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प्राकृत साहित्य में लॉक डाउन

*पागद-साहिच्चम्मि lock down, Quarantine तहा Isolation*      (प्राकृत साहित्य में lockdown, Quarantine तहा Isolation ) वत्तमाणकालम्मि करोणा वायरसेण संपुण्ण विस्सो भयवंतो अत्थि | भारदे लॉक डाउण हवन्ति | पाचीण पागद-साहिच्चम्मि सावयस्स बारसवयणं वण्णणं सन्ति तम्मि गुणव्वयम्मि दिगवयस्स तहा देसवयस्स तुलणा लॉकडाउणेण सह हवदि |  कत्तिकेयाणुपेक्खम्मि (गाहा -३६७-३६८ )उत्तं – *पुव्‍व-पमाण-कदाणं सव्‍वदिसीणं पुणो वि संवरणं।*  *इंदियविसयाण तहा पुणो वि जो कुणदि संवरणं।।*   *वासादिकयपमाणं दिणे दिणे लोह-काम-समणट्ठं।।*  वसुणन्दिसावगायारे(गाहा- २१४-२१५ ) उत्तं – *पुव्‍वुत्तर-दक्खिण-पच्छिमासु काऊण जोयणपमाणं।*  *परदो गमणनियत्तो दिसि विदिसि गुणव्‍वयं पढमं। ।*  *वयभंग-कारणं होइ जम्मि देसम्मि तत्‍थ णियमेण।*  *कीरइ गमणणियत्ती तं जाणा गुणव्वयं विदियं।।* आयरियो वट्टकेरो मूलायारे एगो पण्ह- उत्तरं उत्तं  -  पण्ह - *कहं चरे कहं चिट्ठे कहमासे कहं सए।* *कहं भुंजतो मासंतो पावं कम्मं न बंधई  | |’* (गाहा १०/१२१) केण पकारेण जीवणं जीवेइ जेण पावकम्मं ण बंध ई ? आयरिय बहु समीइणं समाहाणं दत्तं जेण कोरोणा - महामारीए -  Quarantin

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है कुमार अनेकांत पुराने जमाने की एक कहानी सुनी होगी । अमावस्या के दिन डाकू पहाड़ी पर बने देवी के मंदिर में जरूर आता है और देवी को प्रसाद जरूर चढ़ाता है । पुलिस भी जो और दिनों में उसे ढूढने में असफल रहती है वह अमावस्या की रात मंदिर के आसपास डाकू की प्रचंड भक्ति पर विश्वास करके घेरा बंदी कर लेती है कि उसकी और बातें भले ही झूठ हों लेकिन यह बात बिल्कुल सही है कि वह देवी से रक्षा और सफलता का आशीर्वाद लेने जरूर आता है । ऐसी कहानियां सच हैं कि काल्पनिक हैं या फिल्मी हैं यह तो आप जानें लेकिन धर्म क्षेत्र की अधिकांश व्यवस्थाएं इन दिनों किसी न किसी रूप में ऐसे ही डाकुओं से घिरी हुई हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि अब डाकू छुप कर नहीं आते ,  क्यों कि डकैती कर्म होने पर भी वे अब इतने स्वच्छ दिखते हैं कि अब वे डाकू नहीं कहलाते । अब वे सामाजिक हैं । लूटने के ,डकैती के बहुत सुरक्षित उपाय उन्होंने अपना लिए हैं । अब आप लुट जाएंगे और उसे डाकू भी नहीं कह पाएंगे क्यों कि उसने इतने सफेद आवरण ओढ़ रखे हैं कि आप उस पर दाग भी नहीं लगा सकते । डाकुओं ने अपना ड्रेस कोड

भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन

*भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन* *प्रो अनेकांत कुमार जैन*,नई दिल्ली भगवान महावीर की वाणी के रूप में प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में रचित हजारों वर्ष प्राचीन  शास्त्रों में गृहस्थ व्यक्ति को बारह व्रतों की शिक्षा दी गई है जिसमें चार शिक्षा व्रत ग्रहण की बात कही है ,जिसमें एक व्रत है  *देश व्रत* । गृहस्थ के जीवन जीने के नियमों को बताने वाले सबसे बड़े संविधान वाला पहला संस्कृत का  ग्रंथ *रत्नकरंड श्रावकाचार* में इसका प्रमाणिक उल्लेख है जिसकी रचना ईसा की द्वितीय शताब्दी में जैन आचार्य समंतभद्र ने की थी ।अन्य ग्रंथों में भी इसका भरपूर वर्णन प्राप्त है ।  कोरोना वायरस के कारण वर्तमान में जो जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन आवश्यक प्रतीत हो रहा है उसकी तुलना हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृत के शास्त्रों में प्रतिपादित देश व्रत से की जा सकती है । *देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य ।* *प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य* ॥ ९२ ॥ *गृहहारिग्रामाणां क्षेत्रनदीदावयोजनानां च ।* *देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः* ॥ ९३ ॥ *संवत्सरमृमयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।* *देशावकाशिकस्य प्राहुः

भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग

*भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग* *प्रो. अनेकांत कुमार जैन*, अध्यक्ष -  जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली -१६ इतिहास गवाह है कि जैन धर्म तथा समाज राष्ट्र में मुसीबत के समय हमेशा कदम से कदम मिलाकर साथ देता है ।  राष्ट्र व्यापी लॉक डाउन के समर्थन में अपने जैन मंदिरों पर ताले लगा देना ,जैन समाज की समकालीनता और आध्यात्मिकता का सूचक है । जैन परम्परा में प्रतिदिन देव दर्शन तथा जिनालय में जिनबिम्ब का अभिषेक तथा पूजन एक अनिवार्य शर्त है जिसका कड़ाई से पालन होता है किन्तु करोना वायरस के प्रकोप के चलते राष्ट्रीय लॉक डाउन की घोषणा के तहत  ये नियमित अनिवार्य अनुष्ठान भी टाल कर जैन समाज ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ भी नहीं है । जब ऐसे समय में कई संप्रदाय अंध श्रद्धा के वशीभूत होकर अपनी कट्टर सोच और क्रिया में जरा सा भी परिवर्तन नहीं करते हैं वहीं जैन धर्म हमेशा से समकालीन युग चेतना को बहुत ही विवेक से संचालित करता है । यह प्रेरणा उन्हें तीर्थंकरों की अनेकांतवादी शिक्षा से प्राप्त होती है ।  दरअसल जैन दर्शन  में नि

करोना वायरस के भय से मुक्त करता है जैन दर्शन

*करोना वायरस के भय से मुक्त करता है जैन दर्शन* *प्रो. डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली*  हमें करोना वायरस से सतर्क रहना है , सभी नियमों का पालन करना है लेकिन भयभीत नहीं होना है । घबडाना नहीं है ।  करोना के साथ संघर्ष के लिए जो आत्मबल चाहिए,भय - चिंता और अवसाद उसे कमजोर बनाता है ।  भय, चिंता और अवसाद करोना से भी ज्यादा खतरनाक वायरस है ।  जैन दर्शन का शाश्वत सिद्धांत हमें सभी प्रकार के भय और चिंता से दूर करके हर परिस्थिति से विवेक और पुरुषार्थ पूर्वक लड़ना सिखाता है हमारा आत्मबल मजबूत करता है -  *जो जो देखी वीतराग ने सो सो होसी वीरा रे*  *अनहोनी सो कब हूं न होसी*  *काहे होत अधीरा रे* प्राकृत भाषा के प्राचीन आगम में दो गाथाएं ऐसी आती हैं जो हमें भय मुक्त बनाती हैं - *जं जस्‍स जम्मि देसे जेण विहाणेण जम्मि कालम्मि।*  *णादं जिणेण णियदं जम्‍मं वा अहव मरणं वा*।। *तं तस्स तम्मि देसे तेण विहाणेण तम्मि कालम्मि।* *को सक्कदि वारेदुं इंदो वा तह जिणिंदो वा*।।  कत्तिकेयाणुवेक्खा/गाथा ३२१-३२२ अर्थात् जिस जीव के, जिस देश में, जिस काल में, जिस विधान से, जो जन्‍म अथवा मरण जिनदेव ने नियत रूप से जाना है; उस ज

बना रहे बनारस

बना रहे बनारस होली का तीन दिन का अवकाश ,अचानक काशी यात्रा का कार्यक्रम और बनारस के रस की तड़फ ...सब कुछ ऐसा संयोग बना कि पहुँच ही गए काशी |इस बार बहुत समय बाद जाना हुआ |लगभग डेढ़ वर्ष बाद ...डर रहा था कि अपने बनारस को पहचान पाउँगा कि नहीं ? कहीं क्योटा न हो गयी हो काशी |भला करे भगवान् ....वही जगह ,वैसे ही लोग वही संबोधन ...का बे ....का गुरु .....???वाले और वे सारे स्वतः सिद्ध ह्रदय की निर्मलता से स्फुटित शब्द ..जिन्हें अन्यत्र अपशब्द कहा जाता है और कुटिलता में प्रयुक्त होता है | दिल्ली की सपाट ,साफ़ सुथरी किन्तु भयावह सड़कों को भुगतने के बाद ...काशी की उबड़ खाबड़ सड़कें और शिवाला के सड़क किनारे बने कूड़ा घर के बाहर लगभग आधे से अधिक सड़क भाग पर पसडा काशी का कूड़ा और आती दुर्गध भी मुझे उसी मूल काशी का लगातार अहसास करवा रहे थे और मैं  खुश था कि चाहे खोजवां हो ,या कश्मीरीगंज,अस्सी हो या भदैनी या फिर लंका से लेकर नरिया होते हुए सुन्दरपुर सट्टी इनका सारा कूड़ा बाहर रहता है ...दिल के अन्दर नहीं | भारत के स्व.... अभियान की सारी शक्ति भी इस शहर में लगा दें तो किसी को कोई फिकर नहीं है |बाबा भोले के भक्त अपन

भक्तामर स्तोत्र और वेद

*भक्तामर स्तोत्र और वेद*  प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली  drakjain2016@gmail.com  मेरी विभिन्न भारतीय धर्म दर्शन के विद्वानों से बातचीत होती रहती है । कई बार उनसे जैन धर्म दर्शन के बारे में भी ऐसी जानकारी मिल जाती है जिन्हें पहले पता नहीं होता है ।  इसी प्रकार एक वैदिक मित्र  ने मुझसे कहा कि मैं तंत्र आगम का जानकार हूँ और हमारे एक शास्त्र में लिखा है कि जैन आचार्य तंत्र मंत्र विद्या के बहुत बड़े जानकर थे । वे मंत्र विद्या से राजाओं को अपने वश में कर के अपने धर्म की रक्षा और उसका संवर्धन करते थे ।   बातों ही बातों में पता चला कि उन्हें जैनों का भक्तामर स्तोत्र बहुत पसंद है । उन्होंने कुछ छंद सुना भी दिए तो आनंद आया । फिर उन्होंने कहा कि कई छंद ऐसे हैं जिनका वैदिक मंत्रों से बहुत साम्य है । मुझे आश्चर्य हुआ । यह तथ्य मैं उन अनुसंधान करने वाले शोधार्थियों के लिए प्रेषित कर रहा हूं जो भक्तामर पर गहराई से अध्ययन कर रहे हैं -  मानतुंग आचार्य विरचित स्तोत्र का २३ वां छंद है - त्वामामनन्ति मुनयः परमं पुमांस। मादित्यवर्णममलं तमसः परस्तात् ॥ त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयंति मृत्युं। नान्

भगवान महावीर और गुरुनानकदेव

भगवान  महावीर और गुरुनानक जी  प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली  जैन श्रमण परंपरा के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदि योगी तथा इतिहास की दृष्टि से प्रागैतिहासिक माने जाते हैं । उनके अनंतर जैन श्रमण परम्परा में २३ और तीर्थंकर हुए जिन्होंने समय समय पर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया तथा अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म ईसा पूर्व ५९९ में वैशाली में हुआ था तथा ७२ वर्ष की आयु में ईसा पूर्व ५२७ में उनका निर्वाण पावापुर से हुआ । उनके बाद उनके मार्ग पर चलने वाली उनकी आचार्य परंपरा आज तक हजारों की संख्या में भारत भूमि पर अध्यात्म साधना तपस्या और संयम की धारा प्रवाहित कर रहे हैं । सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी का जन्म सन् १४६९ ई० में जिला शेखू पुरा ( वर्तमान का पश्चिमी पाकिस्तान ) में तलवंडी नामक गांव में हुआ था । यह स्थान आज ननकाना नाम से प्रसिद्ध है । डॉ हरिराम गुप्ता ने उनके जीवन काल को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया है - १.  १४६९- १४९६ ( २७ वर्ष ) - गृहस्थ / आत्मबोध  ज्ञान काल । २. १४९७-१५२१ ( २५ वर्ष )- पर्यटन और दूसरे धर्मों का अध्ययन ,(स्व विचार व्याख्या काल) । ३. १५२२ - १५३९ (१८

मोदी जी हारे नहीं है, मोदी हारा नहीं करते

मोदी जी हारे नहीं है, मोदी हारा नहीं करते डॉ अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com दिल्ली के चुनाव में केजरीवाल जी ने नहीं भाजपा ने मोदी को हराया है अन्यथा मोदी कभी हारा नहीं करते । एक छोटे से राज्य के चुनाव में बिना वजह केजरीवाल जी के सामने मात्र मोदी जी को प्रस्तुत करना यह भाजपा की सबसे बड़ी भूल थी ।  भाजपा को यह बात समझनी पड़ेगी  कि वे मुख्यमंत्री के रूप में पिछले पांच सालों में दिल्ली भाजपा से एक भी चेहरा सामने नहीं ला पाए । मोदी जी अकेले क्या क्या करेंगे ? आगे भी सफर बहुत तय करना है । शाहीन बाग दिल्ली के चुनाव का मुद्दा नहीं था वह राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है उसे जबरदस्ती दिल्ली के चुनाव का मुद्दा बनाना बहुत बड़ी भूल थी ।  राज्यों के चुनाव मूलभूत समस्याओं को लेकर लड़े जाते हैं भारतीय जनता पार्टी ने उसमें से एक भी समस्या को सलीके से सामने नहीं रखा। टीवी चैनलों पर भाजपा के प्रवक्ता जिस तरह की भाषा का प्रयोग कर रहे थे पूरी दिल्ली को उनकी भाषा उनके आक्रामक तरीके से  लोगों को सारी बात समझ में आ रही थी ।  भाजपा ने अपनी पूरी शक्ति बिना वजह लगाई । भाजपा ने बिना वजह इस चुनाव क

जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न करूं नींद नहीं आती

*जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न करूं नींद नहीं आती* - प्रो.डॉ अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली drakjain2016@gmail.com लगभग ६५ वर्षीय श्री हरेंद्र सिंह जो मोती हारी , बिहार के हैं , रिटायर्ड हैं , अतः आजकल खेती करते हैं । इनका कहना है कि मैं जब तक जिनवाणी का स्वाध्याय न कर लूं मुझे नींद नहीं आती । मुझे लगा कि यह बीमारी है लेकिन डॉ ने कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है ।    अपने विश्वविद्यालय के जैन दर्शन विभाग में मैं विद्यार्थियों को रयणसार  पढ़ा रहा था तभी एक बुजुर्ग अपरिचित सज्जन कक्षा में दाखिल हुए और चुपचाप कक्षा सुनने लगे ।  कक्षा के उपरांत मैंने उनसे परिचय प्राप्त किया तब उन्होंने उपरोक्त जानकारी मुझे देते हुए कहा कि मैंने एक बार दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले से आपकी एक पुस्तक *जैन धर्म एक झलक* प्राप्त की थी । उसे पढ़कर मुझे बहुत रुचि हुई । फिर मैं जिज्ञासावश त्रिनगर के जैन मंदिर गया तो वहां एक पंडित जी ने मुझे रत्नकरण्ड श्रावकाचार पढ़ने को दिया तब वह मुझे बहुत अच्छा लगा । लेकिन उसका पूरा पालन मैं नहीं कर पा रहा हूं । मैं ग्रंथ पढ़ने के बाद मंदिर वापस करने गया तो उन्होंने कहा इस