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संदेश

जिनवाणी नष्ट क्यों हुई ?

*जब चारों वेद बचा लिए गए तो द्वादशांग आगम क्यों हो गए नष्ट ?* *क्या हम आगे भी भगवान महावीर की शेष बची जिनवाणी बचा पाएंगे ?*  *हमारा क्या है प्लान ?* *सुनें सोचें और विचार करें* Must listen An eye opening lecture by  *Dr Anekant Kumar Jain* New Delhi  https://youtu.be/3-gNxLmWpYI

अवश्य सुनें ऐतिहासिक प्राकृत श्रुत व्याख्यान श्रृंखला

सादर प्रकाशनार्थ अवश्य सुनें ऐतिहासिक प्राकृत श्रुत व्याख्यान श्रृंखला श्रुत पंचमी प्राकृत दिवस पर दिनांक 13/05/2020 से 27/ 05/2020   तक पंद्रह दिवसीय प्राकृत भाषा एवं साहित्य से सम्बंधित ऑनलाइन व्याख्यान श्रृंखला का भव्य आयोजन फेस बुक के PRAKRIT LANGUAGE AND LITERATURE नामक पेज पर किया गया | इसमें देश विदेश के प्राकृत भाषा , आगम एवं साहित्य के वरिष्ठ मनीषियों के सरल एवं सारगर्भित व्याख्यान देकर सभी के ज्ञान को समृद्ध किया | अभी तक देश विदेश के लगभग 35 हज़ार लोग इन व्याख्यानों को सुन चुके हैं तथा निरंतर उनकी संख्या आशातीत रूप से बढ़ रही है | यदि किन्हीं कारणों से आप इनमें से कोई नही व्याख्यान सुनने से चूक गए हों तो हम यहाँ क्रम से प्रत्येक व्याख्यान का लिंक एक साथ प्रेषित कर रहे हैं |आप उन्हें अपने अनुकूल समय में कभी भी सुन सकते हैं |प्रत्येक व्याख्यान औसतन एक घंटे के हैं | 1. प्रथम व्याख्यान : 13 /05 / 2020 : प्रो फूलचंद जैन प्रेमी जी ,वाराणसी : “ प्राकृत भाषा का वैभव ” https://www.facebook.com/PrakritLanguage/videos/ 545895272783657/ 2. द्वितीय व्याख्यान : 15 /05/

णमो माआअ

अनेकांत कुमार जैन जी की एक प्राकृत कविता के संस्कृत अनुवाद का प्रयास मातृदिवस पर  नैव कल्याणमेवास्ति, जीवश्वासश्च यां विना | या च लोकत्रयाचार्या, तस्यै मात्रे नमो नमः || *णमो माआअ* ............. *जेण विणा जीवणस्स ,सासो वि कल्लाणो वि खलु ण हवइ।* *तस्स भुवणेक्कं गुरु,पढमो णमो णमो माआअ ।।* भावार्थ -  जिसके बिना जीवन का श्वास भी नहीं चलता और निश्चित रूप से जीवन का कल्याण भी नहीं होता ,उस तीनों लोकों में पहली शिक्षिका , मां ( माता) को नमन है  नमन है । कौशल तिवारी

प्राचीन संस्कृत ग्रंथ - आत्मानुशासनम्

*प्राचीन संस्कृत ग्रंथ - आत्मानुशासनम्* *निज पर शासन ,फिर अनुशासन* का संदेश देने वाले ग्रंथ ' आत्मानुशासनम् ' के रचयिता आचार्य गुणभद्र दक्षिण भारत में आरकट जिले के तिरुमरूङ कुंडम नगर के निवासी थे तथा संघसेन  संघ के आचार्य थे ।इनके गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय थे तथा इनके दादा गुरु का नाम वीरसेन था । आचार्य गुणभद्र ने अपने गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय के ग्रंथ महापुराण को पूर्ण किया था । आचार्य गुणभद्र का समय नवमी शताब्दी माना जाता है । आचार्य गुणभद्र की अन्य रचनाएं आदि पुराण, उत्तर पुराण तथा जिन दत्त चरित काव्य है । आचार्य गुण भद्र ने आत्मानुशासन ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की है जिसमें अध्यात्म धर्म तथा नीति से संबंधित 269 पद्य हैं । इस ग्रंथ पर 11 वीं शताब्दी में आचार्य प्रभाचंद्र ने संस्कृत में टीका लिखी थी जिसका संपादक डॉ ए. एन. उपाध्येय एवम् डॉ हीरालाल जैन ने किया था तथा शोधपूर्ण प्रस्तावना भी लिखी थी ।  मोक्षमार्ग प्रकाशक नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ लिखने वाले जयपुर के  सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमल जी ने ढूंढारी भाषा में एक विशाल टीका लिखी जो प्रकाशित भी है । इस ग्रंथ पर एक ट

मंदिर मस्जिद भी खुलवा देंगे

*मंदिर मस्जिद भी खुलवा देंगे* अब  मंदिर मस्जिद की जगह घर में ही बनाओ और  भगवान् की फोटो की जगह  रखो दर्पण  रोज निहारो  अपना रूप और करो  खुद से ही  सवाल  कि क्या तुम  खुद को खुदा की बंदगी के भी काबिल  समझते हो ? और मिल जाए  जवाब तो बता देना  धर्म स्थान का लॉक डाउन भी खुलवा देंगे । कुमार अनेकांत©️ ६/०४/२०२०

प्राकृत साहित्य में लॉक डाउन

*पागद-साहिच्चम्मि lock down, Quarantine तहा Isolation*      (प्राकृत साहित्य में lockdown, Quarantine तहा Isolation ) वत्तमाणकालम्मि करोणा वायरसेण संपुण्ण विस्सो भयवंतो अत्थि | भारदे लॉक डाउण हवन्ति | पाचीण पागद-साहिच्चम्मि सावयस्स बारसवयणं वण्णणं सन्ति तम्मि गुणव्वयम्मि दिगवयस्स तहा देसवयस्स तुलणा लॉकडाउणेण सह हवदि |  कत्तिकेयाणुपेक्खम्मि (गाहा -३६७-३६८ )उत्तं – *पुव्‍व-पमाण-कदाणं सव्‍वदिसीणं पुणो वि संवरणं।*  *इंदियविसयाण तहा पुणो वि जो कुणदि संवरणं।।*   *वासादिकयपमाणं दिणे दिणे लोह-काम-समणट्ठं।।*  वसुणन्दिसावगायारे(गाहा- २१४-२१५ ) उत्तं – *पुव्‍वुत्तर-दक्खिण-पच्छिमासु काऊण जोयणपमाणं।*  *परदो गमणनियत्तो दिसि विदिसि गुणव्‍वयं पढमं। ।*  *वयभंग-कारणं होइ जम्मि देसम्मि तत्‍थ णियमेण।*  *कीरइ गमणणियत्ती तं जाणा गुणव्वयं विदियं।।* आयरियो वट्टकेरो मूलायारे एगो पण्ह- उत्तरं उत्तं  -  पण्ह - *कहं चरे कहं चिट्ठे कहमासे कहं सए।* *कहं भुंजतो मासंतो पावं कम्मं न बंधई  | |’* (गाहा १०/१२१) केण पकारेण जीवणं जीवेइ जेण पावकम्मं ण बंध ई ? आयरिय बहु समीइणं समाहाणं दत्तं जेण कोरोणा - महामारीए -  Quarantin

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है

धर्म का लॉक डाउन तो सदियों से चल रहा है कुमार अनेकांत पुराने जमाने की एक कहानी सुनी होगी । अमावस्या के दिन डाकू पहाड़ी पर बने देवी के मंदिर में जरूर आता है और देवी को प्रसाद जरूर चढ़ाता है । पुलिस भी जो और दिनों में उसे ढूढने में असफल रहती है वह अमावस्या की रात मंदिर के आसपास डाकू की प्रचंड भक्ति पर विश्वास करके घेरा बंदी कर लेती है कि उसकी और बातें भले ही झूठ हों लेकिन यह बात बिल्कुल सही है कि वह देवी से रक्षा और सफलता का आशीर्वाद लेने जरूर आता है । ऐसी कहानियां सच हैं कि काल्पनिक हैं या फिल्मी हैं यह तो आप जानें लेकिन धर्म क्षेत्र की अधिकांश व्यवस्थाएं इन दिनों किसी न किसी रूप में ऐसे ही डाकुओं से घिरी हुई हैं । फर्क सिर्फ इतना है कि अब डाकू छुप कर नहीं आते ,  क्यों कि डकैती कर्म होने पर भी वे अब इतने स्वच्छ दिखते हैं कि अब वे डाकू नहीं कहलाते । अब वे सामाजिक हैं । लूटने के ,डकैती के बहुत सुरक्षित उपाय उन्होंने अपना लिए हैं । अब आप लुट जाएंगे और उसे डाकू भी नहीं कह पाएंगे क्यों कि उसने इतने सफेद आवरण ओढ़ रखे हैं कि आप उस पर दाग भी नहीं लगा सकते । डाकुओं ने अपना ड्रेस कोड

भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन

*भगवान् महावीर की दृष्टि में लॉक डाउन* *प्रो अनेकांत कुमार जैन*,नई दिल्ली भगवान महावीर की वाणी के रूप में प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में रचित हजारों वर्ष प्राचीन  शास्त्रों में गृहस्थ व्यक्ति को बारह व्रतों की शिक्षा दी गई है जिसमें चार शिक्षा व्रत ग्रहण की बात कही है ,जिसमें एक व्रत है  *देश व्रत* । गृहस्थ के जीवन जीने के नियमों को बताने वाले सबसे बड़े संविधान वाला पहला संस्कृत का  ग्रंथ *रत्नकरंड श्रावकाचार* में इसका प्रमाणिक उल्लेख है जिसकी रचना ईसा की द्वितीय शताब्दी में जैन आचार्य समंतभद्र ने की थी ।अन्य ग्रंथों में भी इसका भरपूर वर्णन प्राप्त है ।  कोरोना वायरस के कारण वर्तमान में जो जनता कर्फ्यू और लॉक डाउन आवश्यक प्रतीत हो रहा है उसकी तुलना हजारों वर्ष प्राचीन भारतीय संस्कृत के शास्त्रों में प्रतिपादित देश व्रत से की जा सकती है । *देशावकाशिकं स्यात्कालपरिच्छेदनेन देशस्य ।* *प्रत्यहमणुव्रतानां प्रतिसंहारो विशालस्य* ॥ ९२ ॥ *गृहहारिग्रामाणां क्षेत्रनदीदावयोजनानां च ।* *देशावकाशिकस्य स्मरन्ति सीम्नां तपोवृद्धाः* ॥ ९३ ॥ *संवत्सरमृमयनं मासचतुर्मासपक्षमृक्षं च ।* *देशावकाशिकस्य प्राहुः

भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग

*भारत लॉक डाउन पर जैन समाज का अनुकरणीय सहयोग* *प्रो. अनेकांत कुमार जैन*, अध्यक्ष -  जैन दर्शन विभाग ,श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय , नई दिल्ली -१६ इतिहास गवाह है कि जैन धर्म तथा समाज राष्ट्र में मुसीबत के समय हमेशा कदम से कदम मिलाकर साथ देता है ।  राष्ट्र व्यापी लॉक डाउन के समर्थन में अपने जैन मंदिरों पर ताले लगा देना ,जैन समाज की समकालीनता और आध्यात्मिकता का सूचक है । जैन परम्परा में प्रतिदिन देव दर्शन तथा जिनालय में जिनबिम्ब का अभिषेक तथा पूजन एक अनिवार्य शर्त है जिसका कड़ाई से पालन होता है किन्तु करोना वायरस के प्रकोप के चलते राष्ट्रीय लॉक डाउन की घोषणा के तहत  ये नियमित अनिवार्य अनुष्ठान भी टाल कर जैन समाज ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्र हित से बढ़कर कुछ भी नहीं है । जब ऐसे समय में कई संप्रदाय अंध श्रद्धा के वशीभूत होकर अपनी कट्टर सोच और क्रिया में जरा सा भी परिवर्तन नहीं करते हैं वहीं जैन धर्म हमेशा से समकालीन युग चेतना को बहुत ही विवेक से संचालित करता है । यह प्रेरणा उन्हें तीर्थंकरों की अनेकांतवादी शिक्षा से प्राप्त होती है ।  दरअसल जैन दर्शन  में नि

करोना वायरस के भय से मुक्त करता है जैन दर्शन

*करोना वायरस के भय से मुक्त करता है जैन दर्शन* *प्रो. डॉ अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली*  हमें करोना वायरस से सतर्क रहना है , सभी नियमों का पालन करना है लेकिन भयभीत नहीं होना है । घबडाना नहीं है ।  करोना के साथ संघर्ष के लिए जो आत्मबल चाहिए,भय - चिंता और अवसाद उसे कमजोर बनाता है ।  भय, चिंता और अवसाद करोना से भी ज्यादा खतरनाक वायरस है ।  जैन दर्शन का शाश्वत सिद्धांत हमें सभी प्रकार के भय और चिंता से दूर करके हर परिस्थिति से विवेक और पुरुषार्थ पूर्वक लड़ना सिखाता है हमारा आत्मबल मजबूत करता है -  *जो जो देखी वीतराग ने सो सो होसी वीरा रे*  *अनहोनी सो कब हूं न होसी*  *काहे होत अधीरा रे* प्राकृत भाषा के प्राचीन आगम में दो गाथाएं ऐसी आती हैं जो हमें भय मुक्त बनाती हैं - *जं जस्‍स जम्मि देसे जेण विहाणेण जम्मि कालम्मि।*  *णादं जिणेण णियदं जम्‍मं वा अहव मरणं वा*।। *तं तस्स तम्मि देसे तेण विहाणेण तम्मि कालम्मि।* *को सक्कदि वारेदुं इंदो वा तह जिणिंदो वा*।।  कत्तिकेयाणुवेक्खा/गाथा ३२१-३२२ अर्थात् जिस जीव के, जिस देश में, जिस काल में, जिस विधान से, जो जन्‍म अथवा मरण जिनदेव ने नियत रूप से जाना है; उस ज

बना रहे बनारस

बना रहे बनारस होली का तीन दिन का अवकाश ,अचानक काशी यात्रा का कार्यक्रम और बनारस के रस की तड़फ ...सब कुछ ऐसा संयोग बना कि पहुँच ही गए काशी |इस बार बहुत समय बाद जाना हुआ |लगभग डेढ़ वर्ष बाद ...डर रहा था कि अपने बनारस को पहचान पाउँगा कि नहीं ? कहीं क्योटा न हो गयी हो काशी |भला करे भगवान् ....वही जगह ,वैसे ही लोग वही संबोधन ...का बे ....का गुरु .....???वाले और वे सारे स्वतः सिद्ध ह्रदय की निर्मलता से स्फुटित शब्द ..जिन्हें अन्यत्र अपशब्द कहा जाता है और कुटिलता में प्रयुक्त होता है | दिल्ली की सपाट ,साफ़ सुथरी किन्तु भयावह सड़कों को भुगतने के बाद ...काशी की उबड़ खाबड़ सड़कें और शिवाला के सड़क किनारे बने कूड़ा घर के बाहर लगभग आधे से अधिक सड़क भाग पर पसडा काशी का कूड़ा और आती दुर्गध भी मुझे उसी मूल काशी का लगातार अहसास करवा रहे थे और मैं  खुश था कि चाहे खोजवां हो ,या कश्मीरीगंज,अस्सी हो या भदैनी या फिर लंका से लेकर नरिया होते हुए सुन्दरपुर सट्टी इनका सारा कूड़ा बाहर रहता है ...दिल के अन्दर नहीं | भारत के स्व.... अभियान की सारी शक्ति भी इस शहर में लगा दें तो किसी को कोई फिकर नहीं है |बाबा भोले के भक्त अपन