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क्या आगम ही मात्र प्रमाण है ?

क्या आगम ही मात्र प्रमाण है ? १.आगम प्रमाण है ,किन्तु मात्र वह ही प्रमाण नहीं है |जैन दर्शन में आगम अर्थात आप्त वचन को भी परोक्ष प्रमाण में पांचवां प्रमाण कहा है |उसके पूर्व स्मृति,प्रत्यभिज्ञान,तर्क,अनुमान भी परोक्ष प्रमाण के रूप में ही हैं |सबसे पहले प्रत्यक्ष प्रमाण और उसमें भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष और अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष ये दो भेद भी किये हैं |ये सभी प्रमाण है | २.आगम प्रमाण तो है ,लेकिन अनुमान और तर्क को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है |जब आगम है तो युक्ति और तर्क आदि की क्या आवश्यकता थी ?आचार्य जानते थे कि आज आगम भले ही भगवान् की वाणी हैं लेकिन कालांतर में छद्मस्थ मनुष्य ही इसे लिखेगा,बोलेगा ,और छपवाएगा | ३.और तब वह लिखने और बोलने में सबसे पहले मंगलाचरण में तो यही कहेगा कि जो भगवान् की वाणी में आया वह मैं कह रहा हूँ और अपने देश ,काल, वातावरण,संप्रदाय,और आग्रहों को भी भगवान् के नाम से अज्ञानता वश उसमें जड़ देगा |कभी कभी परिस्थिति वश धर्म रक्षा के लोभ में भी वह कई तरह के मिथ्यात्व कुछ अच्छे नामों से उसमें डाल देगा |तब बाद में आगम की कौन रक्षा करेगा ?कैसे पता चलेगा कि भगवान् क

प्रकृति एकांत वादी नहीं है

  प्रकृति एकांत वादी नहीं है कुछ , कभी भी , सब कुछ नहीं हो सकता | प्रकृति संतुलन बैठाती रहती है | वह हमारी तरह भावुक और एकान्तवादी नहीं है | हम भावुकता में बहुत जल्दी जीवन के किसी एक पक्ष को सम्पूर्ण जीवन भले ही घोषित करते फिरें पर ऐसा होता नहीं हैं | जैसे हम बहुत भावुकता में आदर्शवादी बन कर यह कह देते है कि १.प्रेम ही जीवन है | २.अहिंसा ही जीवन है | ३. जल ही जीवन है | ४.अध्यात्म ही जीवन है | आदि आदि यथार्थ यह है कि ये चाहे कितने भी महत्वपूर्ण क्यूँ न हों किन्तु सब कुछ नहीं हैं | ये जीवन का एक अनिवार्य पक्ष , सुन्दर पक्ष हो सकता है लेकिन चाहे कुछ भी हो सम्पूर्ण जीवन नहीं हो सकता | इसीलिए कायनात इन्साफ करती है क्यूँ कि हमारी तरह वह सत्य की बहुआयामिता का अपलाप नहीं कर सकती | इसीलिए विश्व के इतिहास में दुनिया के किसी  भी धर्म को कायनात उसकी  कुछ एक विशेषताओं के कारण एक बार उसे छा जाने का मौका देती है किन्तु चाहे वे सम्पूर्ण सत्य दृष्टि का कितना भी दावा करें वे अन्ततोगत्वा ज्यादा से ज्यादा बहुभाग का एक हिस्सा बन कर रह जाते हैं , उन की कुछ विशेषताओं के कारण एक कोना

"चातुर्मास में करें प्राकृत भाषा का विकास"

सादर प्रकाशनार्थ "चातुर्मास में करें प्राकृत भाषा का विकास" विश्व के प्रायःसभी धर्म ग्रन्थ किसी न किसी भाषा में लिखे गए हैं | भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि में जो ज्ञान प्रकट हुआ वह मूल रूप से प्राकृत भाषा में संकलित हैं जिन्हें प्राकृत जैन आगम कहते हैं |इन दिनों जैन समाज में प्रायः सभी जगह साधु/साध्वियां चातुर्मास स्थापित कर रहे हैं |चातुर्मास में प्रत्येक जगह विशेष धर्म आराधना की जाती है तथा लोगों में विशेष उत्साह रहता है |वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि हमारे मूल आगमों की  भाषा प्राकृत को लोग जानते भी नहीं हैं तथा इसका परिचय भी नहीं है |इसीलिए हम अपने शास्त्र पढ़ नहीं पाते हैं |यह हमारा दुर्भाग्य है |इस वर्ष चातुर्मास में सभी साधू श्रावक विद्वान् आदि निम्नलिखित प्रयास करके समाज में प्राकृत भाषा को पुनः जीवंत कर सकते हैं - १. अपनी सभाओं में प्रत्येक कार्यक्रम के पहले एक मंगलाचरण प्राकृत गाथाओं का अवश्य करें अथवा करवाएं |तथा उससे पूर्व सभा में यह घोषणा करें कि अब प्राकृत भाषा में मंगलाचरण होगा |हो सके तो उसका अर्थ भी बताएं | २. चातुर्मास में एक हफ्ते का प्राकृत शिक्

चातुर्मास से होती है आध्यात्मिक क्रांति

"Pravacansaar " - an ancient jain canonical prakrit text of philosophy .by Dr Anekant kumar Jain

"Pravacansaar " - an ancient jain canonical prakrit text of philosophy .by Dr Anekant kumar Jain (Published in Jain Journal,kolkata) Pravchansaar is composed by Acharya Kundkund at 1st C.AD in Shaurseni Prakrit Language.This is an imp.literature of जैन ज्ञान योग  .This is in syllabus of P.G.classes in various Universities.

अंतर्राष्ट्रीय जुगाड़ दिवस भी मनाया जाय

"अंतर्राष्ट्रीय जुगाड़ दिवस भी मनाया जाय" "अंतर्राष्ट्रीय जुगाड़ दिवस भी मनाया जाय" क्यों कि योग का एक देसी अर्थ "जुगाड़" भी है | दर्शन - "जुगाड़",आसन - इसका एक ही सिद्ध आसन है - " चाटुकारासन " | ये सब नहीं कर सकते | कौन कर सकता है ?-इसके साधक योगियों में धैर्य,समता,चेहरे पर कृत्रिम मुस्कान,अविद्यमान गुणों की भी प्रशंसा करना,रात को दिन कहने की कला ,चरण स्पर्श आदि में महारथ,मौसम को भांपने की क्षमता और उसी के अनुकूल खुद का भी रंग बदलने का हुनर,किसी एक सिद्धांत पर अडिग न रहने का साहस,खुद की हर क्रिया को सही और तर्क सम्मत सिद्ध करने का पांडित्य आदि आदि विशेष गुण होते हैं |इनके अभाव में इसकी साधना नहीं की जा सकती |इसके लिए रीड़ की हड्डी में विशेष लचीलापन चाहिए | मंत्र- व्यर्थ की प्रशंसा इसका मूल मंत्र है| काव्य कला हो तो अधिक असरकारी हो जाता है| इसके लाभ - १.व्यक्ति सत्ता परिवर्तन जैसे तनावों से मुक्त रहता है | २.सरकार चाहे जिसकी हो उसका कभी ट्रान्सफर आदि नहीं होता |वह अपदस्थ नहीं होता |सहज ही बड़े बड़े पद और सुविधाए

"Celebrate The World Yoga day on 21 June with SAMAYIK YOG " GLOBAL- SAMAYIK सामायिक योग

  "Celebrate  The World Yoga day on 21 June with SAMAYIK YOG "                                        GLOBAL- SAMAYIK  1. चतुर्दिक वंदना करें।             2. 27 श्वासोच्छवास में ९ बार णमोकारमंत्र पढ़ें।                 3. चत्तारि मंगल पाठ पढ़ें। 4. सुखासन में बैठकर संक्षिप्त प्रतिक्रमण करें।.....तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।  5. सामायिक काल के लिए समस्त परिग्रह , राग द्वेष , आहार आदि का प्रत्याख्यान (त्याग) करें। 6. सामायिक करें।अर्हं पद का ध्यान करें और ध्वनि करें।              7. कायोत्सर्ग करें। ( भेद विज्ञान)                  8.  वन्दनासन में बैठ कर थोस्सामि... लोगस्स स्तवन का पाठ भावों के साथ करें।  9. 27 श्वासोच्छवास में ९ बार णमोकारमंत्र पढकर संपन्न करें।                निवेदक -         JIN FOUNDATION, NEW DELHI  

जैन योग की सुदीर्घ परंपरा- २१ जून को विश्व योग दिवस पर विशेष

२१ जून को विश्व योग दिवस पर विशेष सादर प्रकाशनार्थ " जैन योग की समृद्ध परंपरा"                                                         - डॉ अनेकांत कुमार जैन  योग भारत की विश्व को प्रमुख देन है | यूनेस्को ने २ ओक्टुबर को अहिंसा दिवस घोषित करने के बाद २१ जून को विश्व योग दिवस की घोषणा करके भारत के शाश्वत जीवन मूल्यों को अंतराष्ट्रिय रूप से स्वीकार किया है | इन दोनों ही दिवसों का भारत की प्राचीनतम जैन संस्कृति और दर्शन से बहुत गहरा सम्बन्ध है | श्रमण संस्कृति का मूल आधार ही अहिंसा और योग ध्यान साधना है | इस अवसर पर यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि जैन परंपरा में योग ध्यान की क्या परंपरा , मान्यता और दर्शन है ?  जैन योग की प्राचीनता और आदि योगी जैन योग का इतिहास बहुत प्राचीन है | प्राग ऐतिहासिक काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने जनता को सुखी होने के लिए योग करना सिखाया | मोहन जोदड़ो और हड़प्पा में जिन योगी जिन की प्रतिमा प्राप्त हुई है उनकी पहचान ऋषभदेव के रूप में की गयी है | मुहरों पर कायोत्सर्ग मुद्रा में योगी का चित्र प्राप्त हुआ है , यह कायोत्सर्ग की मुद्रा जैन

सादर प्रकाशनार्थ- ‘युवा मनीषी डॉ अनेकांत जैन ने जापान में किया भारत का प्रतिनिधित्व’

सादर प्रकाशनार्थ ‘युवा मनीषी डॉ अनेकांत जैन ने जापान में किया भारत का प्रतिनिधित्व’                                                                                        अप्रैल,२०१५,टोक्यो ,जापान,Religions for peace,Japan द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में युवा राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित डॉ अनेकांत कुमार जैन(सहायकाचार्य,जैन दर्शन विभाग,श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्या पीठ  ,नई दिल्ली) ने भारत की तरफ से जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करते हुए वहां जैन धर्म दर्शन की प्राचीनता और अहिंसा अनेकांत के माध्यम से वैश्विक शांति की स्थापना में जैनधर्म के योगदान को रेखांकित किया तथा इन्हीं सिद्धांतों से विश्व की भावी दिशा तय करने पर ही सच्चे अर्थों में शांति स्थापित हो सकती है -  इस बात को  “Jainism :  way of peace ” शीर्षक से अपने शोधपत्र के द्वारा व्याख्यान तथा विमर्श के माध्यम से प्रस्तुत किया | सम्मेलन में पूरी दुनिया के कई देशों से विभिन्न धर्मों के विद्वानों ने विश्व शांति के उपायों पर अपनी बात रखी |ज्ञातव्य है कि भारत से मात्र डॉ अनेकांत प्रतिनिधित्व कर रहे

LORD MAHAVEERA

LORD  MAHAVEERA                                                     Jainism is the oldest religion in India .   The religion preached by Lord Mahaveera is not a new religion; it is the religion of the jinas who had gone before him and popularized the basic principles of the greatness of self. Mahaveera was the twenty fourth, i.e., the last Tirthankar. According to the tradition he attained Nirvan 605 years before the beginning of the Saka Era.By either mode of calculation the date comes to 527 B.C. Since the lord attained emancipation at the age of 72, his birth must have been around 599B.C.This makes Mahaveer a slightly elder contemporary of Buddha who probably lived about 567-487 B.C.                        He was born on the 13 th day of the bright half of the month of Chaitra in the year 599 B.C. His father Siddharth , King of the Jňātŗ clan in Vaisali. His Mother was Trishla, the daughter of Chetaka, a king of the Chetaka, a king of a Licchavi clan. She had another na

भगवान महावीर ने दिए व्यक्तित्व विकास के मूलसूत्र- डा. अनेकान्त कुमार जैन

भगवान महावीर ने दिए व्यक्तित्व विकास के मूलसूत्र                                 डा. अनेकान्त कुमार जैन                          जैन धर्म में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें व अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर तक एक सुदीर्घ परंपरा रही है | भगवान महावीर का जन्म , ईसा से ५९९ वर्ष पूर्व , चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को , वैशाली गणतंत्र के , लिच्छिवी वंश के महाराज , श्री सिद्धार्थ और माता त्रिशला देवी के यहाँ हुआ था । वे स्वयं एक महान व्यक्तित्व के धनी थे | वे इतने आकर्षक तथा प्रभावशाली थे कि जो भी उन्हें देखता उनका हो जाता था | वे सिर्फ देखने में ही सुन्दर नहीं थे बल्कि उनका आध्यात्मिक व्यक्तित्व भी इतना निर्मल था कि उनके पास जाने मात्र से लोग अपनी सारी समस्याओं का समाधान पा जाते थे | उन्होंने सफल व्यक्तित्व के कई सूत्र दिए |  व्यक्तित्व व्यक्ति की मात्र अभिव्यक्ति नहीं है ,एक समग्र प्रक्रिया है | मनुष्य-चरित्र को परखना भी बड़ा कठिन कार्य है , किन्तु असम्भव नहीं है। कठिन वह केवल इसलिए नहीं है कि उसमें विविध तत्त्वों का मिश्रण है बल्कि इसलिए भी है कि नित्य नई परिस्थितियों के आघात-प्र