सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

विद्यार्थियों को पत्र

प्रिय विद्यार्थियों 

आज आप सभी का डिप्लोमा जैन विद्या का द्वितीय सत्र पूरा हो गया है ।

कॅरोना की विपरीत परिस्थितियों में भी हम सभी ने अध्ययन एवं अध्यापन किया । आप सभी ने परीक्षा में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है । जहां तक मुझे लगता है जिन्होंने भी परीक्षा दी है, उनमें सभी उच्च श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले हैं ।

कई विद्यार्थी हमेशा कहते हैं कि हम तो बस पढ़ने आये थे , डिग्री लेने नहीं ,इसलिए वे परीक्षा नहीं देते हैं।

किन्तु मेरा अनुभव रहा है जिनका लक्ष्य परीक्षा या डिग्री नहीं रहता ,वे गंभीरता से पढ़ते भी नहीं हैं । 

आप सभी ने परीक्षा के दौरान यह अनुभव किया होगा कि जब तक सकारात्मक तनाव हमारे ऊपर नहीं रहता तब तक हम भी जोर नहीं लगाते हैं । परीक्षा के निमित्त से स्वाध्याय और अध्ययन और गहरा होता है । अपने ज्ञान पर खुद का विश्वास बढ़ता है । 

चलिए , अब एक बहुत बड़े भार से तो आप निर्भार हो गए । औपचारिकताओं के बाद डिप्लोमा भी आपको प्राप्त हो ही जायेगा । 

लेकिन अब अवसर है गुरु दक्षिणा का ।

पिछले एक डेढ़ वर्षों में
हमने मिलकर हर संभव आप सभी को अपनी तरफ से यथा शक्ति , यथा मति जैन विद्या का वह अमूल्य तत्त्वज्ञान देने की भरपूर कोशिश की जो हमने स्वयं अपनी आचार्य एवं गुरु परंपरा से प्राप्त किया है ।

हम आपसे कुछ निवेदन करना चाहते हैं और आप सभी से हमारी कुछ अपेक्षाएं भी हैं ।

वर्तमान में जैन विद्या अध्ययन अध्यापन की स्थिति बहुत ज्यादा अच्छी नहीं है । जैन दर्शन विभाग का एक उद्देश्य यह भी है कि  दिल्ली में जैन शास्त्रों का नियमित वाचन हो , आगमों का संरक्षण हो तथा लोगों के मन में अज्ञानता के कारण जैन दर्शन के बारे में जो भ्रम खड़े हो गए हैं उनका निवारण हो । 

अब आप सभी एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के द्वारा उत्तीर्ण जैन विद्या के एक अधिकृत विद्वान / विदुषी माने जाएंगे । अतः आप सभी को इस ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाने का पुनीत कार्य करना है । इसके लिए कुछ सुझाव मैं व्यक्तिगत रूप से आप सभी को देना चाहता हूं ...

1. आपने जो सीखा है उसे अपने परिवार में,रिश्तेदारों में,परिचितों में अवश्य शेयर करें । उन्हें भी जैन विद्या की व्यापकता , गहराई और महत्ता से परिचित करवाएं । इससे आपके स्वयं के ज्ञान में चमत्कारिक वृद्धि होगी ।

2. जैन मंदिरों में शास्त्र सभाएं अब बंद होती जा रहीं हैं उन्हें अपने निवेदन ,प्रभाव तथा  सेवा से प्रारंभ करवाएं ।

3.आप जैन विद्या में अपने प्रिय विषय का चुनाव कर उन पर लेख लिखने का निरंतर अभ्यास करें तथा आरम्भ में उन्हें जैन पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ अवश्य भिजवाएं । 

4. कोई एक जैन शास्त्र का चयन कर उसका नियमित कम से कम 30 मिनट स्वाध्याय अवश्य करें ।

5.जहां कहीं भी जैन विद्या संगोष्ठी ,प्रवचन आदि के कार्यक्रम हों उसमें अवश्य सम्मिलित हों तथा अपने विचार भी व्यक्त करें ।

6. आपने अनुभव किया होगा कि जैन दर्शन विभाग में आने से पहले आपकी जैन विद्या को लेकर कई अवधारणाएं अलग थीं जो अध्ययन के बाद स्वतः बदल गईं । और यह हुआ अध्ययन से । आप अपने सुलझे हुए ज्ञान से इन अवधारणाओं को लोगों के मन से भी सुधारने का प्रयास करें ।

समाज से जुड़कर,समाज के झगड़ों में उलझे बिना ,समाज की उपेक्षा सह कर भी जिन्होंने समाज की सेवा की है वे ही महान बन सके हैं ।

जैन दर्शन का ज्ञान आत्मकल्याण के लिए बहुत आवश्यक है अतः स्व पर कल्याण के विशुद्ध भाव से आप भगवान महावीर के शाश्वत संदेशों को जन जन तक पहुंचा कर अपने मनुष्य जीवन को सार्थक कर सकते हैं । 

अगर अपने जीवन में इनमें से कोई भी कार्य करते हैं तो यही हमारी गुरु दक्षिणा होगी । 

आगे भी आप जैन दर्शन विभाग और उसकी गतिविधियों से इसी प्रकार जुड़े रहें । 

इसी कामना के साथ  

आपका

प्रो अनेकान्त कुमार जैन 
27/09/2020

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
Thanks so much sir to you and Dr Veersagar sir. This was definitely a turning point for me. I never did and liked writing about jainism so much before. This is because both you and Dr Veersagar sir encouraged and appreciated us for writing and speaking. Even at our silly points, both of you never gave us harsh comments or criticism.
I feel blessed to have this opportunity and will definitely try to fulfil your expectations in my capacity. Thank you.
Savvi Singhal ने कहा…
Sir, thanks to you and Veersagar sir for always motivating us to do whatever we can. You always did the best for us and made things so much easier than they were. The classes were filled with abundance of knowledge and great learnings and I will forever be grateful to you both, for teaching us not only about Jainism but also so much about life. Thank you.

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास

ये सोने की लंका नहीं सोने की अयोध्या है  प्राचीन अयोध्या नगरी का अज्ञात इतिहास  (This article is for public domain. Any news paper ,Magazine, journal website can publish this article as it is means without any change. pls mention the correct name of the author - Prof Anekant Kumar Jain,New Delhi ) प्राचीन जैन साहित्य में धर्म नगरी अयोध्या का उल्लेख कई बार हुआ है ।जैन महाकवि विमलसूरी(दूसरी शती )प्राकृत भाषा में पउमचरियं लिखकर रामायण के अनसुलझे रहस्य का उद्घाटन करके भगवान् राम के वीतरागी उदात्त और आदर्श चरित का और अयोध्या का वर्णन करते हैं तो   प्रथम शती के आचार्य यतिवृषभ अपने तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में अयोध्या को कई नामों से संबोधित करते हैं ।   जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई अन्य ग्रंथ लिखे गये , जैसे   रविषेण कृत ' पद्मपुराण ' ( संस्कृत) , महाकवि स्वयंभू कृत ' पउमचरिउ ' ( अपभ्रंश) तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार भगवान् राम का मूल नाम ' पद्म ' भी था। हम सभी को प्राकृत में रचित पउमचरिय...

युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?

  युवा पीढ़ी को धर्म से कैसे जोड़ा जाय ?                                      प्रो अनेकांत कुमार जैन , नई दिल्ली    युवावस्था जीवन की स्वर्णिम अवस्था है , बाल सुलभ चपलता और वृद्धत्व की अक्षमता - इन दो तटों के बीच में युवावस्था वह प्रवाह है , जो कभी तूफ़ान की भांति और कभी सहजता   से बहता रहता है । इस अवस्था में चिन्तन के स्रोत खुल जाते हैं , विवेक जागृत हो जाता है और कर्मशक्ति निखार पा लेती है। जिस देश की तरुण पीढ़ी जितनी सक्षम होती है , वह देश उतना ही सक्षम बन जाता है। जो व्यक्ति या समाज जितना अधिक सक्षम होता है। उस पर उतनी ही अधिक जिम्मेदारियाँ आती हैं। जिम्मेदारियों का निर्वाह वही करता है जो दायित्वनिष्ठ होता है। समाज के भविष्य का समग्र दायित्व युवापीढ़ी पर आने वाला है इसलिए दायित्व - ...

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन- डॉ अनेकांत कुमार जैन

द्रव्य कर्म और भावकर्म : वैज्ञानिक चिंतन डॉ अनेकांत कुमार जैन जीवन की परिभाषा ‘ धर्म और कर्म ’ पर आधारित है |इसमें धर्म मनुष्य की मुक्ति का प्रतीक है और कर्म बंधन का । मनुष्य प्रवृत्ति करता है , कर्म में प्रवृत्त होता है , सुख-दुख का अनुभव करता है , और फिर कर्म से मुक्त होने के लिए धर्म का आचरण करता है , मुक्ति का मार्ग अपनाता है।सांसारिक जीवों का पुद्गलों के कर्म परमाणुओं से अनादिकाल से संबंध रहा है। पुद्गल के परमाणु शुभ-अशुभ रूप में उदयमें आकर जीव को सुख-दुख का अनुभव कराने में सहायक होते हैं। जिन राग द्वेषादि भावों से पुद्गल के परमाणु कर्म रूप बन आत्मा से संबद्ध होते हैं उन्हें भावकर्म और बंधने वाले परमाणुओं को द्रव्य कर्म कहा जाता है। कर्म शब्दके अनेक अर्थ             अंग्रेजी में प्रारब्ध अथवा भाग्य के लिए लक ( luck) और फैट शब्द प्रचलित है। शुभ अथवा सुखकारी भाग्य को गुडलक ( Goodluck) अथवा गुडफैट Good fate कहा जाता है , तथा ऐसे व्यक्ति को fateful या लकी ( luckey) और अशुभ अथवा दुखी व्यक्ति को अनलकी ( Unluckey) कहा जाता...