सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आचार्य कुन्दकुन्द : एक झलक -डॉ अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली

आचार्य कुन्दकुन्द : एक झलक
      -डॉ अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली

श्रीमतो वर्धमानस्य वर्द्धमानस्य शासने |
   श्री कोण्डकुन्द नामाभून्मूलसंघाग्रणीर्ग्रणी ।।
                                                                                        -(श्रवणबेलगोला शिलालेख ५५/६९/४९२ )
आचार्य कुन्दकुन्द जैन परंपरा के एक ऐसे सर्व मान्य आचार्य हैं जिनके ग्रंथों का स्वाध्याय सभी सम्प्रदायों के स्वाध्यायी करते हैं | भगवान् महावीर की वाणी का सार और उनके आंतरिक आध्यात्म का रहस्य आपने अपनी कृतियों में उद्घाटित किया है | आचार्य कुन्दकुन्द को पढ़े बिना जैनदर्शन का हार्द समझ पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है | प्राप्त सूचनाओं के आधार पर उनका संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत है -
१.मूलनाम – पद्मनन्दी, प्रसिद्ध नाम –आचार्य कुन्दकुन्द , अपर नाम - वक्रग्रीवाचार्य, एलाचार्य, गृद्धपिच्छाचार्य
२.विभिन्न नामकरण का कारण- जन्मस्थान के नाम से इन्हें कुन्दकुन्द संज्ञा प्राप्त हुई । किंवदन्ति के अनुसार अधिक स्वाध्याय के फलस्वरूप ग्रीवा टेढ़ी हो जाने के कारण इन्हें वक्रग्रीव कहा गया। विदेह गमन में वहाँ की अपेक्षा अतिलघुकाय होने के कारण एलाचार्य प्रसिद्धि मिली | पिच्छिका गिरने पर विवशता में अपवाद स्वरूप गृद्धपिच्छ धारण के कारण गृद्धपिच्छ नाम पड़ा। मान्यता है कि आपने विदेह क्षेत्र जाकर सीमंधर भगवान् की साक्षात दिव्य ध्वनि सुनी थी |  
३.समय –  पहली शताब्दी
४.जन्म स्थान  - दक्षिण भारत में  तमिलनाडु में पोन्नूरमलै के लिए निकट कोण्डकुन्दपुर  
५.गुरु –  श्रुतकेवली भद्रबाहु (गमक गुरु )                         ६. आचार्य पद    -   वि० सं० 49
७.पिता का नाम  – करमण्डु                                           ८. माता का नाम  –     श्रीमती
९.दीक्षा – ८ वर्ष की उम्र में                                          १०.  उम्र   -  96 वर्ष
११.योगदान – आचार्य कुन्दकुन्द ने तत्कालीन परिस्थिति का सम्यक् अवलोकन कर दिगंबर मूलसंघ को यथावस्थित रखने के लिए प्रथमतः भगवान् महावीर के मूल आगम पर आधारित समीचीन साहित्य की रचना की |इनकी रचनाओं को परमागम कहा जाता है | मूल अध्यात्म का प्रतिपादन इनका सबसे बड़ा योगदान है |
१२.उपलब्ध प्रमुख ग्रन्थ – प्रवचनसार, समयसार, पंचास्तिकाय, नियमसार, अष्टपाहुड - ,(दर्शनपाहुड,चारित्रपाहुड,सूत्रपाहुड,बोधपाहुड,भावपाहुड,मोक्षपाहुड,लिंगपाहुड़,शीलपाहुड,)वारसाणुवेक्खा, दशभक्ति एवं रयणसार |
१३.संस्कृत टीकाकार आचार्य – आचार्य अमृतचन्द्र,आचार्य जयसेन,आचार्य पद्ममल्लधारिदेव,श्रुतसागरसूरी |
१४.माहात्म्य – जैन मूल संघ के आर्ष स्वरूप के दृढ़ स्थितिकरण के महनीय कार्य के सम्पादन हेतु आचार्य कुन्दकुन्द का नाम सर्वोपरि रूप में अत्यन्त विनय के साथ लिया जाता है-
वन्द्यो विर्भुवि न कैरिह कौण्डकुन्दः।
कुन्दप्रभाप्रणयिकीतिविभूषिताशः।।
यश्चारुचारणकराम्बुजचत्र्चरी
श्चक्रे श्रुतस्य भरते प्रयतः प्रतिष्ठाम् ।।(श्रवणबेलगोला शिलालेख ४०/६० )
दिगंबर जैन परंपरा में तो प्रत्येक कार्य में भगवान् महावीर और गणधर गौतम के बाद आचार्य कुन्दकुन्द को  मंगल रूप में आद्य गुरु मानकर आज तक स्मरण किया जाता है-
मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी।
मंगलं कुन्दकुन्दाद्यो जैनधर्मोऽस्तुमगलं ।।
कविवर वृंदावन जी ने सवैय्या छंद में अत्यन्त भाव पूर्ण स्तुति की है
जास के मुखारविन्दतै प्रकाश भासवृन्द
               स्याद्वाद जैन वैन इंद कुन्दकुन्द से
तास के अभ्यासतैं विकास भेद ज्ञात होत
                मूढ़ सो लखे नहीं कुबुद्धि कुन्दकुन्द से ।
देत हैं असीस शीस नाय इन्द चन्द जाहि
                   मोह मार खंड मारतंड कुन्दकुन्द से
विशुद्धि बुद्धि वृद्धिदा प्रसिद्ध ऋद्धि सिद्धिदा
                    हुए न है, न होंहिगे मुनीन्द्र कुन्दकुन्द से ।।

Note- If you want to publish this article in your magazine or news paper please send a request mail to -  anekant76@gmail.com -  for author permission.

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास

ये सोने की लंका नहीं सोने की अयोध्या है  प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास  (This article is for public domain. Any news paper ,Magazine, journal website can publish this article as it is means without any change. pls mention the correct name of the author - Prof Anekant Kumar Jain,New Delhi ) प्राचीन जैन साहित्य में धर्म नगरी अयोध्या का उल्लेख कई बार हुआ है ।जैन महाकवि विमलसूरी(दूसरी शती )प्राकृत भाषा में पउमचरियं लिखकर रामायण के अनसुलझे रहस्य का उद्घाटन करके भगवान् राम के वीतरागी उदात्त और आदर्श चरित का और अयोध्या का वर्णन करते हैं तो   प्रथम शती के आचार्य यतिवृषभ अपने तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में अयोध्या को कई नामों से संबोधित करते हैं ।   जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई अन्य ग्रंथ लिखे गये , जैसे   रविषेण कृत ' पद्मपुराण ' ( संस्कृत) , महाकवि स्वयंभू कृत ' पउमचरिउ ' ( अपभ्रंश) तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् राम का मूल नाम ' पद्म ' भी था। हम सभी को प्राकृत में रचित पउमचरिय...

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...