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शास्त्रीय भाषा का दर्जा , प्राकृत भाषा और हमारा कर्त्तव्य

शास्त्रीय भाषा का दर्जा , प्राकृत भाषा और हमारा कर्त्तव्य प्रो अनेकांत कुमार जैन मा.संपादक- पागद-भासा(प्राकृत भाषा का प्रथम अखबार ) प्राकृत विद्या भवन ,नई दिल्ली-74 भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को ‘शास्त्रीय भाषा’ नामक एक नई श्रेणी बनाई थी। इसके अंतर्गत सरकार ने सर्वप्रथम तमिल भाषा को उसके एक हज़ार साल से ज़्यादा पुराने इतिहास, मूल्यवान माने जाने वाले ग्रंथों और साहित्य तथा मौलिकता के आधार पर शास्त्रीय भाषा घोषित किया। नवंबर 2004 में, साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के लिए प्रस्तावित भाषाओं की पात्रता की जांच करने के लिए एक भाषा विशेषज्ञ समिति (LEC) का गठन किया गया था।जिसमें उन मानकों को तय किया गया जिनके आधार पर किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा स्वीकृत किया जायेगा| 2005 को जारी एक प्रेस  विज्ञप्ति के अनुसार, शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लिए निम्नलिखित मानदंड रेखांकित किए गए थे- १.    उस भाषा में प्राचीन ग्रंथ या दर्ज इतिहास होना चाहिए जो 1,500-2000 वर्षों से अधिक पुराना हो। २.    उस भाषा का प्राचीन साहित्य...
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पंचकल्याणक : एक विचार और एक प्रस्ताव सार्थक पहल के लिए ......

पंचकल्याणक : एक विचार और एक प्रस्ताव सार्थक पहल के लिए ...... प्रो अनेकांत कुमार जैन  8/12/24 कुछ ही दिनों के अंतराल में लगभग आसपास के ही स्थानों पर अनेक पंचकल्याणक भी उत्साह, शक्ति और संख्या को बांट देते हैं ।  कभी कोई ऐसी योजना भी बने कि आसपास की तिथियों के और स्थानों के दो चार पंच कल्याणक मर्ज कर दिए जाएं और सभी लोगों का पूरा समर्पण उसी एक में हो ,  सर्वे पदा हस्तिपदेनिमग्ना: न्याय से समस्त कार्य भी सिद्ध हो जाएंगे और अपव्यय से भी बचेंगे ।  जब चर्चा चल ही रही है तो सभी चर्चाएं होनी चाहिए ।  मूल समस्या है धन । सामान्य रूप से देश के प्रत्येक समाज में औसतन पंचकल्याणक महज़ सिर्फ प्रतिष्ठा और प्रभावना के लिए नहीं करवाये जाते हैं । बल्कि उसका एक और मुख्य उद्देश्य होता है - दान संग्रह । यदि उसके समुचित विभाजन और लाभ का विश्वसनीय समाधान करने का आकर्षक प्रबंधन हो तो कई स्थानों के तो स्वयमेव मर्ज हो जाएंगे ।  ये प्रयोग है कोई जबरजस्ती नहीं है । मर्ज वही होता है जिसे उसमें लाभ नज़र आता है ।  किसी प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र का चयन करें जहाँ आवागमन के समुच...

Prof Anekant Jain's E-articles and Books

 Prof Anekant Jain's E-articles and Books  1.An-experiment-with-anekantavada by Anekant Jain:  https://jainavenue.org/an-experiment-with-anekantavada/ 2.Depth-of-non-violence-and-peace by Anekant Jain  https://jainavenue.org/depth-of-non-violence-and-peace/ 3. Dasdhammasaro by Anekant Jain   https://jainmandir.org/library/Home/BookDetail?bookId=064065fd-62b3-4ff4-9335-805d652f7a67 4. Acharya Kundkund ka darshnik Vaibhava by  Anekant Jain: https://jainworld.jainworld.com/JWHindi/Books/acharya-kundkund-ka-darshanik-vaibhav-hin-1151.pdf 5. Book by Anekant Jain:  https://epustakalay.com/writer/47791-anekant-kumar-jain/ 6.Kutubminar and Jain temples by Anekant Jain:   https://drive.google.com/file/d/1ImDVGdrPms74U1d9JIr0ivqaYPtYOiL4/view?usp=sharing

तेरा पंथ सो मेरा पंथ

ये तो पुराण में लिखा है , धवला आदि सिद्धांत ग्रंथों में भी है ।  आगम प्रमाण होने से यह मिथ्यात्व तो नहीं है । हाँ ,सावद्य जरूर है । यहाँ प्रमाण से ज्यादा विवेक की आवश्यकता है । चीजें बदलती भी हैं । पहले भी ये क्रियाएं नियमित नहीं होती थीं , आवश्यकता के अनुसार वर्ष या मास में करने का विधान था ।  दक्षिण में काष्ठ की प्रतिमाएं होती थीं ,उन्हें मजबूत रखने के लिए स्निग्धता के लिए शुद्ध दूध ,दही ,घी आदि से कभी कभी अभिषेक की आवश्यकता पड़ती थी ।  वर्तमान में जल भी शुद्ध मिलना कठिन है तो फिर ये पदार्थ तो और भी दुर्लभ हैं ।  फिर इनका अतिरेक होने लगा और शुद्धता भी सुनिश्चित नहीं होने से तेरापंथ ने इनका कड़ाई से निषेध किया ।  अतः धर्म की किसी भी क्रिया में सावद्य लेश और बहु पुण्य राशि का विधान है , छूट है  न कि सावद्य बहु और लघु पुण्य राशि का  अतः जो विवेक पूर्वक धर्म क्रिया करते हैं वे विचार करते हैं कि हम पुण्य के लिए कर रहे हैं और पाप बांध रहे हैं अतः यह उचित नहीं इसलिए वे सचित्त फूल आदि का प्रयोग नहीं करते । पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से भी यह उचित प्रतीत होता ह...

प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते

  आगमभासापाइय तित्थयरभगवदो महावीरस्स | जयवंतो जीवंतो पहवंतो वत्ते विस्सम्मि || - तीर्थंकर भगवान् महावीर के आगमों की भाषा प्राकृत विश्व में जीवंत, जयवंत,प्रभवंत वर्ते      प्रो.डॉ. अनेकांत कुमार जैन  28/07/24

अपना मन न कमजोर करें

अपना मन न कमजोर करें  ©कुमार अनेकांत वक्त चाहे कितना बोर करे  वो चाहे कितना इग्नोर करे  लोग चाहें कितना शोर करें अपना मन न कमजोर करें  यहां जीत यदि न भी पाओ लोगों से यदि पिछड़ जाओ जग की छद्म आपाधापी में  अपना मन न कमजोर करें  जग जीते और खुद से हारे फिर क्या बचा बोलो प्यारे अपनी दुनिया में जिया करें  अपना मन न कमजोर करें  जो चाहो वो पूरा हो न सके समझें विधि नियत विधान यह होनहार स्वीकार करें  अपना मन न कमजोर करें  क्या हुआ कोई बिछड़ गया जो मिलना वो नहीं मिला असली निधि खुद में खोजें अपना मन न कमजोर करें  जीत वही मनोबल न खोए आत्मानुभूति लक्ष्य संजोए  जग प्रपंच को अब बस करें अपना मन न कमजोर करें 27/7/24

सांगानेर संघी मंदिर का एक अनुभूत सच

*सांगानेर संघी मंदिर का एक अनुभूत सच* बात 2009 की है जब मेरी पोस्टिंग जयपुर हो गयी थी ,एक दिन बहुत सुबह मैं मॉर्निंग वॉक करता करता संघी जी के मंदिर पहुंच गया । किसी ने कहा कि अभिषेक होने वाला है तो मन में प्रभु का अभिषेक करने की उत्कंठा सहज ही जागृत हो गयी ।  वहीं स्नान करके,शुद्ध वस्त्रों में अभिषेक की कतार में लग गया । वहां देखा कि पहले अभिषेक की बोली लगने वाली थी । मैंने कभी भी बोली लेकर पहले अभिषेक को तवज्जो इसलिए नहीं दी थी कि मेरी मान्यता थी कि ये काम तो सेठों के हैं । मेरे जैसे नौकरी वाले तो  बाद वाले निःशुल्क अभिषेक से पुण्य अर्जित कर लिया करते हैं ।  मैं चुपचाप पीछे हो लिया ।  बोली शुरू हुई 501,601,701,901, मैं चुपचाप सुनता रहा । फिर पंडित जी ने बोली आगे बढ़ाई 1010,1111,1212,1313,1414, मुझे डिजिट सुनकर हंसी आयी  मैंने मजाक में पंडित जी से पूछा ये क्या है ? माइक के शोर के बीच उन्होंने गलती से ये समझा मैं बोली लेना चाह रहा हूँ और उन्होंने अपने आप ही 1515 की बोली मेरे नाम से बोल दी ।  मैंने स्पष्टीकरण देने की कोशिश भी की किन्तु वे आगे बोली लगाने लगे ।म...

भविष्य के संकेत को देखें (जैन मुनियों से अभद्रता की घटना )

*भविष्य के संकेत को देखें* उत्तराखंड में पूज्य दिगम्बर संतों के साथ एक यूट्यूबर युवक द्वारा जो अभद्र व्यवहार किया गया ,उसके खिलाफ जो विश्व जैन संगठन ने त्वरित कार्यवाही की है वह काबिले तारीफ है ।  इस तरह की कार्यवाही से एक संदेश आम जनता में जाता है कि हमें इस तरह का आचरण नहीं करना चाहिए ।  आश्चर्य है कि इस तरह के प्रकरणों को पूर्व स्थापित बड़ी संस्थाएं गंभीरता से संज्ञान में नहीं ले पाती हैं और त्वरित कार्यवाही भी नहीं कर पा रही हैं ।  वह वीडियो मैंने भी देखा है ।  उसमें कुछ बातें निकल कर हैं - 1. उन दोनों  संतों के साथ कोई श्रावक नहीं दिख रहे ।  2. क्या संघ में दो ही मुनि साथ थे ,या अन्य मुनि गण भी थे और पीछे से आ रहे थे । 3. बिना श्रावकों के ,बिना ध्वजा के कोई भी विहार न हो यह जिम्मेदारी समाज को उठानी ही होगी । 4. दिगम्बर जैन मुनि वेश के बारे में अभी भी आम जन में बहुत भ्रांतियां हैं । इस विषय में जनजागरण हेतु विशेष अभियान चलाने चाहिए ।  5. दिगम्बर जैन मुनि चर्या संघ और धर्म की सकारात्मक जानकारी देने वाले सरल और संक्षिप्त ,प्रभावशाली और भाव...

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है

एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है वास्तव में एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कर्ता नहीं है । उनमें परस्पर निमित्त नैमित्तिक संबंध अनादि से हैं और निमित्त को व्यवहार से कर्ता कह दिया जाता है । 'यः परिणमति स कर्ता' ,  प्रत्येक द्रव्य अपने अपने स्वभाव रूप ही परिणमन करते हैं ,अतः वे कर्ता हैं और पर में कुछ भी परिणामित नहीं होते अतः उनके वे कर्ता नहीं हैं। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है । तिण्हं सद्दणयाणं...ण कारणस्स होदि; सगसरूवादो उप्पण्णस्स अण्णेहिंतो उप्पत्तिविरोहादो। तीनों शब्द नयों की अपेक्षा कषायरूप कार्य कारण का नहीं होता, अर्थात् कार्यरूप भाव-कषाय के स्वामी उसके कारण जीवद्रव्य और कर्मद्रव्य कहे जा सकते हैं, सो भी बात नहीं है, क्योंकि कोई भी कार्य अपने स्वरूप से उत्पन्न होता है। इसलिए उसकी अन्य से उत्पत्ति मानने में विरोध आता है। (कषायपाहुड़/1/283/318/4) कुव्वं सभावमादा हवदि कित्ता सगस्स भावस्स। पोग्गलदव्वमयाणं ण दु कत्ता सव्वभावाण।।    अपने भाव को करता हुआ आत्मा वास्तव में अपने भाव का कर्ता है, परंतु पुद्गलद्रव्यमय सर्व भावों का कर्ता नहीं है। (प्रवचनसार/184) भावो कम्मणि...

सुधरे मतदाता,नेता मतदाता से , राष्ट्र स्वयं सुधरेगा

भारतमंडपम् में महावीर जन्मोत्सव

भारतमंडपम में महावीर जन्मोत्सव  रविवार दिनाँक 21/04/24 तीर्थंकर महावीर जन्मकल्याणक महोत्सव और उनके 2550 निर्वाण महोत्सव के उद्घाटन समारोह के कारण पहली बार भारतमंडपम् जाने का अवसर प्राप्त हुआ ।  जैन धर्म के सभी संप्रदायों ने एक जुट होकर संस्कृति मंत्रालय के साथ मिलकर इस कार्यक्रम को अत्यंत अनुशासन एवं गरिमा पूर्ण तरीके से सम्पन्न किया ।  इस कार्यक्रम के प्रमुख श्रद्धा व आकर्षण का केंद्र तीर्थंकर भगवान् महावीर का अनेकांत और अहिंसा सिद्धांत रहा जिसे वहां उपस्थित सभी साधु संतों और साध्वियों सहित आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने वक्तव्यों में शानदार तरीके से अभिव्यक्त किया ।  2550 निर्वाण महोत्सव मनाने हेतु आचार्य प्रज्ञसागर जी ने उन दिनों समाज को जगाया जब समाज को इसकी खबर ही नहीं थी ,अतः निश्चित रूप से इसकी मुख्य प्रेरणा का श्रेय उन्हें जाता है । उन्होंने सभी संप्रदायों को जोड़ा और इस कार्य की प्रेरणा आज से दो वर्ष पूर्व से ही देना प्रारंभ कर दिया था । संतों साध्वियों ने प्रधान सेवक को अपना आशीर्वाद प्रदान किया जो जरूरी था किंतु उसमें भी थोड़ा अतिरेक के दर्शन हु...