मीडिया मिथ्यात्व से बचें
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- डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली,drakjain2016@gmail.com
एक प्रश्न आया कि मोबाइल पर परमेष्ठी आदि के चित्र को डिलीट करने से पाप होता है अथवा नहीं ?
1. सर्व प्रथम अच्छा तो यह ही है कि पंच परमेष्ठी के चित्र आदि सोशल मीडिया पर न भेजे जाएं ।
2.सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररत्नत्रयप्रभावेन आत्मनः प्रकाशनं प्रभावनम् । - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप रत्नत्रय के प्रभाव से आत्मा को प्रकाशमान करना प्रभावना है । बाकी सोशल मीडिया आदि अन्य प्रभावना के कार्य उपचार से ही हैं । वास्तविक प्रभावना नहीं है ।
3. मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि सोशल मीडिया पर परमेष्ठी के चित्र आदि भेजने से न पुण्य होता है न मोबाइल से इन्हें डिलीट करने से पाप ।
4.अन्यथा भेजने वाला पुण्य के लोभ में भेजता रहेगा और हम पाप के डर से कब तक मेमोरी कार्ड बदलते रहेंगे ।
5. चित्र आदि की उपचार विनय ही होती है ,हो पाती है ।वह वास्तविक विनय नहीं है ।
6.फिर कल को पारस और जिनवाणी आदि चैनल वाले भी कहने लगेंगे कि यदि आपने हमारा चैनल बदल कर न्यूज़ या सीरियल का चैनल लगाया तो पाप बंध हो जाएगा । क्यों कि यह जिन धर्म का अपमान है ।
7. विश्वास माने जैन धर्म सरल जरूर है पर इतना सस्ता नहीं है जो जब चाहे उसका सम्मान कर दे और जब चाहे उसका अपमान कर दे ।
8.जैन धर्म यदि ऐसी ही सस्ती लोकप्रियता का लोभी होता तो आज घर घर में मंदिर,मड़िया होते और जो चाहे जैसे भी तीर्थंकरों की प्रतिमाओं का बिना किसी नियमों के गलियों,चौराहों पर अभिषेक भी करता होता ।
9.लोकप्रियता के लिए लौकिक स्तर पर भगवान को भी उतारना पड़ता है जो हम भवदधि से पार हो चुके अपने भगवंतों के लिए नहीं कर सकते ।
10. सस्ती धर्म प्रभावना का लोभ धर्म को सस्ता बना देता है । जो कम से कम जैन धर्म को स्वीकार नहीं है । वह सरल हो सकता है निम्न या सस्ता नहीं ।
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- डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली,drakjain2016@gmail.com
एक प्रश्न आया कि मोबाइल पर परमेष्ठी आदि के चित्र को डिलीट करने से पाप होता है अथवा नहीं ?
1. सर्व प्रथम अच्छा तो यह ही है कि पंच परमेष्ठी के चित्र आदि सोशल मीडिया पर न भेजे जाएं ।
2.सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्ररत्नत्रयप्रभावेन आत्मनः प्रकाशनं प्रभावनम् । - सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्ररूप रत्नत्रय के प्रभाव से आत्मा को प्रकाशमान करना प्रभावना है । बाकी सोशल मीडिया आदि अन्य प्रभावना के कार्य उपचार से ही हैं । वास्तविक प्रभावना नहीं है ।
3. मेरी व्यक्तिगत मान्यता है कि सोशल मीडिया पर परमेष्ठी के चित्र आदि भेजने से न पुण्य होता है न मोबाइल से इन्हें डिलीट करने से पाप ।
4.अन्यथा भेजने वाला पुण्य के लोभ में भेजता रहेगा और हम पाप के डर से कब तक मेमोरी कार्ड बदलते रहेंगे ।
5. चित्र आदि की उपचार विनय ही होती है ,हो पाती है ।वह वास्तविक विनय नहीं है ।
6.फिर कल को पारस और जिनवाणी आदि चैनल वाले भी कहने लगेंगे कि यदि आपने हमारा चैनल बदल कर न्यूज़ या सीरियल का चैनल लगाया तो पाप बंध हो जाएगा । क्यों कि यह जिन धर्म का अपमान है ।
7. विश्वास माने जैन धर्म सरल जरूर है पर इतना सस्ता नहीं है जो जब चाहे उसका सम्मान कर दे और जब चाहे उसका अपमान कर दे ।
8.जैन धर्म यदि ऐसी ही सस्ती लोकप्रियता का लोभी होता तो आज घर घर में मंदिर,मड़िया होते और जो चाहे जैसे भी तीर्थंकरों की प्रतिमाओं का बिना किसी नियमों के गलियों,चौराहों पर अभिषेक भी करता होता ।
9.लोकप्रियता के लिए लौकिक स्तर पर भगवान को भी उतारना पड़ता है जो हम भवदधि से पार हो चुके अपने भगवंतों के लिए नहीं कर सकते ।
10. सस्ती धर्म प्रभावना का लोभ धर्म को सस्ता बना देता है । जो कम से कम जैन धर्म को स्वीकार नहीं है । वह सरल हो सकता है निम्न या सस्ता नहीं ।
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