सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अप्रभावित रहना भी सीखिए....

अप्रभावित रहना भी सीखिए

जीवन एक संगीत है । जैसे कोई वास्तविक संगीतकार जब सात सुरों को साधता है तो उसमें इतना डूब जाता है कि उसे पता ही नहीं होता कि उसके आस पास जुड़े लोग उसके प्रति क्या प्रतिक्रिया कर रहे हैं ? 

वो उन सभी से अप्रभावित रहकर सिर्फ संगीत की साधना करता है और उसमें अपनी महारथ हासिल करता है । वह उसके असली आनंद में इतना मगन रहता है कि किसी की प्रशंसा का कृत्रिम आनंद और किसी की निन्दा का कृत्रिम दुःख उसे महसूस ही नहीं होता ।

आपने देखा होगा
इस दुनिया में बमुश्किल ज्यादा से ज्यादा 25-50 लोग आपके संपर्क में  ऐसे होंगे जिनके  कारण आपको अमुक व्यक्ति से, अमुक समाज से ,अमुक जाति से ,अमुक धर्म से ,अमुक क्षेत्र से ,अमुक देश से और सारे संसार से व्यर्थ ही नफ़रत होने लगी होगी । 

उनकी एक लिस्ट बनाइये और मात्र
उन 25-50 लोगों को ,उनके दुराग्रहों को ,उनके आप पर झूठे प्रभाव को  अपने जीवन से निकाल फेंकिये ,फिर देखिए ये दुनिया कितनी खूबसूरत है । 

फिर आपको गहराई से महसूस होगा कि ये सब इतना बुरा भी नहीं था जितना आपके दिमाग में भर दिया गया था । 

आपको पहली बार ऐसा लगेगा जैसे अनादि का मिथ्यात्त्व बंधन अचानक टूट गया हो और सम्यक्त्त्व का शुभप्रभात हो गया हो । 

अपनी प्रभुता को पहचाने , उसे प्रगट करें और उसमें आनंदित रहें । यही सार्थक जीवन है । 

प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली 
12/07/25
www.jinfoundation.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​Must read and write your view