धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है कुमार अनेकांत पुराने जमाने की एक कहानी सुनी होगी । अमावस्या के दिन डाकू पहाड़ी पर बने देवी के मंदिर में जरूर आता है और देवी को प्रसाद जरूर चढ़ाता है । पुलिस भी जो और दिनों में उसे ढूढने में असफल रहती है वह अमावस्या की रात मंदिर के आसपास डाकू की प्रचंड भक्ति पर विश्वास करके घेरा बंदी कर लेती है कि उसकी और बातें भले ही झूठ हों लेकिन यह बात बिल्कुल सही है कि वह देवी से रक्षा और सफलता का आशीर्वाद लेने जरूर आता है । ऐसी कहानियां सच हैं कि काल्पनिक हैं या फिल्मी हैं यह तो आप जानें लेकिन धर्म क्षेत्र की अधिकांश व्यवस्थाएं इन दिनों किसी न किसी रूप में ऐसे ही डाकुओं से घिरी हुई हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि अब डाकू छुप कर नहीं आते , क्यों कि डकैती कर्म होने पर भी वे अब इतने स्वच्छ दिखते हैं कि अब वे डाकू नहीं कहलाते । अब वे सामाजिक हैं । लूटने के ,डकैती के बहुत सुरक्षित उपाय उन्होंने अपना लिए हैं । अब आप लुट जाएंगे और उसे डाकू भी नहीं कह पाएंगे क्यों कि उसने इतने सफेद आवरण ओढ़ रखे हैं कि आप उस पर दाग भी नहीं लगा सकते । डाकुओं ने अपना ड्रेस कोड