मध्य प्रदेश के दमोह जिले के पथरिया के पास एक छोटा सा गांव है किन्द्रह (स्थानीय बुंदेली में बोला जाने वाला किनरौ )
पिताजी (प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ) माता जी (डॉ मुन्नी पुष्पा जैन) लगभग 40 वर्ष पहले अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ इस गाँव में आए थे ,सो उन्हें अभी विरागोदय तीर्थ ,पथरिया की वंदना के समय इसकी याद आ गई । पिताजी को यह भी याद आया कि यहाँ एक प्राचीन जैन मंदिर था औ र एक तालाब था । तालाब में नहाते वक्त 40 वर्ष पहले उन्हें जैन मूर्तियों के अवशेष मिले थे ।
उनकी बड़ी गहरी और आत्मीय जिज्ञासा थी इस गाँव में पुनः जाने की और उस तालाब को और पुरातत्व को देखने की ।
12 फरवरी 2023 को सुबह सुबह
हमने एक ऑटो रिक्शा किया और माता पिता एवं श्रीमती सीमा जैन (महिला बाल विकास अधिकारी,पथरिया) के साथ वहाँ पहुंच गए , 40 वर्ष पहले की याद करते वे यहाँ इतनी आत्मीयता से घूमे जैसे कोई पूर्व जन्म का स्मरण कर अपने पुराने गाँव जा कर करता है ।
पता चला अब यहाँ वह जैन मंदिर नहीं है । जैन समाज भी अब यहाँ नहीं रहती । इनके रिश्तेदार भी अब यहाँ नहीं रहते । दो चार घर हैं सो एक छोटा सा नया मंदिर बना है उसी में दर्शन पूजन करते हैं । वहीं एक बुजुर्ग श्रावक ने बताया पुराने मंदिर की कुछ मूर्तियां पथरिया के आदिनाथ जिनालय में स्थापित करवा दी गईं थीं और कुछ खंडित प्रतिमाएं नैनागिरी जी के संग्रहालय में रखवा दीं गईं । अब यहाँ कुछ भी नहीं है ।
हम निराश हुए किंतु पिताजी नहीं । उन्हें वो तालाब भी देखना था । हम तालाब पहुंच गए तो स्थानीय लोगों ने बताया कि कोई पुरातत्त्व यहाँ नहीं है । पिताजी नहीं माने अपनी 40 वर्ष पूर्व की स्मृति को वे भूल नहीं पा रहे थे ।
उन्होंने उनसे कहा कि आप लोग यहाँ आस पास किस मढिया या मंदिर की पूजा करते हैं ? तब लोगों ने आस पास के कुछ छोटे और स्थानीय विश्वास के कुछ पूजा स्थल दिखाए ।
यूरेका ! पिताजी की युक्ति पूर्ण खोज सफल हुई । उन पूजा स्थलों पर वह पुरातत्व मिल गया जिसकी उन्हें तलाश थी ।
स्थानीय लोग एक चक्की देवी की उपासना करते हैं और तालाब से मिले इन्हीं अवशेषों को वहाँ स्थापित कर रखा है । उन अवशेषों में एक तीर्थंकर युक्त पाषाण फलक भी स्पष्ट दिखाई दिया ।
अन्य अनेक कला युक्त आकृतियां भी दिखाई दीं जो स्पष्ट रूप से उस प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष लग रहे थे । धन्य है भारत की हिन्दू समाज की आस्था ,अज्ञान में भी मात्र आस्था और सनातनी विश्वास की परंपरा के कारण वे पत्थर की प्रत्येक आकृति में ईश्वर का साक्षात्कार कर उनकी पूजा करते हैं और उनका यह विश्वास जाने अनजाने हमारे पुरातत्व का संरक्षण भी कर लेता है ।
पिताजी का कहना है कि यदि इस तालाब में खुदाई या खोज की जाय तो संभव है अनेक प्राचीन जैन मूर्तियां मिल सकती हैं ।
मैं पुरातत्त्व का व्यक्ति नहीं हूं और न ही पिताजी ,किंतु बचपन से पुरातत्व के प्रति उनकी अभिरुचि,उत्सुकता और उसे देखने का नजरिया सीख रहा हूँ और पुरातत्व की ज्ञान वृद्धि मेरे जीवन का भी लक्ष्य बनता जा रहा है ।
प्रो अनेकान्त कुमार जैन
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