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महावीर-णिव्वाण-दीवोसवो

  महावीर-णिव्वाण- दीवोस वो महावीर-णिव्वाण- दीवोस वो   जआ  अवचउ काल स्स   सेसतिणिवस्ससद्धअट्ठमासा ।   तआ होहि अंतिमा य महावीरस्स खलु देसणा ।।१।। जब  अवसर्पिणी  के  चतुर्थ काल के  तीन वर्ष साढ़े आठ मास  शेष थे तब भगवान् महावीर की अंतिम देशना हुई थी ।   कत्तियकिण्ह तेरसे  जोगणिरोहेण ते ठिदो झाणे ।    वीरो अत्थि य झाणे अओ पसिद्धझाणतेरसो ।।२।। योग निरोध करके  कार्तिक  कृष्णा त्रियोदशी को वे (भगवान् महावीर)ध्यान में स्थित हो गए ।और (आज) ‘वीर प्रभु ध्यान में हैं’ अतः यह दिन ध्यान तेरस के नाम से प्रसिद्ध है ।     चउदसरत्तिसादीए पच्चूस काले  पावाणयरीए  ।         ते   गमिय परिणिव्वुओ   देविहिं   अच्चीअ  माव से ।।३ ।। चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते प्रत्यूषकाल में  वे ( भगवान् महावीर )   परिनिर्वाण को प्राप्त हुए  और अमावस्या को देवों के द्वारा पूजा हुई  ।   गोयमगणहरलद्धं अमावसरत्तिए य केवलणाणं  ।   णाणलक्खीपूया य   दीवोस वपव्वं  जणवएण   ।।४ ।। इसी अमावस्या की रात्रि को गौतम गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया ।लोगों ने केवल ज्ञान रुपी लक्ष्मी की पूजा की और दीपोत्सवपर्व  मनाया

शाकाहार हाईकू पंचक

*शाकाहार हाईकू पंचक* कुमार अनेकान्त, नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com  11/11/2020 1. जीवन सार  हमारा शाकाहार न मांसाहार 2. खाकर मांस  पेट को कब्रिस्तान  मत बनाओ 3. रखो करुणा आहार शाकाहार जीवों की दया  4. मानव धर्म जीवन शाकाहार  सात्विक कर्म  5. अपनाएगा  हिन्दु मुसलमान सच्चा ईमान

जैन आगमों में दीपोत्सव

*जैन आगमों में दीपोत्सव* प्रो.डॉ.अनेकांत कुमार जैन , आचार्य-जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली-१६ drakjain2016@gmail.com दीपावली भारत का एक ऐसा पवित्र पर्व है जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की सभी परम्पराओं से है |भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैं |आइये आज हम इस अवसर पर दीपावली के जैन महत्त्व को समझें |ईसा से लगभग ५२७  वर्ष पूर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन होते ही अमावस्या के लगभग प्रारम्भ में स्वाति नक्षत्र में जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का वर्तमान में बिहार प्रान्त में स्थित पावापुरी से निर्वाण हुआ था। भारत की जनता  ने  प्रातः काल जिनेन्द्र भगवान की पूजा कर निर्वाण लाडू (नैवेद्य) चढा कर पावन दिवस को उत्साह पूर्वक मनाया । यह उत्सव आज भी अत्यंत आध्यात्मिकता के साथ देश विदेश में मनाया जाता है |इसी दिन रात्रि को शुभ-बेला में भगवान महावीर के प्रमुख प्रथम शिष्य गणधर गौतम स्वामी को केवल ज्ञान रुपी  लक्ष्मी की प्राप्ति हुई थी |  दिगंबर आचार्य जिनसे

सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार

सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार वर्तमान में जितनी तीव्रता से सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है उससे कहीं ज्यादा तीव्रता से उसका दुरुपयोग भी बढ़ा है । इसलिए अब इससे संबंधित अपराधों के लिए  कानून भी निर्मित हो गए हैं तथा सजाएं भी मिल रही हैं जो कि कुछ वर्षों पहले तक संभव नहीं थी । आज यह आवश्यक हो गया है कि सोशल मीडिया पर कानून के साथ साथ सोशल कंट्रोल भी हो । हमें वर्तमान के अनुरूप अपनी प्रासंगिकता स्थापित करनी पड़ती है ।  कॅरोना काल में लॉक डाउन के कारण ज़ूम ,गूगल मीट,जिओ मीट, मीटिंग एप्प आदि का उपयोग उन लोगों ने भी सीखा जिन्हें मोबाइल लैपटॉप छूना भी पसंद न था । यूट्यूब,व्हाट्सएप,फ़ेसबुक,टेलीग्राम,इंस्टाग्राम,ट्विटर आदि जनसंचार के सबसे ज्यादा माध्यम बने हुए हैं । मोबाइल सभी के अधिकार और पहुंच में होने से आज इस पर कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर कैसा भी लिख और लिखवा सकता है । कितने ही विषयों में ऐसा लगता है कि बंदरों के हाथों में उस्तरा लग गया है । इसके लिए अब हमें सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार के नियम स्थापित करने होंगे और उनका कड़ाई से पालन भी करना और करवाना होगा ।अभी आरम्भ में सोशल मीडिया से उत्पन्न

विद्यार्थियों को पत्र

प्रिय विद्यार्थियों  आज आप सभी का डिप्लोमा जैन विद्या का द्वितीय सत्र पूरा हो गया है । कॅरोना की विपरीत परिस्थितियों में भी हम सभी ने अध्ययन एवं अध्यापन किया । आप सभी ने परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है । जहां तक मुझे लगता है जिन्होंने भी परीक्षा दी है, उनमें सभी उच्च श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले हैं । कई विद्यार्थी हमेशा कहते हैं कि हम तो बस पढ़ने आये थे , डिग्री लेने नहीं ,इसलिए वे परीक्षा नहीं देते हैं। किन्तु मेरा अनुभव रहा है जिनका लक्ष्य परीक्षा या डिग्री नहीं रहता ,वे गंभीरता से पढ़ते भी नहीं हैं ।  आप सभी ने परीक्षा के दौरान यह अनुभव किया होगा कि जब तक सकारात्मक तनाव हमारे ऊपर नहीं रहता तब तक हम भी जोर नहीं लगाते हैं । परीक्षा के निमित्त से स्वाध्याय और अध्ययन और गहरा होता है । अपने ज्ञान पर खुद का विश्वास बढ़ता है ।  चलिए , अब एक बहुत बड़े भार से तो आप निर्भार हो गए । औपचारिकताओं के बाद डिप्लोमा भी आपको प्राप्त हो ही जायेगा ।  लेकिन अब अवसर है गुरु दक्षिणा का । पिछले एक डेढ़ वर्षों में हमने मिलकर हर संभव आप सभी को अपनी तरफ से यथा शक्ति , यथा मति जैन विद्या का वह अमूल्य तत्त्

दसधम्मसारो की pdf

दसलक्षण धर्म पर सरल प्राकृत गाथाएं एवं सरल और संक्षिप्त हिंदी व्याख्या के साथ अब *दसधम्मसारो* ग्रंथ की पीडीएफ जैन ई लाइब्रेरी में भी उपलब्ध है आप  निम्नलिखित लिंक पर जाकर डाउन लोड कर सकते हैं -  धन्यवाद https://jainelibrary.org/book-detail/?srno=035362

तुम भी यार कॅरोना निकले

*तुम भी यार कॅरोना निकले*  झूठ ही बिकता रहा बाज़ार में, दाम बहुत पर ऊपर निकले । सच्चाई की भीख मांगने, लेकर हम कटोरा निकले ।। अंदर बैर बैठा ही रहा, मंदिर मस्जिद सैर को निकले । क्रीम पाउडर हल्दी उबटन , देखें कौन सलोना निकले ।। एहसानों को सह न पाए , अच्छे अच्छे सपोला निकले । उफ रिश्तों से इतनी दूरी, तुम भो यार कॅरोना निकले ।। कुमार अनेकान्त  14/08/2020

अनुभव

अनुभव को लिखा अनुभव  मुझे जैन विद्या प्राकृत भाषा रूप जिनवाणी का तत्वज्ञान परंपरा से प्राप्त हुआ है। मेरे माता पिता स्वयं इस विद्या के विशेषज्ञ हैं। उन्हीं की प्रेरणा पाकर के मुझे भी संस्कृत विद्या जैन दर्शन आदि विषयों के साथ अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गुरू जनों का मुझ पर बहुत उपकार हुआ और यही कारण है कि मैंने अपने संपूर्ण अध्ययन काल में इस विषय में उच्च से उच्च शिक्षा तथा इससे संबंधित समस्त शैक्षणिक योग्यताएं अर्जित करने का प्रयास किया ।  यह मेरा इस जन्म में बहुत बड़ा सौभाग्य रहा कि मुझे जैन दर्शन के माध्यम से  तत्त्व ज्ञान प्राप्त हुआ तथा उसी को प्रचारित प्रसारित करने के लिए अध्यापन करने के लिए तथा शोध कार्य करने के लिए सौभाग्य से आजीविका भी मिल गई। अध्ययन के दौरान यह अवश्य लगता था की मेरे कैरियर का क्या होगा ? किंतु मेरे माता पिता ने हिम्मत बंधाई और मैंने भी अन्यत्र न भटकते हुए यह सोच लिया था कि जो होगा सो होगा ,मेरी तरफ से कोई कमी नहीं रहनी चाहिए, बस । इसी विद्या से मैंने यह सीखा कि यदि पूरे परिश्रम भावना और समर्पण के साथ यदि कार्य किया जाए तो कोई ना कोई दिशा भी अवश्य म

समकालीन प्राकृत कविता पीड़ा

समकालीन प्राकृत   कविता पीड़ा पीडियो सहइ पीडा तं ण खलु गच्छइ पीडा जं ददइ | कसायेण सयं दहइ परकत्ताभावेण जीवो || भावार्थ पीड़ित व्यक्ति तो पीड़ा सह भी जाता है ,लेकिन जो पीड़ा देता है निश्चित ही उसकी पीड़ा नहीं जाती | पीड़ा देने वाला जीव मिथ्या ही पर कर्तृत्व के भावों से , कषाय से   स्वयं जलता रहता है | कुमार अनेकांत १८/०६/२०२०

पिता नहीं भगवान् हैं वे

पिता नहीं भगवान् हैं वे  - कुमार अनेकांत© ( 16/06/2019) पिता नहीं भगवान् हैं वे  भले ही एक इंसान हैं वे  ईश्वर तो अभी तक अनुमान हैं  मेरे प्रत्यक्ष प्रमाण हैं वे  जब मन भटका इन्द्रियां भटकीं मति सुधारी मतिज्ञान हैं वे आगम पढ़ाया आप्त समझाया श्रुत समझाया श्रुतज्ञान हैं वे  मम मन समझें मनोविज्ञानी मेरे मनः पर्ययज्ञान हैं वे  मैं दूर रहूं तो भी रखें नज़र दूरदृष्टा अवधिज्ञान हैं वे  मेरे तीनों काल को जाने  मेरे सर्वज्ञ- केवलज्ञान हैं वे  कोई चाहे कुछ भी कह ले मेरे प्रत्यक्ष भगवान् हैं वे  पाठकों से निवेदन -     छंद नहीं अनुभूति देखें     शब्द नहीं भाव को परखें     जरूरी नहीं कि कवि ही लिखे     अकवि की भी कविता देखें ।

सुशांत से हमने क्या सीखा ?

सुशांत से हमने क्या सीखा ? करोड़ों की मज़राती कार, रेंज रोवर, BMW बाइक 90 करोड़ की प्रॉपर्टी और ग्लैमर । सुना है इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का इकलौता ऐक्टर था, जिसने चाँद पर लूनर प्रॉपर्टी के थ्रू पीस ऑफ लैंड खरीद रखा था । पर इन सब के ऊपर डिप्रेशन भारी पड़ा और सुशांत फांसी लगा के खत्म हो गया । *अध्यात्म विद्या को जीवन में आत्मसात कीजिए ।* *ज्ञान का फल है "मुस्कान" उसे अपने चेहरे पर बनाए रखिए ।* सिर्फ दो नियम १. अपने से मिलते रहिए( ध्यान योग)( रहें भीतर) २. अपनो से मिलते रहिये, बात करते रहिए । ( व्यवहार योग - जिएं बाहर ) *जग- जीवन की क्षण भंगुरता को समझे रहिए ।* *कोई किसी का सगा नहीं - अंदर में निर्णय करके रखिए*  *मेरा सो जावे नहीं* *अप्पसहावो गच्छइ ण कया खलु मत्त गच्छइ विहावो |* *जो गच्छइ सो य ण मम जो मम सो ण गच्छइ खलु सहावो ||* भावार्थ – आत्मा का मूल शुद्ध स्वभाव कभी नहीं जाता, निश्चित ही मात्र विभाव जाता है और जो चला जाता है वह मेरा नहीं है और जो मेरा है वह जाता नहीं है ,निश्चय से वही मेरा स्वभाव है |  *डिप्रेशन का अर्थ है आपने अध्यात्म सिर्फ पढ़ा है ज