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स्वतंत्रता संग्राम में जैन

द्वितीय प्रश्नपत्र का विषय 

 *स्वतंत्रता संग्राम में जैन* 


जैसा की हम जानते है की हर देशभक्त ने इस देश को आज़ाद कराने के लिए अपनी देशभक्ति दिखाई थी । पर बहुत ही कम लोग जानते है की जैनों ने भी उतनी ही कुर्बानी दी थी भारत देश को आज़ाद कराने के लिए जितनी की बाकी स्वतंत्रता सेनानी ने | जैनों का भी उतना ही योगदान था अपनी मातृभूमि की तरफ जिन्होंने सब कुछ त्यागकर भारत को आज़ाद कराने में बाकी स्वतंत्रता सेनानियों का कंधे से कंधा मिलाया|

प्रस्तुत है कुछ 
 जैन स्वतंत्रता सेनानियों का परिचय जिन्होंने इस देश को आज़ाद कराया ।

*अब्बक्का रानी* : 

एक जैन वीरांगना जिन्होंने पोर्तुगीजों को पराभूत किया !
Rani Abbakka - Jain Freedom Fighters
“रानी ऑफ़ उल्लाल से संबोधित किया जाता था”
अब्बक्का रानी अथवा अब्बक्का महादेवी तुलुनाडूकी रानी थीं जिन्होंने सोलहवीं शताब्दीके उत्तरार्ध में पोर्तुगीजों के साथ युद्ध किया । वह चौटा राजवंशसे थीं जो मंदिरों का शहर मूडबिद्रीसे शासन करते थे । बंदरगाह शहर उल्लाल उनकी सहायक राजधानी थी ।चौटा राजवंश मातृसत्ताकी पद्धतिसे चलनेवाला था, अत: अब्बक्काके मामा, तिरुमला रायने उन्हें उल्लालकी रानी बनाया । उन्होंनेने मैंगलोरके निकटके प्रभावी राजा लक्ष्मप्पा अरसाके साथ अब्बक्काका विवाह पक्का किया । बादमें यह संबंध पोर्तुगीजों हेतु चिंताका विषय बननेवाला था । तिरुमला रायने अब्बक्काको युद्धके अलग-अलग दांवपेचोंसे अवगत कराया ।

*भामाशाह कवाडिया*

Bhamashah Kavadia - Jain Freedom Fighters
भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल, 1547 को हुआ था| इनके पिता का नाम भारमल था, जिन्हें राणा साँगा ने रणथम्भौर के क़िले का क़िलेदार नियुक्त किया था| कालान्तर में राणा उदय सिंह के प्रधानमन्त्री भी रहे| भामाशाह बाल्यकाल से ही मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार रहे थे| भामाशाह दानवीर के साथ काबिल सलाहकार, योद्धा, शासक व प्रशासक भी थे| महाराणा प्रताप हल्दीघाटी का युद्ध (18 जून, 1576 ई.) हार चुके थे, लेकिन इसके बाद भी मुग़लों पर उनके आक्रमण जारी थे |

*श्री वीरचंद राघवजी गांधी*

Virchand Gandhi - Jain Freedom Fighters

जैन धर्म और समाज में हर कालखण्ड में अनेक सन्त, विचारक, विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, कलाकार, षिक्षाविद्, वैज्ञानिक, वीर, दानवीर, शासक, प्रषासक, अर्थषास्त्री, उद्योगपति आदि विविध क्षेत्रों से जुड़े विषिष्टजन हुए हैं। इन विषिष्टजनों ने समाज, देष और दुनिया को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया। ऐसे ही प्रभावित करने वाले महानुभावों में जैन धर्म-दर्षन के विद्वान श्री वीरचन्द राघवजी गांधी भी हैं। यह एक तथ्य है कि जैन धर्म के अनेक ऐतिहासिक महापुरुषों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आज भी समय और उपेक्षा की धुंध छाई हुई है ।

*सेठ लाला हुकुमचंद जैन*

हुकुमचंद जैन का जन्म 1816 में हांसी (हिसार) हरियाणा के प्रसिद्ध कानूनगो परिवार में श्री. दुनीचंद जैन के घर हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा हांसी में हुई थी। जन्म जात प्रतिभा के धनी हुकुमचंद जी की फ़ारसी और गणित में रुचि थी। अपनी शिक्षा व प्रतिभा के बल पर इन्होंने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफ़र के दरबार में उच्च पद प्राप्त कर लिया और बादशाह के साथ इनके बहुत अच्छे सम्बन्ध हो गये ।

*बाबू मूलचंद जैन*
(20 August 1915 – 12 September 1997)
बाबू मूलचंद जैन को अक्सर “गाँधी ऑफ़ हरयाणा” के नाम से जाना जाता था| मूलचंदजी ने महात्मा गाँधी के साथ उनके कही सारे आंदोलन में हाथ बटाया था| वे अपने “सिविल डिसओबीडीएंस मूवमेंट”, “क्विट इंडिया मूवमेंट”, “पोस्ट इंडिपेंडेंस इमरजेंसी” आंदोलन के लिए कही बार जेल भी जा चुके थे| पर इन्होने हिम्मत न हारते हुए, साहस करके अपने और बाकी देशवासियों के हक के लिए लड़ा |

*लक्ष्मी चंद जैन*
लक्ष्मी चंद जैन(1925–2010) ने “इंडियन फ्रीडम मूवमेंट” में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था, जो काफी प्रभावित था| उनको १९८९ में लोक सेवा के लिए “रेमन मैगसेसे पुरस्कार” मिला था| २०११ में उनको “पद्मा विभूषण” के लिए चुना गया था, पर उनके परिवार ने वह पद लेने से इनकार कर दिया था , क्यूंकि मूलचंदजी के विचार राजकीय सम्मान के खिलाफ थे|

*जवेरचंद मेघानी*
28 August 1897 – 9 March 1947
जवेरचंद मेघानी एक बहुत ही प्रसिद्द कवी और स्वतंत्रता सेनानी थे|इनके हर कविता में देशभक्ति की छाप दिखाई देती थी|इसके चलते महात्मा गाँधी ने इनको “राष्ट्रीय शायर” के नाम से नवाज़ा|

*हंसा जीवराज मेहता*
हंसा जीवराज मेहता (1897–1995) एक सुधारवादी, सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक, स्वतंत्रता कार्यकर्ता, लेखक थी |

*दौलत मल भंडारी*

दौलत मल भंडारी भारत में राजस्थान के मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय, पहली लोकसभा के एक सदस्य और एक स्वतंत्रता सेनानी थे।1955 से 1952 के लोकसभा के सदस्य थे। भंडारी ने आजादी की लड़ाई में सक्रिय भाग लिया| 1942 ,जयपुर में उन्होंने ‘आजाद मोर्चा ” का गठन किया और वहा सत्यग्रह किया|उन्हें ९ महीने के लिए जेल में दाल दिया गया था|भारत के विभाजन के दौरान उन्होंने सिंध और पश्चिमी पंजाब से शरणार्थियों के पुनर्वास में योगदान दिया।

*सेठ श्री जोरावरमल बापना*

19 वीं सदी में एक और देशभक्त सेठ जोरावर बाफना (जैसलमेर के प्रसिद्ध “पटवा हवेली”) के मालिक थे, जिन्होंने ब्रिटिश और स्थानीय राजपूत राजाओं के बीच प्रमुख राजनयिक उदयपुर, जोधपुर और इंदौर जैसे रियासतों के महत्वपूर्ण मुद्दों को निपटाने में अहम भूमिका निभाई थी| इन्होने राजस्थान और अन्य कई जगहों पे जैन मंदिर का निर्माण किया था|

स्रोत ग्रंथ का परिचय -
 *स्वतंत्रता संग्राम में जैन* नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ. कपूरचंद जैन और डॉ. श्रीमती ज्योति जैन ने बताया है की लगभग ४०० जैनों ने भारत देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी |ऐतिहासिक दृष्टि से जैनियों केवल उनके परोपकारी गतिविधियों के लिए ही नहीं बल्कि उनके देशभक्ति के लिए भी जाने जाते है|

विस्तार के लिए इस ग्रंथ को पढ़ना चाहिए 

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