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आध्यात्मिक शिक्षा

आध्यात्मिक शिक्षा  1. क्रोध मान माया  लोभ जैसे आत्म विकारों का प्रबंधन । 2.अनुकूल और प्रतिकूल स्थिति आने पर साम्य भाव का प्रशिक्षण । 3. आत्मा में अहिंसा भाव का उद्घाटन ।आत्म विशुद्धि के लिए सत्य , अचौर्य ,ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह भाव का विकास । 4. आत्म ध्यान का अभ्यास और उसकी प्रक्रिया  5.करुणा भाव का विकास  6.भेद विज्ञान की अनुभूति । शरीर और आत्मा की पृथकता का अभ्यास । स्व - पर की अनुभूति ।  7. अनासक्त चेतना का विकास । 8. अन्य सभी मनुष्यों और जीवों के साथ समानुभूति का प्रशिक्षण । 9. व्यसन मुक्त जीवन शैली का अभ्यास ।  10.कर्म और उसके फल के शुभ अशुभ अनुभव का परिज्ञान ।

शिक्षण शिविरों से जीवन में आती क्रांति

*शिक्षण शिविरों से जीवन में आती क्रांति* वर्तमान में  यह एक सुखद संयोग है कि विभिन्न संस्थाओं द्वारा हज़ारों की संख्या में जैनधर्म दर्शन तत्त्वज्ञान नैतिक शिक्षा आदि के हज़ारों शिविर ग्रीष्मकाल में लगाये जा रहे हैं । इन शिविरों की उपयोगिता से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है ।  ये शिविर आदि क्या क्या कार्य करते हैं आप सोच भी नहीं सकते ।  वर्तमान में मंदिरों में नियमित शास्त्र स्वाध्याय की परंपरा कुछ मंदी पड़ी है ,जहाँ कहीं चल भी रहे हैं वहाँ श्रोताओं की संख्या कम होती जा रही है ।  इसके विपरीत अन्य क्रिया कांड और इनके प्रति आकर्षण बढ़ता जा रहा है । लोग धार्मिक मनोरंजन को धर्म समझने की भूल कर रहे हैं और इसका सबसे बड़ा कारण है अज्ञानता ।  आचार्य समन्तभद्र स्वामी ने श्रावकाचार में सम्यक्त्व के आठ अंगों में प्रभावना नामक अंग की परिभाषा करते हुए लिखा है कि *अज्ञानतिमिरव्याप्तिमपाकृत्य यथायथम् ।* *जिनशासनमाहात्म्यप्रकाशः स्यात्प्रभावना ।।*                  श्लोक18 अज्ञानरूपी अंधकार के विनाश को जिस प्रकार बने उस प्रकार दूर करके जिनमार्ग का समस्त मतावलंबियों में प्रभाव प्रकट करना वह प्

हमारा साधर्मी वात्सल्य

*हमारा साधर्मी वात्सल्य* 80 वर्षीय कैंसर पीड़ित एक जैन वृद्धा ने बताया कि मैंने जीवन भर मंदिर जाकर सभी के साथ पूजा,विधान,स्वाध्याय किया । अब तक उदारता पूर्वक समाज मंदिर के विभिन्न कार्यों में लाखों का दान भी किया ।  बीमार होने से पिछले 3 महीनों से मंदिर जा नहीं पा रही हूँ ,पर मुझे आश्चर्य और दुख इस बात का है कि न तो मुझसे कोई मिलने आया,न ही किसी ने मुझे फ़ोन किया कि इतने महीने से दिख क्यों नहीं रहीं ? आ क्यों नहीं रहीं ? आपको कोई समस्या तो नहीं है ?  *आज जो स्वस्थ्य दिखता है बस उससे हाल पूछते हैं ।* *कोई साथी पीछे छूट जाय तो उसे कहाँ ढूढ़ते हैं ?* प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य

अस्त हो गया जैन संस्कृति का एक जगमगाता सूर्य प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली कर्मयोगी स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी की समाधि उनके लोकोत्तर जीवन के लिए तो कल्याणकारी है किंतु हम सभी के लिए जैन संस्कृति का एक महान सूर्य अस्त हो गया है ।  स्वामी जी  के जीवन और कार्यों को देखकर लगता है कि वो सिर्फ जैन संस्कृति के लिए ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति और समाज का सर्व विध कल्याण कर रहे थे ।  वे सिर्फ जैनों के नहीं थे वे सभी धर्म ,जाति और प्राणी मात्र के प्रति करुणा रखते थे और विशाल हृदय से सभी का कल्याण करने का पूरा प्रयास करते थे ।  उनके साथ रहने और कार्य करने का मुझे बहुत करीब से अनुभव है । मेरा उनसे अधिक संपर्क तब हुआ जब 2006 में महामस्तकाभिषेक के अवसर पर पहली बार श्रवणबेलगोला में विशाल जैन विद्वत सम्मेलन का आयोजन उन्होंने करवाया था । उसका दायित्व उन्होंने मेरे पिताजी प्रो फूलचंद जैन प्रेमी ,वाराणसी को  सौंपा।उस समय पिताजी अखिल भारतीय दिगंबर जैन विद्वत परिषद के अध्यक्ष थे ।  मेरे लिए यह अविश्वसनीय था कि उन्होंने मुझे इस सम्मेलन का सह संयोजक बनाय

भारतीय भाषाओं की जड़ों को बचाने का प्रयास होना चाहिए

भारतीय भाषाओं की जड़ों को बचाने का प्रयास होना चाहिए प्रो अनेकान्त कुमार जैन  आचार्य - जैनदर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली  दिनाँक 21-23 मार्च 2023 तक भारतीय भाषा समिति (शिक्षा मंत्रालय) एवं श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में प्राकृत भाषा विभाग द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय प्राकृत कार्यशाला में परिचर्चा में भाग लेने के अनंतर कुछ चिंतन स्वरूप निष्कर्ष बिंदु निम्नलिखित प्रकार से समझ में आये हैं - 1. भारतीय भाषाओं को सुरक्षित रखने का एक कारगर तरीका है उसकी जड़ों को सुरक्षित करना ।  2. निश्चित रूप से भारत की लगभग सभी भाषाओं की जड़ सर्वप्राचीन प्राकृत और संस्कृत भाषा में सन्निहित हैं । 3.संस्कृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन में जैनाचार्यों का महनीय योगदान रहा है और वर्तमान में लगभग सभी परंपराएं संस्कृत भाषा का यत्किचित संरक्षण और संवर्धन कर भी रहीं हैं किंतु प्राकृत भाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए वो प्रयास अभी तक नहीं हो सके जो होने चाहिए थे । 4. भारत सरकार की नई राष्ट

तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश

 तीर्थंकर भगवान् महावीर का जीवन और सन्देश  (This article is for public domain and any news paper and magazine can publish this article with the name of the author and without any change, mixing ,cut past in the original matter÷ जैनधर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर महावीर तक तीर्थंकरों की एक सुदीर्घ परंपरा विद्यमान है । भागवत् पुराण आदि ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख है कि इन्हीं ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश को ' भारत '   नाम प्राप्त हुआ । सृष्टि के आदि में कर्म भूमि प्रारम्भ होने के बाद यही ऋषभदेव जैनधर्म के प्रथम प्रवर्त्तक माने जाते हैं जिन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि विद्या और सुंदरी को गणित विद्या सिखाकर स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व क्रांति की थी । इसी परंपरा के अंतिम प्रवर्त्तक तीर्थंकर भगवान् महावीर का जन्म चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन विश्व के प्रथम गणतंत्र वैशाली गणराज्य के कुंडग्राम में ईसा की छठी शताब्दी पूर्व हुआ था ।युवा अवस्था में ही संयम पूर्वक मुनि दीक्षा धारण कर कठोर तपस्या के बाद उन्होंने केवलज्ञान( सर्वज

क्या मन्त्र साधना आगम सम्मत है ?

  क्या मन्त्र साधना आगम सम्मत है ? ✍️ प्रो . डॉ अनेकान्त कुमार जैन , नई दिल्ली # drakjain2016@gmail.com बहुत धैर्य पूर्वक भी पढ़ा जाय तो कुल 15 मिनट लगते हैं 108 बार भावपूर्वक णमोकार मंत्र का जाप करने में , किन्तु हम वो हैं जो घंटों न्यूज चैनल देखते रहेंगें , वीडियो गेम खेलते रहेंगे , सोशल मीडिया पर बसे रहेंगे , व्यर्थ की गप्प शप करते रहेंगे लेकिन प्रेरणा देने पर भी यह अवश्य कहेंगे कि 108 बार हमसे नहीं होता , आप कहते हैं तो 9 बार पढ़े लेते हैं बस और वह 9 बार भी मंदिर बन्द होने से घर पर कितनी ही बार जागते सोते भी नहीं पढ़ते हैं , जब कि आचार्य शुभचंद्र तो यहाँ तक कहते हैं कि इसका पाठ बिना गिने अनगिनत बार करना चाहिए | हमारे पास सामायिक का समय नहीं है । लॉक डाउन में दिन रात घर पर ही रहे   फिर भी समय नहीं है ।   हम वो हैं जिनके पास पाप बांधने के लिए 24 घंटे समय है किंतु पाप धोने और शुभकार्य   के लिए 15 मिनट भी नहीं हैं और हम कामना करते हैं कि सब दुख संकट सरकार दूर करे - ये उसकी जिम्मेदारी है । कितने ही स्थानों पर णमोकार का 108 बार जाप के साथ सा मा यिक का समय उनके पास भी नहीं है जो सु