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पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान प्रो अनेकान्त कुमार जैन  हम सभी इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि वे तीर्थ क्षेत्र जहाँ जहाँ पर्यटन विकसित होता है वहाँ आमदनी में भले ही कुछ इज़ाफ़ा होता हो पर पर्यावरण का काफी नुकसान होता है ।  उत्तराखंड के जोशी मठ की समस्या हमारे सामने दिख ही रही है । वहाँ के शंकराचार्य ये कह रहे हैं कि तीर्थ क्षेत्र को भोग क्षेत्र न बनाएं । तीर्थ क्षेत्रों को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने का दुष्परिणाम जोशी मठ की वर्तमान दशा के रूप में हमारे सामने दिख रहा है ।  वहाँ का विकास आज विनाश का रूप ले रहा है ।  लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर चिप्स कुरकरे के पैकेट,गुटखे तम्बाकू सिगरेट के पैकेट आदि तथा शराब की बोतलें ,पानी की प्लाटिक बोतलें आदि अत्यधिक मात्रा में फैली दिखती हैं ।  नदी नाले पहाड़ आदि में इनका कचड़ा दिखाई देता है ।  होटलों रेस्टोरेंटों में शराब और मांसाहार मुख्य रूप से होता ।  जीव जंतु जो इको सिस्टम को संतुलित रखते हैं उन्हें मारा जाता है और भोजन बनाया जाता है ।  जैसे ड्रग्स का व्यापार समाज और मनुष्य के लिए हानिकारक है इसलिए प्

सिद्धभूमि सम्मेद शिखर के आगम प्रमाण

               सिद्धभूमि श्री सम्मेद शिखर के आगम प्रमाण                           प्रो अनेकान्त कुमार जैन ,आचार्य - जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली  णमो सम्मेयसिहरस्स तीर्थराज सम्मेद शिखर शाश्वत तीर्थ है । यह जैन परंपरा के 20 तीर्थंकरों की निर्वाण स्थली है । जैन प्राकृत आगम साहित्य में इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं ।  प्रथम शती में आचार्य कुन्दकुन्द लिखते हैं -   वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्वकिलेसा। संमेदे गिरिसिहरे, णिव्‍वाणगया णमो तेसिं।।२।। अर्थात् जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्‍होंने समस्‍त क्‍लेशों को नष्‍ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्‍मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्‍त हुए हैं, उन सबको नमस्‍कार हो।(आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,1st A.D ) दूसरी - तीसरी शताब्दी में आचार्य यतिवृषभ लिखते हैं -        चेत्तस्स सुद्ध-पंचमि-पुव्वण्हे भरणि-णाम-णक्खत्ते । सम्मेदे अजियजिणो,मुत्तिं पत्तो सहस्स-समं ।। अर्थात् द्वितीय तीर्थंकर अजित जिनेन्द्र चैत्र शुक्ला पंचमी के दिन पूर

सम्मेद शिखर में ‘सम्मेद’ शब्द का अर्थ विमर्श

           सम्मेद शिखर में ‘सम्मेद’शब्द का अर्थ विमर्श       प्रो अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली©   सम्मेद शिखर की चर्चा आज अपने चरम पर है | कई स्थलों पर यह भी पूछा जा रहा कि इस शब्द का अर्थ क्या है ? अतः मैं कुछ रिसर्च के माध्यम से इस शब्द का अर्थ खोजने और बताने का एक विनम्र प्रयास कर रहा हूँ | सम्मेद शिखर में शिखर शब्द स्पष्ट है गिरी या पर्वत ,इसके लिए जैन साहित्य में सम्मेद शैल शब्द भी आया है और उसके बाद शिखर शब्द का प्रयोग है ,ऐसा लगता है अंग्रेजों के बाद से ही इसे पार्श्वनाथ हिल भी कहा जाने लगा है | इसका जो पूर्ववर्ती पद है - सम्मेद ,इस पर विमर्श करना आवश्यक है |काफी विमर्श के बाद हम निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुंचे हैं – 1.सम्मेद शब्द भी इस पर्वत की भांति अनादि से है और जो इसकी संज्ञा के रूप में जुड़ा हुआ है,अतः यह संज्ञा भी शाश्वत है |मूलतः यह नाम निक्षेप ही प्रतीत होता है ,इसके शाब्दिक अर्थ की मीमांसा मुझे अभी तक कहीं देखने में नहीं आई है,लगता है अनादि नाम निक्षेप होने से और आर्ष प्रयोग होने से इसकी शब्द मीमांसा को आवश्यक नहीं समझा गया  | 2.सम्मेद शब्द का एक लोक प्रचलित रूढ़ अर्थ

सम्मेद शिखर हमारी आत्मा है ,उसे नष्ट न करें

णमो सम्मेयसिहरस्स सम्मेद शिखर हमारी आत्मा है ,उसे नष्ट न करें *वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्‍वकिलेसा।* *संमेदे गिरिसिहरे, णिव्‍वाणगया णमो तेसिं।।२।।* जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्‍होंने समस्‍त क्‍लेशों को नष्‍ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्‍मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्‍त हुए हैं, उन सबको नमस्‍कार हो।। (आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,प्रथम शताब्दी ) जिस प्रकार हिन्दू धर्म के लिए सबसे पवित्र चार धाम हैं , मुस्लिमों के लिए हज है ,सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा है  इसी प्रकार वर्तमान में झारखंड राज्य में स्थित सम्मेद शिखर जैन धर्म के लिए सबसे अधिक पवित्र पर्वत है जहाँ से जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त हुए थे ।  जैन आगमों के अनुसार यह शाश्वत पवित्र तीर्थ क्षेत्र है और अनादि से है । प्रत्येक जैन के लिए यहाँ की पवित्र यात्रा जीवन में अनिवार्य बनाई गई है । शास्त्रों में यहाँ की यात्रा के लिए कहा है -  *एक बार बंदे जो कोई ,ताहि नरक पशु गति नहीं होई*  अर्थात् जीवन में यदि किसी ने भाव पूर्वक एक बार भी इस पवित्र तीर्

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान होता है

पर्यटन से पर्यावरण और पवित्रता दोनों का नुकसान होता है प्रो अनेकान्त कुमार जैन  हम सभी इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं कि जहाँ जहाँ पर्यटन विकसित होता है वहाँ  आमदनी में भले ही कुछ इज़ाफ़ा होता हो पर पर्यावरण का काफी नुकसान होता है ।  लगभग सभी पर्यटन स्थलों पर चिप्स कुरकरे के पैकेट,गुटखे तम्बाकू सिगरेट के पैकेटआदि तथा शराब की बोतलें पानी की प्लाटिक बोतलें आदि अत्यधिक मात्रा में फैली दिखती हैं ।  नदी नाले पहाड़ आदि में इनका कचड़ा दिखाई देता है ।  होटलों रेस्टोरेंटों में शराब और मांसाहार मुख्य रूप से होता ।  जीव जंतु जो इको सिस्टम को संतुलित रखते हैं उन्हें मारा जाता है और भोजन बनाया जाता है ।  आय, व्यापार और रोज़गार का तर्क यदि इतना ही महत्त्वपूर्ण है तो ड्रग्स के व्यापार की छूट भी होनी चाहिए क्यों कि वह आय और रोज़गार का बहुत बड़ा साधन है । किंतु वह समाज और मनुष्य के लिए हानिकारक है इसलिए प्रतिबंधित है और अपराध की श्रेणी में आता है ।  इसी तरह जैन धर्म स्थलों को पर्यटन स्थल बनाना भी धर्म संस्कृति मूल्य और त्याग तपस्या की सनातन परंपरा को अपवित्र करना है । जिस धर्म के साधु और भक्त अपने त

अतिवादी होने से भी बचें जैन(प्रकरण : श्री सम्मेद शिखर जी)

अतिवादी होने से भी बचें जैन एक बात है जो किस तरह कही जाय समझ नहीं आ रहा । क्यों कि हम लोग उभय अतिवाद के शिकार हैं ।  वर्तमान में  श्री सम्मेद शिखर जी प्रकरण में आधे से अधिक जैन वहाँ की इस स्थिति का जिम्मेदार स्वयं जैनों को ठहराने में पूरी  ताकत लगा कर महौल को हल्का करने की भी कोशिश कर रहे हैं ।  इसमें भी अधिकांश वे लोग भी हैं जिन्हें स्वयं सारी सुविधाएं चाहिए और दूसरों को त्याग तपस्या के उपदेश दे रहे हैं ।  ये वैसे समाधान बतला कर स्वयं को धन्य समझ रहे हैं जो अशक्य अनुष्ठान होता है ।  जैसे -  1.यदि देश के सभी नागरिक अपराध छोड़ दें तो पुलिस की आवश्यकता ही न पड़े । 2. यदि सभी लोग बहुत साफ सफाई से रहें तो मच्छर पैदा ही न हों । 3.यदि सभी लोग ब्रह्मचर्य का पालन करें तो जनसंख्या बढ़े ही नहीं । यदि ऐसा हो तो वैसा हो .... आदि आदि काल्पनिक ख्याली पुलाव पका कर आप अपना पेट भर लेते हैं और निश्चिंत हो जाते हैं । इस तरह के आलसी लोग जिन्हें सिर्फ बातें बनाना और अति आदर्श की वे बातें करना आता है जो वास्तव में यथार्थ में संभव ही नहीं है । वे ऐसी बातें करके मधुर भी बन जाते हैं और असली समाधान करने के पुरुषार

बेटी के विवाह की चिंता का ऐतिहासिक अध्ययन

अपनी बेटी के लिए वर तलाश करते एक जैन पिता की चिंता का ऐतिहासिक अध्ययन :  1980 - मेरी बेटी का विवाह खंडेलवाल बघेरवाल,ओसवाल,लमेचु ,परवार ,पंचम आदि अपनी जाति में ही होगा । 1990 - लड़का अपनी दिगम्बर / श्वेताम्बर समाज का होना चाहिए बस  । 2000 -  दिगंबर हो या श्वेताम्बर बस लड़का जैन होना चाहिए । 2010 - लड़का कम से कम सवर्ण तो हो ,भले ही किसी धर्म का हो ।  2020 -  कुछ भी हो, लड़का कम से कम हिन्दू तो हो ,भले ही सवर्ण न हो । भविष्य  2030 - कुछ भी हो कम से कम वो लड़का तो हो ! प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली  ( एक व्यंग्य रचना )

छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका

छल दूसरों से या खुद से ? निर्णय आपका ! प्रो अनेकान्त जैन,नई दिल्ली धोखा या छल करना एक बहुत ही कमजोर व्यक्तित्त्व की निशानी है ,आध्यात्मिक दृष्टि से यह बहुत बड़ा पाप है ही ,साथ ही कानून की दृष्टि में यह एक दंडनीय अपराध है |प्रत्येक दृष्टि से यह अनुचित होते हुए भी आज का इन्सान बिना किसी भय के  दुनियादारी में सफल होने के लिए इसे आवश्यक मानने लगा है और दूसरों से धोखा या छल करता है अतः मैं इसे एक मनोरोग भी कहना चाहता हूँ | सरल व्यक्ति अवसाद में नहीं जा सकता ,अवसाद में कठिन व्यक्ति ही जाता है ,छल कपट कठिन व्यक्तित्त्व की निशानी है । सामान्यतः उदासीनता ,निराशा और अंतरोन्मुखता को अवसाद समझा जाता है किंतु वह ज्यादा गहरा नहीं होता थोड़ी सी प्रेरणा से उससे बाहर आया जा सकता है । अत्यधिक उत्साह ,अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा और अत्यधिक बहिर्मुखता और आत्ममुग्धता बहुत गहरा अवसाद है जिससे बाहर आना बहुत कठिन होता है ।क्यों कि इस तरह के अवसाद की स्वीकृति बहुत कठिन होती है । छलिया और कपटिया व्यक्तित्त्व में ये लक्षण बहुतायत देखे जाते हैं । इस तरह के अवसाद का पता लगाना भी बहुत कठिन होता है और उस रोग का इलाज़ ल

जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक

जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन संगोष्ठी : एक झलक  ●पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी मुनिराज के ससंघ सान्निध्य में अभिनंदनोदय तीर्थ ,क्षेत्रपाल जी ,ललितपुर (उ.प्र.) में श्री अखिल भारत वर्षीय दिगंबर जैन विद्वतपरिषद के तत्त्वावधान में दिनांक 11 से 13 नवंबर 2022 तक जैन स्तोत्र साहित्य अनुशीलन विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ ।  ● संगोष्ठी में तीनों दिन विद्वानों ने प्रातः 6 बजे से रात्रि 10 बजे तक जिनेन्द्र पूजन अभिषेक , प्रातःकालीन तकनीकी सत्र, दोपहर तकनीकी सत्र,शंका समाधान कार्यक्रम ,रात्रि तकनीकी सत्र में लगातार भाग लिया ।  सुबह से रात तक जैन स्तोत्र साहित्य ही चर्चा का विषय बना रहा ।  ● पूज्य मुनि श्री ने सभी सत्रों में अपना सान्निध्य प्रदान किया तथा आवश्यकतानुसार  मध्य में एवं अंत में अपने अनुसन्धानयुक्त समीक्षात्मक उद्बोधनों से सभी विद्वानों का मार्ग प्रशस्त किया ।  ● विशेषता यह रही कि शोध पत्रों की संख्या अधिक थी फिर भी लगभग 10 मिनट सभी को प्रस्तुति हेतु दिए गए और उसके बाद उस शोध लेख पर चर्चा का पूरा अवसर दिया गया ।  ● स्तोत्र साहित्य में वर

प्राकृत पत्रकारिता

प्राकृत पत्रकारिता : एक अनुभव जिस प्रकार *उदंत मार्तण्ड* हिंदी का प्रथम समाचार पत्र माना जाता है जो कि जुगलकिशोर सुकुल ने 30 मई 1826 को कलकत्ता से पहली बार प्रकाशित किया था । संस्कृत भाषा का प्रथम अखबार *सुधर्मा* श्री के.वी.संपत कुमार ने 14 जुलाई 1970 को मैसूर से प्रारम्भ किया था ।  उसी प्रकार प्राकृत भाषा में प्रकाशित होने वाला  *पागद भासा* नामक अखबार अब तक का प्रथम प्रयास है । यह भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय में प्राकृत भाषा के प्रथम समाचार पत्र के रूप में पंजीकृत हुआ है । आरम्भ में भारत सरकार के समाचारपत्र पंजीयन कार्यालय ने इसे DELPRA00001जैसा Title code जारी किया ,क्यों कि उनके रिकॉर्ड के अनुसार इस भाषा में आज तक कोई भी समाचार पत्र प्रकाशित नहीं हुआ था । मीडिया के क्षेत्र में भारत की प्राचीन भाषा प्राकृत का प्रयोग ,उसमें समाचार लेखन अब तक की सबसे पहली घटना है । यही कारण है कि विद्वानों के बीच प्राकृत के विभिन्न भेदों के क्रम में अब मीडिया प्राकृत की भी चर्चा होने लगी है । इस पत्रिका का पहला प्रवेश अंक 13 अप्रैल 2014 में महावीर जयंती के दिन कुन्दकुन्द भारती

दीपावली पर्व वीतराग का या वित्तराग का ?

*दीपावली पर्व वीतराग का या वित्तराग का ?* प्रो.अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com पर्वों के देश भारत में दीपावली ऐसा पवित्र पर्व है जिसका सम्बन्ध भारतीय संस्कृति की लगभग सभी परम्पराओं से है | भारतीय संस्कृति के प्राचीन जैन धर्म में इस पर्व को मनाने के अपने मौलिक कारण हैं | ईसा से लगभग ५२७  वर्ष पूर्व कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के समापन के समय प्रत्यूष बेला में स्वाति नक्षत्र के रहते जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का वर्तमान में बिहार प्रान्त में स्थित पावापुरी से निर्वाण हुआ था।  तिलोयपण्णत्ति में आचार्य यतिवृषभ(प्रथम शती)लिखते हैं – कत्तिय-किण्हे चोद्दसि,पज्जूसे सादि-णाम-णक्खत्ते । पावाए णयरीए,एक्को वीरेसरो सिद्धो ।।  ( गाथा १/१२१९ ) अर्थात्  वीर जिनेश्वर कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के प्रत्यूषकाल में स्वाति नामक नक्षत्र के रहते पावानगरी से अकेले ही सिद्ध हुए।  पूज्यपाद स्वामी (छठी शती )निर्वाण भक्ति की आंचलिका में लिखते हैं- अवसप्पिणीए चउत्थ समयस्स पच्छिमे भाए,अट्ठमासहीणे वासचउक्कमि सेसकालम्मि  पावाए