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आखिर क्या है जिन शासन ?



जिन शासन क्या है ? 

प्रो डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली

जमल्लीणा जीवा, तरंति संसारसायरमणतं । 
तं सव्वजीवसरणं, गंददु जिणसासणं सुइरं ॥ 

(मूलाचार 3/8)


अर्थ - जिसमें लीन होकर जीव अनन्त संसार-सागर पार कर जाते हैं  तथा जो समस्त जीवों के लिए शरणभूत वह जिनशासन चिरकाल तक समृद्ध रहे ।

दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो सुखी न होना चाहता हो | मनुष्य का सारा पुरुषार्थ,उसकी कोशिश,उसकी पूरे जीवन काल की कमर तोड़ मेहनत आखिर किसलिये है ? सुख के लिये ही न,यदि सुख का उद्देश्य न हो तो इतनी मेहनत किसलिए ? यहाँ तक कि इस पुरुषार्थ की यात्रा में आने वाले अनेक दुखों को भी वह सहन करता है ,भोगता है क्यों कि सुख की अभिलाषा है |कहीं यह सुखी होने की अभिलाषा ही मेरे दुखी होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण तो नहीं ? 

प्रश्न यह है कि हम सुखी क्यों होना चाहते हैं ? और यह 'सुख' जिसे हम चाह रहे हैं उसके वास्तविक स्वरुप का हमें भान भी है ?

 दरअसल हम जिस दुनिया में रहते हैं वह भोग प्रधान है और शिक्षा से लेकर विज्ञापनों का एक बहुत बड़ा स्वार्थी व्यापारी दल हमारे सुख की एक बनावटी परिभाषा गड़ता है और यह समझाता है कि भोगों को भोगना सबसे बड़ा सुख है , वो हमारी उस अनादिकालीन उस मान्यता से भली भांति परिचित है जिसमें हम शरीर के सुख में सच्चा सुख मानते आये हैं |वे अत्यंत मनोवैज्ञानिक रूप से हमारी इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं और हमारे सामने भोगों का एक संसार बेचते हैं और सुखी करने का भ्रम फैलाते हैं | हम भोग प्राप्ति के लिये परिश्रम करते हैं और भोगों को प्राप्त करते हैं ,फिर उन्हें भोगते हैं ,फिर भुगतते हैं ...दुखी होते हैं |

हम समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर हम चाहते क्या हैं ? जब हम निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वास्तव में हम चाहते क्या हैं ,तब ऐसे समय में हम खोज करते हैं उनकी जो हमें सही राह बताये | हम एक सच्चे मार्गदर्शक की खोज करते हैं ,एक ऐसा मार्गदर्शक जो वास्तविक हो ,निःस्वार्थी हो,व्यापारी न हो तथा स्वयं भी उसी सुख शांति के मार्ग को प्राप्त हो |आज तक हमने अनेक शासन देखे जो अपनी सत्ता के मद में डूबे रहे,सही मार्ग बताने का भ्रम उत्पन्न करते आये ,किन्तु आज तक भी हम वो सच्चा सुख प्राप्त नहीं कर पाए जिसकी हमें वास्तव में तलाश है | ऐसे विषम समय में जिनेन्द्र भगवान् का शासन हम सभी जीवों के लिये संसार रुपी दुखों के सागर से पार लगाने के लिये शरण के रूप में है जिसमें लीन होने पर प्रत्येक जीव उस शाश्वत अतीन्द्रिय सुख को प्राप्त कर लेता है जो स्वयं जिनेन्द्र भगवान् ने प्राप्त किया है |हमारी कामना है कि हम सभी का वास्तविक कल्याण करने वाला यह जिन शासन चिरकाल तक समृद्धि को प्राप्त होता रहे ताकि भविष्य के मनुष्यों को भी कल्याण का सच्चा मार्ग मिलता रहे |
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