सादर प्रकाशनार्थ "चातुर्मास में करें प्राकृत भाषा का विकास" विश्व के प्रायःसभी धर्म ग्रन्थ किसी न किसी भाषा में लिखे गए हैं | भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि में जो ज्ञान प्रकट हुआ वह मूल रूप से प्राकृत भाषा में संकलित हैं जिन्हें प्राकृत जैन आगम कहते हैं |इन दिनों जैन समाज में प्रायः सभी जगह साधु/साध्वियां चातुर्मास स्थापित कर रहे हैं |चातुर्मास में प्रत्येक जगह विशेष धर्म आराधना की जाती है तथा लोगों में विशेष उत्साह रहता है |वर्तमान में यह देखा जा रहा है कि हमारे मूल आगमों की भाषा प्राकृत को लोग जानते भी नहीं हैं तथा इसका परिचय भी नहीं है |इसीलिए हम अपने शास्त्र पढ़ नहीं पाते हैं |यह हमारा दुर्भाग्य है |इस वर्ष चातुर्मास में सभी साधू श्रावक विद्वान् आदि निम्नलिखित प्रयास करके समाज में प्राकृत भाषा को पुनः जीवंत कर सकते हैं - १. अपनी सभाओं में प्रत्येक कार्यक्रम के पहले एक मंगलाचरण प्राकृत गाथाओं का अवश्य करें अथवा करवाएं |तथा उससे पूर्व सभा में यह घोषणा करें कि अब प्राकृत भाषा में मंगलाचरण होगा |हो सके तो उसका अर्थ भी बताएं | २. चातुर्मास में एक हफ्ते का प्राकृत शिक्