Press Note "अंत समय में जीने की कला का नाम सल्लेखना है " -डॅा० अनेकान्त कुमार जैन * सल्लेखना जैन योग की एक विशिष्ट अवस्था का नाम है |इसे भाव परिष्कार की प्राकृतिक चिकित्सा भी कह सकते हैं |सल्लेखना का अर्थ भी क्रोध,मान,माया,लोभ को अच्छी तरह समाप्त करना है।संथारा का अर्थ पुआल आदि का बिछौना है। समत्व पूर्वक आत्मा में स्थित होना समाधि है। मरना अर्थ कहीं नहीं है,मरने से पहले जीने की कला का नाम संथारा है। सल्लेखना मृत्यु के लिए बिलकुल नहीं है ,वह जब तक जियें तब तक संयम पूर्वक जियें- इसलिए है |जैन धर्म दर्शन के अनुसार आत्महत्या जघन्य अपराध है | उसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता | *सह-आचार्य -जैनदर्शन विभाग ,श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ ,(मानित विश्वविद्यालय ,मानव संसाधन विकास मंत्रालय,भारत सरकार),क़ुतुब संस्थानिक क्षेत्र ,नई दिल्ली