सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जो सहे सो रहे

*जो सहे सो रहे*

प्रो अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली

*कभी किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता*
*कभी जमीं तो कभी आसमां नहीं मिलता*

जीवन साथी का चुनाव तब तक सहज सरल नहीं होता जब तक हमारी इच्छाएं हमारी प्राथमिकताओं पर हावी रहती हैं ।

कोई भी लड़की सर्वगुणसम्पन्न नहीं होती - इस शीर्षक से
फेसबुक पेज पर एक मित्र का एक लेख पढ़ रहा था । उसके कुछ बिंदु विमर्श योग्य लगे । उन्हें बताकर कुछ अपने भाव भी व्यक्त किये । 

*हमारा उद्देश्य संसार का अभाव करना है तो सांसारिक  विषयों पर क्यों चिंतन करें ?*

मैं इस बात से कभी पूर्ण सहमति नहीं बना सका हूँ ।
मेरा मानना रहा है कि बाहर की उलझन कभी अंदर की सुलझन को अभिव्यक्त नहीं करती । 

हम अंदर से सुलझ गए हैं बाहर तो उलझन हमेशा रहेगी - ऐसा कहने और मानने वाले मेरी दृष्टि में सही सुलझन प्राप्त नहीं कर सके हैं ।
जीवन साथी चयन से संबंधित
उस लेख की कुछ महत्त्वपूर्ण प्रायोगिक बातें और उन बातों के आधार पर 
कुछ विचार प्रस्तुत हैं - 

1 यदि आप एक सीधी-सादी लड़की का चुनाव करते हैं तो आपको यह मानना पड़ेगा कि वह आप पर निर्भर रहेगी।

2 यदि आप अमीर घर की खूबसूरत लड़की चुनते हैं तो आपके खर्चे भी बढ़ेंगे |

3 यदि आप एक कामकाजी लड़की को प्राथमिकता देते हैं तो यह भी तय है कि घर के सारे काम वह नहीं कर पाएगी।

4 यदि वह गृहिणी होगी तो स्वाभाविक है कि वह धनार्जन नहीं करेगी ।

5 यदि आप महान स्त्री चुनते हैं तो उसकी दृढ़ता और कठोरता के साथ भी आपको निर्वाह करना होगा।

6 यदि आप वीर स्त्री का चुनाव करते हैं तो यह मानना पड़ेगा कि उसके अपने भी कुछ विचार होंगे।एक स्त्री की कुछ अच्छी विशेषताएं जाहिर करतीं हैं कि वह कौन है और उसे क्या सबसे हटकर मौलिक बनाता है।

7 यदि आप आध्यात्मिक विचारों वाली स्त्री का चुनाव करते हैं तो आपको खुद को इस बात के लिए तैयार रखना होगा कि वह कभी भी सन्यास ले सकती है ।

8 इसके अलावा यह भी एक गहरा सच है कि इसमें चुनाव जैसी बातें एक मानसिक भ्रम मात्र है । यह एक लॉटरी के टिकट की तरह है । क्या सोच के टिकट खरीदा जाता है और क्या,कितना,कैसा परिमाण निकलता है यह हमारे भाग्य या पूर्वकृत पुण्य पर निर्भर करता है ।

9 विवाह पूर्व और पूर्वोत्तर की अवस्था का आंकलन कोई नहीं कर सकता । हम जिन हेतुओं से अनुमान लगाते हैं वे बाद में हेत्वाभास नज़र आते हैं ।

कुछ फेर बदल के साथ 
लगभग यही बातें लड़का चुनते समय लड़की के साथ भी घटती हैं  ।

किसी ने सही कहा है कि सर्वगुणसम्पन्न जीवन साथी एक ही Nation में मिलता है और वह है Imagination.

सच यह है कि आज तक किसी को ठीक वैसा जीवन साथी नहीं मिल सका जैसा उसे चाहिए था ।उसे ठीक वैसा मिला जो उसके कर्मोदय में था ।

यथार्थ यह है कि कभी किसी को मुकम्मल जीवनसाथी नहीं मिलता फिर भी यदि परिवार चल रहा है तो उसका अर्थ है कि दोनों एक दूसरे की कमियों को अपनी खूबियों से पूरा करके उसे मुकम्मल बना रहे हैं।

यह बात समय रहते जिनको समझ में नहीं आती,वे सारी जिन्दगी एक दूसरे से उलझते रहते हैं और कभी कभी यह उलझन सब कुछ तोड़ देती है । 

परिवार बचाने के लिए जो झुकना और सहना जानता है वह ही जीतता है वरना अच्छे अच्छे हार जाते हैं । 

हर घर के आगे एक अव्यक्त बोर्ड पहले से लगा होता है 
'जो सहे सो रहे ' ।

जो घर में अपनों को सहने का अभ्यास नहीं कर पाता उसे बाहर दूसरों से ज्यादा सहना पड़ता है । 

हम बाहर सबकुछ सह लेते हैं पर बिडम्बना यह है कि अपने घर में नहीं सह पाते हैं । 

वास्तविक अर्थों में
परिवार छोड़ने की एक ही सशक्त शर्त है और वह है सम्यक्त्व सहित वैराग्य ,जिसका शास्त्र उपदेश देते हैं ।इसके अलावा अन्य सभी कारण हमारे हारे हुए व्यक्तित्त्व के सूचक हैं ।हम खुद को कितना भी justify करते फिरें ,पर हम एक चीज हमेशा के लिए खो देते हैं और  वो है परिवार । सम्यग्दृष्टि भी परिवार छोड़ने की भले ही सोचता हो पर तोड़ने की कभी नहीं सोचता । वह उससे ऊपर उठने का विचार करता है , उससे नीचे गिरने का नहीं । 

अपने व्यक्तित्त्व की कमी को हम अध्यात्म की छद्म ढाल बनाने में बहुत चतुर होते हैं । अशक्ति को अनासक्ति कह कर खुद को व्यर्थ ही बहलाने की असफल कोशिश करते रहते हैं ।
इस तरह से हम परिवार और अध्यात्म दोनों की हानि कर बैठते हैं । 

हमने भ्रम वश अध्यात्म और परिवार को एक दूसरे का विरोधी मान लिया है । जबकि ये पूरक हैं । मेरा पूरा विश्वास है जो जिसमें परिवार का संतुलन बैठाने की सामर्थ्य नहीं है वे अध्यात्म का संतुलन भी नहीं बैठा सकते । 

परिवार अनेकान्त सिद्धांत की एक प्रयोगशाला है । वे जिन्हें भले ही इस सिद्धांत का ज्ञान न हो किन्तु यदि इसके सार की समझ है , परिवार को अच्छे से संचालित कर रहे हैं और वे जिन्हें भले ही इस सिद्धांत का तलस्पर्शी ज्ञान हो किन्तु समझ नहीं है वे प्रयोग में उतने सफल नहीं हो पा रहे हैं ।

अध्यात्म के सारे नियम एक दृष्टि से परिवार में भी लागू होते हैं । आपको निश्चय से तो बोध होगा कि आप स्वतंत्र हैं ,आपकी स्वतंत्र सत्ता है । लेकिन व्यवहार से यह भी लगेगा कि वर्तमान में आप ऐसे नहीं हैं । आपके प्रत्येक स्वतंत्र निर्णय में भी अन्य की सहमति का बंधन हर समय मौजूद है ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास

ये सोने की लंका नहीं सोने की अयोध्या है  प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास  (This article is for public domain. Any news paper ,Magazine, journal website can publish this article as it is means without any change. pls mention the correct name of the author - Prof Anekant Kumar Jain,New Delhi ) प्राचीन जैन साहित्य में धर्म नगरी अयोध्या का उल्लेख कई बार हुआ है ।जैन महाकवि विमलसूरी(दूसरी शती )प्राकृत भाषा में पउमचरियं लिखकर रामायण के अनसुलझे रहस्य का उद्घाटन करके भगवान् राम के वीतरागी उदात्त और आदर्श चरित का और अयोध्या का वर्णन करते हैं तो   प्रथम शती के आचार्य यतिवृषभ अपने तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में अयोध्या को कई नामों से संबोधित करते हैं ।   जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई अन्य ग्रंथ लिखे गये , जैसे   रविषेण कृत ' पद्मपुराण ' ( संस्कृत) , महाकवि स्वयंभू कृत ' पउमचरिउ ' ( अपभ्रंश) तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् राम का मूल नाम ' पद्म ' भी था। हम सभी को प्राकृत में रचित पउमचरिय...

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...