स्कूलों में प्राकृत भाषा
भी पढाई जाय
डॉ अनेकांत कुमार जैन
स्कूलों में संस्कृत भाषा को अनिवार्य रूप से पढ़ाने का जो
अभूतपूर्व निर्णय माननीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी जी ने लिया है वह
अभिनंदनीय है |भारतीय संस्कृति और मूल्यों को समझाने के लिए संस्कृत पूरे भारत की
भाषा रही है |संस्कृत भाषा में भारत की वैदिक और श्रमण संस्कृति के सभी आचार्यों
ने दर्शन ज्ञान और विज्ञान के अद्वितीय ग्रंथों की रचना की है और आज भी लगातार इस
भाषा में ग्रंथों की रचना हो रही है | भारत में संस्कृत के साथ साथ लोकभाषा के रूप
में प्राकृत भाषा भी समानांतर रूप से रही है |इस भाषा में भी हजारों साहित्य,आगमों
और ग्रंथों का प्रणयन हुआ है |भारतीय जीवन मूल्य ,दर्शन ,ज्ञान, विज्ञान की
अद्वितीय संपदा इस साहित्य में है |लोग संस्कृत को तो जानते भी हैं लेकिन प्राकृत
भाषा का नाम भी नहीं जानते |वह प्राकृत भाषा जिसने लगभग सभी भारतीय भाषाओँ और
बोलियों को जन्म दिया है |सम्राट अशोक आदि ने अनेक शिलालेख इसी भाषा में खुदवाए
हैं और कालिदास –शूद्रक जैसे संस्कृत नाटककारों ने अपने साहित्य में इस भाषा का
प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया है |प्रथम शताब्दी में रची गई रचनाएँ गाहासप्तसती,समयसार,आचारांग
आदि बेजोड़ हैं |इस भाषा में भूगोल,खगोल,भौतिकविज्ञान,रसायन विज्ञान,चिकित्सा विज्ञान,गणित
शास्त्र,व्याकरण,ज्योतिष आदि के चमत्कृत कर देने वाले अनेक ग्रन्थ हैं | इसी के
साथ मेरा एक विनम्र निवेदन यह है कि स्कूलों में जब संस्कृत अनिवार्य रूप से पढाई
जाय तब उसमें एक एक अध्याय प्राकृत भाषा,व्याकरण और साहित्य के परिचय के रूप में
अवश्य पढ़ाया जाय |इससे बच्चे भारतीय संस्कृति और विज्ञान के एक गौरवमयी इतिहास से
परिचित हो सकेंगे |
नोट-*लेखक को प्राकृत भाषा के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार
’महर्षि वादरायण सम्मान -२०१३’से सम्मानित किया जा चुका है |
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