*तत्वज्ञानी को शोक नहीं होता* *डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली* drakjain2016@gmail.com वर्तमान का समय ऐसा समय है जब ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा जब अपने परिजन,मित्र,साधर्मी के वियोग की सूचना न मिल रही हो । उन सूचनाओं से वे लोग तो अत्यधिक शोक को प्राप्त हो ही रहे हैं जो दिवंगत से साक्षात् जुड़े रहे,किन्तु वे लोग भी शोकाकुल हो रहे हैं जो उनसे मात्र परिचित थे । सात्विक,ज्ञानी,त्यागी व्रती, धार्मिक, साधु संतों,विद्वानों,श्रावकों के वियोग तो शोक के साथ साथ आश्चर्य में भी डाल रहे हैं । ऐसे विषम क्षण में जिससे जो बन पड़ रहा है उतनी एक दूसरे की सहायता भी कर रहे हैं ,जीवन रक्षा के सारे प्रयास भी कर रहे हैं किंतु इन सबके बाद भी ऐसा लग रहा है कि कितने ही क्षण ऐसे आते हैं जब लगता है अब किसी के हाथ में कुछ भी नहीं सिवाय चिंता ,दुःख और शोक करने के । जैन आगमों में ऐसे शोक के समय में भी शोक करने को उचित नहीं माना गया है । यद्यपि भूमिका अनुसार वह होता है किंतु उचित तो बिल्कुल भी नहीं है । वास्तव में देखा जाय तो ये वैराग्य के प्रसंग हैं । चंद बाह्य क्रियाओं के आधार पर हम स्वयं को बहुत ज्ञानी और धर्मात्मा