बना रहे बनारस
डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली
होली का तीन दिन का अवकाश ,अचानक काशी यात्रा का कार्यक्रम और बनारस के रस की तड़फ
...सब कुछ ऐसा संयोग बना कि पहुँच ही गए काशी |इस बार बहुत समय बाद
जाना हुआ |लगभग डेढ़ वर्ष बाद
...डर रहा था कि अपने बनारस को पहचान पाउँगा कि नहीं ? कहीं क्योटा न हो गयी हो काशी |भला करे भगवान् ....वही जगह ,वैसे ही लोग वही संबोधन ...का बे ....का गुरु .....???वाले और वे सारे स्वतः सिद्ध ह्रदय की निर्मलता से
स्फुटित शब्द ..जिन्हें अन्यत्र अपशब्द कहा जाता है और कुटिलता में प्रयुक्त होता
है |
दिल्ली की सपाट ,साफ़ सुथरी किन्तु भयावह
सड़कों को भुगतने के बाद ...काशी की उबड़ खाबड़ सड़कें और शिवाला के सड़क किनारे बने
कूड़ा घर के बाहर लगभग आधे से अधिक सड़क भाग पर पसडा काशी का कूड़ा और आती दुर्गध भी
मुझे उसी मूल काशी का लगातार अहसास करवा रहे थे और मैं खुश था कि चाहे खोजवां हो ,या कश्मीरीगंज,अस्सी हो या भदैनी या
फिर लंका से लेकर नरिया होते हुए सुन्दरपुर सट्टी इनका सारा कूड़ा बाहर रहता है
...दिल के अन्दर नहीं |
भारत के स्व.... अभियान की सारी शक्ति भी इस शहर में लगा
दें तो किसी को कोई फिकर नहीं है |बाबा भोले के भक्त अपना
स्वभाव नहीं छोड़ेंगे |मेरी तो कामना है कि
मेरी ५००० साल पुराणी काशी को किसी की बुरी नज़र न लग जाये |
अस्सी घाट पर 'सुबह ए बनारस'का जो आंनंद लिया वह किसी क्लब या पार्टी में लाख रूपए
ख़त्म कर दो तो भी न मिले |सूर्योदय की अरुणिम
छटा...गंगा का शांत निर्मल प्रवाह ....शंख ध्वनि,कन्यायों
के वैदिक मंत्रोच्चार के साथ सुन्दर आरती,फिर पंडित जी के
शाश्त्रीय संगीत का रसास्वादन | पंडित जी ने जब राग
मल्हार की तान छेडी तो उसकी टीप रामनगर के किले से कब टकराने लगी पता ही नहीं चला
और फिर योग ध्यान व्यायाम ....ये सब किसी अमृत पान से कम नहीं था |कुल्हड़ में चाय की चुस्कियां और मगही पान ....और चाहिए
भी क्या मस्त होने के लिए ?मैंने अपने पिताजी(प्रो.फूलचंद्र जैन प्रेमी )को ह्रदय से धन्यवाद
दिया कि वो मुझे सुबह जगा कर अस्सी घाट ले आये और ‘सुबह ए बनारस‘ के अलौकिक दर्शन
करवा दिए |वहीँ पर उनके पुराने मित्र श्री रत्नेश वर्मा जी भी मिल गए |मेरे लिए यह
क्षण अविस्मरणीय तब बन गया जब यह पता लगा कि इस आयोजन के पार्श्व में डॉ वर्मा जी
का ही विशिष्ट अवदान है |वे रोज सुबह आकर पूरा कार्यक्रम करवाते हैं |उसी समय जब
मुझे पता चला कि डॉ वर्मा का जैन कलाओं पर ही शोध कार्य रहा है तो मेरी उत्सुकता
और अधिक बढ़ गयी | उन्होंने मुझे इस कार्यक्रम की कई जानकारियां भी दी |घाट पर
चारों तरफ चित्रों के माध्यम से काशी एवं
भारतीय संस्कृति के वैभव का दर्शन भी कम रमणीय नहीं था |सब कुछ ऐसा ही था जैसा
काशी में है ......यही विकास है |अपने सांस्कृतिक वैभव का संरक्षण ही सच्चा विकास
है न व्यापारिक मालों की चकाचौंध |
खैर छद्म विकास और बनारस ये दो विपरीत ध्रुव हैं जो कभी
न ही मिलें तो ही भलाई है |होली की शाम को अस्सी
पर आयोजित होने वाले ऐतिहासिक कवि सम्मेलन की कमी खली तो किसी ने बताया वो अब टाउन
हाल में शिफ्ट हो गया |यही एक कसक रह गयी कि
वहां न जा सका |
खैर मेरा डर दूर हो गया ........वो बना हुआ है ..स्वतः
...उसे कोई बना नहीं सकता ....वो शाश्वत है
कामना भी यही है-बना रहे बनारस |
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