प्रिय संजीव
सब कुछ क्रम नियमित है
आयु निश्चित है
राजा राणा क्षत्रपति हाथन के असवार
मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार
आदि आदि
ये सब मुझे पता है ,इन्हें मैं भी सबसे बड़ा सत्य मानता हूँ ।
फिर भी.....कुछ चीजें मुझे स्वीकार नहीं हो रहीं हैं
जैसे
तुम्हारा इस तरह जाना ।
तुम्हारी शोक सभाएं सुन रहा हूँ , मुझे ये भी स्वीकार नहीं हो रहीं हैं ।
कई बार सोचा कि तुम्हारी याद में मैं भी कुछ कहूँ ,वीडियो बनाऊं ...पर ये हो न सका ।
तुम्हारा जाना मुझे मंजूर ही नहीं है ।
इसीलिए तुम्हारी किसी भी शोकसभा में उपस्थित न हो सका ,कुछ कह न सका ।
लोग तुम्हारी और टोडरमल जी की आयु एक जैसी बताकर तुलना कर रहे हैं ,मुझे ये भी स्वीकार नहीं है ।
टोडरमल जी मरे नहीं थे ,उन्हें मरवाया गया था ।
तुम्हारे यू ट्यूब पर हजारों प्रवचन , ऑनलाइन कक्षाएं , तुम्हारा देश दुनिया में अथक लगातार प्रचार ,अब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते ,क्यों कि तुम नहीं हो ।
तुम इतना ज्यादा ऑनलाइन क्यों रहे कि अब ऑफलाइन भी नहीं हो ?
क्या चला जाता यदि तुम थोड़ा कम यात्रा और प्रचार करते ?
क्या घट जाता यदि तुम थोड़े कम प्रवचन करते ?
समाज का क्या है ? आप भूखे प्यासे रहकर सेवा करो तो ज्यादा पूजती है । उसे आपकी नहीं ,अपने कार्यक्रम की चिंता होती है ।
स्वार्थी जगत
तुम्हें दुहता रहा और तुम दुहवाते गए, निचुड़ते गए .....
अपनी जरा भी चिंता नहीं की ।
कष्ट में भी आप सेवा करते थे - ये कहकर आपको दुनिया महिमा मंडित करेगी लेकिन वे कष्ट में भी सेवा लेते रहे - इस बात का पछतावा नहीं करेगी ।
देखो समाज में यहाँ अब भी कुछ नहीं बदला
बस एक चीज बदली कि अब तुम नहीं हो ।
कुछ भी जरूरी नहीं था
बस तुम्हारा होना जरूरी था
तुम रहते तो सब कुछ रहता
प्रवचन,कक्षा ,तत्वप्रचार ...
तुम समय समझाते रहे
और
समय ने तुम्हें हमसे छीन लिया
तुम्हारा जाना सत्य हो सकता है
किंतु मुझे ऐसा सत्य भी स्वीकार नहीं
पता नहीं क्यों ?
झूठा ही सही
पर तुम्हारे अभी भी होने का अहसास मुझे इतना ज्यादा है कि मुझे तुम्हारा जाना स्वीकार नहीं है ।
अब नहीं है तो नहीं है
तुम्हारा
प्रो अनेकान्त कुमार जैन
(प्रिय मित्र संजीव गोधा के 17 फरवरी 2023 को असामयिक निधन पर )यह चित्र 1999 का है ,जब जैन विश्व भारती संस्थान ,लाडनूं में दीक्षांत समारोह में हम दोनों ने MA जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन की उपाधि प्राप्त की थी ।
(चित्र में बाएं से प्रथम संजीव गोधा , मध्य में गुरुवर प्रो दयानंद भार्गव जी एवं दाएं स्वयं मैं )
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