"समाज का वास्तविक आइना है परिचय सम्मेलन"
डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
विगत दिनों एक वैवाहिक सम्बन्ध के निमित्त भोपाल में आयोजित अखिल भारतीय दिगंबर जैन युवक –युवती परिचय सम्मेलन,टीन शेड जैन मंदिर ,टी.टी.नगर को जीवन में पहली बार इतने करीब से देखने को मिला.चार हज़ार से अधिक प्रत्याशियों के नामांकन के रिकॉर्ड के साथ यह संपन्न हुआ .बहुत ही सुन्दर व्यवस्था तथा वातावरण को देख कर वहाँ के पदाधिकारी तथा कार्यकर्ताओं को भी मैंने साधुवाद दिया .पूरे तीन दिन मैंने ऐसे कार्यक्रम को देखा जो सीधे रूप से भले ही कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं था ,किन्तु उससे कम भी नहीं था.समाज के बीच इस सम्मेलन के माध्यम से मैंने कुछ समीक्षा भी की जिसकी झलक / समीक्षा/ सुझाव / आदि मैं यहाँ बिन्दुवार रख रहा हूँ.आशा है पूरे देश के सभी आयोजक तथा अभिभावक इससे प्रेरणा लेंगे.
झलक :
१.मंच पर जब प्रत्याशियों से कोई गीत सुनाने को कहा गया तब प्रायः सभी ने भजन ही सुनाये .इसका मतलब है कि डिस्को धुन पर थिरकने वाली यह नई पीढ़ी यह जानती है कि समाज और धर्म में तो भजन से ही संस्कारी माना जाता है .
२.जब उनसे रूचि /शौक पूछा गया तो एकाध को छोड़ कर किसी ने ये नहीं कहा कि मुझे देव दर्शन ,पूजन ,स्वाध्याय में रूचि है.
३. जब उनसे “भावी जीवन साथी से अपेक्षायें” पूछा गया तो एकाध को छोड़ कर किसी ने ये नहीं कहा कि उसमें देव दर्शन ,पूजन ,स्वाध्याय में रूचि होनी चाहिए तथा रात्रि भोजन त्याग ,जमीकंद त्याग होना चाहिए.
४.एक कहावत है कि विवाह सम्बन्ध में प्रमुख रूप से “लड़की की चमड़ी और लड़के की दमड़ी” देखी जाती है पर खुद उनसे पूछी नहीं जाती किन्तु खुले रूप से लड़की की उम्र और लड़के का पैकेज पूछा जा रहा था.इसमें सभ्यता का ध्यान जरूर रखना चाहिए.इनकी जानकारी के अन्य स्रोत भी होते हैं.अभिभावक से चर्चा करनी चाहिए.
५.पूरा माहौल पारिवारिक था ,युवक युवती भी बहुत शालीन भाषा में वार्तालाप कर रहे थे.इससे लगा कि जैन समाज काफी बोल्ड हो गया है.
समीक्षा :
१.मंच के सभी संचालक चतुर और मेहनती लगे किन्तु एकाध ऐसे भी दिखे जिन्होंने प्रत्याशियों से कुछ अतिरेक में प्रश्न पूछे .उदाहरण के लिए एक लड़की से उसके पापा के प्रोफेशन के बारे में इतनी बार घुमा के प्रश्न पूछे कि उसे अंत में कहना पड़ा कि इन दिनों वो सस्पेंड चल रहे हैं.ये गलत है .आप कोई वकील नहीं हो और ना ही माइक पर खड़ा प्रत्याशी कोई अपराधी.यही कारण है कि प्रत्याशी मंच पर आने से घबराते हैं और संकोच करते हैं .
२.किसी भी प्रत्याशी को अपनी या परिवार की किसी कमजोरी को मंच पर सार्वजनिक करने या ना करने का निर्णय उसका स्वयं का होना चाहिए.ये बातें तो रिश्ते करने वाले स्वयं कर लेंगे .
३.मैंने कई अत्यंत बुजुर्ग अभिभावकों को देखा तथा उनसे बातचीत की.पुराने देशी तौर तरीकों वाले इन बुजुर्गो से कोई बात करने को भी तैयार नहीं था.वे अत्यंत निराश थे.तड़क भड़क और दिखावे की संस्कृति के बीच ऐसे लोगों के लिए कुछ कार्यकर्ताओं की टीम जरूर होनी चाहिए जो इनके केस को समझे और उनकी बात को मंच पर रखे और उनकी हर संभव मदद करे .हाँ ऐसे में कुछ दलाल नुमा लोग जरूर उन्हें अपना ग्राहक बनाने में लगे थे.
सुझाव :
१.फार्म में एक ईमेल आई डी का कालम जरूर होना चाहिए .ताकि बायोडाटा आदि भेजने में सुविधा हो.
२.सांस्कृतिक कार्यक्रमों में एक पैनल discussion जैसा भी होना चाहिए.जिसमें समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगों को बैठा कर वर वधु के चुनाव के मौलिक पहलुओ पर ,पारिवारिक शांति पर ,पति पत्नी संबंधों,तलाक ,प्रेम विवाह आदि विषयों पर चर्चा हो.मैंने बातचीत के दौरान पाया वर वधु के चुनाव विषय पर लोग बहुत ही भौतिकवादी तथा उथले दिखे.कई लोगों में तो बातचीत तक की तहजीब नहीं दिखी.लोग उसी तरह बातचीत करते दिखाई दिए मानो कोई प्रोपर्टी खरीदने और बेचने आये हों .वैसे भी वहाँ प्रोपर्टी के पोस्टर बैनर तथा स्टाल की भरमार थी.
३. देव दर्शन ,पूजन ,स्वाध्याय ,रात्रि भोजन त्याग ,जमीकंद त्याग आदि के बारे में भी प्रत्याशी की राय भी अवश्य प्रकाशित होना चाहिए.आखिर ये मापदंड समाज नहीं बनाएगा तो फिर कौन बनाएगा ? प्रोफेशनल मेरिज ब्यूरो वाले तो इन मूल्यों को तव्वजो देने से रहे.आज भी एक विवाह के समय ही परिवार और नई पीढ़ी समाज के मुहताज बनते हैं.समाज को इसका फायदा धर्म प्रचार के लिए उठाना चाहिए .
इन सबके अलावा भी बहुत सारी बातें हैं जो गुप्त ही रहें तो बेहतर है.मैंने अत्यंत विनम्रता पूर्वक मात्र हित की दृष्टि से ये बाते कही है.परिवर्तन और विकास की सम्भावना हमेशा बनी रहते है.आशा भविष्य में जो भी ऐसे कार्यक्रम करेंगे वे इन तथ्यों से प्रेरणा लेकर आवश्यक परिवर्तन करेंगे.
धन्यवाद
डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
09711397716
anekant76@yahoo.co.in
डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
विगत दिनों एक वैवाहिक सम्बन्ध के निमित्त भोपाल में आयोजित अखिल भारतीय दिगंबर जैन युवक –युवती परिचय सम्मेलन,टीन शेड जैन मंदिर ,टी.टी.नगर को जीवन में पहली बार इतने करीब से देखने को मिला.चार हज़ार से अधिक प्रत्याशियों के नामांकन के रिकॉर्ड के साथ यह संपन्न हुआ .बहुत ही सुन्दर व्यवस्था तथा वातावरण को देख कर वहाँ के पदाधिकारी तथा कार्यकर्ताओं को भी मैंने साधुवाद दिया .पूरे तीन दिन मैंने ऐसे कार्यक्रम को देखा जो सीधे रूप से भले ही कोई धार्मिक अनुष्ठान नहीं था ,किन्तु उससे कम भी नहीं था.समाज के बीच इस सम्मेलन के माध्यम से मैंने कुछ समीक्षा भी की जिसकी झलक / समीक्षा/ सुझाव / आदि मैं यहाँ बिन्दुवार रख रहा हूँ.आशा है पूरे देश के सभी आयोजक तथा अभिभावक इससे प्रेरणा लेंगे.
झलक :
१.मंच पर जब प्रत्याशियों से कोई गीत सुनाने को कहा गया तब प्रायः सभी ने भजन ही सुनाये .इसका मतलब है कि डिस्को धुन पर थिरकने वाली यह नई पीढ़ी यह जानती है कि समाज और धर्म में तो भजन से ही संस्कारी माना जाता है .
२.जब उनसे रूचि /शौक पूछा गया तो एकाध को छोड़ कर किसी ने ये नहीं कहा कि मुझे देव दर्शन ,पूजन ,स्वाध्याय में रूचि है.
३. जब उनसे “भावी जीवन साथी से अपेक्षायें” पूछा गया तो एकाध को छोड़ कर किसी ने ये नहीं कहा कि उसमें देव दर्शन ,पूजन ,स्वाध्याय में रूचि होनी चाहिए तथा रात्रि भोजन त्याग ,जमीकंद त्याग होना चाहिए.
४.एक कहावत है कि विवाह सम्बन्ध में प्रमुख रूप से “लड़की की चमड़ी और लड़के की दमड़ी” देखी जाती है पर खुद उनसे पूछी नहीं जाती किन्तु खुले रूप से लड़की की उम्र और लड़के का पैकेज पूछा जा रहा था.इसमें सभ्यता का ध्यान जरूर रखना चाहिए.इनकी जानकारी के अन्य स्रोत भी होते हैं.अभिभावक से चर्चा करनी चाहिए.
५.पूरा माहौल पारिवारिक था ,युवक युवती भी बहुत शालीन भाषा में वार्तालाप कर रहे थे.इससे लगा कि जैन समाज काफी बोल्ड हो गया है.
समीक्षा :
१.मंच के सभी संचालक चतुर और मेहनती लगे किन्तु एकाध ऐसे भी दिखे जिन्होंने प्रत्याशियों से कुछ अतिरेक में प्रश्न पूछे .उदाहरण के लिए एक लड़की से उसके पापा के प्रोफेशन के बारे में इतनी बार घुमा के प्रश्न पूछे कि उसे अंत में कहना पड़ा कि इन दिनों वो सस्पेंड चल रहे हैं.ये गलत है .आप कोई वकील नहीं हो और ना ही माइक पर खड़ा प्रत्याशी कोई अपराधी.यही कारण है कि प्रत्याशी मंच पर आने से घबराते हैं और संकोच करते हैं .
२.किसी भी प्रत्याशी को अपनी या परिवार की किसी कमजोरी को मंच पर सार्वजनिक करने या ना करने का निर्णय उसका स्वयं का होना चाहिए.ये बातें तो रिश्ते करने वाले स्वयं कर लेंगे .
३.मैंने कई अत्यंत बुजुर्ग अभिभावकों को देखा तथा उनसे बातचीत की.पुराने देशी तौर तरीकों वाले इन बुजुर्गो से कोई बात करने को भी तैयार नहीं था.वे अत्यंत निराश थे.तड़क भड़क और दिखावे की संस्कृति के बीच ऐसे लोगों के लिए कुछ कार्यकर्ताओं की टीम जरूर होनी चाहिए जो इनके केस को समझे और उनकी बात को मंच पर रखे और उनकी हर संभव मदद करे .हाँ ऐसे में कुछ दलाल नुमा लोग जरूर उन्हें अपना ग्राहक बनाने में लगे थे.
सुझाव :
१.फार्म में एक ईमेल आई डी का कालम जरूर होना चाहिए .ताकि बायोडाटा आदि भेजने में सुविधा हो.
२.सांस्कृतिक कार्यक्रमों में एक पैनल discussion जैसा भी होना चाहिए.जिसमें समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगों को बैठा कर वर वधु के चुनाव के मौलिक पहलुओ पर ,पारिवारिक शांति पर ,पति पत्नी संबंधों,तलाक ,प्रेम विवाह आदि विषयों पर चर्चा हो.मैंने बातचीत के दौरान पाया वर वधु के चुनाव विषय पर लोग बहुत ही भौतिकवादी तथा उथले दिखे.कई लोगों में तो बातचीत तक की तहजीब नहीं दिखी.लोग उसी तरह बातचीत करते दिखाई दिए मानो कोई प्रोपर्टी खरीदने और बेचने आये हों .वैसे भी वहाँ प्रोपर्टी के पोस्टर बैनर तथा स्टाल की भरमार थी.
३. देव दर्शन ,पूजन ,स्वाध्याय ,रात्रि भोजन त्याग ,जमीकंद त्याग आदि के बारे में भी प्रत्याशी की राय भी अवश्य प्रकाशित होना चाहिए.आखिर ये मापदंड समाज नहीं बनाएगा तो फिर कौन बनाएगा ? प्रोफेशनल मेरिज ब्यूरो वाले तो इन मूल्यों को तव्वजो देने से रहे.आज भी एक विवाह के समय ही परिवार और नई पीढ़ी समाज के मुहताज बनते हैं.समाज को इसका फायदा धर्म प्रचार के लिए उठाना चाहिए .
इन सबके अलावा भी बहुत सारी बातें हैं जो गुप्त ही रहें तो बेहतर है.मैंने अत्यंत विनम्रता पूर्वक मात्र हित की दृष्टि से ये बाते कही है.परिवर्तन और विकास की सम्भावना हमेशा बनी रहते है.आशा भविष्य में जो भी ऐसे कार्यक्रम करेंगे वे इन तथ्यों से प्रेरणा लेकर आवश्यक परिवर्तन करेंगे.
धन्यवाद
डॉ अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
09711397716
anekant76@yahoo.co.in
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