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आदरणीय रामभद्राचार्य जी सादर प्रणाम

आदरणीय रामभद्राचार्य जी 

सादर प्रणाम 

आपका एक पॉडकास्ट सुना । सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ और नया ज्ञान प्राप्त हुआ । आपने भारत की अहिंसा प्रधान जैन संस्कृति को मुगलों की तरह आक्रमण कारी कहा । ये बात तो मुझे आज तक पता ही नहीं थी । मुझे तो आज तक यही लगता था कि जैन धर्म ,संस्कृति और समाज हमेशा से आक्रमण झेलने वाली संस्कृति रही है । जिसे आप सनातन संस्कृति या धर्म कहते हैं उसके कई प्राचीन धार्मिक स्थल जैन मंदिर पर कब्जे करके बने हैं । आज भी कई जगह ऐसा हो रहा है । हमने तो मुगलों को भी झेला है ,लेकिन उनके पहले आप जैसी विचारधारा को कई बार झेला है । 

क्रांतिकारी विचार धारा का होने से मुझे बचपन में यह अक्सर अफसोस रहा है कि जैन आक्रमणकारी क्यों नहीं रहे ? उन्होंने नए मंदिर बनवाने की जगह दुसरे धर्म या देवी देवता के मंदिर पर कब्जे क्यों नहीं किये । तलवार और ताकत के बल पर दूसरे धर्म वालों को अपने में कन्वर्ट क्यों नहीं किया ?भक्ष्य अभक्ष्य खाने पीने में छूट देते हुए  इन्होंने अपने धर्म को पूरे विश्व में क्यों नहीं पहुंचाया ? इत्यादि इत्यादि । 

लेकिन जैसे जैसे मेरी समझ बढ़ती गई मैं सुलझता गया । और मुझे जैन संस्कृति और धर्म की ये कमियां ही उसकी विशेषता लगने लगी ।

यदि आपका यह वक्तव्य मैं अपनी किशोरावस्था में सुनता तो अज्ञान दशा में मैं आपका बहुत बड़ा फैन बन जाता कि चलो किसी ने तो हमें आक्रमण कारी कहा । मैं बिना वजह आपको समझाने के लिए पूरी किताब नहीं लिखना चाहता लेकिन आपकी भाषा के इन जैन आक्रमणकारियों की कुछ कारस्तानियां जरूर गिनाना चाहता हूं - 

१)स्वतंत्रता की लड़ाई में सबसे पहले फाँसी पर चड़ने वाले लाला हुकम चंद जैन थे । लक्ष्मी बाई को सहयोग देने वाले जैन थे और महाराणा प्रताप को पुनः स्थापित करने वाले भामाशाह जैन थे, आदि अनगिनत हैं जिनके नाम ही गिनाने बैठ जाएं तो एक शोध प्रबंध भी कम पड़ जाए ।

२)राम मंदिर की लड़ाई में सबसे पहले सीने पर गोली खाने वाले कोठारी जैन बंधु (दो भाई)

३)राम मंदिर की अदालती लड़ाई लड़कर जीत दिलाने  वाले वकील श्री हरिशंकर जैन एवं विष्णु शंकर जैन (पिता -पुत्र)

४)स्वतंत्र भारत में राम जी पर फेमस भजन बनाने वाले एवं गाने वाले गायक द लीजेंड स्व॰ श्री रविंद्र जैन 

५)भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ विक्रम ए साराभाई जैन हैं ।

६)भारत में पहली कार फ़ैक्ट्री खोलने वाले जिन्हें “फादर ऑफ़ ट्रांसपोर्टेशन इन इंडिया ” कहा जाता है 
*श्री बालचंद हीराचंद जैन*

७)भारत में पहली विमान फ़ैक्ट्री  खोलने वाले महान व्यापारी 
श्री बालचंद हीरा चंद जैन 

८)भारत में पहला मॉर्डन शिपयार्ड बनाने वाले महान देशभक्त व्यापारी
श्री बालचंद हीराचंद जैन 

(पहले भारतीय जहाज एसएस लॉयल्टी ने 5 अप्रैल 1919 को मुंबई से लंदन तक अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा की। वालचंद हीराचंद व्यक्तिगत रूप से जहाज पर मौजूद थे।
भारत के स्वतंत्र होने के बाद, उस यात्रा के सम्मान में 5 अप्रैल को राष्ट्रीय समुद्री दिवस घोषित किया गया )

९) भारत के सबसे पहले स्टॉक एक्सचेंज बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज bse की स्थापना करने वाले कॉटन किंग श्री प्रेम चंद रॉय चंद जैन जिन्होंने मुंबई में विश्व प्रसिद्ध २५ मंज़िला ऊँचा राजाबाई क्लॉक टावर का निर्माण अपनी माँ के लिए करवाया था 

१०)भारत की सबसे बड़ी दवा कंपनी 
सन फार्मास्यूटिकल्स 
के मालिक
 दिलिप सांघवी जैन 

११)  इन्दु जैन
भारत के बड़े मीडिया ग्रुप बेनेट कोलमैन ऐंड कंपनी की चेयरपर्सन और देश की दूसरी महिला अरबपति
टाइम्स ऑफ इंडिया  28 लाख प्रतियों के साथ दुनिया में किसी भी अंग्रेजी भाषा के अखबार का सबसे बड़ा प्रचलन)

१२).भारत की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियो में शुमार  लोधा ग्रुप के मालिक 
भारत के 14वे सबसे अमीर व्यक्ति 
स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र महाराष्ट्र कैबिनेट मंत्री श्री मंगल प्रभात जैन (लोधा)

१३)भारत की सबसे बड़ी हीरा कंपनी  ब्लू इंडिया कंपनी के मालिक डायमंड किंग 
श्री रसेल जैन मेहता (अंबानी के समधी )

१४)भारत की सबसे बड़ी सूक्ष्म सिंचाई फर्म, जिसके मालिक श्री भवरलाल जैन हैं, गांधी रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक भी हैं।

१५)फेविकोल किंग मधुकर जैन पारेख, जो एक जैन धर्मावलंबी हैं, देश में सबसे बड़ी एडहेसिव फर्म चलाते है

१६)राजेश जैन  मेहता (राजेश एक्सपोर्ट्स- भारत का सबसे बड़ा सोना और बुलियन निर्यातक)

१७) देश की जनसंख्या वृद्धि दर सबसे कम जैनों की है ।

१८) आपने ही देश भारत में सबसे कम 0.4% आबादी वाले जैन देश की जी डी पी में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं ।

१९) महिला शिक्षा दर 96% सबसे ज्यादा जैन महिलाओं की है ।

२०) देश का सबसे बड़ा प्राइवेट स्पोर्ट्स विश्वविद्यालय जैन विश्वविद्यालय ,बंगलोर है जिसके चांसलर चैनराज जैन हैं । सरकार का खेलो इंडिया प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा कार्यक्रम इन्होंने ही किया । इसके अलावा देश में दर्जनों प्राइवेट विश्वविद्यालय के चांसलर जैन हैं जो शिक्षा को नई ऊंचाइयां प्रदान कर रहे हैं ।

ये तो सिर्फ़ बानगी है पूरा इतिहास और वर्तमान बताने लगे तो लिखने वाले और पढ़ने वाले भी कम पड़ जाएँगे। 

अच्छा आप अपने वक्तव्य के पक्ष में एक उदाहरण बताइए - 

१)किस हिन्दू मंदिर में जैन समाज ने कब्जा किया ? 

२)किन हिन्दू ग्रंथों की जैन समाज ने होली जलाई है ? 

३)किन हिन्दू साधुओं को जैनों ने सूली पर चढ़ाया ? 

३)जैन किस देश के निवासी थे और भारत पर उन्होंने कब आक्रमण किया ?आदि आदि 

और यही प्रश्न पलट कर आप हमसे पूछें तो....

बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ......

आप तो परम ज्ञानी और भागवत प्रेमी हैं । मैंने कई बार आपकी शास्त्रीय प्रज्ञा सुनी है । आपको न जाने कितने ही शास्त्र कंठस्थ हैं । मैं आपका बहुत प्रशंसक रहा हूँ । लेकिन आपके इस वक्तव्य ने भारत की हिन्दू संस्कृति की एकता पर (जो बड़ी मुश्किल से खड़ी हो रही है ) वज्रपात किया है । या फिर हम ये समझें कि आपकी असली सोच अब सामने आई है । 

अभी आर एस एस जैसे अनेक हिंदूवादी भारतीय संगठन वर्षों से आप जैसी मानसिकता को दूर करके अनेक वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद किसी तरह तो समन्वय की भारतीय संस्कृति पुनः स्थापित कर रहे थे कि आपने बिना सिर पैर का नया एजेंडा न जाने कैसे खोल कर रख दिया ? 

मुझे तो ये समझ में नहीं आ रहा कि यदि जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आक्रमण कारी थे तो श्रीमद्भागवत का पांचवां स्कंध उन्हें महान तपस्वी बताकर पूजा क्यों करता है और ऐसा क्यों कहता है कि उनके पुत्र राजा भरत ने भारत की प्रजा का इतने अच्छे से पालन किया कि इस देश का नाम उनके ही नाम पर भारत वर्ष हो गया ? 

ऋग्वेद आदि ग्रंथों में ऋषभदेव और अरिष्टनेमि तीर्थंकर का उल्लेख बहुत आदर के साथ क्यों है ?  इन आक्रमणकारी को भगवान् विष्णु का अवतार बताने की क्या आवश्यकता थी ?  व्रात्य कांड में व्रती श्रमणों की प्रशंसा क्यों है ? 

पता नहीं मैंने विश्वविद्यालयों में गुरुओं से गलत सीखा है या आप गलत उपदेश दे रहे हैं ?

आप अपनी कथाओं प्रवचनों में राग और द्वेष से दूर रहने को कहते हैं फिर आपके ही मुख से ऐसी आग सहन नहीं हो पा रही है । आप कहते हैं सब मिलजुल कर रहो ,आपस में प्रेम करो। अब आप ही बताइए ऐसे प्रवचन सुनकर प्रेम जागृत हो सकता है ? उल्टा तलाक की नौबत आ जाती है । 

आप आक्रमण करते रहे हम सहते रहे ,प्रत्युत्तर तक नहीं दिया ताकि प्यार बना रहे । उसका यह प्रतिफल है कि आप हमें ही आक्रमणकारी कहने लगे । पर अब तो अति ही हो गई न । आप प्यार करोगे तब न हम प्यार करेंगे ? समझ रहे हैं न । 

मेरा तो आज भी मन यही कह रहा है कि आप जैसा संत और ज्ञानी व्यक्ति कभी ऐसा कह ही नहीं सकता । जरूर किसी ने उस वीडियो में छेड़छाड़ की है । लेकिन आश्चर्य है कि अभी तक आपकी तरफ से कोई स्पष्टीकरण या समाधान भी सामने नहीं आया है ? 

कुछ करो महाराज , ये चमन बहुत मुश्किल से गुलज़ार हुआ है ।

पुनः प्रणाम 

आपका प्रशंसक

प्रो.अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली

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