सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

प्रिय मित्र ( स्व.)डॉ संजीव गोधा के नाम एक पत्र






प्रिय संजीव 

सब कुछ क्रम नियमित है 
आयु निश्चित है 
राजा राणा क्षत्रपति हाथन के असवार 
मरना सबको एक दिन अपनी अपनी बार 

आदि आदि 

ये सब मुझे पता है ,इन्हें मैं भी सबसे बड़ा सत्य मानता हूँ ।

फिर भी.....कुछ चीजें मुझे स्वीकार नहीं हो रहीं हैं 

जैसे  
तुम्हारा इस तरह जाना ।

तुम्हारी शोक सभाएं सुन रहा हूँ , मुझे ये भी स्वीकार नहीं हो रहीं हैं । 

कई बार सोचा कि तुम्हारी याद में मैं भी कुछ कहूँ ,वीडियो बनाऊं ...पर ये हो न सका । 

तुम्हारा जाना मुझे मंजूर ही नहीं है । 

इसीलिए तुम्हारी किसी भी शोकसभा में उपस्थित न हो सका ,कुछ कह न सका । 

लोग तुम्हारी और टोडरमल जी की आयु एक जैसी बताकर तुलना कर रहे हैं ,मुझे ये भी स्वीकार नहीं है । 

टोडरमल जी मरे नहीं थे ,उन्हें मरवाया गया था । 

तुम्हारे यू ट्यूब पर हजारों प्रवचन , ऑनलाइन कक्षाएं , तुम्हारा देश दुनिया में अथक लगातार प्रचार ,अब मेरे लिए कोई मायने नहीं रखते ,क्यों कि तुम नहीं हो । 

तुम इतना ज्यादा ऑनलाइन क्यों रहे कि अब ऑफलाइन भी नहीं हो ? 

क्या चला जाता यदि तुम थोड़ा कम यात्रा और प्रचार करते ?

क्या घट जाता यदि तुम थोड़े कम प्रवचन करते ?

समाज का क्या है ? आप भूखे प्यासे रहकर सेवा करो तो ज्यादा पूजती है । उसे आपकी नहीं ,अपने कार्यक्रम की चिंता होती है । 

स्वार्थी जगत
 तुम्हें दुहता रहा और तुम दुहवाते गए, निचुड़ते गए .....
अपनी जरा भी चिंता नहीं की । 

कष्ट में भी आप सेवा करते थे - ये कहकर आपको दुनिया महिमा मंडित करेगी लेकिन वे कष्ट में भी सेवा लेते रहे - इस बात का पछतावा नहीं करेगी ।

देखो समाज में यहाँ अब भी कुछ नहीं बदला 

बस एक चीज बदली कि अब तुम नहीं हो । 

कुछ भी जरूरी नहीं था 
बस तुम्हारा होना जरूरी था 

तुम रहते तो सब कुछ रहता
प्रवचन,कक्षा ,तत्वप्रचार ...

तुम समय समझाते रहे 
और 
समय ने तुम्हें हमसे छीन लिया 

तुम्हारा जाना सत्य हो सकता है 
किंतु मुझे ऐसा सत्य भी स्वीकार नहीं 
पता नहीं क्यों ?

झूठा ही सही 
पर तुम्हारे अभी भी होने का अहसास मुझे इतना ज्यादा है कि मुझे तुम्हारा जाना स्वीकार नहीं है । 

अब नहीं है तो नहीं है 

तुम्हारा 

प्रो अनेकान्त कुमार जैन

(प्रिय मित्र संजीव गोधा के 17 फरवरी 2023 को असामयिक निधन पर )यह चित्र 1999 का है ,जब जैन विश्व भारती संस्थान ,लाडनूं में दीक्षांत समारोह में हम दोनों ने MA जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्म दर्शन की उपाधि प्राप्त की थी ।

(चित्र में बाएं से प्रथम संजीव गोधा , मध्य में गुरुवर प्रो दयानंद भार्गव जी एवं दाएं स्वयं मैं )

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​

युवा पीढ़ी का धर्म से पलायन क्यों ? दोषी कौन ? युवा या समाज ? या फिर खुद धर्म ? पढ़ें ,सोचने को मजबूर करने वाला एक विचारोत्तेजक लेख ••••••••••••👇​Must read and write your view