वीर निर्वाण दीपोत्सव और सबसे प्राचीन संवत् प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन आचार्य-जैन दर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली-16 दीपावली भारत का एक ऐसा पवित्र पर्व है जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं से है ।भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैं ।आइये आज हम इस अवसर पर दीपावली के जैन महत्त्व को समझें ।ईसा से लगभग ५२७ वर्ष पूर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन होते ही स्वाति नक्षत्र में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का वर्तमान में बिहार प्रान्त में स्थित पावापुरी से निर्वाण हुआ था। भारत की जनता ने अमावस्या को प्रातः काल जिनेन्द्र भगवान की पूजा कर निर्वाण लाडू (नैवेद्य) चढा कर पावन दिवस को उत्साह पूर्वक मनाया । यह उत्सव आज भी अत्यंत आध्यात्मिकता के साथ देश विदेश में मनाया जाता है । इसी दिन रात्रि को शुभ-बेला में भगवान महावीर के प्रमुख प्रथम शिष्य गणधर गौतम ...
*क्या सभी एकान्त मिलकर अनेकान्त बन जाता है?* -प्रो. वीरसागर जैन अनेकांतवाद की चर्चा करते समय प्राय: यह प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या सभी एकांतों को मिला देने से अनेकांत बन जाता है और इस प्रश्न का उत्तर विद्वानों में अंत तक मतभेदपूर्ण ही बना रहता है, कोई समाधान नहीं निकल पाता है । कुछ विद्वान कहते हैं कि हाँ, सभी एकांतों को मिलाने से ही तो अनेकांत बनता है, एकांतों के समूह को ही तो अनेकांत कहते हैं । किन्तु इसके विपरीत कुछ विद्वान कहते हैं कि नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता, एकांतों को मिला देने से अनेकांत नहीं बन सकता, क्योंकि एकांत तो मिथ्या होते हैं और मिथ्याओं का समूह मिथ्या ही रहेगा, सम्यक् नहीं हो सकता, दस-दस वर्ष के दो लड़के मिलकर बीस वर्ष का एक नहीं बन सकता । दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी बात दृढ़ता से प्रस्तुत करते हैं और समर्थन में कुछ गाथा, श्लोक, उदाहरण आदि भी प्रस्तुत करते हैं । शास्त्रों में भी इन दोनों के संकेत मिल जाते हैं । इस प्रकार इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न के सम्बन्ध में विद्वानों तक में मतभेद बना रहता है, बात स्पष्ट नहीं होती कि आखिर सही बात क्या है । सभी एकांतों के मिलने से...