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जिनालय ही विद्यालय है

 जिनालय ही विद्यालय है और पूजा-स्वाध्याय मोक्ष की कक्षा    प्रो अनेकांत कुमार जैन जगत में लौकिक शिक्षा के लिए हम विद्यालय जाते हैं | मोक्षमार्ग की शिक्षा के लिए हमारे जिनालय ही विद्यालय हैं | जिनालय एक आध्यात्मिक प्रयोगशाला है | जहाँ समस्त भव्य जीव रत्नत्रय की साधना करते हैं और अपना मोक्षमार्ग प्रशस्त करते हैं |जिनालय में हम अरहन्त जिनेन्द्र भगवान् का दर्शन करते हैं | जिनागम में कई स्थलों पर  लिखा है कि जो विवेकी जीव भाव पूर्वक अरहन्त को नमस्कार करता है वह अति शीघ्र समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है-  ‘अरहंतणमोक्कारं भावेण य जो करेदि पयदमदी।                    सो सव्वदुक्खमोक्खं पावदि अचिरेण कालेण।। ’   (मू.आ./५०६   ) श्रावकों के छह कर्तव्य बतलाये गए हैं – देवपूजा,गुरु की उपासना,स्वाध्याय ,संयम ,तप और दान | इसमें भी रयणसार ग्रन्थ में आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं कि दान और पूजा मुख्य है | जो श्रावक दान नहीं करता और देव शास्त्र गुरु की पूजा नहीं करता वह श्रावक नहीं है -                        ‘दाणं पूजा मुक्खं सावयधम्मे ण सावया तेण विणा’  (गाथा ११ ) जैन पूजा पद्धति की सबसे

प्रो०डॉ अनेकांत कुमार जैन संक्षिप्त परिचय

संक्षिप्त परिचय प्रो०डॉ अनेकांत कुमार जैन शिक्षा -एम.ए.(जैन विद्या एवं तुलनात्मक धर्मदर्शन)    , जैनदर्शनाचार्य , पी-एच.डी , NET/JRF पिता - प्रो.डॉ.फूलचन्द जैन प्रेमी , वाराणसी,   माता - श्रीमती डॉ मुन्नीपुष्पा जैन,वाराणसी प्रकाशन – १.बारह ग्रंथों का लेखन और संपादन २.लगभग ७० शोधपत्र , राष्ट्रिय / अन्ताराष्ट्रिय शोध-पत्रिकाओं में हिन्दी , संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित। ३.विभिन्न राष्ट्रिय समाचार पत्रों , पत्रिकाओं में धर्म-संस्कृ ति तथा समसामयिक विषयों पर शताधिक लेख ,कवितायेँ और कहानियां प्रकाशित। ४.प्राकृत भाषा की प्रथम पत्रिका ‘पागद-भासा’के मुख्य संपादक तथा अनेक पत्र पत्रिकाओं के संपादक मंडल के सदस्य    पुरस्कार / उपाधियाँ / सम्मान - १. महर्षि वादरायण व्यास युवा राष्ट्रपति पुरस्कार २.महावीर पुरस्कार ३. शास्त्रिपरिषद पुरस्कार ४.विद्वत्परिषद पुरस्कार ५.कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ पुरस्कार ६. अर्हत्वचन पुरस्कार   ७.जैन सिद्धांत भास्कर ८.युवा वाचस्पति ९. अहिंसा इन्टरनेशनल अवार्ड १०.दिल्ली सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान   आदि अन्य योगदान -           १.द

मैं मतदान करता हूं , मतिदान नहीं - डॉ. अनेकांत जैन

मैं मतदान करता हूं , मतिदान नहीं          - डॉ. अनेकांत जैन मैं हमेशा उस प्रत्याशी को वोट देता हूं जो साफ छवि का हो , राष्ट्र भक्त हो ,अपेक्षाकृत ज्यादा ईमानदार हो, जिसका इरादा नेक हों। भले ही वह किसी भी जाति ,धर्म,पंथ,संप्रदाय,भाषा या क्षेत्र का हो । कभी कभी ऐसे प्रत्याशी हार भी जाते हैं , लेकिन मैं तब भी उन्हें ही वोट देता हूं । मुझे यह संतोष रहता है कि मैंने गलत का साथ नहीं दिया । और उस प्रत्याशी को भी इस बात की प्रसन्नता रहती है कि कुछ लोग तो हैं जो अच्छाई पसंद करते हैं । जमाना भले ही उसके खिलाफ हो । वोट उसे ही जिसकी नीयत साफ हो ।। सुधरे मतदाता , नेता मतदाता से ,राष्ट्र स्वयं सुधरेगा ।

नेता ईमानदार तभी मिलेगा जब मतदाता ईमानदार हो

हम सभी चाहते हैं कि एक ऐसा व्यक्ति भारत का प्रधान मंत्री होना चाहिए जो जन आंदोलनों से उभरा हो ,जिसने जनता का दर्द महसूस किया हो । जिसमें विदेशी कूटनीति की गहरी समझ हो । जो सिर्फ अच्छा प्रशासक ही न हो बल्कि एक सच्चा समाज सेवक भी हो । समाज में,राष्ट्र में किसी नए परिवर्तन का पुरोधा हो । जो राष्ट्र को मजबूती प्रदान करने की क्षमता रखता हो । जो धार्मिक हो , आध्यात्मिक हो किन्तु सांप्रदायिक न हो । जो जाति,भाषा,धर्म के नाम पर  देश को बंटने से रोके । जो सभी को समान दृष्टि से देखता हो । स्वयं चारित्र निष्ठ हो ।आत्मानुशासित हो , निरहंकार हो , सादगी और विनम्रता की मिसाल हो । दिल का अमीर हो ,न्यायप्रिय हो । ईमानदार हो और नीयत साफ हो । यह सब तभी संभव है जब मतदाता ईमानदार , समझदार , विवेकशील और देश भक्त हो । मतदाता अर्थात् राष्ट्र निर्माता । जमाना भले ही उसके खिलाफ हो , वोट उसे जिसकी नीयत साफ हो ।  

स्वच्छता अभियान और भगवान् महावीर

भगवान् महावीर का स्वच्छता और शुद्धता अभियान प्रो अनेकांत कुमार जैन* वर्तमान में स्वच्छ भारत अभियान आन्दोलन से स्वच्छता ने हमारी भारतीय संस्कृति  के गौरव को पुनः स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है  | भारतीय समाज में इसी तरह का स्वच्छता अभियान भगवान् महावीर ने ईसा की छठी शताब्दी पूर्व  चलाया  था  | उस अभियान को हम शुद्धता का अभियान कह सकते हैं  | भगवान् महावीर ने दो तरह की शुद्धता की बात कही -1. अन्तरंग शुद्धता 2. बहिरंग शुद्धता  | क्रोध, मान, माया,लोभ ये चार कषाये हैं  | ये आत्मा का मल-कचड़ा  है  | भगवान्महावीर ने मनुष्य में सबसे पहली आवश्यकता इस आंतरिक कचड़े को दूर करने की बतायी | उनका स्पष्ट मानना था की यदि क्रोध, मान, माया, लोभ और इसी तरह की अन्य हिंसा का भाव आत्मा में हैं तो वह अशुद्ध है और ऐसी अवस्था में बाहर से चाहे कितना भी नहाया-धोया जाय, साफ़ कपडे पहने जायें वे सब व्यर्थ हैं, क्यों कि किसी पशु की बलि देने से पहले उसे भी नहलाया-धुलाया जाता है, पुजारी भी नहाता है और उस पशु की पूजा करता है  |             भगवान् महावीर का मानना था की उस निर्दोष प्राणी के जीवन को स

भगवान् महावीर की भाषा को समझें

महावीर जयंती पर विशेष - भगवान् महावीर की भाषा को समझें प्रो.डॉ अनेकांत कुमार जैन ,नई दिल्ली हम भगवान् महावीर को जानना समझना चाहते हैं किन्तु जब तक हम उनकी भाषा और शैली को नहीं समझेंगे तब तक क्या हम उनके उपदेशों को सही अर्थों में समझ पाएंगे ? भगवान् महावीर ने जो सबसे बड़ी क्रांति की थी वह थी उनकी संवाद शैली | जिस अतीन्द्रिय ज्ञान के माध्यम से उन्होंने आत्मा के सत्य के बहुआयामी स्वरुप को जान लिया था उसे व्याख्यायित करते समय उनके सामने दो समस्याए थीं एक तो सभी लोग संस्कृत नहीं जानते थे और दूसरा इन्द्रिय ,वाणी और शब्दों की सीमित शक्ति वस्तु के परस्पर विरोधी प्रतीत होने वाले बहु आयामी स्वरुप को यथावत् अभिव्यक्त करने में समर्थ नहीं थी | इसके समाधान के लिए उन्होंने सबसे पहले उस समय पूरे भारत की जनभाषा प्राकृत में प्रवचन देना प्रारंभ किया – ‘भगवं च अद्धमागिए भासाए धम्मं आइक्ख’ |उस समय प्राकृतभाषा अनेक रूपों में प्रचलित भाषा थी बाद में सम्राट अशोक ने भी अपने अनेक शिलालेख प्राकृत भाषा में ही लिखवाए |कालिदास,शूद्रक आदि ने अपने नाटकों में प्राकृत भाषा का प्रयोग किया | भाषा वैज्ञानिक इसी

PHD on Phone

*फोन पर पीएचडी* - प्रो अनेकांत कुमार जैन drakjain2016@gmail.com ➡सर मैं पीएचडी करना चाहती हूं । ✅बहुत अच्छी बात है । ➡इसके लिए मुझे क्या करना होगा ? ✅आप पीएचडी क्यों करना चाहती हैं ? ➡ सर, मुझे बहुत शौक है कि मेरे नाम के आगे भी डॉक्टर लगे । ✅शौक के लिए करना है ? ➡जी ✅चलिए , ठीक है । किसी दिन विभाग में समय लेकर आइए , विस्तार से चर्चा करेंगे । ➡मगर , सर ,  विश्वविद्यालय बहुत दूर है , फोन पर चर्चा नहीं हो सकती । आपके पास जब समय हो मैं बात कर लूंगी । ✅ठीक है , कल शाम को ४ बजे बात कीजिएगा । तीन दिन बाद ➡हैलो सर , मैं बोल रही हूं , आपसे पीएचडी के बारे में बात की थी ।वो कौन सा विषय लेना चाहिए ? ✅आप आज फोन कर रही हैं ? ➡sorry sir वो क्या था न कि घर पर कुछ रिश्ते दार आ गए थे तो मैं भूल गई , अभी अचानक याद आया । ✅चलिए , ठीक है , बतलाए , क्या कहना है ? ➡वो मैं ये पूछ रही थी कि पीएचडी के लिए रोज विश्वविद्यालय आना पड़ेगा ? ✅जी, ➡ क्या , ये पत्राचार से भी हो सकता है ? ✅नहीं , यह नियमित कोर्स है । ➡तब मैं कैसे करूंगी ? मैं तो रोज आ नहीं सकती । ✅तो मत कीजिए , आपसे किसने कहा पीए

चौकीदार आप हो .....हम तो जमींदार हैं.......

चौकीदार आप हो ......          हम तो जमींदार हैं....... - कुमार अनेकांत लगभग बीस वर्ष पहले की बात है । बनारस के अस्सी घाट पर गंगा किनारे एक कवि सम्मेलन हो रहा था । हम छात्र थे ,  कहीं जगह नहीं मिली तो हम कवियों के सामने जमीन पर ही बैठ गए कवियों को सुनने । एक कवि ने हम लोगों की दशा देखकर व्यंग्य करते हुए जो कहा उसने हमारा मन जमीन पर बैठकर भी गौरवान्वित हो गया । सामने गद्देदार सोफों पर नेता,मंत्री, मुख्य अतिथि, श्रेष्ठी बैठे हुए थे , कुछ कवि उनके साथ एक ऊंची चौकी पर बैठे हुए थे । उन्होंने सभी को व्यंगात्मक संबोधन करते हुए कहा मेरे सामने गद्दी पर बैठे हुए आदरणीय गद्दारों , मेरे बगल में चौकी पर बैठे हुए आदरणीय चौकीदारों और  हमारी तरफ इशारा करते हुए कहा , और सामने जमीन पर बैठे हुए आदरणीय जमींदारों को मेरा शत शत प्रणाम ! कसम से हमें उस समय ऐसा लगा था जैसे हम ही मुख्य अतिथि हों ।

आधुनिक युग में  प्राकृत भाषा के विकास की संभावनाएं

आधुनिक युग में  प्राकृत भाषा के विकास की संभावनाएं प्रो अनेकांत कुमार जैन अध्यक्ष – जैन दर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली -११००१६ ,drakjain2016@gmail.com प्राकृत भाषा भारत की प्राचीनतम भाषा है जिसने भारत की अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओँ को समृद्धि प्रदान की है | भगवान् महावीर की दिव्यध्वनि में जो ज्ञान प्रकट हुआ वह मूल रूप से प्राकृत भाषा में संकलित हैं जिन्हें प्राकृत जैन आगम कहते हैं |सिर्फ जैन आगम ही नहीं बल्कि प्राकृत भाषा में लौकिक साहित्य भी प्रचुर मात्रा में रचा गया क्यों कि यह प्राचीन भारत की जन भाषा थी | आश्चर्य होता है कि भारत वर्ष की प्राचीन मूल मातृभाषा होने के बाद भी आज इस भाषा का परिचय भी भारत के लोगों को नहीं है | प्राकृत परिवर्तन प्रिय भाषा थी अतः वह ही काल प्रवाह में बहती हुई अपभ्रंश के रूप में हमारे सामने आई तथा कालांतर में वही परिवर्तित रूप में  राष्ट्र भाषा हिंदी के रूप में ,हिंदी के विविध रूपों में हमें प्राप्त होती है | प्राकृत भाषा ने लगभग सभी क्षेत्रीय भाषाओँ को समृद्ध किया है |  आज भाषा के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा ह