सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

"Pravacansaar " - an ancient jain canonical prakrit text of philosophy .by Dr Anekant kumar Jain

"Pravacansaar " - an ancient jain canonical prakrit text of philosophy .by Dr Anekant kumar Jain (Published in Jain Journal,kolkata)

Pravchansaar is composed by Acharya Kundkund at 1st C.AD in Shaurseni Prakrit Language.This is an imp.literature of जैन ज्ञान योग  .This is in syllabus of P.G.classes in various Universities.






टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

क्या मन्त्र साधना आगम सम्मत है ?

  क्या मन्त्र साधना आगम सम्मत है ? ✍️ प्रो . डॉ अनेकान्त कुमार जैन , नई दिल्ली # drakjain2016@gmail.com बहुत धैर्य पूर्वक भी पढ़ा जाय तो कुल 15 मिनट लगते हैं 108 बार भावपूर्वक णमोकार मंत्र का जाप करने में , किन्तु हम वो हैं जो घंटों न्यूज चैनल देखते रहेंगें , वीडियो गेम खेलते रहेंगे , सोशल मीडिया पर बसे रहेंगे , व्यर्थ की गप्प शप करते रहेंगे लेकिन प्रेरणा देने पर भी यह अवश्य कहेंगे कि 108 बार हमसे नहीं होता , आप कहते हैं तो 9 बार पढ़े लेते हैं बस और वह 9 बार भी मंदिर बन्द होने से घर पर कितनी ही बार जागते सोते भी नहीं पढ़ते हैं , जब कि आचार्य शुभचंद्र तो यहाँ तक कहते हैं कि इसका पाठ बिना गिने अनगिनत बार करना चाहिए | हमारे पास सामायिक का समय नहीं है । लॉक डाउन में दिन रात घर पर ही रहे   फिर भी समय नहीं है ।   हम वो हैं जिनके पास पाप बांधने के लिए 24 घंटे समय है किंतु पाप धोने और शुभकार्य   के लिए 15 मिनट भी नहीं हैं और हम कामना करते हैं कि सब दुख संकट सरकार दूर करे - ये उसकी जिम्मेदारी है । कितने ही स्थानों पर णमोकार का 108 बार जाप के साथ सा मा यिक का समय उनके पास भी नहीं है जो सु

तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश

 तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश  (This article is for public domain and any news paper and magazine can publish this article with the name of the author and without any change, mixing ,cut past in the original matter÷ जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर तक तीर्थंकरों की एक सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है । भागवत् पुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश को ' भारत '   नाम प्राप्त हुआ । सृष्टि के आदि में कर्म भूमि प्रारम्भ होने के बाद यही ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम प्रवर्त्तक माने जाते हैं जिन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या और सुंदरी को गणित विद्या सिखाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति की थी । इसी परंपरा के अंतिम प्रवर्त्तक तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में ईसा की छठी शताब्दी पूर्व हुआ था ।युवा अवस्था में ही संयम पूर्वक मुनि दीक्षा धारण कर कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान( सर्वज

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी की समाधि उनके लोकोत्तर जीवन के लिए तो कल्याणकारी है किंतु हम सभी के लिए जैन संस्कृति का एक महान सूर्य अस्त हो गया है ।  स्वामी जी  के जीवन और कार्यों को देखकर लगता है कि वो सिर्फ जैन संस्कृति के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और समाज का सर्व विध कल्याण कर रहे थे ।  वे सिर्फ जैनों के नहीं थे वे सभी धर्म ,जाति और प्राणी मात्र के प्रति करुणा रखते थे और विशाल हृदय से सभी का कल्याण करने का पूरा प्रयास करते थे ।  उनके साथ रहने और कार्य करने का मुझे बहुत करीब से अनुभव है । मेरा उनसे अधिक संपर्क तब हुआ जब 2006 में महामस्तकाभिषेक के अवसर पर पहली बार श्रवणबेलगोला में विशाल जैन विद्वत सम्मेलन का आयोजन उन्होंने करवाया था । उसका दायित्व उन्होंने मेरे पिताजी प्रो फूलचंद जैन प्रेमी ,वाराणसी को  सौंपा।उस समय पिताजी अखिल भारतीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद के अध्यक्ष थे ।  मेरे लिए यह अविश्वसनीय था कि उन्होंने मुझे इस सम्मेलन का सह संयोजक बनाय