसूत्र) - विमल प्रश्नोत्तरी टीका - गणिनी आर्यिका स्याद्वादमती माता जी ,भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद , 1996 ,प्रथम संस्करण  2.मोक्षशास्त्र (तत्त्वार्थसूत्र), हिंदी टीका - पंडित पन्नालाल जैन साहित्याचार्य,सागर ,संपादक - प्रतिष्ठाचार्य पंडित विमल कुमार जैन सोंरया,प्रकाशक - वीतराग वाणी ट्रस्ट ,टीकमगढ़ ,2000,तृतीय संस्करण  3.तत्त्वार्थसूत्र (मोक्षशास्त्र)-संपादन - ब्र.प्रदीप शास्त्री पीयूष,प्रकाशन- श्री दिगम्बर साहित्य प्रकाशन समिति,बरेला,जबलपुर,2016,पंद्रहवां संस्करण  4.तत्त्वार्थसूत्र सरलार्थ - हिंदी टीका - पंडित भागचंद जैन 'इंदु' ,छत्तरपुर,मुद्रक - आकृति ऑफसेट ,छत्तरपुर,द्वितीय संस्करण ,1999 5.तत्त्वार्थसूत्र निकष (सर्वोदय विद्वत्सङ्गोष्ठी-2004,सतना शोध पत्र संग्रह) ,संपादक - डी.राकेश जैन ,पंडित निहाल चंद जैन,प्रकाशक- सकल दिगम्बर जैन समाज,सतना ,प्रथम संस्करण 2005 6.तत्त्वार्थसूत्र (मोक्षशास्त्र)- हिंदी टीका -ब्र.प्रद्युम्न कुमार ईसरी,संपादक - प्राचार्य निहालचंद ज...

बच्चे योगी और बड़े प्रतियोगी

विश्व योग दिवस -  *बच्चे योगी होते हैं और बड़े प्रतियोगी* (*जो पीछे छूट गए हैं उन्हें साथ जोड़ना योग है*) प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली  योग शब्द का मूल अर्थ है जोड़ना । जहाँ बुद्धि पूर्वक जोड़ा जाय वह योग है और जो स्वयं ही जुड़ जाए वह संयोग है ।  हम जीवन में आगे बढ़ते चले जाते हैं । कभी कभी आगे बढ़ने की होड़ में इतने आगे निकल जाते हैं कि जिनके साथ चलना शुरू किया था ,उनका भी ध्यान नहीं रखते कि वे अभी भी साथ हैं या नहीं ।  मुझे स्मरण है जब मेरा बेटा नर्सरी में पढ़ता था,विद्यालय में खेल कूद प्रतियोगिता में एक रेस का आयोजन हुआ । नन्हें मुन्हें बच्चों को समझाया गया कि तुम्हें अपने दोस्तों से आगे निकल कर प्रथम आना है । ये भागने की प्रतियोगिता है ,जो जितना आगे रहेगा वही सफल होगा । दौड़ शुरू हुई , सीटी बजी तो अधिकांश ने दौड़ना ही शुरू नहीं किया । कुछ भागे तो उन्हें वापस लाया गया । फिर समझाया गया । फिर सीटी बजी ,उन्हें ढकेला गया तब वे दौड़े । मेरा बेटा थोड़ा आगे आ गया ,मैंने देखा वह अचानक रुक भी गया । हम चिल्लाए ,रुक क्यों गए ? भागो ! उसने हमारी नहीं सुनी ,वह वापस आने लग...

मंदिर में विद्वान् की आवश्यकता है

एक विज्ञापन पढ़ा कि मंदिर में विद्वान् कई आवश्यकता है ,संपर्क करें और वेतन योग्यतानुसार  ज्यातर जगह पुजारी चाहिए उसे ही विद्वान् या पंडित जी कहते हैं । वास्तव में प्रवचनकार ज्ञानी विद्वान् की आवश्यकता बहुत कम जगह होती है । आम दिगम्बर जैन समाज में विधानाचार्य,प्रतिष्ठाचार्य,अभिषेकाचार्य ,वास्तुविद्,आदि को ही दशलक्षण आदि पर्वों में पंडिज्जी के रूप में आमंत्रित करने का चलन है । इन्हें प्रचुर सम्मान राशि भी देने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता । प्रवचन आनुषांगिक कार्य है जिन्हें ये ही बखूबी निपटा देते हैं और कभी कभी उसकी भी आवश्यकता नहीं होती ।  यही कारण है कि कई बड़े और स्वयं को आध्यात्मिक घोषित करने वाले विद्वान् भी मिथ्या वास्तु आदि हथकंडे समाज को आकर्षित और भयभीत करने के लिए अपनाने में संकोच नहीं कर रहे हैं । उनके अपने तर्क हैं लेकिन निहितार्थ गुप्तार्थ भिन्न ही हैं ।  आदरणीय दादा जी ने प्रवचनकार विद्वानों  को प्रतिष्ठित करने का जो कार्य किया वह अभूतपूर्व है । शादी - विवाह कराना,गृहप्रवेश अनुष्ठान आदि कार्यों से यथासंभव बचने की प्रेरणा देकर वास्तविक ज्ञान संरक्षण का उद्...

सहजता ही वास्तविक योग है

विश्व योग दिवस पर विशेष .... सहजता ही वास्तविक योग है  जैन परंपरा में त्रिगुप्ति का सिद्धांत योग विद्या का प्राण है । मन गुप्ति ,वचन गुप्ति और काय गुप्ति अर्थात् मन वाणी और काया की क्रिया पर पूर्ण नियंत्रण । शास्त्रों में मन के संदर्भ में कहा गया है -  मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥ अर्थात्- मन ही मानव के बन्ध और मोक्ष का कारण है, वह विषयासक्त हो तो बन्धन कराता है और निर्विषय हो तो मुक्ति दिलाता है। वर्तमान में डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जिसका गहरा संबंध हमारे मन और अवचेतन मन से है । यह बीमारी एक दिन में विकसित नहीं होती ,इसमें एक लंबा समय लगता है । जब यह विकराल रूप धारण कर लेती है तब हमें थोड़ा पता चलता है और पूरा पता तब चलता है जब इसके दुष्प्रभाव झेलने में आते हैं । इसके हजारों कारण हैं । उनमें से एक कारण है असहज जीवन को ही सहज समझने की लगातार भूल ।  डिप्रेशन की अनेक वजहों में एक बड़ी वजह स्वाभाविक अभिव्यक्ति में आने वाली लगातार कमी भी है | आपको जब गुस्सा आ रहा हो और आप सिर्फ इसीलिए अभिव्यक्त न कर पायें कि कोई फ़ोन रिकॉर्ड...

पर्यावरण की सीख

पिता की सीख  पर्यावरण की सीख  उन दिनों स्कूलों में पर्यावरण का कोई पाठ कोर्स में नहीं होता था ,लेकिन पर्यावरण के प्रति जागरूकता का पाठ मेरे पिताजी मुझे अपने आचरण से देते रहते थे । वो रोज सुबह पार्क में घुमाने ले जाते,अक्सर रास्ते में कहीं कोई सार्वजनिक नल व्यर्थ चलता दिखता तो खुद उसे बंद करते या मुझसे बंद करवाते । पार्क में व्यर्थ घास पर चलने को और टहनियाँ तोड़ने को मना करते , फूल तोड़ना तो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था । मैं छुपकर तोड़ लूं तो कहते कि ये पौधे में ही जीवित सुंदर और उपयोगी होता है ,तोड़ने पर मर जाता है । एक बार हम पार्क की एक बेंच पर बैठे थे ,पास में गंदगी पड़ी थी और उस पर मक्खियां बैठी थीं ,मैंने अपना क्रिकेट बैट बिना देखे वहां जोर से पटक दिया ,उन्होंने तुरंत मेरे गाल पर एक तमाचा जड़ा और बैट उठाने को कहा । मैंने जैसे ही बैट उठाया तो देखा कि करीब 20-25 मक्खियां मर गईं थीं । मैं बहुत दुखी हुआ । उन्होंने मुझे बहुत करुणा से समझाया बेटा ! देखो तुम्हारी एक लापरवाही से कितनी मक्खियों का जीवन चला गया। ये भी हमारे इको सिस्टम का हिस्सा हैं । थोड़ा बैट हिला देते तो ये खुद उड़ जातीं...

बढ़ते मंदिर मूर्तियों का औचित्य

श्रुत पंचमी पर्व प्राकृत भाषा दिवस पर DD News की विशेष प्रस्तुति

श्रुत पंचमी पर्व प्राकृत भाषा दिवस पर DD News की विशेष प्रस्तुति  https://youtu.be/rC8nf5xDaEE?si=ZAjcK13izRq9ujL-

श्रुत पंचमी : समर्पण और संस्कार का पर्व

नवभारत टाइम्स 27/5/25 पृष्ठ 4

Ńamokar, Namokar, or Navkar Mantra? Why the Confusion?

*Ńamokar, Namokar, or Navkar Mantra? Why the Confusion?* — _Prof. Anekant Kumar Jain, New Delhi, anekant76@gmail.com_  On 9th April 2025, the whole world came together to chant the sacred _Namokar Mantra._  This beautiful and powerful event was organised by JITO and was even supported by the Prime Minister, who gave a special speech from Vigyan Bhavan, New Delhi. It was truly a proud and historic moment. However, some people were confused by one thing— Why were all the posters calling it “ _Navkar Day_ ”, when the real name of the mantra is “ _Ńamokar Mantra_ ” ? Let’s clear this confusion.  _Ńamokar, Namokar, and Navkar_ – all these words mean the same thing: a respectful salutation or bowing down. In Shauraseni prakrit (used in Digambara Jain tradition), the mantra starts with “ _Ńamo_ ” (णमो). In Ardhamagadhi prakrit (used in Shwetambar Jain tradition), it appears as “ _Namo_ ” (नमो). Later, due to language changes over time (in Prakrit and Apabhramsha), th...

जैनधर्म के आराध्य वीतरागी भगवान् हनुमान (अणुमान)

जैनधर्म के आराध्य  वीतरागी भगवान् हनुमान (अणुमान) प्रो अनेकान्त कुमार जैन  जैन परंपरा में वीतरागी भगवान् हनुमान (अणुमान) रत्नत्रय की साधना करते हुए मोक्षमार्ग पर चलते हुए कैवल्य ज्ञान को प्राप्त कर  मोक्षपद को प्राप्त हुए है ।  पद्मपुराण में वर्णन आता है कि श्री हनुमान विजयार्ध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित आदित्यपुर नगर के राजा प्रह्लाद और रानी केतुमती के पौत्र तथा वायुगति (अपर नाम पवनंजय ) तथा महेंद्र नगर के राजा महेंद्र की पुत्री अंजना के पुत्र थे ।  इसका जन्म चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रात्रि के अंतिम प्रहर में पर्यंक गुहा में हुआ था ।  हनुरुहद्वीप के निवासी प्रतिसर्य विद्याधर इनके  नाना थे । ये अपने नाना के घर जाते हुए विमान से नीचे गिर गए थे । इनके गिरने से शिला चूर-चूर हो गयी थी किंतु इन्हें चोट नहीं आई थी । यह शिला पर हाथ-पैर हिलाते हुए मुंह में अँगूठा देकर खेलता रहे  । श्रीशैल पर्वत पर जन्म होने तथा शिला के चूर-चूर हो जाने से माता ने इसे श्रीशैल तथा हनुरूह नगर में जन्म संस्कार होने से हनुमान् कहा था ।  हनु...

सार्वभौमिक णमोकार महामंत्र

अमरभारती हिंदी दैनिक 10/04/25

सत्य के अन्वेषक महावीर - दैनिक जागरण , मंगलवार 9/4/25

आप भी महावीर हो सकते हैं

सांध्य महालक्ष्मी भगवान् महावीर विशेषांक अप्रैल 25

आत्मशांति से विश्व शांति की ओर

10/04/25 नवकार दिवस पर राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित 

णमोकार महामंत्र

10/04/25 नवकार दिवस पर राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित 

जैनदर्शन विभाग की गौरव 'पूज्य आर्यिका अंतसमति माता जी'

जैनदर्शन विभाग की गौरव 'पूज्य आर्यिका अंतसमति माता जी' कल सहसा प्रातःकाल रीतेश जी से सूचना मिली कि आर्यिका अंतस्मति माता जी चांदनी चौक स्थित श्री दिगम्बर जैन लाल मंदिर में विराजमान हैं । संयोग भी ऐसा बना कि कल ही शाम को उनके दर्शनार्थ हम सपरिवार वहां पहुंच भी गए ।  जब हम पहुंचे तब 71 वर्षीय पूज्य आर्यिका अंतसमति माता जी स्वाध्याय में मग्न थीं ।  हमारे पहुंचते ही वे भाव विभोर हो गईं और पहला वाक्य उन्होंने यही कहा कि गृहस्थावस्था में श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के जैनदर्शन विभाग में आप गुरु जनों से जो जैन शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की उसका उपयोग में निरंतर समाज में ज्ञान प्रचार के लिए कर रहीं हूँ और गोम्मटसार आदि ग्रंथों की कक्षाएं लेती हूं ।  चर्चा के दौरान ही डॉ रुचि जैन ने उनकी छात्रावस्था के दिनों की याद करना भी शुरू कर दिया । वास्तव में यह एक प्रेरणादायक प्रसंग है कि  60 से भी अधिक वर्ष की सरोज जैन जो 7 प्रतिमा को लेकर गृहस्थ साधना कर रहीं थीं ,ने जैन दर्शन विभाग में आचार्य प्रथम वर्ष (MA )में प्रवेश लिया और गाज़ियाबाद से प...

जीवन साथी अपने धर्म का क्यों पसंद नहीं ?

प्रश्न पूछा गया है कि जैन लड़कियां जैन लड़कों से विवाह क्यों नहीं कर रहीं ? या क्यों नहीं करना चाह रहीं हैं ?  अपने अनुभव के आधार पर मैं इस प्रश्न की एक समुचित समीक्षा करना चाहता हूँ ।  अव्वल तो यह कि इस प्रश्न में मैं लड़कियां शब्द के पहले ' कुछ ' जोड़ना चाहता हूं । क्यों कि सभी जैन लड़कियाँ ऐसी नहीं हैं ।  दूसरा उस 'कुछ' में जो आती हैं उनकी मनोदशा की बात भी सोचनी चाहिए । मुझे एक जैन लड़के ने बताया कि जब वह इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता था तो उसके बैच में और होस्टल में वह अकेला जैन था । पढ़ने में होशियार और सुंदर स्मार्ट भी था । संगीत और स्पोर्ट्स में उसकी खासी उपलब्धियां थीं ।  अच्छे संस्कारी जैन परिवार का होने से वह हॉस्टल से जैन मंदिर बहुत दूर होने के बाद भी रोज न सही वह हर रविवार दर्शन हेतु वहाँ जाता था । दशलक्षण - पर्युषण में तो रोज जाता था । शुद्ध शाकाहारी भोजन करता था और शराब- सिगरेट से वह दूर रहता था।  उसकी इस दृढ़ता के कारण उसके सहपाठी उससे अंदर से तो प्रभावित थे ,किंतु अपनी इस हीन भावना की पूर्ति के लिए वे उसका मज़ाक भी बनाते रहते थे और उसे साधु महात्...

कैसे बचेगा पारंपरिक श्रुत तीर्थों का अस्तित्त्व ?

श्रुत पंचमी पर विशेष -  कैसे बचेगा पारंपरिक श्रुत  तीर्थों का अस्तित्त्व ?  प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली  जो धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते हैं वे तीर्थंकर कहलाते हैं किंतु आज के समय में उस धर्म तीर्थ का  संरक्षण करने वाले  तीर्थंकर प्रकृति का पुण्य कमाने का कार्य करते हैं ।  प्रायः जब तीर्थ की चर्चा करते हैं तो हमारा ध्यान भी मात्र सम्मेदशिखर आदि तीर्थ स्थानों पर ही जाता है किन्तु जैन परंपरा में श्रुत,आगम आदि भी उसी तरह तीर्थ स्वीकार किये गए हैं  । इतना ही नहीं बल्कि आचार्य कुंदकुंद यहाँ तक कहते हैं कि -   जं णिम्मलं सुधम्मं सम्मत्तं संजमं णाणं। तं तित्थजिणमग्गे हवेइ जदि संतिभावेण।। अर्थात् जिनमार्ग में उत्तम क्षमादि धर्म,सम्यक्त्व,संयम और यथार्थ ज्ञान - ये तीर्थ हैं। ये भी जब शांत भाव सहित हों तब निर्मल तीर्थ है। अन्य शास्त्रों में भी कहा है -   श्रुतं गणधरा वा तीर्थमित्युच्यते।-(भगवती आराधना / विजयोदया टीका 302/516/6)  तीर्थमागम:।-(समाधिशतक/ टी./2/222/24  बोधपाहुड/27) आगम और श्रुत भी तीर्थ हैं । आज सम...

प्रिय सुनय

प्रिय सुनय  आज तुम्हारा जन्मदिन है । बहुत बहुत आशीर्वाद और बधाई ।  आज तुम पूरे 20 वर्ष के हो गए हो । आज से ठीक बीस वर्ष पहले 2005 को प्रातः लगभग 5:30 पर तुम्हारे जन्म की शुभ सूचना तुम्हारे मामा जी ने मुझे फोन पर दी थी । मुझे याद है वो दिन । उस दिन एक नए पिता का ,एक माता का , एक दादा जी का ,एक दादी जी का ,एक नाना- नानी जी का ,एक चाचा जी का ,एक बुआ जी -फूफा जी का , एक मामा- मामी जी का ,एक मौसा-मौसी जी का जन्म भी हुआ था ।  तुम्हारे होने से सगे रिश्तों की बगिया भी उत्पन्न हुई थी । तुम्हारा यह बहुत बड़ा भाग्य था कि तुम्हें एक एक ही सही मगर सगे बुआ, चाचा,मामा,मौसी मिल गए । चचेरे और ममेरे रिश्ते तो बहुत ज्यादा मिल गए ।  रिश्तों से समृद्ध एक जैन परिवार ,जैन कुल में जन्म लेकर तुमने जन्म से ही यह सिद्ध कर दिया कि तुम पूर्व जन्म में कोई बहुत बड़े पुण्यात्मा थे ।  मनुष्य जन्म मिलना और फिर तीर्थंकरों के महान् देश भारत में जन्म मिलना  और फिर जैन कुल मिलना उत्तरोत्तर महा महा दुर्लभ होता है और तुम्हारे महान् भाग्य से ये तुम्हें प्राप्त हो गया है ।  सोचो ! यदि तुम्हें मा...

कृत्रिम प्राकृत रचनाएं

कृत्रिम प्राकृत रचनाएं  प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली  प्राकृत भाषा प्राचीन भारत की स्वाभाविक लोक भाषा थी । यही कारण है कि उसमें सहज रसपूर्ण काव्य लिखे गए । साहित्यिक रूपक , मनोरंजक और मूल्यपरक कथाएं ,गूढ़ दार्शनिक सिद्धांत आदि गद्य और पद्य दोनों में रचे गए ।  भारतीय इतिहास के गवाह रूप अभिलेख गढ़े गए ।  कुछ परिवर्तन के साथ  फिर अपभ्रंश का दौर आया ,उसमें भी ऐसी ही रचनाएं हुईं । साथ ही प्राकृत की रचनाएं भी होती रहीं । फिर पुरानी हिंदी का दौर आया । उसमें पहले पद्य साहित्य आया फिर गद्य का विकास हुआ और आज जो कुछ भी हम हिंदी के नाम पर खड़ी बोली या जो कुछ भी बोल सुन रहे हैं ,रचनाएं कर रहे हैं वो स्वाभाविक रूप से वक्त के अनुसार परिवर्तित और संवर्धित होती हुई स्वाभाविक भाषा लोक भाषा के रूप में हमारे प्रयोग में है ।  ये प्राकृत का ही नया रूप है । आज की हमारी स्वाभाविक बोलने की  प्रकृति हमारी बोलचाल की आम भाषा हिंदी आदि ही हैं । ये आज की प्राकृत है ।  अब हमें पुराना साहित्य पढ़ने समझने के लिए जो प्राकृत भाषा में है - पुरानी प्राकृत भाषा,उसकी प्रकृति,उसकी व्य...

जिन धर्म छोड़ना आसान है

*जिन धर्म छोड़ना आसान है* - *डॉ रुचि जैन* .......पर मिलना कठिन है । प्रायः ऐसा होता है कि जो चीज बचपन से ही सुलभ हो उसकी प्राप्ति की दुर्लभता समझना बहुत कठिन हो जाता है ।  यही दशा आज कई जिन धर्म के युवा अनुयायियों की हो रही है ।सोशल मीडिया के कंपैन से प्रभावित होकर उदारता के नाम पर अजैन देवी देवताओं और साधुओं की भक्ति करते मैंने अनेक बेवकूफ आधुनिक युवाओं को देखा है । ये वे हैं जिन्होंने पहले जैन धर्म इसलिए नहीं सीखा क्यों कि धर्म से चिढ़ थी और अब मिथ्यात्व ,पाखंड, राग द्वेष से युक्त देवताओं और साधुओं की भक्ति कर रहे हैं ।  जो प्रश्न ये जैन धर्म से करने की हिम्मत रखते थे , अब वे ही प्रश्न अजैन धर्म से करने की इनकी हिम्मत नहीं है ।  कभी अजैन प्रेमी या प्रेमिकाओं के प्यार के चक्कर में तो कभी गलत संगति के कारण ये अनेक जन्मों के बाद दुर्लभता से प्राप्त महान वैज्ञानिक जैन धर्म और कुल के त्याग करने का दुस्साहस कर रहे हैं और इसी भव में भव सागर से पार होने की नौका मिलने के बाद भी अज्ञानता में उसे त्याग कर  अपने अनंत भवभ्रमण का इंतजाम कर रहे हैं ।  जैन धर्म और कुल का त्याग ...

अभिनव धर्मभूषणयति विरचित न्याय दीपिका

*अभिनव धर्मभूषणयति विरचित न्याय दीपिका*  (जैन न्याय का प्रारंभिक ग्रंथ )  अध्यापक - प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली  जैन न्याय राष्ट्रीय कार्यशाला  प्रायोजक - केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली  आयोजक - जैन अध्ययन केंद्र , धर्म अध्ययन विभाग, सोमैया विद्या विहार विश्वविद्यालय,मुम्बई  6-10 जनवरी 2025  न्याय दीपिका कक्षा 1 https://youtu.be/rs_aJjCSsrE?feature=shared न्याय दीपिका कक्षा 2 https://youtu.be/I-c__uE_oyo?feature=shared न्याय दीपिका कक्षा 3 https://youtu.be/-uK6q5h4roQ?feature=shared न्याय दीपिका कक्षा 4 https://youtu.be/ZsUE9fQzTPg?feature=shared न्याय दीपिका कक्षा 5 https://youtu.be/-apd16d1jxw?feature=shared न्याय दीपिका कक्षा 6 https://youtu.be/lWbe6LJhBjM?feature=shared

आचार्य प्रभाचंद्र विरचित जैन न्याय के अप्रतिम ग्रंथ प्रमेयकमलमार्त्तण्ड का नय परिच्छेद

आचार्य प्रभाचंद्र विरचित जैन न्याय के अप्रतिम ग्रंथ *प्रमेयकमलमार्त्तण्ड* का नय परिच्छेद  अध्यापक - प्रो अनेकांत कुमार जैन ,आचार्य - जैनदर्शन विभाग,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली प्रायोजक - भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद,नई दिल्ली  आयोजक - पार्श्वनाथ विद्यापीठ,वाराणसी  दिनाँक - 25-26 सितंबर ,2024 नय परिच्छेद - कक्षा 1 https://youtu.be/uFj0tIN3uvY?feature=shared नय परिच्छेद - कक्षा 2 https://youtu.be/HWO5O5vDnQk?feature=shared नय परिच्छेद - कक्षा 3 https://youtu.be/NbtorbHTPdw?feature=shared नय परिच्छेद - कक्षा 4 https://youtu.be/6jH36RBOdHY?feature=shared

प्रवचन की सफलता

प्रवचन की सफलता  प्रवचन की सफलता इस बात में नहीं है कि उसे कितने ज्यादा लोग सुनते हैं ,बल्कि इसमें है कि आप वीतरागता का पोषण और प्रतिपादन कितनी सहिष्णुता और वीतरागता से करते हैं ।           सत्य प्रतिपादन के नाम पर कषाय युक्त शैली में कषायें भड़काने वाले प्रवचन ज्यादा लोकप्रिय और चर्चित हो जाते हैं और वक्ता इस दम्भ में जीता है कि मैं एक श्रेष्ठ वक्ता बन गया क्यों कि मेरे अनुयायी दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं।         तीव्र कषाय युक्त श्रोताओं को भी उसी रस के वचन भाते हैं और वे उसे प्रवचन कहकर या मानकर स्वयं को धर्मात्मा मानकर धोखे में रखते हैं ।         जो दुनिया सुनना चाहे वो उसे सुनाओ फिर तुम्हें जो चाहिए वो उनसे पाओ - यह बाजारीकरण का मार्ग है । मोक्षमार्ग नहीं । लेकिन आश्चर्य तो तब होता है जब बाजारीकरण का मार्ग मोक्षमार्ग के नाम पर चलता है । - प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली

क्या जैन धर्म सनातन है ? #सनातन #जैनधर्म #हिन्दूधर्म

  EDITORIAL                                                                                                                                                                                       णमो जिणाणं   क्या जैनधर्म  सनातन है ?                                                                (This article is for public domain. Any news paper ,Magazine...