*प्राचीन संस्कृत ग्रंथ - आत्मानुशासनम्* *निज पर शासन ,फिर अनुशासन* का संदेश देने वाले ग्रंथ ' आत्मानुशासनम् ' के रचयिता आचार्य गुणभद्र दक्षिण भारत में आरकट जिले के तिरुमरूङ कुंडम नगर के निवासी थे तथा संघसेन संघ के आचार्य थे ।इनके गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय थे तथा इनके दादा गुरु का नाम वीरसेन था । आचार्य गुणभद्र ने अपने गुरु आचार्य जिनसेन द्वितीय के ग्रंथ महापुराण को पूर्ण किया था । आचार्य गुणभद्र का समय नवमी शताब्दी माना जाता है । आचार्य गुणभद्र की अन्य रचनाएं आदि पुराण, उत्तर पुराण तथा जिन दत्त चरित काव्य है । आचार्य गुण भद्र ने आत्मानुशासन ग्रंथ की रचना संस्कृत भाषा में की है जिसमें अध्यात्म धर्म तथा नीति से संबंधित 269 पद्य हैं । इस ग्रंथ पर 11 वीं शताब्दी में आचार्य प्रभाचंद्र ने संस्कृत में टीका लिखी थी जिसका संपादक डॉ ए. एन. उपाध्येय एवम् डॉ हीरालाल जैन ने किया था तथा शोधपूर्ण प्रस्तावना भी लिखी थी । मोक्षमार्ग प्रकाशक नामक सुप्रसिद्ध ग्रंथ लिखने वाले जयपुर के सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित टोडरमल जी ने ढूंढारी भाषा में एक विशाल टीका लिखी जो प्रकाशित भी है । इस ग्रंथ पर एक ट