सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सादरप्रकाशनार्थ ' आसमान पर कभी मत थूकना ,खुद के ही ऊपर गिरता है'

सादरप्रकाशनार्थ                                   ' आसमान पर कभी मत थूकना ,खुद के ही ऊपर गिरता है' -कुमार अनेकांत मैं दिल्ली जनता की जनता हूँ मैंने अपना फैसला बता दिया |अब इस जीत से सभी गैर भाजपाई हार कर भी खुश हैं |दिक्कत यही है कि इसे भाजपा के विरोध का जनादेश समझा जा रहा है | वे खुश न हों |मेरा दर्द समझें |मुझे मोदी जी कल भी पसंद थे ...आज भी पसंद हैं |इसी तरह केजरीवाल भी कल भी पसंद थे आज भी पसंद हैं |हम क्या करें ? हम किसी पार्टी के नहीं हैं |पार्टी के आप हैं |आपकी मजबूरी होती है कि मजबूरी में अपनी पार्टी के गलत इंसान को भी सही ठहराना |केजरीवाल बीजेपी से लड़ते तो उन्हें इतनी ही सीटें देते |मोदी आम आदमी पार्टी से लड़ते तो हम उन्हें उसी प्रकार चुनते | हम लोग मानते हैं कि कोई भी पार्टी गलत या सही नहीं होती |हमें व्यक्ति या नेता गलत या सही लगते हैं | आप के साथ समस्या यह है कि आप हमें वेवकूफ समझते हो |आपने केजरीवाल पर आरोप लगाया कि सरकारी कार या बंगला नहीं लेंगे कह कर आते ही एक अदद कार और चार कमरे का फ्लैट क्यूँ ले लिया ?आपने समझा हम भड़क जायेंगे |हम भी जानते हैं कि उनका अभिप

चुनाव को जंग न कहा जाय

सेवा में                                                                      24/1/2015 मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग दिल्ली विषय -चुनाव को जंग न कहा जाय महोदय , आप लोकतंत्र के सजग प्रहरी हैं |मैं आज आपका ध्यान एक ऐसे विषय की तरफ दिलाना चाहता हूँ जिस पर प्रायः विचार नहीं किया जाता है |आपसे निवेदन है कि स्वस्थ्य चुनाव के लिए आप जो जो भी नए प्रयोग करते हैं उसमें एक प्रयोग 'उचित एवं अहिंसक शब्द प्रयोग 'का भी प्रारंभ करें |मेरी सलाह है कि आयोग को शब्द्प्रयोगों को लेकर पत्रकारिता के लिए भी आचार संहिता लगा देना चाहिए |      उदाहरण के लिए  चुनाव के साथ "लड़ना" जैसे शब्दों का प्रयोग ही उसे युद्ध जैसा विकृत कर देता है ;चुनाव में "भाग लेना" शब्द का प्रयोग ज्यादा स्वस्थ्य लोकतान्त्रिक मानसिकता है ।और भी अनेक उदाहरण हैं जैसे  'हमला बोला'......'परास्त किया' ....'सिंहासन की लड़ाई'....'चुनावी जंग'......'पलटवार'....'भितरघात'.....आदि शब्दों का प्रयोग ऐसा वातावरण बना देता है मानो चुनाव नहीं कोई युद्ध हो रहा हो |      

सह-अस्तित्व का दर्शन

संस्कृत भाषा को धर्म से जोड़कर देखना गलत है -डॉ अनेकांत कुमार जैन

सादर प्रकाशनार्थ - संस्कृत भाषा को धर्म से जोड़कर देखना गलत है -डॉ अनेकांत कुमार जैन संस्कृत को किसी धर्म ,जाति,क्षेत्र के रूप में देखना अज्ञानता है |इसे किसी भी राजनैतिक दल से भी जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए |संस्कृत भाषा में गैर धार्मिक साहित्य भी अत्यधिक मात्रा में है|पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह जी ने भी विश्व संस्कृत सम्मलेन में मेरे सामने विज्ञान भवन में स्पष्ट कहा था "संस्कृत भारत की आत्मा है' |नेहरूजी ने भी संस्कृत का महत्त्व 'भारत एक खोज'में बताया है | दिक्कत तब होती है जब लोग संस्कृत को मात्र वेद और वैदिक संस्कृति से ही जोड़ कर देखते हैं |संस्कृत कभी सांप्रदायिक भाषा नहीं रही |जैन एवं बौद्ध धर्म दर्शन के हजारों ग्रन्थ मात्र संस्कृत भाषा में रचे गए हैं | आज मोदी सरकार ने राष्ट्र भाषा हिंदी को तवज्जो दी है उसी प्रकार वो संस्कृत प्राकृत तथा पालि भाषा को भी भारतीय शिक्षा पद्धति का अंग बनाना चाहते हैं तो हमें उनका साथ देना चाहिए | आश्चर्य तो ये है कि जब संस्कृत को हटाया जा रहा था तो किसी ने आवाज बुलंद नहीं की आज जब संस्कृत के अच्छे दिन आ रहें हैं तो तकलीफ ह

सादर प्रकाशनार्थ-स्कूलों में प्राकृत भाषा भी पढाई जाय

स्कूलों में प्राकृत भाषा भी पढाई जाय डॉ अनेकांत कुमार जैन स्कूलों में संस्कृत भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने का जो अभूतपूर्व निर्णय माननीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी जी ने लिया है वह अभिनंदनीय है |भारतीय संस्कृति और मूल्यों को समझाने के लिए संस्कृत पूरे भारत की भाषा रही है |संस्कृत भाषा में भारत की वैदिक और श्रमण संस्कृति के सभी आचार्यों ने दर्शन ज्ञान और विज्ञान के अद्वितीय ग्रंथों की रचना की है और आज भी लगातार इस भाषा में ग्रंथों की रचना हो रही है | भारत में संस्कृत के साथ साथ लोकभाषा के रूप में प्राकृत भाषा भी समानांतर रूप से रही है |इस भाषा में भी हजारों साहित्य,आगमों और ग्रंथों का प्रणयन हुआ है |भारतीय जीवन मूल्य ,दर्शन ,ज्ञान, विज्ञान की अद्वितीय संपदा इस साहित्य में है |लोग संस्कृत को तो जानते भी हैं लेकिन प्राकृत भाषा का नाम भी नहीं जानते |वह प्राकृत भाषा जिसने लगभग सभी भारतीय भाषाओँ और बोलियों को जन्म दिया है |सम्राट अशोक आदि ने अनेक शिलालेख इसी भाषा में खुदवाए हैं और कालिदास –शूद्रक जैसे संस्कृत नाटककारों ने अपने साहित्य में इस भाषा का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया

क्या हैं असली प्यार के मायने ?

प्रिय बहना मधुर स्नेह       आजकल तुम जिस दौर से गुजर रही हो उसका मुझे अहसास है ।उम्र के इस उफान पर जिस प्रकार हमें अपनी पढाई और कैरियर के प्रति सजग रहना आवश्यक है उसी प्रकार प्यार के रिश्तों संबंधों से निर्मित अपने पारिवारिक और सामाजिक परिवेश के प्रति भी बहुत सजगता जरूरी है ।दोनों ही स्थितिओं में हमें बड़ों के अनुभवों का लाभ उठाना आना चाहिए। आज तुम्हारी जो भावनात्मक   और पारिवारिक स्थिति है वैसी स्थिति कमोवेश हर लड़की की होती है ।          आज तुम अपने पैरों पर खड़ी हो और विवाह के प्रसंग पर स्व-चयनित वर से ही करने की जिद घर वालों के सामने रखी है ।एक ऐसा वर जिसकी पृष्ठभूमि अपने धर्म संस्कृति से बिलकुल जुदा है और तुम्हारी हर जिद और इच्छा की पूर्ती में तत्पर तुम्हारे माता पिता सहित सभी अभिभावक आज तुम्हारी इस जिद को नहीं मान रहे हैं तो तुम्हें वे बहुत बुरे लग रहे हैं ।         प्यार करना बुरी बात नहीं है ।जब नयी जवानी का सावन आता है और घटायें घुमड़ घुमड़ कर बरसती हैं तो बारिस सब कुछ भिगो देती है तब ऐसे मौसम में बारिश में भीगना कोई जुर्म नहीं है ।मैं इस निश्छल प्रेम को अपरा

मुनियों के चातुर्मास से होती है आध्यात्मिक क्रांति (दैनिक जागरण में प्रकाशित लेख )